साथिया - 130 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

साथिया - 130










सभी आरोपियों को पुलिस वापस ले गई और अक्षत तुरंत वहाँ मौजूद अपने साथी वकील के कैबिन की तरफ भागा जहाँ अबीर सांझ को लेकर  गए थे। 

अक्षत जैसे ही  रूम में दाखिल हुआ 
नजर  अबीर के कंधे से  सिर  टिकाए  बैठी सांझ  पर गई जिसकी आंखों से आंसू निकल रहे थे। 

अक्षत ने गहरी सांस ली और उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखा तो  सांझ  ने  भरी आंखों से अक्षत को देखा और एकदम से उससे लिपट गई और उसका रोना तेज हो गया। 

अबीर  ने उसके सिर पर हाथ रखा और फिर 
अक्षत के कंधे को थपका  और  कैबिन  से बाहर निकल गए। 

अक्षत ने  साँझ  के पीठ पर हाथ रख  सहलाया। 

"कहा था ना मैंने इसीलिए की मत आओ आज तुम..?? तुमको फाइनल  हियरिंग वाले दिन लेकर आने वाला था मैं। तुम  बेवजह ही यहाँ आई  और देखो अब  कितनी तकलीफ हो रही है तुम्हें..!!" अक्षत ने कहा पर  सांझ ने  कोई जवाब नहीं दिया। 

"अब अगली बार से तुम बिल्कुल भी नहीं आओगे..!! चलो अभी घर चलते हैं।" अक्षत बोला तो  सांझ  ने  उसकी तरफ देखा। 

"मैं आऊंगी  जज साहब। मैं देखना चाहती हूं कि अभी भी उन लोगों की आंखों में शर्मिंदगी है कि नहीं।" 

"तो क्या देखा? उनकी आंखों में शर्मिंदगी हो या ना हो पर तुम्हारी आंखों में तो आंसू आए ना।" अक्षत ने उसके चेहरे से हाथ लगाकर कहा।।

"जब पुरानी यादें फिर से आंखों के सामने आ जाती हैं  जज साहब तो दर्द होता है ना। आंसू निकलेगे ही  पर आज एक चीज का एहसास बहुत अच्छे से हो गया है मुझे" सांझ ने कहा तो अक्षत ने उसकी आंखों में देखा। 

"जिन्हे जिंदगी भर अपने माता-पिता की तरह सम्मान दिया, प्यार दिया। उनकी  कही  हर बात को  माना  उनके लिए तो जैसे मेरा कोई अस्तित्व था ही नहीं।  न पहले था ना आज है। उस समय मजबूर होकर उन्होंने मेरा सौदा कर दिया था  मैं समझ सकती हूं। पर आज..?? आज तो वह सच बता सकते थे। सच स्वीकार कर सकते थे। मेरे लिए न्याय  मांगने के लिए जब नेहा दीदी सामने आई तो उनका साथ दे सकते थे। पर नहीं आज भी  वह  निशांत और गजेंद्र के साथ ही खड़े दिखाई दे रहे हैं मुझे। उन्होंने पहले भी मेरे बारे में नहीं सोचा और आज भी एक पल को मेरे बारे में नहीं सोचा। और बस  तकलीफ सिर्फ इस बात की है। " सांझ ने  दुखी होते हुए कहा। 

"जिस इंसान को तब तुम्हारी परवाह नहीं थी उसे अब क्यों  होगी? जिस इंसान को एक जीते जाते इंसान के लिए फीलिंग नहीं थी भावनाएं नहीं थी परवाह नहीं थी। वह अब जबकि उसे मरा हुआ समझता है तो उसके बारे में क्यों सोचेगा? अब तो वह और भी ज्यादा स्वार्थी हो गए होंगे, यह सोचकर कि अगर वह निशांत के खिलाफ गए तो कहीं उनकी बेटी और उनके दामाद पर कोई नुकसान ना आ जाए। इंसान कितना भी नाराज हो ले कितना भी गुस्सा ऊपरी तरफ से  दिखा ले पर अपनी औलाद से प्रेम तो होता ही है ना। आज तो उनका  स्वार्थ  और भी बढ़ गया होगा यह देखकर के सामने नेहा और आनंद खड़े हैं। और अगर वह निशांत के खिलाफ गए तो नेहा और आनंद को नुकसान हो सकता है। उन्होंने पहले भी  तुम्हे  अपना नहीं माना था और अब तो अपना  मानने  का सवाल ही नहीं होता। अगर अपना  माना  होता तो इस तरीके का सौदा नहीं करते। कोई भी इंसान अपनी जान दे सकता है पर अपनी बेटी का सौदा नहीं कर सकता। अपनी बेटी का सौदा वही कर सकता है जिसके लिए रिश्तो का महत्व नहीं हो। और जो सामने वाले को अपनी बेटी मानता ही ना हो।" अक्षत  ने  सांझ  को समझाया। 


"जी  जज साहब..!! मैं अब उनके लिए कोई  फीलिंग नही रखती। 

" साँझ अगर तुम्हें यहां आना है तब स्ट्रांग  बनना होगा और ऐसे लोगों के लिए क्यों आंसू बहाना जिन्हें तुम्हारी परवाह नहीं है। जिन्हें तुमसे कोई लेना-देना नहीं है। उनके लिए अगर तुम मर चुकी हो तो तुम भी अपने मन में यह क्यों नहीं मान लेती कि  तुम्हारे लिए भी वह मर चुके हैं। और वैसे भी इस केस  का फैसला होते-होते उन्हें सजा मिल ही जाएगी। तुम्हारी जिंदगी में उनका अस्तित्व हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। तो इस बात को आज ही क्यों नहीं स्वीकार कर लेती?" अक्षत ने कहा। 

"मैं स्वीकार करने की कोशिश कर रही हूं  जज साहब। पर पुरानी बातें आज हुई तो सब कुछ फिर से याद आ गया। मेरा सौदा होना, उस दिन की सारी घटना। मेरा बेचैन होना, आपको कॉल करने के लिए पर मेरे पास मेरा फोन नहीं था।  कोई नहीं समझ सकता  जज साहब  उस दिन मेरी हालत क्या थी..?? कितनी बेचैन थी मैं। कितनी तड़प रही  थी।। मेरे दिल मे सिर्फ एक बात थी  कि मुझे कैसे  भी एक मौका मिल जाए और मैं वहां से आपके पास आ जाऊँ। पर  वह मौका मुझे नहीं मिला। " सांझ  ने दुखी होकर कहा। 

"जो बीत गया उसे भूलने में ही भलाई है  सांझ और बस यह  केस   एक या दो हियरिंग में निपट जाएगा। उसके बाद इन सबकि  इसकी परछाई भी तुम्हारे ऊपर नहीं पड़ेगी। और ना ही  तुम्हे इसके बारे में सोचना है समझी..!!" अक्षत ने कहा और फिर  सांझ को  लेकर घर निकल गया। 

तीन दिन बाद फिर से हियरिंग थी और दोनों पक्ष अपनी तैयारी में पूरे लगे हुए थे। अक्षत के पास और क्या है और क्या नहीं यह सामने वाला बिल्कुल भी नहीं जानता था   तो वही  निशांत  और उसके वकील की पूरी कोशिश थी कि कैसे भी करके सुरेंद्र और उनका परिवार उनके पक्ष में आ जाए और उसके लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की  

यहां तक की इमोशनली भी उन्हें ब्लैकमेल किया लेकिन  सुरेंद्र इस बार अपना मन पक्का कर चुके थे। वह वैसे भी इन  मान्यताओं से  ऊब चुके थे। और उसके बाद नियति और  सांझ के साथ जो कुछ हुआ उन्होंने अपनी आंखों से देखा। और अब वह नहीं चाहते थे कि कुछ भी गलत हो। और उनकी पूरी कोशिश थी की नियति और साँझ  को पूरा न्याय मिले। 

"आप  यह  ठीक नहीं कर रहे हैं चाचा जी..!! अपने भतीजे के खिलाफ जा रहे हैं। अपने भाई के खिलाफ जा रहे हैं।" निशांत बोला जिसने की सुरेंद्र को मिलने के लिए बुलाया था और सौरभ के साथ तुरंत उससे मिलने पहुंचे थे। 


"जानता हूं मैं कि शायद इसके लिए मुझे गलत  समझोगे।  पर तुम लोगों ने जो किया उसके आगे यह कुछ भी नहीं है। मैं तो सिर्फ न्याय और सच्चाई के साथ  हूँ। बाकी मैंने  तुम्हें उसे समय भी समझाया था कि सांझ  को जाने दो। छोड़ दो उसकी कोई गलती नहीं है। इस तरीके से इंसानों का सौदा नहीं किया जाता।  तुम्हारे कारण उस बेचारी की जान चली गई। तुमने उसे इतना प्रताड़ित किया तो अब सजा दो मिलेगी ही मिलेगी।" सुरेंद्र की आवाज कठोर  हो गई।

"पर आप जानते हो कि मैं  नहीं चाहता कि वह मरे। पर उसने अपनी जान खुद ले ली।" निशांत बेशर्मी से  बोला। 

"पर जान लेने पर मजबूर  तो  तुमने किया ना उसे?" 


"जान तो मेरी बहन की भी गई थी ना.?? नियति की भी गई थी और उससे पहले भी गांव में कई लड़कियों की जान जा चुकी है। तब तो आपको कोई तकलीफ  नहीं  हुई  पर इस बार जब मैं सामने हूं तो आप मेरे खिलाफ जाकर खड़े हो गए   सब समझ में आता है मुझे। आप लोग  यह सब कुछ जायदाद के लिए कर रहे हैं ना .? आप चाहते हो कि मुझे फांसी की सजा हो जाए और सारी जमीन  आपको और आपके बेटे को मिल जाए..!!"निशांत ने गुस्से से सौरभ की तरफ देखकर  कहा। 

"मुझे ना ही   आपकी उस जमीन और  प्रॉपर्टी की पहले जरूरत थी और न हीं अब। पढ़ा लिखा हूँ। अपने पैरों पर खड़ा  हूँ। 
अपनी जरूरत को खुद पूरा कर सकता हूं इसलिए अपने मन में इस तरह की बात  मत लाइए और सिर्फ  आज नहीं। मैं कभी भी आपकी जमीन जायदाद पर कोई नजर नहीं डालूंगा। आप जो चाहे वह करें। मेरा  हमेशा से एक ही उद्देश्य था कि यह जो हो रहा है वह नहीं होना चाहिए। और अब जबकि मौका मिल रहा है तो न हीं  मैं और  ना ही पापा पीछे हटेंगे।" सौरभ बोला और सुरेंद्र को लेकर वहां से बाहर निकल गया। 

बाहर निकलते ही सुरेंद्र और सौरभ पर गजेंद्र और निशांत के लोगों ने हमला कर दिया। 

सुरेंद्र को काफी गहरी  चोटें  आई।पर इससे पहले कि वो  लोग उन लोगों की जान लेते  या बड़ा नुकसान करते  अक्षत के लोगों ने आकर उन्हें बचा लिया और सुरक्षित ले जाकर उनके घर में छोड़ दिया। साथ ही  नेहा और आनंद के साथ-साथ सुरेंद्र के परिवार के बाहर भी सिक्योरिटी का इंतजाम कर दिया ताकि कोई भी नुकसान न हो। 


"आखिर यह है कौन? मुझे तो यह समझ में नहीं आता है कि नेहा में अचानक से इतनी हिम्मत कैसे आ गई? कोई तो है पापा जो उसे सपोर्ट कर रहा है उसकी मदद कर रहा है?" निशांत ने सोचते हुए कहा। 


"हमसे क्या दुश्मनी है और   सांझ  से ऐसा क्या रिश्ता है जो वह यह सब कर रहा है?" निशांत और गजेंद्र सोच सोच कर परेशान थे पर कुछ भी नहीं समझ  आ पा रहा था। 


देखते ही देखते दो दिन का समय निकल गया और आज फिर से सुनवाई होनी थी। 

दोनों पक्ष अपनी पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में हाजिर थे। आज फिर से अक्षत के साथ  सांझ आई थी पर साथ ही साथ  शालू  ईशान और  अबीर  भी आए थे ताकि सांझ  को सपोर्ट मिल सके और वह बेवजह ही परेशान ना हो।



क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव