हीर... - 33 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 33

असल में होता क्या है मालुम.. सच्चा प्यार एक ऐसी फ़ीलिंग होता है जो किसी भी इंसान को अपने साथी के लिये इतना सेंसिटिव कर देता है कि उसे हल्की सी खंरोच भी आ जाये तो उसकी चिंता में मन हर समय परेशान रहने लगता है.. भले वो इतना परेशान ना हो जिसे खंरोच लगी लेकिन सामने वाला यही सोच सोचकर परेशान होता रहता है कि काश... ये चोट उसकी जगह मुझे लगी होती तो कितना अच्छा होता, प्यार में बिताये गये दिन महज दिन नहीं होते बल्कि एक पूरा का पूरा दौर होते हैं.. एक ऐसा दौर जिसकी यादें तब तो बहुत खूबसूरत लगती हैं जब वो प्यार पूरा हो जाये लेकिन.. प्यार जब अधूरा रह जाता है ना तब वही खूबसूरत पल, वो खूबसूरत दौर... हमेशा के लिये एक टीस की तरह जिंदगी की सबसे भयानक और मन को तोड़ देने वाली याद बनकर इंसान को हमेशा अपने साथी की कमी का एहसास कराता रहता है और दिल में एक ऐसा रिक्त स्थान बना देता है जिसे भरने का कोई विकल्प दिखाई ही नहीं देता... इंसान ऊपर ऊपर से तो जिंदा दिखता है लेकिन अंदर ही अंदर वो हर पल मर रहा होता है अपने साथी की चिंता में... उसके एहसास की कमी से और किसी और के उसके ऊपर होने वाले स्पर्श के एहसास से....... 

राजीव के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था... वो जब सबके साथ होता या कहीं बाहर जाता तब तो वो खुद को नॉर्मल दिखाते हुये सबसे पहले की ही तरह बिहेव करता लेकिन.. जैसे ही वो अपने कमरे में आता या कहीं अकेला होता.. अंकिता की यादें, उसकी खुशबू, उसका एहसास, उसकी आवाज़.. उसकी स्माइल और उसके हमेशा के लिये खुद से दूर हो जाने का डर उसे हद से जादा उदास कर देता इतना उदास कि अगर वो एक जगह पर बैठा हुआ है तो उसके बारे में सोचते सोचते घंटों वहीं बैठा रहता और अगर कहीं गया होता तो अपनी कार में या बाइक पर बैठे बैठे सिर्फ अंकिता के बारे में ही सोचता रहता, उसे ये होश ही नहीं रहता कि वो जहां खड़ा हुआ है वहां बेवजह वो क्यों खड़ा हुआ है... सिर्फ सत्ताइस साल की उम्र में राजीव की जिंदगी से दुनिया के सारे रंग जैसे खत्म हो गये हों वैसे उसे सब कुछ सूना सूना सा लगने लगा था!! 

दिल्ली से लौटने के बाद से उसने ड्रिंक करना और अंकिता को कॉल करना तो बंद कर दिया था लेकिन उसकी यादें... उसकी यादों को खुद तक आने से नहीं रोक पा रहा था...!! 

"जागती हुयी आंखों को तो समझा लिया जाये कि अब वो हमारे नहीं रहे लेकिन सोती आंखों में आने वाले सपनों को कोई कैसे समझाये कि उन पर हमारा अब... कोई हक नहीं रहा!!" 

यही सब हो रहा था राजीव के साथ... अंकिता की यादें किसी भी कीमत पर उसका पीछा छोड़ने के लिये बिल्कुल भी तैयार नहीं हो रही थीं बल्कि हर गुजरते दिन के साथ उसकी यादें... राजीव को अंदर ही अंदर और जादा तोड़ती चली जा रही थीं!! 

खुद को नॉर्मल दिखाते हुये और अंकिता को याद करके हर समय दुखी रहते रहते.. एक एक दिन करके ऐसे ही जिंदगी गुज़रने लगी थी राजीव की... 

राजीव को दिल्ली से आये हुये करीब पंद्रह दिन हो चुके थे कि एक दिन उदास और परेशान राजीव ने चारू को कॉल करके कहा- चारू मुझे मिलना है तुझसे... 

चारू ने कहा- ठीक है... ऑफिस के बाद घर आ जाती हूं!! 

राजीव- नहीं घर नहीं..कहीं बाहर चलते हैं.. 

चारू ने कहा- ठीक है.. तू एक काम कर टैक्सी से मेरे ऑफिस आ जा फिर यहां से मेरी कार से चलेंगे और वापसी में मैं तुझे घर ड्रॉप कर दूंगी!! 

इसके बाद चारू से बात करके तय समय पर राजीव उसके ऑफिस चला गया और वहां से उसके साथ कहीं और जाने के लिये निकल गया... 

चारू के साथ निकलकर राजीव ने उससे कानपुर के एक फेमस चाय वाले के यहां चलने के लिये कहा और वहां पंहुचने के बाद कार में ड्राइविंग सीट के बगल वाली सीट पर बैठे हुये उसने चारू से कहा- यार चारू... मन बहुत खराब है यार, जॉब का कुछ कर ना.. घर में मन नहीं लगता!! 

चारू ने कहा- तुझे तो पता है ना यार कि बैंकिंग इंडस्ट्री में जनवरी, फरवरी और मार्च में अपॉइंटमेंट नहीं होते हैं बस इसीलिये डिले हो रहा है, बस मार्च मार्च की बात और है.. अप्रैल से तेरी ज्वाइनिंग हो जायेगी, इवेन मैंने तो तेरा सीवी भी लखनऊ एरिया हैड ऑफिस में फॉरवर्ड कर दिया है... 

राजीव ने पूछा- तेरे पास मेरा सीवी कहां से आया.. मैंने तो भेजा नहीं!!

चारू.. राजीव के सिर पर हाथ मारते हुये बोली- बेटे तेरा सीवी मैंने ही बनाया था जब तू दिल्ली वाली जॉब में अप्लाई करने जा रहा था, वही मेरे पास मेल में सेव था.. उसी में मैंने थोड़ा चेंज करके यहां फॉरवर्ड कर दिया!! 

"ओह हां.. मुझे तो याद ही नहीं रहा!!" कहते हुये राजीव उदास उदास सी हंसी हंसने लगा...

राजीव की ये उदास सी हंसी देखकर चारू ने कहा- राजीव तू ठीक तो है ना...

राजीव जो वैसे ही इमोशनल सा रहने लगा था.. चारू की बात सुनकर उसका गला भर आया और "क्या ठीक है.. ऐसा ही है सब!!" कहते हुये उसने अपना मुंह चारू की तरफ़ से दूसरी तरफ़ कर लिया.... 

चारू समझ गयी थी कि राजीव इमोशनल हो रहा है इसलिये वो उसे समझाते हुये बोली- राजीव.. तू अंकिता को भूल क्यों नहीं जाता यार... 

राजीव ने अपने रुंधे हुये गले से कहा - नहीं भूल पा रहा चारू बहुत कोशिश करता हूं पर नहीं हो पा रहा मेरे से, घर पर खाली पड़े पड़े दिमाग और जादा उसके बारे में सोचता है... 

"बस कुछ दिनों की बात है.. अप्रैल के फर्स्ट वीक से तेरी ज्वाइनिंग हो जायेगी फिर सब ठीक हो जायेगा..." चारू ने अंकिता की बात को जादा ना खींचते हुये अपनी बात बोली ही थी कि तभी चाय की दुकान में काम करने वाला लड़का चाय लेकर वहां आ गया... चाय पीने के बाद चारू और राजीव वहां से घर के लिये निकल गये... 

क्रमशः