अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 59 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 59

जतिन के मैत्री को टटोलते हुये पूछने पर अपने आंसू पोंछते हुये रुंधे हुये गले से मैत्री ने कहा- इसके बाद हर काम मे टोका टाकी शुरू हो गयी उनकी... "ये काम ऐसे क्यो किया, इसे ऐसे करना चाहिये था.. इसे ऐसे ही रहने दो... जादा अपने हिसाब से काम करने की कोशिश मत करो, मुझसे पूछे बिना किसी काम मे हाथ मत लगाया करो" ये सारी चीजे रोज की बात हो गयीं... शादी के करीब पांच दिन बीत चुके थे पर रवि की मम्मी ने पगफेरो के लिये मुझे अपने मायके भेजने का जिक्र भी नही किया था.... मेरा मम्मी पापा से मिलने का बहुत मन होता था... जब इन्होने जिक्र नही किया तो मैने एक दिन फोन पर बात करते हुये मम्मी से कहा कि "मम्मा आप यहां बात कर लीजिये पगफेरो के लिये मेरा बहुत मन है आप सबसे मिलने का"
मेरे कहने के तुरंत बाद मम्मी ने फोन काटा ये कहकर कि "रुक मै अभी बात कर लेती हूं उसमे क्या है" चूंकि मम्मी नही जानती थीं कि रवि की मम्मी का नेचर कैसा है तो उन्होंने बड़े ही खुश होते हुये हर्षित तरीके से जब रवि की मम्मी से मुझे मायके भेजने के लिये कहा तो मैने रवि की मम्मी को कहते हुये सुना कि "अरे बहन जी अभी दिन ही कितने हुये हैं उसे शादी करके यहां आये हुये.... थोड़ा यहां रहेगी तो यहां के तौर तरीके सीखेगी.. अभी तो आप रहने ही दो... कुछ दिनो के बाद सोचेंगे...." 
रवि की मम्मी की ये बात सुनकर मम्मी ने कहा होगा कि "बहन जी असल मे पहली बार मैत्री हमसे दूर हुयी है तो हमे उसकी बहुत याद आती है... आप बस एक दिन के लिये भेज दो... एक बार मैत्री हमसे और हम दोनो उससे मिल लेंगे तो हमे भी तसल्ली हो जायेगी और मैत्री को भी अच्छा लगेगा...." 
इसके बाद मम्मी ने जब जादा फोर्स किया तो रवि की मम्मी बोलीं- चलिये ठीक है...अब आप मान ही नही रही हैं तो बुलवा लीजिये.... जितने दिनो के लिये भी आपका मन हो उतने दिनो के लिये... 

रवि की मम्मी ने मेरी मम्मी से इतने अजीब तरीके से बात करी कि मम्मी का फौरन मेरे पास फोन आया और वो बोलीं- मैत्री बेटा सब ठीक तो है?? 

मै नही चाहती थी कि मम्मी को ये पता चले कि रवि की मम्मी का व्यवहार मेरे साथ ठीक नही है... इसलिये मैने बात घुमा दी... 

इसके बाद अगले दिन राजेश भइया और नेहा भाभी मुझे लेने आने वाले थे  इसलिये रवि ने छुट्टी ले रखी थी.... उन लोगो के आने के बाद मैने बहुत कोशिश करी ये दिखाने की कि मै बहुत खुश हूं  पर नेहा भाभी समझ गयीं कि मेरी हंसी के पीछे एक तकलीफ है.... और मौका पाकर मेरे पास आकर  बड़े प्यार से बोलीं- दीदी क्या हुआ कोई बात है क्या? सब ठीक तो है?? 

मैने उनसे भी झूट कह दिया कि "हां भाभी सब ठीक है" 

इसके बाद जितनी देर राजेश भइया और भाभी वहां बैठे रहे उतनी देर रवि की मम्मी का मुंह बना रहा.. उन्होने पूरे टाइम बस "हां" "हूं" मे ही जवाब दिया.... इसके बाद जब भइया भाभी को आये हुये थोड़ी देर हो गयी तो वो बोलीं- आप लोग कितनी देर मे निकलोगे मैत्री को लेकर.... मेरे सोने का टाइम हो रहा है....

रवि की मम्मी को ऐसे बोलते देखकर भइया भाभी तो एक दूसरे की तरफ देखते ही रह गये... ये सोचकर कि रवि की मम्मी तो ऐसे बात कर रही हैं जैसे हम कोई सेल्समैन हैं और कोई सामान बेचने आये हैं.... लेकिन दोनो मे से किसी ने रियेक्ट नही किया लेकिन रवि की मम्मी के पूछने के दस पंद्रह मिनट बाद ही राजेश भइया ने चलने के लिये कह दिया.... भइया को भी अजीब सा लगा रवि की मम्मी का व्यवहार लेकिन उन्होने कुछ कहा नही... रवि की मम्मी ने भइया और भाभी का ना तो ऐसे टीका किया जैसे यहां पर हुआ था सबका और ना ही रवि के अलावा किसी ने उनसे बात ही की... रवि की दोनो बहने भी बस एक बार मिलकर अपने कमरे मे चली गयीं और आखिर तक बाहर आयी ही नहीं.... 

इसके बाद मै राजेश भइया और नेहा भाभी के साथ दो दिन के लिये घर आ गयी, रवि के अलावा सबका व्यवहार राजेश भइया और नेहा भाभी को ये जताने के लिये काफी था कि मेरे साथ चीजें वैसी नही चल रही हैं जैसी चलनी चाहिये!! भाभी ने और मम्मी ने मुझसे बार बार पूछा कि "सब ठीक तो है ना अगर नही तो हम चलकर बात करते हैं रवि की मम्मी से" लेकिन मैने किसी से कुछ नही कहा, मै बस यही कहती रही कि "हां सब ठीक है" मेरे ऐसा कहने की वजह रवि की मम्मी का झगड़ालू स्वभाव था... मै जानती थी कि मेरे घर का कोई सदस्य इतनी बेरुखी देख नही पायेगा जितनी बेरुखी मै देख रही थी... और बात बिगड़ जायेगी... इसलिये मै चुप थी.... 

मायके से वापस आने के बाद चीजे फिर से वैसे ही चलने लगीं, दिन भर टेंशन रहती थी इस बात की कि अब भगवान जाने किस बात पर डांट पड़ने वाली है.... वापस आने के बाद रवि की बहन का अलग ही ड्रामा शुरू हो गया... ( ये बात बोलते बोलते मैत्री रुक गयी) 

जतिन ने जब देखा कि मैत्री अपनी बात बताते बताते चुप हो गयी है तो उसने मैत्री से पूछा- क्या हुआ मैत्री तुम चुप क्यो हो गयीं? क्या किया रवि की बहन ने?? 

जतिन की बात पर मैत्री हिचकिचाते हुये बोली- व.. वो... ठीक लड़की नही थी.... 
जतिन ने कहा- ठीक नही थी मतलब?? 

मैत्री हिचकिचा रही थी... और हिचकिचाते हुये उसने जतिन से कहा- वो असल मे... उसकी आदते खराब थीं... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन ने कहा- आदते खराब थीं पर कैसे? नशा करती थी क्या वो?? 

मैत्री ने कहा- नही... नशा नही करती थी, असल मे उसे लड़को मे इंट्रेस्ट नही था... वो असल मे लेस्बियन थी... 

मैत्री की ये बात सुनकर जतिन चौंकते हुये बोला- ओ तेरी... सच मे?? 

मैत्री ने कहा- हां... 
जतिन ने मुंह बनाते हुये कहा- ओह्हो... ये तो पागलपन है.... गलत है ये तो... 

मैत्री ने कहा- हां गलत है और इसीलिये मै विरोध करती थी... और अंकिता की इन्ही हरकतो की वजह से रवि ने मुझपर हाथ उठाया था... मुझे बहुत बुरी तरह पीटा था... 

रवि के हाथो हुयी अपनी पिटाई की बात कहते कहते मैत्री का गला फिर से भर आया और किसी छोटे से बच्चे की तरह जतिन से शिकायत करते हुये उसने अपनी कलाई का वो हिस्सा जतिन को दिखाया जहां पर रवि की पिटाई की वजह से हड्डी पर गांठ बन गयी थी, अपने हाथ मे पड़ी गांठ जतिन को दिखाने के लिये अपना हाथ जतिन की तरफ बढ़ाते हुये रुंधे हुये गले से मैत्री ने कहा- जी.. ये देखिये... 

चूंकि जतिन ने पहली रात के बाद  कभी मैत्री का हाथ नही पकड़ा था इसलिये उसे उस गांठ के मैत्री की कलाई पर होने का बिल्कुल भी अंदाजा नही था.... तो जब मैत्री ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर अपनी गांठ दिखाते हुये जतिन से अपनी बात कही तो जतिन मैत्री की हथेली पकड़ते हुये वो गांठ देखकर चौंकते हुये बोला- ये कैसी गांठ है मैत्री... 

जतिन के इस सवाल पर मैत्री सुबकने लगी... और अपने आंसू पोंछते हुये बिल्कुल छोटे से बच्चे की तरह जतिन से बोली- रवि की पिटाई की वजह से ये गांठ बन गयी.... 

मैत्री की बात सुनकर जतिन का मन जैसे रोने सा लगा ये सोच कर कि उसकी मैत्री, उसकी प्यारी सी मैत्री, उसकी छोटी सी कोमल सी मैत्री पर हाथ उठाया गया था अतीत मे..... जतिन का गला भी भर आया था.. लेकिन अपने आप को संभालते हुये और गला खखारते हुये जतिन ने कहा- ऐसी कौन सी बात हो गयी थी मैत्री जो रवि ने तुम्हारे साथ ऐसा सलूक किया... क्या किया था अंकिता ने? 

जतिन की बात सुनकर मैत्री ने कहा- वो बहुत बत्तमीजी करती थी.... और वो मेरे साथ गलत संबंध बनाना चाहती थी, वो इतनी गंदी नजरों से मेरी तरफ देखती थी कि मुझे कभी कभी उसके पास खड़े होने मे भी उलझन हो जाती थी.... हर समय जब भी कभी मौका मिलता था वो मुझे गलत नीयत से छूने की कोशिश करती थी...


एक बार रवि की मम्मी ने रवि से कहा- रवि आज संडे है, कोरोना की पहली लहर के बाद से हम कहीं घूमने नही गये... तो चलो आज कहीं बाहर घूम कर आते हैं सब लोग.... 

रवि चूंकि अपनी मम्मी की कोई बात नही टालते थे इसलिये वो भी कहीं घूमने जाने के लिये मान गये और मुझसे भी तैयार होने के लिये कह दिया... इसके बाद जब हम लोग लखनऊ मे ही कहीं घूमने जाने के लिये घर के बाहर खड़ी कार मे बैठने के लिये जाने लगे तो अंकिता ने कहा- मम्मी मेरी तबियत कुछ ठीक नही लग रही है, कुछ चक्कर से आ रहे हैं... आप लोग जाओ मै घर मे आराम करूंगी... 
अंकिता की बात सुनकर रवि ने कहा- तबियत जादा खराब लग रही है तो हम लोग भी नही जाते हैं... चलो तुम्हे डॉक्टर को दिखा देता हूं... 

रवि की इस बात पर अंकिता ने कहा- अरे नही नही भइया आप लोग जाओ, मेरी वजह से आप लोग अपना प्रोग्राम क्यो खराब कर रहे हो.... 
इसके बाद दो सेकंड चुप रहने के बाद अंकिता बोली- अम्म्म् आप भाभी को मेरे पास छोड़ दो... हम दोनो फिर कभी घूमने चले जायेंगे.... 

अंकिता की ये बात सुनकर रवि की मम्मी फट्ट से बोलीं- हां ये ठीक रहेगा.... मैत्री रुक जायेगी अंकिता के साथ... 
इसके बाद मेरी तरफ देख कर बड़े तल्ख लहजे मे उन्होने कहा- मैत्री तुम अंकिता का ध्यान रखो, सो मत जाना कहीं... अंकिता के साथ ही रहना... 

चूंकि मै अंकिता की हरकते जानती थी इसलिये मेरा बिल्कुल भी मन नही था उसके साथ रुकने का लेकिन रवि की मम्मी की बात काटना मतलब अपने सिर पर एक और कलेश करवाने जैसा था... इसलिये मै चुपचाप उनकी बात मान गयी..... इसके अलावा और कोई चारा भी नही था मेरे पास.... 

इसके बाद वो लोग घूमने चले गये और मै अंकिता के साथ घर के अंदर आ गयी.... 

क्रमशः