साथिया - 97 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 97

शालू ने सारा सामान पैक कर लिया पर उसे वो  फाइल नहीं मिल रही थी जिसमें वह  ईशान  के लिए लेटर लिखती रहती थी। 

"यही तो रखी थी मैंने ना जाने कहां गई? अब क्या ही फर्क पड़ता है। अब तो वहां जा ही रही हूं सामने मुलाकात होगी  ईशान  से।   उन  चिट्ठियों  की  कोई वैल्यू नहीं अगर  ईशान  मुझ पर विश्वास नहीं करता  या  मुझसे नाराज रहता है। बाकी  अब आगे क्या होगा वहीं जाकर पता चलेगा। यहां पापा हम दोनों की शादी के बारे में सोच रहे हैं और मुझे तो यह भी विश्वास नहीं है कि  ईशान मेरी सूरत भी देखना चाहेगा कि नहीं..?? मुझसे बात भी करना चाहेगा कि नहीं.? शादी तो बहुत दूर की बात है मुझे तो यह भी नहीं पता कि वह अब तक मुझे प्यार करता भी है या  मेरी इस बेवफाई के बदले में मुझसे नफरत करने लगा है।" शालू ने खुद से ही कहा और फिर जरूरी सामान पैक करके  बैग  एक साइड रख दिये  और खिड़की पर आकर खड़ी हो गई। 

नजर  बाहर गार्डन में अक्षत का हाथ थामे घूमती माही पर गई। 

"पर मेरी बहन की खुशियों और उसकी जिंदगी के आगे कुछ भी मायने नहीं रखता..!! हां हो सकता है अगर तुमसे शादी हो चुकी होती ईशान तो शायद मेरे लिए पहली प्राथमिकता पर तुम होते। पर उस समय मेरी प्राथमिकता पर सिर्फ और सिर्फ मेरी बहन की जिंदगी थी और मैंने उसे ही चुना। तुम्हारी तरह कई लोग मुझे ही गलत समझेंगे तो समझते रहे पर मेरी जगह तुम होते तो शायद तुम भी यही करते हैं जो मैंने किया।  अपनी बहन की जिंदगी के साथ  मैं  कोई रिस्क नहीं  ले  सकती थी।बहुत दर्द सहे है उसने। हमारे होते हुए अनाथों की जिंदगी जी है। उसे नही छोड़ सकती थी उस हाल में और न ही  मम्मी पापा को छोड़ सकती थी। तुम  मुझे माफ करोगे या नहीं करोगे नहीं जानती पर तुम मुझे  समझोगे   इतनी उम्मीद जरूर करती हूँ मैं।" शालू ने  खुद से ही कहा और फिर आकर बिस्तर पर लेट गई। 


बाहर माही अक्षत का हाथ थामे थामे चल रही थी। 
अक्षत ने एक पल को उसका हाथ नही छोड़ा था। इतने लम्बे  इंतजार के बाद आखिर सांझ उसके साथ थी। उसकी मिसेज चतुर्वेदी आज उसके साथ थी। हाँ ये बात अलग थी कि उसे कुछ याद नही था पर अक्षत के  उसके साथ होने का एहसास ही काफी था। 

" जज साहब हम दिल्ली मे ही मिले थे पहली बार..??" 

" हाँ..!! हमारी यूनिवर्सिटी में..!" अक्षत ने धीमे से जबाव दिया। 

" शालू दी और ईशान जीजू का रिश्ता पहले जुड़ा कि हमारा..?" माही के सवाल रुकने का नाम ही नही ले रहे थे। 

अक्षत ने उसकी आँखों में देखा।

" सब कुछ जानना है?" 

माही ने हाँ गर्दन हिला दी। 

" सब बताऊंगा पर धीरे धीरे..!! मैंने दो साल तक सब्र रखा थोड़ा सा सब्र तुम भी रख लो..!" अक्षत मुस्कराया। 

" चले अब वापस..?" 

" क्यों थक गई क्या..?" 
" नही..!! पर अब क्या बात करूँ समझ नही आ रहा..!!" माही बोली और अक्षत को देखा 

" प्लीज गलत  मत समझिये.!! मैं कोशिश कर रही हूँ और पापा भी चाहते है कि मै कोशिश करूँ..!! पर इतना आसान नही मेरे लिए..!  नीड सम टाइम..!! प्लीज ट्राई टू  अंडरस्टेंड..! कुछ याद नही मुझे। तो कभी विश्वास होता है कभी नही। और फीलिंग्स आने मे टाइम तो लगता है न??" 

" टेक योर टाइम माही..! आएम ओल्वेज विथ यू..! समझो जानो..! पुराने एहसास और रिश्ते भूल गई हो जानता हूँ मैं पर मुझे इंतजार है उन एहसासों के फिर से जागने का।" अक्षत ने कहा तो माही ने उसकी तरफ देखा। 

" इस दिल में तश्वीर मेरी है..!  बस मुझे इंतजार है तुम्हारी आँखों मे ये तश्वीर फिर से बसने की।" अक्षत ने उसकी आँखों मे झांक के कहा तो माही ने  नजर झुका ली। 

दोनों अंदर आये और माही अपने रूम मे चली गई। 
मालिनी हॉल मे ही थी। 


"आंटी मुझे यहां से जाने से पहले माही के डॉक्टर से मिलना है।। उससे भी जिसने इसकी कॉस्मेटिक सर्जरी की और उससे भी जिससे इसका रुटीन चेकअप चलता है और सारा ट्रीटमेंट चलता है।" अक्षत ने कहा। 

"हां ठीक है बेटा कल सुबह  शालू  के साथ चले जाना तुम और डॉक्टर से मिलकर आ जाना। वैसे भी आगे की अपडेट ले लोगे तो ज्यादा बेहतर होगा।  तुम्हे  वह माही का केस भी अच्छे तरीके से समझा सकेंगे।" मालिनी ने कहा। 

"ठीक है आंटी..!!" अक्षत बोला और वापस से गेस्ट रूम में चला गया पर अब दिल की बेचैनी खत्म हो गई थी, क्योंकि माही ने उसकी तरफ एक कदम बढ़ाया था। जानता था वह की सफर आसान नहीं है और मंजिल अभी भी दूर है पर जब वह अपनी तरफ से चल रहा था तो  उसे इस बात की भी उम्मीद थी कि माही भी अपनी तरफ से कदम बढ़ाएगी और आज माही  ने उसकी तरफ एक कदम बढ़ाया था और अब अक्षत  को विश्वास हो गया था कि जल्दी ही माही उसको फिर से प्यार करने लगेगी  और उसके साथ अजनबी  जैसा  व्यवहार नहीं करेगी  पर अभी भी बहुत कुछ बाकी था जो भी अक्षत को करना था। उनमें सबसे पहले था डॉक्टर से मिलना और माही की स्थिति और उसका केस  समझाना और फिर इंडिया जाने के बाद माही के गुनहगारों  को एक-एक उनके अंजाम तक पहुंचाना क्योंकि  अक्षत के दिल में आग थी और जब तक वह सबको सजा नहीं दे देता उसके सीने में  जल रही है  आगको ठंडक नहीं मिलने वाली थी। 

माही कमरे में आई और शालू के बगल में  लेट उससे लिपट गई। 

"अरे क्या कर रही है..? मैं जज साहब नही हूँ।"  शालू ने हंसकर कहा तो माही ने उसे घूर के देखा और फिर दोनों खिलखिला उठी..!! 

उधर इंडिया मे 
अरविंद और साधना की  अक्षत से बात हो चुकी थी और वो सांझ के बारे मे  उन्हे सब पता था। उसके बाद अरविंद जी की अबीर से भी बात  हुई और अबीर के साथ उन्होंने ईशान और शालू के रिश्ते की बात की। 
अक्षत और अबीर से बात के बाद साधना और अरविंद शालू की मजबूरी और स्थिति समझ गए थे पर ईशान..?? 
क्या  उसके लिए आसान था शालू की स्थिति समझना और उसके लिए नॉर्मल रहना..?? 

ईशान बाहर जाने लगा कि तभी उसके कानों मे  अरविंद  की आवाज सुनाई दी। 

" अक्षत सांझ के साथ अबीर जी मालिनी और शालू भी आ रहे है। और अबीर जी चाहते है कि तुम्हारी और शालू की शादी जल्द से जल्द हो।" 

" हर बार जो वो लोग चाहे वही हो जरूरी नही..!!एक बार डिसीजन उन्होंने लिया और अब डिसीजन मैं लूंगा..!" ईशान ने बिना भाव के कहा। 
" मतलब?? तुम शादी नही करना चाहते..?" साधना ने सवाल किया। 

" नही अभी नही और दूसरी बात शालिनी राठौर के साथ तो बिल्कुल नही।" ईशान बोला और बाहर निकल गया। 

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव