नक़ल या अक्ल - 58 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 58

58

नई मंजिल

 

सुबह सात बजे की ट्रैन से गिरधर, गोपाल को लेकर कानपुर के लिए रवाना हो गएI गोपाल ने उन्हें समझाया भी कि ‘जब निर्मला दीदी वहाँ नहीं जाना चाहती तो फिर कानपुर  जाने का फायदा ही क्या हैI’  उन्होंने उसे झिड़कते हुए कहा, ‘कल को लोग  क्या कहेंगे!!! कि  अम्मा नहीं थी इसलिए बाप ने बच्चो का घर बसाने  की कोई कोशिश नहीं की I’  यह सुनने के बाद गोपाल से अब कुछ कहा नहीं गया I 

 

दोपहर  बारह  बजे के बाद, जब निर्मला बिरजू के कैफ़े में कम्प्यूटर सीखने आई तो उसका मुँह लटका हुआ था I उसे उसकी उदासी  की वजह पता थी पर उनसे वहाँ बैठे गॉंव के लडकों के सामने कुछ कहना ठीक नहीं समझा I जब वो जाने लगी तो उसने उसे शाम को नहरके पीछे वाली जगह पर मिलने के लिए कहा तो उसने हाँ में सिर हिल दिया I 

 

मधु आज फिर हरीश से उसी झोपड़ी  में  मिली है, वह झोपड़ी  में  बिछी  घास पर लेटी  हुई  है और हरीश उसके बदन से खेल रहा है I  उसने अब धीरे से कहा, “तुमसे एक बात कहो?”

 

हाँ जान !!! वह  उसकी गर्दन को चूमते हुए बोला I

 

तुम मुझे लेकर कही दूर चले जाओ I 

 

मैं तुम्हें कहा लेकर कहाँ जाऊँगा?

 

कहीं भी!! जहँ पर हम तीनों हो, मैं तुम और हमारा बच्चा I

 

उसने अब उसके होंठ चूमे और कहा, “मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि तीन लोगों का पेट भर  सको I  मेरे घरवालों ने मुझे पहले ही बेदखल कर दिया है, तेरे पति के खेतों  में काम करता हूँ और उसी से अपना गुज़ारा चल जाता है I 

 

फिर हमारा क्या होगा??

 

होना क्या है, वही आराम से रह, जैसे चल रहा है, चलने दें, अब उसने उसकी चोली में हाथ दे दिया तो वह हल्के से चिल्लाते हुए बोली,  “और अगर  यह तेरा बच्चा न हुआ तो???”

 

वह उसे गुस्से से घूरता हुआ अलग हो गया I  सारा मूड़  खराब कर दिया I  मधु ने उसके कंधे पर सिर  रख दिया I 

 

उसने अब गहरी साँस लेते हुए कहा, “ऐसा होना  तो नहीं चाहिए I” 

 

“और अगर ऐसा हो गया तो......  मैं उसके साथ भी एक रिश्ते  में  हूँ, “अब उसने मधु को खुद से दूर  झटक दिया और झोपड़ी  से निकलते हुआ बोला,” मैं जा रह हूँ, तू भी घर जा,” उसने फिर उसे टोका, “तूने मेरी बात का ज़वाब  नहीं दिया,” वह उसके पास आया और उसका मुँह कसकर पकड़ते  हुए बोला, “मैं तुझे जान से मार दूँगा I” यह कहकर  वह उसे झटककर  चल गया I “प्यार में जान दी जाती है न कि ली जाती है” यह बोलते ही मधु की आँख से आँसू आ गए I

 

राधा किशोर के लिए खाना लेकर खेतों में आई तो किशोर उसे देखकर हैरान हुआ और उससे बोला, “राधा तू यहाँ क्या करने आई  है, मैं घर आ  तो रहा था,” “मेरा घर में  मन नहीं लगा रहा था, “क्यों क्या हुआ?” “तुम्हारी  अम्मा मुझे ताने देती रहती है,” “कुछ दिनों के बात है, वे लोग सब भूल जायँगे I” “कुछ दिनों के लिए मुझे मेरे मायके  छोड़  आओ, थोड़े  दिन वहाँ रहना चाहती हूँ,” “ठीक है,” उसने प्यार से उसके गाल पर हाथ रखते हुए कहा  I

 

शाम को जब निर्मला बिरजू से मिलने पहुँची तो उसकी रुलाई फूट पड़ी, वह  उसे समझने लगा, उसने उससे कहा भी कि ‘हिम्मत तो करनी होगी I’ तभी बारिश की एक बून्द उसके चेहरे पर गिरी और बिरजू  अपनी उंगलियों  से उसे साफ़ करने लगा I तभी बारिश तेज़ हो गई  और वह वही बने एक छोटे से घासफूस के अस्तबल में ले गया, दोनों  क दूसरे के पास खड़े है और दोनों एक दूसरे की सांसो  को महसूस कर रहे हैं I तभी बादल  गरजे और निर्मला उससे सटक गई I उसका हाथ भी निर्मला की कमर पर चला गया और वह उसकी और मुड़ी और तभी बिजली कड़कने के साथ दोनों के होंठ आपस में  टकराने लगे I

 

एक दूसरे को पाने की चाह तेज़ होती बारिश के साथ बढ़ती गई I दोनों एक दूसरे को बेतहाशा  चूमने लगे I  फिर बिरजू ने निर्मला  का दुप्पटा  हटाया और धीरे धीरे दोनों के कपड़े एक दूसरे के अंग से सरकने लगे I  अब वह उसके बदन के ऊपर सवार हुआ तो निर्मला के मुख से एक आह !!! निकली और वो उसके होंठ चूमने लगा I फिर  कुछ ही पल में  वे दोनों चरम सुख का आनंद लेने लगे I

 

गोपाल और गिरधर कानपुर से वापिस लौटे तो काफी भीग गए थें, कपड़े  बदलने के बाद, सोनाली ने उनको चाय  दी तो उसके बापू  ने पूछा, “नीरू कहाँ है ? दीदी बाहर तक गई है I” “यह लड़की इतनी बरसात में क्या कर रही है?”  “अरे! बापू वो पहले गई थी, बारिश तो बाद में आई है I” उसने सफ़ाई  दी, “आप बताए, वहां जाकर क्या बात हुई?” “वो लोग तो भले लोग है, वह अपनी निर्मला को बेटी  बनाकर रखते हैं I’  अब सोनाली ने गोपाल को देखा, “सोना!! मुझे तो सब नाटक लगा I दीदी सही कह  रही है,  दो  चार घंटे में  किसी का क्या पता चलता है I” “मैंने  तो सोच लिया है, एक महीने इस लड़की को और रहने दो, फिर मैं उसे खुद वहाँ छोड़कर आऊँगा I” दोनों भाई-बहन ने कोई ज़वाब  नहीं दियाI

 

वही दूसरी तरफ बिरजू और निर्मला एक दूसरे से लिपटे पड़े हैं I बिरजू उसके लम्बे बालों में हाथ फेरता हुआ कहने लगा,

 

निर्मू !! तुम्हें आज के इस पल के लिए कोई अफसोस तो नहीं है???

 

अफसोस कैस? मैं तुम्हें पसंद करने लगी हूँ पर मैं शायद तुम्हारे लायक नहीं हूँ I

 

अब उसने निर्मला की आँखों में देखते हुए कहा I

 

“मुझे भी तुम अच्छी लगने लगी हो और यह मत सोचना कि तू मेरे लायक नहीं हूँ” अब वह फिर उसके होंठ चूमने लग गया I बारिश के बंद होते ही रिमझिम बिरजू के कैफ़े में गई तो वहाँ राजवीर बैठा हुआ था, उसके इंटरनेट से एक वेबसाइट देखी और ऑनलाइन फॉर्म भरा फिर राजवीर को पैसे पकड़ाने लगीI उसने पैसे लेते हुए पूछा,

 

“जान सकता हूँ, क्या कर रही  थी?”

 

तुमसे मतलब? वह वहाँ से निकल गईI उसके जाते ही राजवीर उसके कंप्यूटर पर बैठा और कंप्यूटर में  हिस्ट्री खोलकर चेक करने लगा I “रिमझिम हमें भी पता चले कि तुम कहाँ बरसने की तैयारी कर रही होI”