जीवन सरिता नौन - ७ बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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जीवन सरिता नौन - ७

स्‍वीकारो इस पाबन जल को, मुझको यहां मिलाओ।

खुशी हुआ तब सुनत मैंगरा, आओ भाई आओ।।

चीनौरिया मिल, चला मेंगरा, ग्राम गोबरा आया।

कोशा को अपना कर चलता, मिलघन को सरसाया।।69।।

धीरज धार धिरौरा चल दी, मिलघन से बतियायी।

जाबल और कटीला से मिल, ग्राम लिधोरा आई।।

लयी बिठाय किशोली ओली, झोली भर दी सारी।

चली अगारी सभी बांटती, श्री नगर की तैयारी।। 70।।

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तृतीय अध्याय

यहां बनाया विश्राम स्‍थली, फ्लाई बांध अनूपम।

प्राकृतिक सौन्‍दर्य धरा का, अद्भुत अगम सरूपम।।

गिरती जल धारा ऊपर से, लगत नर्मदा माई।

सुहानी फुहारैं बन जल गिरता, सहात्राधार कहाई।। 71।।

जलधारा का वेग रोककर, नहर निकाली एक।

ग्राम चिटौली, काशीपुर अरु सालवई से लेख।।

चली बेरखेरा, खोड़न, धरती हरिअल कर दीनी।

गन्‍ना, धान और गेहूं से, हरित चूनरी कीनी।।72।।

आगे चलकर, लोहागढ़ को, स्‍वर्णहार पहनाया।

ताल, तलैया भरत चली, कारखानों को सरसाया।।

चली बरोठा, कंचनपुर भी, डबरा शुगर मील चलाया।

गन्‍ना से शक्‍कर वन नम्‍बर, भारत नाम कमाया।।73।।

गन्‍ना मिल अब नहीं, मगर यहां शनि धाम को पाओ।

नवग्रह मंदिर है विशाल अति, भारत नाम कमाओ।।

डबरा तो अब भी रहा डबरा, मंगरौरा प्‍यास बुझाई।

कंचनपुर, चांदपुर के संग में, कर्रा से बतियायी।।74।।

चांद, चांदपुर को कर दीना, रूसी अरूसी मनाई।

बेलगाड़ा को सब कुछ देकर, गैंड़ोल की सुखदाई।।

चैतूपाड़ा, चरणामृत पाकर, धन्‍य हुआ है भारी।

नौन नहर बांटत धन सारा, डबरा को सुखकारी।।75।।

ऑटोमैटिक नौन बांध है, जो श्री नगर के पास।

इसे मसूदपुर भी कहते है, हनुमत पाया साथ।।

आगे चली नौंन हर्षायी, जलधारा के साथ।

बांध सुहाना, सुन्‍दर प्‍यारा, करता पूरी साध।।76।।

समतल बहती रही यहां तक, उद्गम से यह जानो।

अब प्रस्‍तर खण्‍डों में चलकर, अगम रूप पहिचानो।।

नुन्‍हारी के जन जीवन को, बहुविधि से समुझाती।

नूंन्‍हारी, पावन काया कर, क्‍यों मन में सकुचाती।।77।।

 सिमिरिया को समझाया, करो फसल मनमानी।

धरलो मोटर पम्‍प बहुत से, मैं देऊंगी पानी पानी।।

चलत अगारी चित ओली ले, चिटोली को समुझाई।

कवि की मन स्‍थली इससे, गहरी गरिमा पाई।।78।।

सती से कहती सुन सती।, तट पर बसना सीखो।

मेरा जल पा, जलज बनोगे, अबनी अपनी सींचो।।

सुन सती ने, विधुत मोटर, दयीं किनारे रोप।

जिससे सारेजन्‍म जन्‍म के, दैन्‍य हो गए लोप।। 79।।

इधर चिटौली दोनों हाथो, मोदक ले भरपूर।

विधुत मोटर और नहर से, फसलें लेती भूर।।

 शिव दरबार चिटौली आकर, क्रीड़ा करी अनूप।

जिसकी कीर्डाका प्रतिबिम्‍बन, है जीवन अनुरूप।।80।।

आशुतोष  मंदिर के बांए, सरित प्रवाह अपार।

सुन्‍दर सीढ़ी, अद्भुत क्रम से, गहरी सुमन बहार।।

सत गज दूर, सरिता के तट पर युग गुम्‍बद पहिचान।

अचल समाधि लीन हरि पद में, भैरव- नन्‍दी अनुमान।।81।।

सदियां बीतीं, युग परिबर्तन, जिन्‍हें न पाया भेद।

ऐसे दुस्‍तर काल गाल में, क्रीड़ा करते अभेद।।

अगम प्रवाह थपेड़ों में भी, ध्‍यान न अपना टाला।

मौन गीत के गायक सच्‍चे, अपना प्रण ही पाला।।82।।

जब जब झांका जल में इनसे, ले गहराई ध्‍यान।

हिलै शीश, धड़कन हो दिल में, चरण कांपते मान।।

चेतना भी निश्‍चेतन होती, जल- माया का जंजाल।

हर जीवन की यही कल्‍पना, चलो मिलाकर ताल।।83।।

 खडी मेंहदी आरक्‍त हृदय ले, हरितांचल के साथ।

चूमत सदां सुहगिन कर, पद, अरुण बनाती हाथ।।

अचल तुम्‍हारा प्‍यार प्रामाणिक, झूमो प्रिय संग नाचो।

झूमत चूमो अनंगमाल को, परिणय के रंग रांचो।।84।।

सचमुच ही गुल मेहंदी तुम हो, प्रिय भविष्‍य की ग्‍याता।

जीवन को आनन्‍द दायिनी, जोड़ा सरिता से अपना नाता।।

आकर निकट बैठता जो भी, भ्रान्ति शान्‍त हो जाती।

जीवन की अनुभूति उभरती, आत्‍म शान्ति अपनाती।।85।।

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