साथिया - 133 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 133

अक्षत  तुरंत सांझ  को लेकर वहां से निकल गया और वहां से वह लोग सीधे  डॉक्टर के पास गए। 

डॉक्टर ने साँझ का चेकअप किया


" बीपी अचानक से सूट कर गया था इसलिए बेहोश हो गई है..!!घबराने की कोई बात नहीं है..!!" डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद कहा। 

"इसीलिए मैं कह रहा था कि इसे नहीं आना चाहिए था... आसान नही फिर से  सब कुछ याद करना।पर यह मन ही नहीं रही थी। मुझे पता था यही सब होगा और यह   स्ट्रेस ले लेगी।" अक्षत ने  सांझ के माथे पर हाथ रखकर कहा.!! 


" पर उसे हक है  अपने हित में चलने वाले केस को देखने और समझने  का। " अबीर ने कहा तभी नजर दरवाजे पर खड़े नेहा  और आनंद पर गई । 

"तो मेरा शक सही था...!! यह साँझ है ना मेरी बहन..??" नेहा ने भरी आंखों से कहा


" हां आपकी वही बहन जिसकी जिंदगी को तबाह करने में आपने कोई कसर नहीं छोड़ी...!! पर वही कहते हैं ना  जाको राखे साइयां मार सके ना कोई..!! तो बस भगवान की इच्छा थी इसलिए  साँझ बच गई।" अक्षत ने कहा


" मैं कितनी बार   तो कहूं आपसे आप विश्वास क्यों नहीं करते। मैं सच कह रही हूं मैं कभी नहीं चाहती  थी  कि  सांझ  का कोई नुकसान हो। आप  साँझ से पूछ लीजिएगा। मैं हमेशा  उससे यही कहती थी कि अपने बारे में सोचे  और ऐसे लोगों के बारे में नहीं सोच जो उसके अपने नही। 

हाँ मैं  मानती हूं उस दिन  मैं  स्वार्थी हो गई थी और अपना सोच कर चली गई। पर मुझे बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उसका परिणाम  ये होगा। और  बाद में जब मेरे पास ना कोई सबूत था ना कोई खबर तो मैं किस  बलबूते पर आकर उनसे लड़ती। यहां तक की मेरे मम्मी पापा भी वह गांव छोड़कर चले गए थे। इसलिए मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी पर इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे शर्मिंदगी नहीं थी या  मैंने जानकर किया।" नेहा  ने कहा। 

"इसीलिए तो आपको सजा नहीं मिल रही है..!!" अक्षत बोला। 

"थोड़ी देर में वह लोग  साँझ  को लेकर घर निकल गए। 


साँझ  की तबीयत अभी ठीक नहीं थी।।उसे हाई बीपी के कारण घबराहट हो रही थी और वह आंखें बंद किए हुए गाड़ी में बस बैठी रही। 

अक्षत ने उसका हाथ थाम रखा था। वह जानता था इस समय  सांझ  की मानसिक हालत कैसी है। आसान नहीं था  सांझ के लिए इन सबको दोबारा से  सुनना दोबारा से महसूस करना और उन लोगों को अपनी आंखों के सामने देखना जो कि उसके  जीवन में एक बड़ी तबाही  ला  चुके  थे। 

ड्राइवर ने गाड़ी रोकी तो अक्षत ने सांझ को देखा। 


"घर आ गया सांझ। " अक्षत ने कहा तो सांझ ने  आंखें खोल उसकी तरफ देखा। 

भरी हुई आंखें एकदम लाल हो रही थी


" चलो घर चले.!!" अक्षत बोला और गाड़ी से बाहर निकल  सांझ  के लिए हाथ दिया तो सांझ ने  उसका हाथ  थामा और बाहर आ गई।  चलने को दोनों हुई कि एकदम से सिर चकरा गया। 


अक्षत  ने तुरंत उसे अपनी बाहों में उठा लिया और  सांझ  ने  उसके सीने में अपना सिर टिका लिया। 

एक अक्षत  ही तो था  जो उसे हर तकलीफ हर मुश्किल से दूर रखता था  और हमेशा इस बात का एहसास कराता था कि वह सुरक्षित है।। 




अक्षत  उसे  लेकर सीधे अपने रूम में गया और उसे बेड पर लेटा दिया। 

दवाइयां निकाल कर उसे  खिलाई  और उसके सिर पर हाथ रखा


सांझ  ने  भरी आंखों से उसे  देखा


"बस कल आखिरी दिन है..!! कल फैसला हो जाएगा उसके बाद कोई भी तकलीफ तुम्हारे आसपास भी नहीं आएगी।" अक्षत ने कहा और  मुड़ा तो  सांझ  ने उसका हाथ पकड़ लिया। 

" क्या हुआ? " अक्षत  ने  उसकी तरफ देखा तो  सांझ ने उसे अपने पास बैठने का इशारा किया। 

अक्षत उसके पास बैठ गया और सांझ   ने  उसकी गोद में अपना  सिर  रख लिया और अपनी बाहों को उसकी  कमर के  इर्द गिर्द   लपेट लिया


" बहुत तकलीफ हुई  जज साहब..!! बहुत दर्द महसूस हुआ।।आज फिर से एक बार जैसे मैं  उस  समय में पहुंच गई थी।" सांझ ने धीमे से कहा। 

अक्षत ने उसे उठाया और अपने सीने से लगा लिया। उसकी पीठ पर हाथ रखा और दूसरे हाथ से उसके बालों को सहलाया।


"बस यह आखरी बार था और सांझ  यकीन मानो अगर जरूरी नहीं होता तो यह बिल्कुल नहीं होता। पर जरूरी था। जब तक पुरानी बातें सामने नहीं आएंगी  सामने वाले का गुनाह कैसे साबित होगा। उनको गुनहगार साबित करने के लिए हर उस  बात का जिक्र करना जरूरी था जो उन्हें गुनहगार साबित करें। बस कल का आखिरी दिन है उन्हें सजा हो जाएगी। उन्हें उनके लिए कर्मों का फल मिल जाएगा और तुम्हें  तुम्हें न्याय। फिर कभी दोबारा न हीं इन बातों का जिक्र तुम्हारे सामने होगा और ना ही यह लोग कभी तुम्हारी आंखों के सामने होंगे।" अक्षत ने  कहा तो सांझ ने  उसके सीने से चेहरा निकाल उसकी आंखों में देखा जहां पर गुस्से और दर्द के मिले-जुले भाव थे।।

सांझ   ने  वापस से उसके सीने से  सिर टिका  दिया। 

"जानती हूं  जज साहब  यह सब कुछ आपने सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए किया।" सांझ  बोली। 

अक्षत ने उसका चेहरा अपनी हथेली में  थामा और  उसके माथे पर अपने होंठ रख दिये। 

"यह किसने कहा कि तुम्हारे लिए किया.? हमारे लिए किया। हम दोनों के लिए किया। मेरी  मिसेज चतुर्वेदी के लिए किया..!!" अक्षत ने मुस्कुराकर कहा। 

" अब  कल मैं नहीं जाऊंगी  जज साहब।"

"  नहीं सांझ   कल तुम्हारा जाना जरूरी है
  क्योंकि अभी एक आखरी  बात करनी जरूरी है। 

"फिर से यही सब बातें होंगी  जज साहब  तो शायद मैं  बर्दाश्त नहीं कर पाऊंगी। आपने देखा ना आज। " सांझ ने भावुक होकर  कहा। 

"कल तो न्याय का दिन है..!! निर्णय का दिन है। और सबसे बड़ी बात  कल उन सब सब के सामने तुम्हारे  आने का दिन है। तो कल तुम्हें आना ही होगा। खुद को मजबूत करो। मेरी  मिसेज चतुर्वेदी इतनी कमजोर तो कभी भी नहीं थी। जब इतना सब कुछ बर्दाश्त कर सकती है और उसके बाद भी मेरे पास आ सकती है तो कुछ भी कर सकती हो तुम..!! औरत तब तक ही कमजोर है जब तक वह खुद को कमजोर समझती  हैं।।जिस दिन मजबूती से खड़ी हो जाती है उस दिन सामने  कोई भी क्यों ना हो उसे  हार  माननी ही पड़ती है।" अक्षत ने कहा   तो सांझ  ने गर्दन  हिला  दी। 

तभी दरवाजे पर आहट हुई।

"आ जाओ..!!" अक्षत ने कहा तो साधना दोनों के लिए चाय और नाश्ता लेकर आ  गई। 

"अब कैसी तबीयत है सांझ  की?" साधना ने कहा। 

"ठीक है मम्मी..!!" अक्षत ने जबाब दिया। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव