साथिया - 96 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 96

अक्षत ने पलटकर देखा तो  दरवाजे पर माही खड़ी थी। 
अक्षत अपने आंसू छिपाकर मुस्कराया और फिर वापस विंडो की तरफ देखने लगा। 
पर माही उसकी दर्द मे डूबी आँखे देख चुकी थी।

माही उसके पास आकर खड़ी हो गई। 

" सॉरी..!! सॉरी जज साहब..!" माही की धीमी  सी आवाज अक्षत  के कानों मे पड़ी। 
" सॉरी..?? फॉर व्हाट??" 
" मैने आपको गलत समझा, गलत बोला और आपको हर्ट किया..!" 

अक्षत ने बिना उसकी तरफ देखे अपनी हथेली उसके सामने की। 

माही ने एक पल को उसकी हथेली देखी और फिर अपना हाथ  उसके उपर रख दिया। 

" अक्षत ने अपनी चौङी हथेली मे उसका नाजुक हाथ थाम लिया। 

"जानता हूँ तुम्हे याद नही कुछ..!! भूल गई हो मुझे, मेरे प्यार और हमारे साथ गुजरे लम्हों को..!! पर  ये स्पर्श पहचानने की कोशिश करो! फील करो इस टच  को..! और फिर समझो! मैं तुम्हारा हूँ माही सिर्फ तुम्हारा..!! एक बार फिर से विश्वास करने की कोशिश करो..! मेरे लिए प्लीज।" अक्षत  ने गहरी आवाज मे कहा तो माही ने उसकी तरफ देखा और उसकी हथेली पर दूसरा हाथ रख दिया। 


"यह स्पर्श अंजाना नहीं है मेरे लिए  जज साहब..!! अगर अंजाना होता तो आप मुझे उस समय  नहीं छु पाते जब आपने गार्डन में मेरा हाथ पकड़ा था। 

"कुछ लोग  ही है   जो मुझे एकदम से स्पर्श कर पाते हैं और मैं अनकंफरटेबल नहीं होती। वह है मम्मी, पापा  शालू दी मेरे डॉक्टर और इस घर के एक-दो  मेड। बाकी उस एक्सीडेंट के बाद एक अजीब सी घबराहट मेरे मन के अंदर बैठ गई है। अंजान लोग एकदम से पास आ जाए तो डर जाती हूँ पर आपसे डर नही लगा मुझे इसका मतलब आप अनजान नही है। पता नहीं क्या हुआ था ऐसा कि मुझे कुछ भी याद नहीं। कभी-कभी कुछ धुंधली यादें आती है सामने जो कि यह बात बताती है मुझे कि वह एक्सीडेंट एक नॉर्मल एक्सीडेंट नहीं था। उससे पहले बहुत कुछ हुआ था मेरे साथ या किसी और के साथ..!" माही बोली। 

अक्षत बस सुनता रहा खामोशी से। 

"पता नहीं पर एक लड़की अक्सर दिखती है मुझे..!! साँवली  सी  पर बहुत प्यारी। खून से  लथपथ। उसका सिर खून से सना। ऐसा लगता है जैसे कोई उसके सिर को दीवार पर मार रहा है। नहीं पता कौन है..? क्या है ? पर  उन्हें यादों में अक्सर आपका चेहरा भी आता था। पर तब तक मैंने आपको देखा नहीं था तो मैं पहचान नहीं पाती थी   पर आपको जब पहली बार देखा तो पहचान गई कि आप अजनबी नहीं हो। पर मैं अगर अनकंफरटेबल थी तो सिर्फ इस बात से थी कि शालू दीदी का और बाकी सब का कहना था कि हमारा रिश्ता है। और अगर रिश्ता था तो आप फिर आए क्यों नहीं..?? बस मुझे यही बात  हर्ट कर रही थी।" माही ने कहा तो अक्षत ने उसकी तरफ देखा और उसके कंधों पर हाथ रखा। 

""कई बार चीजे जैसी हमें दिखती हैं वैसी होती नहीं है।  और परिस्थिति  हर इंसान के लिए अलग-अलग होती है। तुम्हारी स्थिति को तुम बेहतर समझ पा रही हो और मेरी स्थिति को मुझसे बेहतर और कोई नहीं समझ सकता। इन दो सालों में एक-एक पल तड़पा हूं तुम्हारे लिए..!! तुम्हें देखने के लिए तुम्हें छूने के लिए तुम्हें अपने सीने से लगाने के लिए। पर मेरे पास कोई रास्ता नहीं था तुम तक आने का।" 

माही ने उसकी आँखों  में देखा।

"फिर भी मैंने कोशिश जारी रखी  और तुम तक पहुंच गया। पर जानता हूं तुम्हारे लिए आसान नहीं होगा फिर से मुझ तक आना, क्योंकि पुरानी बातें  तुम भूल चुकी हो और नया विश्वास आने में समय तो लगेगा। " 

माही अब भी उसे देख रही थी एकटक।

"मुझे कोई जल्दबाजी नहीं है..!! तुम अपना पूरा समय को जब तुम्हें विश्वास हो जाए मुझ पर तभी तुम  मानना। बस प्लीज तब तक यूँ शक मत करो..! मेरे प्यार पर सवाल मत उठाओ।  मेरे तुम तक न पहुंचने को बेवफाई का नाम मत दो..!! तुम नहीं जानती हो कि मैं तुम्हारे लिए कितना बेचैन रहा हूं। एक बहुत बड़ी सच्चाई को जानने के बाद भी सब कुछ एक्सेप्ट किया है सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हें प्यार करता हूं। बहुत प्यार करता हूं माही। प्लीज समझने की कोशिश करो। तुम पर कोई जबरदस्ती नहीं है पर  मुझे मौका तो दो।" अक्षत ने  भावुक होकर कहा। 

माही की आंखों में भी आंसू भर आये। 

"मैं वादा नहीं कर सकती पर कोशिश पूरी करूंगी हमारे रिश्ते को एक मौका देने की, और उम्मीद करती हूं कि आप भी मेरी इस स्थिति समझेंगे..!" माही ने कहा  तो अक्षत ने गर्दन हिला दी। 

" मै  तुम्हें भी समझता हूं तुम्हारी स्थिति को भी समझता हूं। और रही बात टाइम की तुम्हारे लिए तो पूरी जिंदगी इंतजार कर सकता हूं। कुछ  दिन, कुछ महीने या कुछ साल कोई मायने नहीं रखते।"अक्षत ने कहा तो माही के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गई। 

"थैंक यू..!!" 

"जानता हूं मैं की आज के समय में तुम्हें सिर्फ अबीर  अंकल की बात का विश्वास है। पर मैं सिर्फ इतना ही कह सकता हूं कि तुम्हारा और मेरा रिश्ता तुम्हारे और तुम्हारे पापा के रिश्ते से भी ज्यादा मजबूत था। मैं बस भगवान से यही प्रार्थना  करूंगा कि तुम्हें सब कुछ याद आ जाए।" 


"और अगर नहीं याद आया तो?" माही ने फिर से सवाल किया। 

"नहीं याद आया तो वही विश्वास वही प्यार फिर से जीत कर दिखाऊंगा...!!वादा करता हूं  तुमसे..!!" अक्षत ने उसके गाल से हाथ लगाकर कहा तो माही  ने मुस्कुरा कर नजर झुका ली। 

"गार्डन में चलें? " माही ने कहा। 

"पर यह तो तुम्हारा सोने का टाइम होगा ना?"अक्षत ने गहरी नजर से उस की तरफ देखा। 

"मैं एक झपकी लेकर आ गई हूं..!!पापा से बात करते-करते नींद कब आई पता ही नहीं चला। अब इतनी जल्दी नींद नहीं आएगी। आप चाहे तो हम चल सकते हैं   थोड़ा टाइम एक दूसरे के साथ बिताएंगे तो  जानने समझने लगेंगे। और पापा ने भी कहा है कि मुझे आपको मौका देना चाहिए। आपको समझने की कोशिश करनी चाहिए।" माही ने साफ शब्दों में  कहा। 

"ठीक है चलते हैं..!!" अक्षत बोला  तो माही  आगे बढ़ने लगी पर अक्षत  ने  उसका हाथ पकड़ लिया। 

माही ने उसकी तरफ देखा। 

अगले ही पल अक्षत ने उसका हाथ पकड़ खींचा और उसे अपने सीने से लगाकर उसकी पीठ पर अपनी  बाहों को कस लिया। 

" जज साहब..!!" माही के मुंह से निकला। 

"प्लीज दो मिनट..!!"  अक्षत ने  धीमे  से कहा तो माही ने उसकी बाहों से निकलने की कोशिश बंद कर दी और उसके सीने से  लग आंखें बंद कर  ली। 

"भले  वह पुराना सब कुछ भूल चुकी थी पर अक्षत के गले से  लगकर एक सुकून उसके सीने में भी  उतर गया था। जैसे एक शीतलता मिली थी उसे और उसका बैचैन दिल चैन पा गया था।

ऐसा लग रहा था जैसे कि ना जाने कब से इस आलिंगन के लिए बेचैन था उसका भी दिल और शरीर। 

अक्षत की आँखों से दो बूंद निकल के बाहर आ गई। 

कुछ पलों  बाद  अक्षत ने उसे खुद से अलग करना चाहा तो अक्षत को महसूस हुआ कि  माही  के हाथ उसकी पीठ पर है। और उसके हाथों की पकड़ अपनी पीठ  पर महसूस करते ही अक्षत के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ  गई और उसने वापस से माही की पीठ पर अपने हाथ रख लिए। 


" चले अब..जज साहब..?? आप तो मुझे छोड़ना ही नही चाहते।" तभी माही की आवाज आई तो अक्षत उससे दूर हुआ। 

माही के  गालों  पर हल्की सुर्खी आ गई थी और वह जल्दी से आगे बढ़ने लगी पर फिर से अक्षत  ने उसका हाथ पकड़ लिया तो माही ने पलट कर उसकी तरफ देखा। 

" बहुत बेचैनी के बाद पाया है तुम्हे तो छोड़ने का तो सवाल ही नही उठता। बाकी तुम्हें अनकंफरटेबल  तो  नहीं लगा मेरा  हग करना।  तुम्हें अगर तुम्हें कुछ भी गलत लगे तो तुम प्लीज मुझे मना कर सकती हो माही ..! कई बार जज्बात काबू में नहीं रहते तो इंसान से गलतियां हो जाती है। हालांकि मेरी मेरे हिसाब से मैंने कुछ भी गलत नहीं किया पर तुम्हारे हिसाब से  लगे  रोक देना। कभी भी तुम्हें गलती से भी हर्ट करने का सोच भी नहीं सकता मैं।" अक्षत ने कहा तो माही ने गर्दन हिला दी और अगले ही पल  उसका हाथ थाम  करके बाहर आ गई। 

हॉल  में अबीर और मालिनी बैठे हुए थे। 

"मम्मा पापा मैं  जज साहब के साथ बाहर गार्डन में जा रही हूं। थोड़ा  वॉक  करके अभी आ जाऊंगी।" माही ने कहा। 

"हां बेटा आराम से  जाओ।" मालिनी  बोली तो माही  अक्षत के साथ बाहर निकल गई। 

मालिनी ने अबीर की तरफ देखा। 

" मुझे भी  अपने बच्चों की खुशियां ही चाहिए। मैं मानता हूं अपनी बच्ची  की खुशियों के चलते अक्षत को अनदेखा कर दिया था। पर अब ऐसा नहीं होगा   वहां जाते ही शालू  और  ईशान की शादी के साथ ही साथ मैंने अक्षत और माही की शादी करने का भी फैसला कर लिया है। माही  उसके साथ रहेगी तभी उसे  जानेगी समझेगी और उसके साथ कंफर्टेबल होगी। वैसे भी दोनों पति-पत्नी है तो हम अलग रखने वाले होते कौन है??" अबीर  ने कहा तो मालिनी के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई। 

"आपने बहुत अच्छा डिसीजन लिया..!! मैं खुद यही सोच रही थी पर  कहने  की हिम्मत नहीं थी क्योंकि माही के बारे में सारे डिसीजन आप ही लेते हो और जो सही होता है वही करते हो।" मालिनी बोली। 

"हां और इस बार मुझे यही सही लग रहा है और यही करूंगा..!" 

" माही  मान जाएगी इतनी जल्दी?" मालिनी ने कहा। 

"कोशिश तो कर ही सकते हैं..!! बाकी मुझे तो लगता है कि मान जाएगी।" अबीर ने मुस्कुरा कर कहा और फिर दोनों अपने कमरे की तरफ चले गए। 


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव