साथिया - 131 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 131

दोनों पक्ष अपनी पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में हाजिर थे। आज फिर से अक्षत के साथ  सांझ आई थी पर साथ ही साथ  शालू  ईशान और  अबीर  भी आए थे ताकि सांझ  को सपोर्ट मिल सके और वह बेवजह ही परेशान ना हो।

जज साहब की इजाजत के बाद दोनों पक्ष के वकीलों से सवाल जबाब का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया। 


" तो सुरेंद्र जी..!! आप जोकि  कुछ महीने पहले  तक खुद उसी गाँव और उनकी मान्यताओ का हिस्सा हुआ करते थे। अचानक से आपका जमीर जाग उठा और आप उन सबके  खिलाफ खासकर अपने  बड़े भाई और भतीजे के खिलाफ खड़े हो गए..!! इसका क्या  कारण है?" निशांत के वकील  ने क्रॉस क्वेश्चन किया

" अभी बताया तो आपको..!!   मुझे शुरू से ही यह सब चीजें  पसंद नहीं थी। मैंने हमेशा से गजेंद्र भाई साहब, गांव के सभी पंचों और इन मान्यताओं का विरोध किया। पर कभी भी मेरी चली नही। इन लोगों के आगे में कभी बोल नहीं  पाता था और दूसरा बड़े भाई का सम्मान था तो मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पता था। 
नियति  और सार्थक के समय जब वह घटना और हादसा हुआ तब भी मैंने  और सौरभ  ने  पूरा विरोध किया था। यहां तक की सौरभ ने तो पुलिस कंप्लेन  भी की थी और पुलिस को लेकर भी आया था। पर वही बात हम लोगों की आवाज को दबा दिया गया।" सुरेंद्र ने कहा। 

"वही तो मैं कहना चाहता हूं कि शुरू से आपको दबाया गया..!! आपके भाई के आगे आपकी कोई पहचान नहीं बनी। आपका कोई दबदबा नहीं हुआ यहां तक की  पंचों में भी आपका नाम नहीं आया। कभी भी आपको वह  औहदा  वह मान  नहीं मिला जो कि आप चाहते थे। और जैसे ही आपको मौका मिला आप अपने भाई के खिलाफ चले गए ताकि आप पोजीशन पा सकें। और उनके कारण जो हमेशा आप नीचे रहे इसका बदला ले सके।" वकील ने केस का रुख बदलते हुए  कहा। 


" नहीं आप गलत समझ रहे हैं और उन  पंचों में शामिल न होने का मेरा खुद का निर्णय था, क्योंकि मुझे कभी भी यह सब बातें पसंद नहीं थी। जिस बात का मैं शुरू से विरोधी रहा हूं उसमें मैं शामिल कैसे हो सकता हूं।" सुरेंद्र बोले।

"आपका कहना बिल्कुल गलत है सुरेंद्र जी।" वकील बोला। 

"नहीं बिल्कुल गलत नहीं है मेरा कहना।" 


" जी नही आप झूठ बोल  रहे है। आपके अंदर एक कुंठा थी। आपके अंदर  इन्फिरियार्टी   कॉम्पलेक्स था कि आप वह नहीं बन पाए जो गजेंद्र है। और आपका बेटा वह पोजीशन नहीं सका  जो की निशांत ठाकुर की है उस गांव में। और इसी का बदला आपने और आपके बेटे ने मिलकर लिया। और जैसे ही एक छोटी सी कमी समझ आई अपने हमला बोल दिया। जबकि सच्चाई यह  है कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं था वहां।  इस बात की कोई भी  पुख्ता  सबूत नहीं है और ना ही कोई  गवाह  की अवतार सिंह ने  सांझ  को निशांत  को   बेचा  था।  यह बात बिल्कुल गलत  है कि  निशांत ने सांझ के साथ कुछ भी गलत व्यवहार किया है।" वकील बोला तो सुरेंद्र ने सौरभ को और फिर सांझ को देखा जोकि भरी आँखों से उन्हे ही देख रही थी। 

" मेरा कहा एक एक शब्द सच है। निशांत मेरे भाई का बेटा है। मेरा भतीजा और ईश्वर साक्षी है कि कभी भी निशांत और सौरभ में मैंने कोई अंतर नही समझा। निशांत को हमेशा समझाया पर वो बिगड़ता चला गया। शराब  जूआ, लड़कियों को उठवा के ट्यूब वेल पर ले जाना ये सब उसकी आदतों मे था। पर फिर भी बर्दास्त कर रहा था पर जब उसने सांझ के साथ इतना गलत किया तो बर्दास्त नही हुआ। विनती की मैंने, हाथ जोड़े पर किसी ने नही सुनी मेरी। मेरी आँखों के सामने एक जीते जागते इंसान का सौदा हुआ। एक लड़की को बेचा और खरीदा गया और फिर उस पर अमानवीय अत्याचार किये निशांत ने। मैंने और मेरी बेटी आव्या ने उसे बचाने की बहुत कोशिश की पर कुछ न कर सके।" सुरेंद्र दुखी होकर बोले तो सांझ की भी हल्की सिसकी निकल गई। 



"सिर्फ आपकी बात मानकर तो कानून उन्हें गुनहगार नहीं मान सकता ना..?? यहां साफ समझ में आ रहा है कि आपके और आपके बेटे सौरभ का स्वार्थ है। आप लोग गजेंद्र सिंह और निशांत को फंसा कर न सिर्फ उनका नाम पोजीशन बल्कि उनकी प्रॉपर्टी भी हड़प्पना चाहते हैं जिस पर  की निशांत के बाद आपके बेटे सौरभ  का अधिकार हो जाएगा।" वकील ने सुरेंद्र को पूरी तरीके से  उलझाते  हुए  कहा। 

अक्षत मुस्कुराते हुए देख रहा था। 

सुरेंद्र अक्षत की तरफ देखा तो अक्षत ने पलकें झपकाई। 

सुरेंद्र  की गवाही के बाद अक्षत उठ खड़ा हुआ। 


"  जज साहब  मेरी अगली और मुख्य  गवाह है सुरेंद्र जी की बेटी और मेडिकल कॉलेज में स्टूडेंट  आव्या सिंह। मैं उन्हें बुलाने की इजाजत चाहता हूं।" 

"परमिशन ग्रांटेड..!!" जज ने कहा तो आव्या आकर विटनेस   बॉक्स में  खड़ी हो गई। 



" आव्या  घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आपको जो कुछ भी पता है।  जो कुछ उन दो दिनों में हुआ आप सच-सच यहां पर बता सकतीं हैं।" अक्षत  ने कहा। 

" जज साहब  जो कुछ भी मेरे पापा ने कहा वह एकदम सही है। मैं खुद उस बात की गवाह हूं। उस चौपाल पर ही  सांझ  दीदी को खरीदने के बाद ये लोग बदसलूकी पर उतर आये थे।

सांझ दीदी रो  रही थी। इनके पाँव पकड़ रही  थी और रिहाई की भीख मांग रही थी पर निशु भैया  ने उनका सिर जोर से पिलर पर दे मारा और चारो  तरफ खून ही खून हो गया।" आव्या ने  कहा तो साँझ एकदम कांप गई।

अबीर और शालू  ने दोनों तरफ से उसे थाम लिया।


अक्षत की मुट्ठिया कस गई। 

"यह लोग  इतने पर भी नही  रुके..!!  ये लोग साँझ दीदी को निर्वस्त्र करने करने लगे कि तब मैं  वहां पर गई थी  उन्हे  बचाने के लिए। पर भैया नही सुन  रहे थे तो मैंने अपना दुपट्टा उतार फेंका था। और यह लोग इसी शर्त पर माने थे। जब मैंने कहा था कि अगर सांझ दीदी के कपड़े उतरे तो मैं भी अपने कपड़े उतार दूंगी। और इस वजह से निशांत भैया रुक गए। और  मै सांझ दीदी  को लेकर अपने कमरे में आ गई। और  उन्हे अपने साथ कमरे में बंद कर लिया। 

मैं  इंतजार में थी कि मेरे सौरभ भैया आ जाए। मेरी सौरभ  भैया से बात हो गई थी, और उन्होंने कहा था कि कैसे भी करके कुछ घंटे संभाल ले। वह बस वहां पहुंचने ही  वाले हैं। और मैं बस कुछ घंटे  सांझ दीदी  को अपने साथ अपने कमरे में रखना चाहती थी, ताकि निशांत भैया से बचा सकूं। मुझे पूरा विश्वास था कि सौरभ भैया के आते ही सब कुछ सही हो जाएगा, क्योंकि पिछली बार भी सौरभ भैया को आने में देर हो गई थी और इन लोगों ने नियति दीदी और सार्थक को मार दिया था। और मैं नहीं चाहती थी कि वही फिर से हो और  सांझ दीदी के साथ कुछ भी गलत हो।" आव्या  ने कहा। 

"फिर क्या हुआ आगे बताओ..!!" 


"अगले दिन सुबह मम्मी ने कहा कि तुम खाना खा लो..!! मैंने  तो मना कर दिया था पर उन्होंने कहा कि घर में कोई भी नहीं है। निशांत भैया और ताऊजी और पापा सब बाहर गए हुए हैं। इसलिए हिम्मत करके मैंने दरवाजा खोला पर जैसे ही दरवाजा खोला निशांत भैया अंदर आ गए। ना जाने कहां छुप कर खड़े हुए थे कि किसी को उनके बारे में नहीं पता था। और आते ही वह  सांझ दीदी को खींच कर ले जाने लगे। 


सांझ  दीदी बहुत डरी हुई थी। घबराई हुई थी बुरी तरीके से घायल थी क्योंकि इन लोगों ने उनका सर पिलर पर मार मार कर बहुत घायल कर दिया था। मैंने भैया को रोकना चाहा तो भैया ने मुझे एक जोरदार थप्पड़ मारा और मैं एकदम से बेहोश हो गई और भैया  सांझ दीदी को  घसीटते  हुए लेकर चले गए। 



निशांत की आंखों में गुस्सा उतर आया और निशांत का वकील आव्या  के सामने आकर खड़ा हो गया। 

"परफेक्ट प्लानिंग की है   बाप बेटी ने मिलकर। आप मेडिकल के स्टूडेंट है। फ्यूचर की डॉक्टर बनने वाली  हैं कुछ तो मोरल होने चाहिए आपके?? कुछ तो वेल्युज रखिये।इस तरीके की झूठी बातें बोलना आपको शोभा देता है क्या?" वकील  बोला। 

"ऑब्जेक्शन  मायलॉर्ड..! इस तरीके की बातें नहीं कर सकते वकील साहब..!" अक्षत बोला तो जज ने वकील को वर्निंग दी। 

" अच्छा ठीक है मान लिया कि आपने  सांझ की रक्षा की। उसकी मदद की। उसे अपने कमरे में रखा फिर आप कुछ देर तक और क्यों नहीं रुक सकीं। क्या आप भी मिली हुई थी इन सब में निशांत के साथ?" वकील ने कहा। 

"नहीं बिल्कुल भी नहीं..!! पर बहुत टाइम लंबा समय हो गया था। मैंने और  सांझ  दीदी ने कुछ भी नहीं खाया था। हमारे कमरे में पर्याप्त पानी भी नहीं था तो मुझे दरवाजा खोलना ही पड़ा। हालांकि सांझ दीदी   मुझसे कह रही थी कि दरवाजा मत खोलो पर मुझे लगा कि जब घर में कोई नहीं है तो इस समय मम्मी और ताई जी से मदद मिल सकती है। और मैं खाना और पानी अंदर का तुरंत दरवाजा बंद कर लूंगी पर यही मेरी गलती थी।" आव्या   ने कहा। 


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव