बैरी पिया.... - 60 Wishing द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बैरी पिया.... - 60


अब तक :

शिविका की आंखें बड़ी बड़ी हो गई और उनमें आंसुओं की बूंदें भर आई । वो संयम के चेहरे को देखने लगी । संयम ने उसे दिलजानी कहा था । शिविका के दिल में मानो एक गहरी चोट हो गई । उसका दिल घबराने सा लगा । उसने अपने सीने पर हाथ रख दिया ।



संयम ने उसे अपने सीने से लगाया और बोला " चलो चेंज करो.. । Lets go out.... " । बोलकर संयम ने उसे गोद में उठाया और चेंजिंग रूम की ओर चल दिया ।



अब आगे :



संयम ने शिविका को चेंजिंग रूम में अपनी गोद से नीचे उतारा और खुद बाहर जाने लगा ।



शिविका ने उसका हाथ पकड़ा और पूछा " आपने दिलजानी क्यों कहा... ?? " ।



" क्या ये मेरी चॉइस नहीं है.... " संयम ने बिना उसकी तरफ देखे हुए कहा ।

शिविका " चॉइस की बात नही है.. । आपने यही शब्द क्यों कहा.. ?? " ।

संयम उसकी तरफ मुड़ा और बोला " it's a sweet name... मुझे तुम्हारे लिए अच्छा लगा इसलिए कहा । " ।

शिविका एक टक उसे देखती रही ।

संयम ने उसके गाल पर हाथ फेरा और बोला " you are very close to my heart... । ऐसा दिल में कुछ मत रखना जो मुझे पता होना चाहिए.. । तुम्हारा दिल और दिमाग दोनो में बस मैं होना चाहिए.... " । बोलकर संयम बाहर निकल गया ।



शिविका ने अपने गाल पर हाथ रखा और कबर्ड से व्हाइट कलर की maxi dress निकाल ली ।



शिविका ने ड्रेस पहनी और चेंजिंग रूम से बाहर आ गई । ड्रेस स्लीव लेस और डीप नेक वाली थी ।



शिविका बाहर आई तो संयम अपनी घड़ी पहन रहा था। वो भी नहाकर रेडी हो चुका था ।

संयम ने शिविका को देखा तो उसकी कमर पर हाथ रखकर उसे अपने करीब खींच लिया और उसकी आंखों में देखते हुए बोला " lets go... "।

दोनो बंगले से बाहर निकल गए ।

संयम उसे लेकर एक रेस्टोरेंट ले गया ।

संयम ने एक स्पेशल टेबल बुक किया था जो सबसे अलग था । संयम ने चेयर खींचकर शिविका को बैठाया । संयम ने खाना ऑर्डर किया तो उसमे सब कुछ शिविका की पसंद का था।

शिविका हैरान सी संयम को देखती रही । दोनो ने खाना खाया और शाम के वक्त संयम शिविका को बीच किनारे ले गया ।

शिविका सामने के बीच को देखने लगी । संयम ने पीछे से उसे बाहों में भर लिया ।

शिविका ने अपने पेट पर रखे संयम के हाथों को देखा । आपने पेट पर लिपटे संयम के हाथ उसे किसी कवच की तरह लग रहे थे जो किसी भी मुसीबत को उस तक पहुंचने से रोकते थे । शिविका ने उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिए ।

शिविका ने सामने देखा और बोली " क्या कोई अनजाना इतना अपना बन सकता है संयम... ?? " ।

संयम " समय समय की बात है.... । कभी पराया भी अपना हो जाता है तो कभी अपना भी पराया बन जाता है... " ।

शिविका " hmm.... । कुछ बताना है आपको..... । " बोलते हुए शिविका संयम की ओर घूमी ।

संयम उसकी आंखों में देखने लगा ।

शिविका " मैने अपनी जिंदगी में हर अपने को खो दिया है । ऐसा कोई नही बचा जिसे अपना कह सकूं.. । एक ऐसा इंसान भी था जिससे मुझे प्यार हो गया था.... । आपने पूछा था ना कि नरेन कौन है.. ?? नरेन मेरा पहला प्यार थे ।



बोहोत लड़के दोस्त रहे हैं... । लेकिन कभी दिल नही लगाया किसी से.. । पर उनसे प्यार हो गया था... । उनका खयाल रखना , उनका समझाना , उनकी सच्चाई अच्छाई , उनका हर एक अंदाज दिल में उतरता गया ।" बताते हुए शिविका की आवाज लड़खड़ा गई ।



संयम ने उसका हाथ पकड़ लिया ।



शिविका " फिर वो लड़के जिंदगी में आए और सब खत्म कर दिया । न प्यार रहा न परिवार.... " ।



संयम " परिवार का तो तुमने बताया था लेकिन प्यार को क्या हुआ... ?? " ।



शिविका ने नम आंखों से संयम को देखा और उसे लिए वापिस गाड़ी के पास आ गई । दोनो गाड़ी में बैठ गए ।



शिविका ने सिटी हॉस्पिटल के बाहर गाड़ी रुकवाई... और संयम को लेकर अंदर चली गई ।



एक vip वार्ड के सामने खड़ी होकर शिविका ने संयम को अंदर जाने का इशारा किया ।



संगम अंदर चला गया । अंदर जाकर जब उसने bed पर लेटे आदमी को देखा तो आंखें दो से तीन बार झपका दी ।



उसे बाहर से शिविका के रोने की आवाज़ें सुनाई दी । संयम bed की और चल दिया ।



सामने बेहोश पड़े शकस का पूरा चेहरा जला हुआ था । संयम ने उसके उपर डाला कंबल हटाया और उसकी टांगें , कमर और छाती देखी तो सब कुछ जला हुआ था ।



संयम ने फिर से उसे कवर कर दिया और बाहर निकल आया । शिविका बाहर दीवार से टिककर खड़ी थी ।

उसकी आंखें लगातार आसूं बहा रही थी ।

संयम उसके पास आकर खड़ा हो गया ।

शिविका " कानून भी अंधा और उसके रखवाले भी । कुछ लोग जो सच्चाई का साथ देते हैं.. उनके साथ ऐसा कर दिया जाता है । नरेन और उनके कुछ साथी थे जो हमारी मदद कर रहे थे । लेकिन उन दरिंदों ने बिना किसी के डर के पहले मेरे परिवार को खत्म किया और फिर हमारी मदद करने वालों को वहां से ट्रांसफर दे दिया । और नरेन के साथ... " बोलते हुए शिवाक्ष बेबसी से नीचे गिर पड़ी ।



संयम ने उसे नीचे गिरने से रोक लिया ।।



शिविका आगे बोली " और नरेन को उन लोगों ने तेजाब फेंक कर पूरी बॉडी को जला दिया ।। मैं वहां से भाग कर राजस्थान आ गई थी । वहां आने के बाद एक दुकान में टीवी चैनल पर चल रही न्यूज में मैने ये देखा । मेरी दुनिया में जो एक अपना कहने के लिए इंसान बचा था वो भी मरने की कगार पर आ गया । अपना बदला भी लेना था और नरेन का इलाज भी करवाना था.. । इसके लिए पैसा भी चाहिए था और पावर भी । एक बूढ़ा इंसान मिला था मुझे लगा कि वो मदद कर सकता है... तो उससे शादी कर रही थी... । लेकिन फिर आपसे शादी हो गई । आपसे मिलकर नरेन के इलाज के लिए पैसे मिले... । इतने महीनों से बॉडी में movement नहीं है.. बस कुछ सांसें हैं जो चल रही हैं.... । " ।



बोलते हुए शिविका ने संयम के सीने से सिर टिका दिया । शिविका रोते रोते बेहोश हो गई । संयम ने उसे गोद में उठाया और वहां से बाहर निकल गया ।



बंगले में आकर उसने शिविका को बेड पर लेटा दिया । और सेकंड फ्लोर पर बने कमरे में आ गया । जिस कमरे में आया जहां पर बड़ी बड़ी तस्वीरें दीवार पर लगी हुई थी । संयम जेब में हाथ डाले सविता सानियाल और जयवंत खुराना की तस्वीर के आगे खड़ा हो गया ।



तस्वीर के आखिर में लिखे नामों पर उसने हाथ फेरा और बोला " destiny पलटती है mom.... । खून के रिश्तों में एहसास चलते हैं... । एक को दर्द दो तो दूसरे को दर्द का एहसास होता है.. । आपको जो दर्द मिला वो आपको दर्द देने वालों को भी मिलेगा... । " बोलते हुए संयम ने बगल में लगी तस्वीर के चेहरे को देखा जिसे pins से भरा हुआ था । संयम ने पास रखे pin box से एक और pin उठाई और उस तस्वीर के चेहरे पर मार दी ।



अगली सुबह :



शिविका उठी तो उसने खुद को कमरे में अकेला पाया । वो नीचे आई तो दादी मंदिर में दिया जला रही थी । शिविका उनके पास जाकर बैठ गई ।



दादी " तबियत तो ठीक है ना... " ।



शिविका ने सिर हिला दिया ।



दादी " चेहरा उतरा हुआ क्यों लग रहा है... ?? " ।



शिविका " पता नही दादी... । शायद कल कुछ ज्यादा ही रो ली... " ।



दादी ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोली " खुशियों का मौका भी दो शिविका... । खुद को भी और इस घर को भी.. । " ।।



शिविका को समझ में नहीं आया । दादी वहां से बाहर चली गई । शिविका ने मूर्ति के सामने हाथ जोड़े और दादी के पीछे बाहर निकल आई ।



दादी खाना खाने बैठी तो शिविका ने उनकी थाली में खाना परोस दिया ।



और एक थाली में खाना निकाल कर वो पास के कमरे में चली गई । । उस कमरे में अब आदित्य रहता था । शिविका ने उसे बाहर से अंदर ला दिया था और डॉक्टर्स को भी उसे दिखाया था । उसे मेडिसिन दी जा रही थी । शिविका अंदर आई तो आदित्य दरवाजे की ओर ही देख रहा था मानो शिविका का ही इंतजार कर रहा हो.. ।



शिविका मुस्कुराते हुए उसके पास आई और उसके बगल में बैठकर उसे खाना खिलाया । फिर उसे दवाई खिला दी ।



शिविका वहां से बाहर निकल गई । संयम ने देखा तो कुछ पल को सोच में डूब गया । फिर गहरी सांस ली और मुट्ठी बना ली ।



संयम नाश्ता करने बैठा तो इतने में मोनिका बंगले में आ गई ।

मोनिका ने संयम का हाथ पकड़ा और बोली " चलो संयम.. हम बाहर खाना खायेंगे.... " ।

उसका इस तरह अचानक से आकर संयम को बाहर लेकर जाना किसी को अच्छा नहीं लगा ।

वाणी जी बोली " सब यहां साथ में खाना खा रहे हैं मोनिका... । तुम भी बैठो और खाना खा लो... " ।

मोनिका " मुझे यहां नही खाना दादी.. । और संयम भी मेरे साथ ही खायेगा.. । चलो संयम... " बोलते हुए मोनिका उसे बाहर ले जाने लगी तो शिविका बोली " ब्रेक फास्ट ट्रीट दे रही हैं sister in law... तो दोनो को दीजिए ना... । Afterall newly married couple को हर जगह साथ में ही खाने के लिए बुलाया जाता है ।



तो मैं भी साथ चलती हूं... " बोलते हुए शिविका संयम की बाजू पकड़े उसके बगल में खड़ी हो गई ।



मोनिका " मैने तुम्हे साथ में इनवाइट नही किया है.... " ।

शिविका " संयम को इनवाइट कीजिए या मुझे.. एक ही बात है.. । हम दोनों आयेंगे.... " ।



मोनिका ने संयम को देखा और बोली " संयम पूरे एक महीने से तुम गायब थे और इस लड़की ने ऐसी ही बदतमीजियां की हैं मेरे साथ.. । क्या अब तुम्हे नहीं लगता कि तुम्हे मेरा साथ देते रहना चाहिए... । क्या अब तुम भूल चुके हो कि हमारा साथ कितना गहरा है... " ।

संयम " मुझे सब याद है मोना.. । तुम्हारा साथ भी तुम्हारा प्यार भी और उसका इजहार भी.. । जब तक इजहार ना हो तब तक प्यार प्यार नहीं होता और तुमने वो सब किया था । " ।



संयम बोल रहा था तो मोनिका के दिल पर मानो फूलों की बरसात हो रही थी । वह मुस्कुराते हुए एक जीत वाले एहसास के साथ शिविका को देखने लगी ।

वही शिविका हैरानी से संयम को देखे जा रही थी । संयम ने तो कहा था कि उसके दिल में मोनिका के लिए अब कोई जगह नहीं थी तो फिर अभी वह इस तरह की बातें क्यों कर रहा था... ?? ।



संयम ने शिविका की ओर देखा और बोला " तुम लोग खा लो... । मैं और मोना बाहर खा लेंगे... " । बोलकर संयम ने शिविका का हाथ अपने बाजू से हटा दिया ।



शिविका स्तबद खड़ी उन दोनों को जाते हुए देखती रही । उसकी आंखें भर आई ।