पानी नहीं पीने को, चांद पे जाएंगे! Review wala द्वारा स्वास्थ्य में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • तेरी मेरी यारी - 1

      (1)ग्रीनवुड पब्लिक स्कूल की छुट्टी का समय हो रहा था। स्कूल...

  • Pankajs Short Stories

    About The AuthorMy name is Pankaj Modak. I am a Short story...

  • असली नकली

     सोनू नाम का एक लड़का अपने गाँव के जंगल वाले रास्ते से गुजर र...

  • मझली दीदी

                                                   मझली दीदी   ...

  • खामोश चाहतें

    तीन साल हो गए हैं, पर दिल आज भी उसी पल में अटका हुआ है जब पह...

श्रेणी
शेयर करे

पानी नहीं पीने को, चांद पे जाएंगे!

मान लीजिये आज आपने 20 रुपये की पानी की बोतल खरीदी और पीकर फेंक दी तो इस बोतल का 90 फीसदी हिस्सा 27-28 वीं सदी में नष्ट होगा, 
करीब 450 से 500 साल लगेंगे❗️
याने जिस बोतल में पानी पिया होगा वह तब भी मौजूद होगी, 
हर 60 मिनट में 6 करोड़ बोतल बेची जा रही है, अरबो खरबो का व्यापार है, 
हिन्द महासागर में करीब 28 पैच (प्लास्टिक पहाड़) का बन चुका है,
जानवर मर रहे है, 
मछलियां, 
समुद्री जीव मर रहे हैं, 
अगला नम्बर आपका और मेरा है❗️

     भारत में फाइव स्टार और अन्य होटलों में रोजाना करीब 4 लाख पानी की बोतलें कूड़े के रूप में निकलती हैं। यह समस्या न केवल पर्यावरण के लिए हानिकारक है, बल्कि हमारे संसाधनों की भी बर्बादी है। प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग और उनका कूड़ा पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंचाता है। प्लास्टिक के विघटन में सैकड़ों साल लगते हैं, जिससे यह हमारे पर्यावरण में लंबे समय तक बना रहता है और जल, भूमि और वायु को प्रदूषित करता है।

शादी-विवाह जैसे सामाजिक आयोजनों में भी प्लास्टिक की बोतलों का उपयोग बढ़ता जा रहा है। पहले के समय में लोग कुल्हड़ में पानी पीते थे या तांबे और पीतल के जग से पानी पिलाते थे। यह न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर था, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी था। तांबे और पीतल के बर्तनों में पानी पीने से उसमें मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्व हमारे शरीर में जाते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।

आजकल के फैशन और ट्रेंड के चलते लोग बेल, कच्चे आम, पुदीना या लस्सी के शर्बत की जगह पेप्सी और कोक जैसी बोतलबंद पेय पदार्थों को प्राथमिकता देते हैं। यह न केवल हमारी पारंपरिक संस्कृति से दूर ले जाता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। इन बोतलबंद पेय पदार्थों में उच्च मात्रा में शक्कर और अन्य रसायन होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

इस समस्या का समाधान करने के लिए हमें अपनी पारंपरिक और पर्यावरण के अनुकूल आदतों को अपनाना होगा। शादी-विवाह और अन्य सामाजिक आयोजनों में कुल्हड़ में पानी पीने और तांबे-पीतल के जग से पानी पिलाने की परंपरा को पुनर्जीवित करना चाहिए। इसके अलावा, बेल, कच्चे आम, पुदीना और लस्सी जैसे प्राकृतिक शर्बतों को प्राथमिकता देनी चाहिए। यह न केवल हमारे पर्यावरण के लिए बेहतर होगा, बल्कि हमारी संस्कृति और स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होगा।

हमें यह समझना होगा कि फैशन और ट्रेंड के पीछे भागने से बेहतर है कि हम अपनी पारंपरिक और स्वस्थ आदतों को अपनाएं। इससे न केवल हम पर्यावरण को बचा सकते हैं, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं। इसलिए, आइए हम सब मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाएं और प्लास्टिक की बोतलों के उपयोग को कम करें और पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों को अपनाएं।
विज्ञान के अनुसार सोडा प्यास नही बुझाता बल्कि बढ़ाता है, फिर भी ठंडा मतलब ठंडा, प्यास लगे तो पेप्सी, 
यह टीवी में दिखाता है❗️
यूरोप के बहुत देशों ने अपने प्रदूषण पर काबू पाया है, अब उनके नल का पानी पीने योग्य हो गया, 
देश मे पानी का व्यापार अरबो रुपये का है, लगातार भूजल नीचे जा रहा है, 
एनसीआर डार्क जोन बन गया है, 
देश के महानगर में कूड़े और इससे रिसता रिसता कैंसर पैदा कर रहा है, 
तो क्या हुआ❓ जो होगा देखा जाएगा.. ये सोच दिमाग में बैठी है,
सोचना आपको- हमको है की आने वाली पीढ़ी को हम क्या देके जाना चाहते है.😎