उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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उजाले की ओर –संस्मरण

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नमस्कार स्नेही मित्रों

बहुत सी बातें अचानक स्मृति-पटल पर कौंधने लगती हैं और उनको आप सबसे साझा करने का मन हो जाता है | कारण? कि हमें सबसे कुछ न कुछ सीखने को मिलता है|

चलिए, एक किस्सा सुनाती हूँ जो मुझे भी किससी ने सुनाया ही था अब उसे थोड़ा मठारकर मैं आप मित्रों के सामने परोस रही हूँ |

एक चाट वाला था। जब भी उसके पास चाट खाने जाओ तो ऐसा लगता कि वह हमारा ही इंतज़ार कर रहा हो। हर विषय पर बात करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। कई बार उसे कहा कि भाई देर हो जाती है, जल्दी चाट लगा दिया करो पर उसकी बात ख़त्म ही नहीं होती।

एक दिन अचानक उसके साथ मेरी कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई। वह तकदीर और तदबीर की बात करने लगा |

उसकी बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फ़िलासफ़ी भी देख ही लेते हैं। मैंने उससे एक सवाल पूछ लिया।

मेरा सवाल था कि, आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से ?

उसने जो उत्तर दिया उसको सुन कर मेरे दिमाग़ के सारे जाले ही साफ़ हो गए।

उस चाट वाले ने मुझसे पूछा; "आपका किसी बैंक में लॉकर तो होगा?"

मैंने कहा;"हाँ"

उस चाट वाले ने मुझसे कहा " उस लाकर की चाबियां ही इस सवाल का जवाब है। हर लॉकर की दो चाबियां होती हैं। एक आपके पास होती है और एक मैनेजर के पास।"

हाँ,वह बिलकुल ठीक कह रहा था | आगे उसने अपनी बात ज़ारी रखते हुए कहा;

"आपके पास जो चाबी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली चाबी भाग्य है।"

"हाँ, बिलकुल ठीक "मैं उसकी बात से इत्तेफाक रखती थी |

"जब तक दोनों चाबियां नहीं लगती लाॅकर का ताला नहीं खुल सकता।"

 

"कर्मयोगी पुरुष हैं और मैनेजर भगवान ! आपको अपनी चाबी भी लगाते रहना चाहिये। पता नहीं ऊपर वाला कब अपनी चाबी लगा दे । कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यवाली चाबी लगा रहा हो और हम अपनी परिश्रम वाली चाबी न लगा पायें और ताला खुलने से रह जाए ।"

जीवन के मार्ग में हमें कितने ही ऐसे लोग मिलते हैं जिनके बारे में हम एक छोटी धारणा बनाए रखते हैं | जबकि यह आवश्यक नहीं होता कि हम बहुत पढे-लिखे हों, हमारे पास सर्टिफ़िकेट के रूप में कागज़ों का पुलिंदा हो, तब ही हम समझदार व शिक्षित हैं |

कई बार तो हमारे सामने ऐसे लोग आ खड़े होते हैं जो हमें इतने बड़े पाठ पढ़ा देते हैं कि हम सोचने के लिए बाध्य हो जाते हैं कि क्या कागज़ एकत्रित करना ही हमारे जीवन का ध्येय है ?

वास्तविक शिक्षा है ज्ञान और कागज़ी शिक्षा हमें जीवन-यापन के लिए आवश्यक हो जाती है |

हमसे पहले की दो/तीन पीढ़ियाँ स्कूल नहीं जाती थीं लेकिन उनसे हमने जीवन में सदा ही बहुत कुछ सीखा है | इसलिए हमें समझना होगा कि ज्ञान के लिए केवल कागज़ी ज्ञान की नहीं, समझदारी की आवश्यकता है |

सोचकर देखें

सस्नेह

आपकी मित्र

डॉ. प्रणव भारती