अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 62 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 62

जतिन के सीने से लगे लगे मैत्री उस पल को याद करते हुये रो रही थी जब उसने अपनी आंखो से अपने पूर्व पति रवि का अंतिम संस्कार होते देखा था, उस पल की यादें उसकी आंखो के सामने जैसे नाचने लगी थीं.... थोड़ी देर तक जतिन के सीने से लगे लगे रोने के बाद मैत्री अपने आंसू पोंछते हुये जतिन से अलग हुयी और सुबकते हुये बोली- रवि जब जिंदा थे तब उन्होने मुझसे कहा था कि रोहित अगर कहीं खड़ा दिख जाये तो या तो उधर जाना ही मत और अगर जाना तो कम से कम दस हाथ की दूरी बना कर रखना उससे... जब मैने वजह पूछी कि ऐसा क्यो... तो रवि ने कहा "वो बहुत बत्तमीज है बहुत कम उम्र मे ही उसे नशे की लत लग गयी थी, दिखने मे अच्छा है इसलिये लड़कियो के चक्कर भी बहुत है उसके.... मम्मी के लाड प्यार ने हद से जादा बत्तमीज बना दिया है उसे.... तुम उससे दूर रहना और उसे इग्नोर करना"

चूंकि मेरे घर का माहौल बिल्कुल अलग था, हमारे यहां राजेश भइया और सुनील भइया एक दूसरे पर जान छिड़कते हैं... मजाल है कि राजेश भइया कुछ बोलें और सुनील भइया मना कर दें या राजेश भइया ने सुनील भइया के साथ कुछ गलत किया हो, हमारे घर मे दोनो भाई घर चलाने का पैसा आज भी चाचा जी और चाची जी को ही देते हैं और वो दोनो ही नेहा भाभी और सुरभि भाभी को भी उनके खर्च का पैसा महीने के शुरू मे दे देते हैं और दोनो भाभियां इसी प्रक्रिया मे खुश रहती हैं.... इतना प्यार है हमारे दोनो भाइयो के बीच मे और ऐसे परिवार के बीच पल बढ़ कर मै एक ऐसे परिवार मे आ गयी थी जहां दोनो भाई एक दूसरे को फूटी आंख नही सुहाते थे.... रोहित का कमरा ऊपर बना हुआ था, वो वहीं रहता था... रवि से उसकी बनती नही थी इसलिये वो नीचे घर मे जादा नही आता था और रवि के होने पर तो बिल्कुल भी नही आता था.... पता नही वो कौन सा काम करता था, बड़ी गाड़ी से चलता था... सफेद कपड़े पहनता था और हर समय नशे मे रहता था... गलती से भी अगर आमना सामना हो जाता था तो इतनी गंदी नजरो से घूरता था जैसे खा जायेगा...
रवि ने जब मुझे पीटा था तब उसके बाद वो सच मे दुखी थे और एक वही थे जिनकी माफी मे सच्चाई थी बाकि सब दिखावा कर रहे थे... रवि ने मुझसे दुखी होते हुये कहा था कि "मैत्री मै जानता हूं कि तुम्हारे साथ गलत हो रहा है, मुझे थोड़ा सा समय दो अगर चीजे ऐसी ही चलती रहीं तो हम अलग हो जायेंगे...." इसके बाद रवि सच मे बदलने लगे थे.... अपनी मम्मी के खिलाफ तो कुछ नही बोलते थे पर अंकिता और मोना को डांट देते थे अगर वो मेरी बेवजह की कोई शिकायत उनसे करती थीं तो....
                        रवि के जाने के बाद बस उनकी तेरहवीं हुयी है और इन लोगो ने मेरे साथ नौकरानी जैसा व्यवहार करना शुरू कर दिया था.... हालांकि यहां मायके मे पापा मम्मी, राजेश भइया और बाकि लोगो ने मुझसे कहा था कि तू घर वापस आ जा लेकिन मै ही बेवकूफ थी... जो संस्कारो और शादी के फेरो के समय रवि से किये गये वादो को निभाने की कोशिश कर रही थी, मुझे लगा था कि रवि के जाने के बाद अगर मै ससुराल छोड़ कर घर चली गयी तो रवि की आत्मा को तकलीफ होगी.... ये सोचकर कि "देखो मेरे जाते ही इसने मेरे परिवार का साथ छोड़ दिया" इसलिये मै निभाती रही... रवि के जाने के बाद रोहित का घर मे आना जाना शुरू हो गया था, वो जब भी मुझे देखता था गंदी नजरो से ही देखता था और मै रवि की बात को याद करके उसे इग्नोर कर देती थी... लेकिन मेरे इग्नोर करने का उसने कोई और ही मतलब निकाल लिया और एक दिन जब मै रसोई मे काम कर रही थी.... तो उसने मेरे साथ बहुत बत्तमीजी करने की कोशिश करी, उसकी गंदी हरकत की वजह से मुझे गुस्सा आ गया और मै उस पर चिल्ला पड़ी और चिल्लाते हुये मैने कहा- आप मे शर्म तो है नही ये मुझे पहले से पता था लेकिन आप निहायती घटिया और गिरे हुये इंसान हैं ये आज आपने खुद साबित कर दिया.... दूर रहो मुझसे....

रोहित को फटकार के रोते हुये मै अपने कमरे मे चली आयी और रवि को याद करते हुये बिस्तर पर लेट कर रोने लगी... मेरे कमरे मे आने के करीब पांच मिनट बाद रवि की मम्मी गुस्से से लाल पीली हुयी कमरे मे आयीं और बोलीं- क्या है जानवरो की तरह क्यो चिल्ला रही है मेरे बेटे पर... वो वैसे ही घर नही आता और जब आया तो तुझसे बर्दाश्त नही हो रहा...

रवि की मम्मी की बात सुनकर मैने रोते हुये कहा - मम्मी जी रोहित भइया मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश कर रहे थे...
मेरे ऐसा कहने पर रोहित बीच मे बोला- झूट बोल रही है ये... ये खुद मुझे घूर घूर कर देखती है और अब जब मै पानी लेने रसोई मे गया तो बोली मै दे देती हूं पानी... मैने कहा ठीक है भाभी दे दीजिये... फिर पानी का गिलास पकड़ाने के बहाने इसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे देख कर अजीब तरह से मुस्कुराने लगी... ऐसे जैसे मेरे साथ संबंध बनाना चाहती हो, मैने ये कहते हुये मना कर दिया कि भले मेरे और रवि भइया के संबंध अच्छे नही थे पर वो मेरे बड़े भाई थे... और उनको गये जादा दिन भी नही हुये और आप अभी से ये सब कर रही हो....

मै हतप्रभ सी हुयी रोहित की बाते सुन रही थी और सोच रही थी कि "कितना गंदा आदमी है ये" कि तभी रवि की मम्मी गुस्से से बोलीं- मनहूस.... मेरे एक बेटे को तो खा गयी अब इस डायन की नजर मेरे दूसरे बेटे पर है, अब तू इस घर मे नही रह सकती...... तू अभी के अभी इस घर से निकल....

रवि की मम्मी के ऐसा बोलने पर मुझे बहुत झटका सा लगा ये सोचकर कि ये क्या कह रही हैं उल्टा सीधा मेरे बारे मे... क्या रवि मेरी वजह से इस दुनिया से गये थे... इसके बाद रोते हुये मैने कहा- मम्मी जी मै झूट नही बोल रही, रवि की कसम रोहित ने मेरे साथ बत्तमीजी करी थी... आप मेरी बात पर यकीन करिये प्लीज....

मेरी बात सुनकर रवि की मम्मी बोलीं - हां तू तो अकेली लड़की है ना दुनिया मे जिसके साथ सबने बत्तमीजी करी है... पहले अंकिता ने और अब रोहित ने.... 

इसके बाद रवि की मम्मी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे से बाहर घसीटते हुये चिल्ला चिल्ला कर बोलीं- तू अभी के अभी इस घर से निकल.... तू अब यहां नही रहेगी... 

मैने बहुत कहा कि मम्मी जी ऐसा मत करिये मेरे साथ... मै कहां जाउंगी.... क्या करूंगी मै..... 

लेकिन वो नही मानीं और बोलीं- पास मे ही रेल की पटरी है... कोई ट्रेन निकलने वाली होगी... जा जाके वहीं कट जा पर हमारा पीछा छोड़.... 

ऐसा कहकर उन्होने अंकिता और रोहित जो वहां खड़े थे उनसे कहा- तुम लोग देख क्या रहे हो... निकालो इस मनहूस को घर से बाहर.... 

इसके बाद उन तीनो ने जबरदस्ती धक्का देकर मुझे दरवाजे से बाहर कर दिया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया... मै बहुत देर तक दरवाजा पीटती रही और रोते हुये कहती रही कि "मम्मी जी मै झूट नही बोल रही हूं.. प्लीज मेरा विश्वास करिये...मै रवि की अमानत हूं... आपके बेटे रवि की... प्लीज मुझे घर से मत निकालिये..... 

लेकिन उन लोगो को मेरी हालत पर जरा सा भी तरस नही आया.... मै नंगे पैर थी, मेरे हाथ मे एक पैसा भी नही था...पता नही कैसे मेरे हाथ मे मैने अपना मोबाइल पकड़ लिया था जब रवि की मम्मी कमरे मे आकर मुझपर चिल्लाई थीं बस वही था मेरे पास, रो रोकर मेरा गला सूख गया था... मेरी कुछ समझ मे नही आ रहा था कि मै क्या करूं, कहां जाऊं.... फिर अचानक से मेरे कानो मे रवि की मम्मी के कहे वो शब्द गूंजने लगे.. जिनमे उन्होने कहा था कि रेल से जाकर कट जा फिर मैने भी सोच लिया कि हां यही ठीक रहेगा... वैसे भी ये लोग मुझे इतना गंदा कर चुके हैं लांछन लगा लगा कर कि अब मेरे जीने की कोई वजह ही नही बची है, मेरे दिमाग मे और कुछ नही बस यही था कि अब मुझे आत्महत्या ही करनी है.... 
यही सोच कर तेज धूप मे नंगे पैर मै ट्रेन की पटरी की तरफ आत्महत्या करने के लिये चल दी.... मेरे पैर जल रहे थे... सड़क पर पड़े पत्थरो की चुभन से मुझे दर्द हो रहा था पर मै नही रुकी और दर्द, वेदना सब सहते सहते ट्रेन की पटरी तक पंहुच गयी.... थोड़ी देर बाद मैने एक ट्रेन को अपनी तरफ आते देखा और पूरा मन बना लिया कि मुझे इसके आगे ही कूदना है.... लेकिन जैसे ही वो ट्रेन थोड़ा नजदीक आयी, मुझे ऐसा लगा कि मम्मी पापा मेरे सामने खड़े हुये हैं... और कह रहे हैं- कहां जा रही है हमारी गुड़िया हमें बिना बताए, नही मेरा बेटा ऐसे नाराज नही होते.. आ हमारे पास आ... जिसने तुझे रुलाया है हम उसे डांट लगायेंगे, आ जा मेरा बेटा.... 

मम्मी पापा के इस आभास ने मुझे जैसे एक अजीब सी विक्षिप्तता से जगाया हो मै ऐसे चौंक गयी.... और ये सोचकर कि "नही मैत्री... तेरे साथ जो कुछ भी हुआ है उसकी सजा तू अपने मम्मी पापा को नही दे सकती, कोई करे ना करे तेरे मम्मी पापा,चाचा चाची, तेरे राजेश भइया, सुनील भइया और दोनो भाभियो को तेरी परवाह है.... सोच उन पर क्या गुजरेगी जब तेरे शरीर के नाम पर वो तेरे चीथड़े बटोरेंगे, सोच तेरे इस कदम से तेरे मम्मी पापा का क्या होगा... वो ये दुख नही सह पायेंगे और अगर उन्हे कहीं कुछ हो गया तो..... नही नही मै उन्हे कुछ नही होने दे सकती, नही मै आत्महत्या नही कर सकती.... 

ये सोचकर मै पटरी से दूर हट गयी.... और ट्रेन मेरे सामने से गुजर गयी.... 

क्रमशः