साथिया - 113 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 113

शालू के हाथ पाँव  ठंडा पड़ रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? एक पल को तो उसे लगा के  अबीर   और मालिनी को खबर करे  पर वह जानती थी कि अबीर ड्राइव कर रहे होंगे और काफी दूर निकल गए होंगे। इसलिए उसने अभी शांत रहकर अक्षत के  आने तक इंतजार करने का करना ही ठीक समझा। 

थोड़ी देर में अक्षत  अबीर के घर पहुंच गया था। 

"क्या हुआ दरवाजा  खोला उसने..??" अक्षत ने परेशान होकर कहा। 

"नहीं अक्षत भाई वह दरवाजा नहीं खोल रही है..! और अब तो उसकी आवाज भी नहीं आ रही है। मुझे बहुत घबराहट हो रही है प्लीज कुछ कीजिए ना..!!"  शालू बोली। 

"मास्टर की नहीं है क्या? मास्टर की लेकर आओ जल्दी।" अक्षत ने कहा तो  शालू  का दिमाग चला। 
अब तक तो उसका दिमाग चल ही नहीं रहा था वह तुरंत  दौड़कर मास्टर की लेकर आई तो अक्षत ने दरवाजा खोला। 
पूरा कमरा अस्त व्यस्त था सामान हर  जगह बिखरा हुआ था  और माही कहीं पर भी नहीं थी। 

"माही..!!" अक्षत ने आवाज लगाई पर कोई जवाब नहीं आया। 

बाथरूम से  शावर की आवाज आ रही थी तो अक्षत बाथरूम के दरवाजे की तरफ चल दिया। दरवाजा को धक्का मारा पर दरवाजा नहीं खुला


"  माही दरवाजा खोलो..!! प्लीज दरवाजा खोलो।" अक्षत ने कहा। 



पर अंदर से कोई  आवाज नहीं आई। 

" प्लीज  माही  दरवाजा खोलो..! मुझे बात करनी है तुमसे। क्या हुआ है क्यों इतनी परेशान  हो..!!"  अक्षत  दोबारा बोला।।

पर  कोई  आवाज नहीं आई। 

" सांझ  दरवाजा खोलो..!! प्लीज..!! मुझे तुमसे बात करनी है।" अक्षत ने कहा। 

"मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी..!!  मुझे किसी से बात नहीं करनी। प्लीज  जाइये आप लोग मुझे अकेला छोड़ दीजिए। मुझे किसी से बात नहीं करनी।" अंदर से तेज आवाज आई। 

"नहीं जा सकता  तुम्हे  छोड़कर  सांझ।कभी नहीं जा सकता  तुम  प्लीज दरवाजा खोलो ना। मेरी बात सुनो सांझ..!!"  अक्षत ने कहा। 

"नहीं खोलूंगी..!! जाओ ना आप यहां से। मुझे किसी से बात नहीं करनी। कहा ना मैं मुझे नहीं मिलना किसी से..!!"

"प्लीज सांझ  मेरी बात सुनो। मुझे पता है तुम्हें सब कुछ याद आ गया है और इस समय तुम्हें मेरी जरूरत है   प्लीज दरवाजा खोलो।" 

"नहीं है मुझे आपकी जरूरत..!! कभी नहीं होती मुझे आपकी जरूरत..!! और  जब मुझे जरूरत होती है तो आप कहां होते हो..? नहीं होते आप मेरे पास जब मुझे जरूरत होती है..!! अब मुझे किसी की जरूरत नहीं है। जाओ  आप..!!" अंदर से  सांझ  फिर से बोली। 

" तुम जानती हो सांझ उस समय मैं नही था साथ तो उसका कारण था पर मैं अब कभी नही छोडूंगा साथ..!!"अक्षत की आंखों में आंसू भर आए।

उसने शालू  की तरफ देखा और एक जोरदार धक्का दरवाजे पर मारा तो दरवाजा खुल गया।

सांझ   शॉवर  के नीचे जमीन में बैठी हुई थी घुटनों में सिर  देकर। 

अक्षत ने उसकी तरफ देखा और फिर शालू को देखा। 

"आपकी साँझ   वापस आ गई है  अक्षत भाई  और अब सिर्फ आप ही उसे संभाल सकते हो क्योंकि माही मेरे करीब थी मम्मी पापा के करीब थी  पर   सांझ  सिर्फ और सिर्फ  आपके सबसे ज्यादा करीब थी और किसी के नहीं। तो मुझे नहीं लगता इस समय वह  किसी की बात सुनना चाहेगी। आप देख लीजिए उसे। मैं नीचे जाकर कुछ चाय कॉफी का इंतजाम करती हूं  आपके लिए और  सांझ  के लिए।" शालू ने कहा और कमरे से बाहर निकल गई। 

अक्षत बाथरूम के अंदर आया और  शॉवर  बंद करके  सांझ के सामने  घुटनों पर बैठ गया। 

"सांझ..!!! सांझ देखो मेरी तरफ। " अक्षत ने कहा  पर सांझ ने कोई जवाब नहीं दिया। 

"प्लीज सांझ  मेरी तरफ देखो। इस तरीके से अगर तकलीफ में रहोगी  तो कैसे चलेगा? मैं जानता हूं कि तुम्हें सब कुछ याद आ गया है, इसलिए तुम्हें तकलीफ हो रही है।" अक्षत ने कहा तो सांझ  ने  अभी  भी कोई जवाब नहीं दिया। 

अक्षत ने आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में भर लिया।।

" से समथिंग प्लीज..!  लुक एट मि..!! आएम सोर्री..!! जो तुम्हे वहाँ जाने से नही रोका..!! आईएम सॉरी जो तुम्हे अपने  घर मे सुरक्षित छोड़कर  नही गया। तुम मेरी वाइफ  हो, मेरी जिम्मेदारी..!! मुझे  तुम्हारी सुरक्षा के लिए सचेत होना चाहिए था।  प्लीज सांझ माफ कर दो अपने जज साहब को..!! एक आखिरी बार..!! वादा करता हूँ अब कभी कोई गलती नही होगी।" अक्षत  ने उसे सीने से लगाए हुए कहा।

साँझ ने अपनी बाहें उसके उपर कसी और उसी के साथ  सांझ एकदम से  बिखर गई और उसका रोना शुरू हो गया। 


अक्षत ने भी उसे नहीं रोका क्योंकि वह जानता था कि जब तक उसके दिल का दर्द नहीं निकल जाएगा उसे सुकून नहीं मिलेगा। 

वह बस उसे यूं ही बाहों में लिए बैठा रहा। 

"क्यों  जज साहब..?? क्यों हुआ यह सब?? क्या बिगाड़ा था मैंने किसी का?? क्यों हुआ यह सब जज साहब..! एक सादा सी जिंदगी चाहि थी मैंने आपके साथ..!! ये सब क्यों हुआ..??" सांझ   बस  रोये  जा रही थी। ।

"बस सांझ  शांत हो जाओ।जो होना था हो गया। अब सब ठीक है। मैं हूं ना तुम्हारे साथ सब ठीक हो गया है  सांझ  अब  दुखी मत हो। प्लीज खुद को संभालो।" अक्षत ने कहा। 

सांझ अभी  भी लगातार रोए जा रही थी। 

अक्षत ने उसे अपनी बाहों में उठाया और और बाथरूम से बाहर जाने लगा। 

" प्लीज जज साहब..!! आप चले जाइए।  मुझे अभी किसी से बात नहीं करनी।" 

" मत करो बात..!!  जब मर्जी हो तब कहना अपने दिल की बात..!! पर मैं कहीं नही जाऊंगा।  नहीं छोड़ सकता तुम्हें किसी भी हाल में..। तुम्हें जो कहना है  कह लो , जितना नाराज होना है  हो लो। जितना दुखी होना है दुखी हो लो पर तुम्हें एक पल के लिए भी नहीं छोड़ सकता  मैं।।एक बार तुम्हें छोड़ने की गलती कर दी और जिसकी सजा हम दोनों ने   ही भुगत  ली  है। अब तुम्हें किसी के कहने पर किसी भी हालत में नहीं छोड़ सकता। खुद से दूर नहीं कर सकता। समझी  तुम।" अक्षत ने कहा तो सांझ ने   भरी आंखों से उसकी तरफ देखा और उसके सीने से  लिपट गई। 

" जज साहब वो..!! नेहा दीदी..!!! वो चाचा जी..!! वो निशु..!! " सांझ रोते हुए टुटती आवाज मे बोली। 

" शांत..!! पहले शांत हो जाओ फिर सब बताना..!! मै सब सुनूँगा..!! और एक एक को सजा मिलेगी।" अक्षत ने सख्ती

अक्षत सांझ  को  लेकर रूम में आया और  उसे सोफे पर बैठा दिया। 

कबर्ड खोलकर उसके कपड़े  निकाले और उसके सामने कर  दिये। 

"चेंज कर लो  सांझ  वरना बीमार हो जाओगी। और  तुम अभी वैसे ही वीक हो।" अक्षत ने कहा पर  सांझ ने  कोई जवाब नहीं दिया। 

" प्लीज सांझ  तुम खुद से चेंज कर लो वरना मुझे..!!" अक्षत ने बोला तो  सांझ ने  उसे देखा और फिर कपड़े लेकर बाथरूम के बाहर बने चेंजिंग रूम में चली गई। 

कपड़े चेंज  करने लगी   और खुद को आईने में देखा और उसी के साथ उसकी दोबारा से  चीख  निकल गई। 

अक्षत दौड़कर जल्दी से चेंजिंग रूम में गया तो देखा  सांझ आईने के सामने खड़ी होकर खुद को देख रही है। कपड़े भी उसने आधे अधूरे पहने हैं और अस्त व्यस्त हो रहे थे। 

अक्षत ने उसके कपड़े ठीक किये  और उसके कंधे पर  पर हाथ रखा। 

" यह कौन है ??? यह कौन है  जज साहब?? यह कौन है? यह मैं नहीं हूं? यह क्या है  जज साहब..??" सांझ ने दर्द के साथ कहा  और उसी के साथ उसने सिर्फ अपना  सिर पकड़ लिया। 

पुरानी बातें और माही बनने के बाद की बातें और घटनाएं उसके दिमाग मे चलने लगी।

" नही..!! नही..!  ये मैं  नही हूँ..!! कौन है ये..!!!  ये सब क्या है जज साहब..!!"  उसने सिर पकड़ लिया और वापस से  तकलीफ और बैचेनी से चीख पड़ी  और  एकदम से बेहोश हो गई। 

अक्षत ने उसे बिस्तर पर लिटाया और तुरंत अमेरिका मे उसकी डॉक्टर  को कोल किया और सारी बातें बताई। 


" डोन्ट वारि मिस्टर चतुर्वेदी.. !! ये तो एक न एक दीन होना ही था। 

"वो डिस्टर्ब  तो होंगी ही क्योंकि उसका पास्ट पैनफुल रहा है..!! और उसे पुरानी बातें याद आने का  मतलब यह नही कि वो अभी के पिछले दो  साल भूल गई है। हां तुरंत के तुरंत ऐसा होता है कि जब उसे अपनी पुरानी जिंदगी याद आई है तो कुछ समय के लिए उसके दिमाग से अपनी नई जिंदगी निकल गई हो। यह  दो  सालों की यादें कुछ समय के लिए उसके दिमाग से निकल गई थी इसीलिए वह इस तरीके से रिएक्ट कर रही है अपने नए चेहरे को देखकर। पर चिंता मत  कीजिये आप। वह जैसे ही  थोड़ी नॉर्मल होगी उसका दिमाग पुरानी बातों के साथ-साथ है इन  दो सालों की मेमोरी को भी रिकॉल कर लेगा। और तब वह सारी स्थिति समझ जाएगी और फिर उसे अजीब नहीं लगेगा।" 

" जी डॉक्टर..!" 

"बाकी अब आपको संभालना है..!! संभालिए उसे। मोरल सपोर्ट दीजिए , इमोशनल सपोर्ट दीजिए जिसकी कि उसे इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है, ताकि वह अपने दर्द से बाहर निकल सके और पुरानी यादें जो कि उसके लिए तकलीफ का कारण है उन्हें  भुला सके"  डॉक्टर ने  कहा। 

" पर डॉक्टर वह अभी बेहोश हो गई है..!" अक्षत अब भी परेशान था।

"डोंट वरी थोड़ी देर में होश आ जाएगा..!! उसकी मेडिसिन प्रॉपर चल रही है इसलिए चिंता की कोई बात नहीं है।" 


"पर कब तक  आ जाएगा??" अक्षत  बेहद  परेशान था। 

"हो सकता है एक-दो घंटे में या हो सकता हैं वह  नींद में चली जाए तो शायद सुबह ही उठे।इंडिया में तो इस समय शाम हो चुकी है ना ?" डॉक्टर ने कहा। 

"जी डॉक्टर..!!" 

"ठीक है आप चिंता मत कीजिए बस उनके साथ रहिए और उन्हें संभालने की कोशिश कीजिए..!! धीमे-धीमे  वह नॉर्मल हो जाएगी। वह इतनी कमजोर नहीं है। बहुत स्ट्रॉन्ग है वह वरना इतना सब होने के बाद जनरली पेशेंट  हिम्मत खो  देते हैं।   पर वह  हिम्मती है  इसीलिए डॉक्टर भी उसका साथ दे पाए। अब आगे आपको साथ देना है।" डॉक्टर ने अक्षत  को  और भी  बातें समझाइ और फिर कॉल कट कर दीया। 

शालू जो की अक्षत और  सांझ  के लिए चाय लेकर आई थी उसने भी सारी बातें सुनी। उसने अक्षत की तरफ देखा और फिर बेड पर सोई सांझ  को देखा। 

"ठीक है वह..!! सब कुछ याद आया है तो तकलीफ तो होगी। बाकी तुम चिंता मत करो आराम करो जाकर मैं हूं यहां इसके साथ..!! जब तक यह नॉर्मल नहीं हो जाती मैं यहीं पर रहूँगा।" अक्षत ने कहा तो  शालू  ने  ट्रे टेबल पर रखी और और  सांझ  को  देखा। 

"मम्मी पापा को बता  दूँ?" शालू ने कहा। 

"रहने दो क्या ही फर्क पड़ेगा? बेवजह ही  परेशान होंगे। कल तो आ ही  रहे हैं??? ना दोपहर तक आ जाएंगे तो सब पता चल जाएगा उन्हें ।  
जिस काम से  गए है वो  करने दो।" अक्षत बोला तो शालू बाहर चली गई। 


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव