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जो अखबारो मे नहीं छपता

( अखबारों मे जो कहानियाँ नहीं छपती )

कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता

कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता,
विचार कीजिए, जीवन की यह अद्वितीय रूपरेखा।

जब उसकी अपंगता को दर्शाया जाता है,
उसके दिल की दरारें बढ़ जाती हैं।
यह पंक्तियाँ समाज की उन सच्चाइयों को उजागर करती हैं जो अक्सर अनदेखी रह जाती हैं। आइए इस पर विस्तार से चर्चा करें:

कैमरे में बंद अपाहिज करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता

परिचय
समाज में कई बार हम उन कहानियों को अनदेखा कर देते हैं जो अखबारों में नहीं छपतीं। ये कहानियाँ अक्सर उन लोगों की होती हैं जो समाज के हाशिये पर जी रहे होते हैं। उनकी पीड़ा, संघर्ष और अस्तित्व की लड़ाई को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।

     करुणा का मुखौटा
करुणा एक ऐसा भाव है जो हमें दूसरों की पीड़ा को समझने और उनकी मदद करने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन कई बार यह करुणा केवल एक मुखौटा बनकर रह जाती है। हम दिखावे के लिए करुणा दिखाते हैं, लेकिन वास्तव में हमारे अंदर की क्रूरता छिपी रहती है। 

    कैमरे की भूमिका
कैमरा एक ऐसा उपकरण है जो सच्चाई को उजागर कर सकता है। लेकिन जब कैमरे का उपयोग केवल दिखावे के लिए किया जाता है, तो यह सच्चाई को छिपाने का माध्यम भी बन सकता है। कैमरे में बंद करुणा का मुखौटा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम वास्तव में करुणा दिखा रहे हैं या केवल दिखावा कर रहे हैं।
       अपाहिज करुणा
अपाहिज करुणा वह करुणा है जो केवल दिखावे के लिए होती है। यह करुणा वास्तव में किसी की मदद नहीं करती, बल्कि केवल हमारे अंदर की क्रूरता को छिपाने का एक तरीका होती है। 

      निष्कर्ष
हमें यह समझना होगा कि सच्ची करुणा वह है जो बिना किसी दिखावे के, बिना किसी स्वार्थ के, दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करती है। हमें अपने अंदर की क्रूरता को पहचानकर उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम वास्तव में करुणामय बन सकें।

क्या आप इस पर और कुछ जोड़ना चाहेंगे या किसी विशेष पहलू पर चर्चा करना चाहेंगे?
समाज के सामने वो अपनी करुणा का भाव दिखाता है,
लेकिन जब अवसर पड़ता है, तो उसे अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करने से बाज नहीं आते हैं।

एक कार्यक्रम जो सामाजिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जा रहा है,
उसमें एक अपंग को बुलाया जाता है।

कैमरे में उसका साक्षात्कार लिया जाता है,
उससे सहानुभूति तथा करुणा दिखाई जाती है।

लेकिन बार-बार उसे उसके अपंग होने का अहसास दिलाया जाता है,
उसकी अपंगता को अपने कार्यक्रम की सफलता के लिए भुनाया जाता है।

करुणा का मुखौटा पहनकर कार्यक्रम का संचालन जो क्रूरता करता है,
उससे हृदय दुखी हो जाता है।

यह वह सच्चाई है, जो आज इस प्रकार के कार्यक्रमों में दिखाई जाती है।

आज धन का बोलबाल है, करुणा जैसे शब्द खोखले हो गए हैं।हमें यह समझना होगा कि सच्ची करुणा वह है जो बिना किसी दिखावे के, बिना किसी स्वार्थ के, दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करती है। हमें अपने अंदर की क्रूरता को पहचानकर उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि हम वास्तव में करुणामय बन सकें।
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