जड़ – जंगम, घबड़ाये भारी, हिल गए पर्वत सारे।
त्राहि। त्राहि मच गई धरा पर, जन जीवन हिय हारे।।
ताप तपन पर्वतहिले, चटके, स्रोत निकल तहांआए।
निकले उसी बाव़डी होकर मीठा जल बावडी का पाए।।18।।
जड़ जंगम, स्याबर सबका, रक्षण प्रभु ने कीना।
यौं ही लगा,इसी बावडी ने, अमृतजल दे दीना।।
इक झांयीं सिया सी मृगाजल में, लोग जान न पाए।
लुप्त हो गई इसी बाव़डी, यह संत जन रहे बताए।। 19।।
जंगल,जन- जीवौं हितार्थ, प्रकटी तहां, गंगा आई।
सब जन जीवी मिलकर, करतेस्तुति मन भाई।।
सिया बाबड़ी गंग, नाम धरा,सब संतन ने उसका।
प्रकटी- गंगा भू-लोक, सुयश छाया जग जिसका।।20।।
संतन भीड़ैं भी भयीं भारी, लगीं धूनियां अधिकाई।
यज्ञ तहां रच दई संतों ने, जयति – जय गंगा माई।।
कैमारी भुयीं धन्य भई, निकरी सरिता बड़भागी।
रेंहट – चराई आदि, सबन की, ही किस्मत जागी।।21।।
जंगल – मंगल भ्ये, जीव जन्तु सुख पाए।
हर्षित भए सब लोग, सभी ने मंगल गाए।।
ऋषियन रच दई यज्ञ, वेद मंत्रों को गाया।
शाम गान के साथ, ऋचा सुन जग हर्षाया।। 22।।
याज्ञ धूम नभ जाय, मेघ माला कोलाई।
बर्षत मेघ अपार, धरा ने तब धीरज पाई।।
जंगल भए गुल्जार, सजे पातों तरु प्यारे।
शान्त धरा हो गई, तहां रविं तापहु हारे।।23।।
हर्ष भरा जन जीवन में, सबको सब कुछ मीला।
सिया बाबड़ी गंगा प्रकटी, देखी प्रभु की लीला।।
इसी तरह, सब जगह, प्रकट भयीं गंगा माई।
धरती का सुख सार बनी, जन जन सुख दाई।।24।।
जग सुख बांटन हेतु, सभी सरिताएं जानो।
जन – जीवन उद्धार, रूप ईश्वर का मानो।।
रहा नियति क्रम यही, प्रकट हो, आगे बढ़ता।
नई-नई रचनाएं करने सदां, सब कुछ गढ़ता।।25।।
महाराम पुर,रेंहट, धरा सिंचित कर डाली।
सबने स्वागत किया, सभी ने सुविधा पाली।।
आगे को बढ़ चली, गांव सिरसा को सरसाया।
कारस देव की कृपा, यही जन जन ने गाया।।26।।
बांट सुयश, सुख सार, चल भई, जग हितकारी।
कई ठाम, कई धाम, बना दए तहां मंगल कारी।।
झर झर, सर सर चली, घाटी गांव सुख पाया।
ताल, तलैयां भरे, धाम – धुवां का नियराया।।27।।
हनुमत धुंबा धाम के अद्भुत, अद्भुत उनकी माया।
भक्त फाईया मंदिर देखो, मानस कुण्ड सुहाया।।
मनोकामना पूरीं होतीं, जो परसे जल पाबन।
करही, पाटई, सबराई भी, गाती गीत सुहाबन।।28।।
सिया बाई प्रकटी गंगा ने, सब को बहु धन बांटा।
ताल – बाबरी, बोरिंग भर दयीं, कहीं न कोई घाटा।।
पहाड़ी पर्वत, झरना झरते, जल मय धरती सारी।
लहरातीं फसलें हर्षातीं, फूलन – झूलत क्यारी।।29।।
कर दीनी आरोन सुहानी, बाग – बगीचे न्यारे।
कोयल गीत अलापें तहां, बोलत पपिहा प्यारे।।
नित्य मयूरी, नृत्य करैं, मृगनन दौड़ निराली।
शशक छलांगें भरते देखे, कहीं न अवनी खाली।।30।।
सिया बाई से गंगा चलती, बरई गांव पर आई।
आमा आमी अमन कर दए, अबनी सुमन सुहाई।।
पानी भर पनिहारीं गाती, पनिहार गांव सुहाना।
पर्वत कंदरा फोड़ बह रही, गंगा रूप प्रमाणा।।31।।
सभी बरई के निकट, भूमि हरियल कर डाली।
घर घर भर दए धान्य, नहीं कोई, क्यारी खाली।।
अनगिन फसलै लेत, कृषक जन खुशी मनाबैं।
हर – हर गंगे मात, सभी आरति धुन गाबैं।।32।।
पानी-पानी भर दयी, तहां पनिहार की धरती।
गंग- अंक में बैठ, कलोलैं मन हर करती।।
मनमस्ती के साथ, भव्य मंदिर बनवाए।
कथा अनेकों करी, सुयश सबही ने पाए।। 33।।
पानि – पात भर गई, धरा की सब अंगनाई।
हिल मिल रहैं जन जीब बनें ज्यौं भाई भाई।।
खुशियों का संसार यहां, नहिं दुख का साया।
मांगा जिसने जो कुछ, उसने सब कुछ पाया।।34।।