जीवन सरिता नौन - ५ बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जीवन सरिता नौन - ५

दूसरा अध्याय

बांटत द्रव्‍य अपार, चल दई आगे गंगा माई।

पर्वत काटत चली, गुप्‍त कहीं प्रकट दिखाई।।

पर्वत अन्‍दर जल भण्‍डारन, विन्‍ध्‍याटवी हर्षायी।

खुशियां लिए अंक में अपने, नौनन्‍दा पर आई।।35।।

नौंनन्‍दा, गो नन्‍दा हो गया, अति मन में हर्षाया।

नौन नदीयहां लवण हो गई, लवणा नाम सुहाया।।

सिया राम कह, सियाबाई से, चलती यहां तक आई।

कई नाम, धायी बन बहती, भरती गहबर खाई।।36।।

गिर्द क्षेत्र को धन्‍य कर दिया, गिरदावरी की न्‍यारी।

विन्‍ध्‍याचल को काटत, पाटत, कहीं न हिम्‍मत हारी।।

बड़भागी नौंनन्‍दा हो गया, बड़भागी जन जीवन।

सबने समृद्धि पायीं सारी, कहीं न कोई टीमन।।37।।

हिमगिरि से ज्‍यौं प्रकट भई हो, यह तो यमुना गंगा।

हिम्‍मत गढ़ को, आय बनाया जिसने बहुत ही चंगा।।

कोई न जाना भेद है इसका,जान वेद ना पाये।

कैसे क्‍या हो गया यहां यह,अचम्‍भे में सब आए।।38।।

दिव्‍य तहां एक धाम, शिवा शिव जहां विराजे।

नंदी दहाडे तहां अनूठा, गर्जना सब सुख साजे।।

पर्वत भी हिल रहे, गर्जना सुनइतनी भारी।

क्‍या होना भगवान, डर रहे सब ही नर नारी।।39।।

अन होनी कछु होत, सोचते मन सब भाई।

क्‍या अकाल की घोर, गर्जना मन दहलाई।।

सब, मन चिंतालीन, याचना शिब से करते।

अवढ़र दानी क्‍या होना है, विनती करते।।40।।

पूज्‍य पुजारी समझाते तब, डरो न मन में भाई।

प्रकट हो रहीं, इस पर्वत से, खुशियां हमें दिखाई।।

यह सब जो हो रहा, लगत शुभ होने वाला।

कोई अशुभ नहीं होय, धैर्य धर सोचो लाला।।41।।

यहां विराजे अलख, उन्‍हीं की लीला सारी।

नन्‍दी अर्चन बीच, प्रकट रही सरिता न्‍यारी।।

ध्‍यान, अर्चना करो, सुनें शिव सबकी विनती।

होगा जग कल्‍याण, गिनो शुभ सौ तक गिनती।।42।।

विन्‍ध्‍याटवी को लखो, पर्ण – पतझड़ में आए।

सुमन खिले बहु मौति, लगत गंगा शिव लाए।।

खग कुल वाणी सुनो।, गीत मिल सब,ज्‍यों गाते।

सब लक्षण शुभ लगत, प्रकृति लक्षण बतलाते।।43।।

चींटीं चढ़त पहाड़, लिए अण्‍डा यहां, जानो।

प्रकट हो रही गंग, सभी शुभ लक्षण मानो।।

पपीहा पिउ पिउ रटत, भारई की घन घोरैं।

अमराई में बोलत कोयल, पर्वत ऊपर मोरैं।।44।।

यह सब तुम लख रहे, शुभौं के लक्षण सारे।

घबराओ नहीं भक्‍त, मिटें सब दुख तुम्‍हारे।।

देखो तो उस ओर, मेघ- माला- सी आई।

जल प्‍लाबन सा लगे, प्रगट गंगा दिखलाई।।45।।

विनती शिव सुनलई, कहो जय जय, शिव- सारे।

लवण खाई से प्रकट भई, कहो यह लवणा प्‍यारे।।

मां अबनी ने, अपने उर में, गहराई दी जानो।

जन जीवों की तृषा मिटाने, बांध नौंनन्‍दा मानो।।46।।

कितना भी विस्‍तृत विशाल हो, दुनियां का यह रूप।

किन्‍तु सही में, बीज बड़ा है, सब उसके अनुरूप।।

इसी सरोबर से सरिता ने, अपना रूप लिया है।

जन –जन की मेहमान, सब को समृद्ध किया है।।47।।

बचपन का अनुराग, कलोलैं, अजिर अंक में कीनी।

बसुन्‍धरा की रम्‍य चूनरी, अपने रंग ही, रंग दीनी।।

लाड़ – प्‍यार सबसे ले, लेकर सबको देती आई।

जीवन की, जीवन अनु‍भूति सबको रही बताई।।48।।

नव रस का आनन्‍द यहां है, नव निधियों का मूल।

नव गुण की भण्‍डार भूमि है, मानो- सब कुछ भूल।।

यह नौंनन्‍दा परम धन्‍य है, बृह्म धाम- सा रूप।

जहां जान्‍हवी सी नि:सृत हो, अवनी की भवभूति।।49।।

माला माल ताल हिम्‍मतगढ़, वर्षा वैभव प्‍यारा।।

धन धान्‍यों से हराभरा कर, रूप बनाया न्‍यारा।।

करत कलोलें मनोभूमि से, आगे पंथ निहारा।

बे रिणियां कर ग्राम बेरनी, वैभव बांटा सारा।।50।।