बेखबर इश्क! - भाग 9 Sahnila Firdosh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बेखबर इश्क! - भाग 9

कनिषा से दूर जाते हुए संस्कार ने अपने दोनो हाथो को जेब में भरा और कंधे को उचका लिया,उसके होंठो पर कुटिलता भरी मुस्कान थी,और अगले ही पल वो खुद में ही बड़बड़ाया....."क्या मजबूरी थी की तुमने इशांक जैसे इंसान से शादी की,अब इशांक से अपना बदला पूरा करने के लिए मुझे एक खूबसूरत लड़की को इस्तमाल में लाना होगा,आह्ह्ह्हह....(अपने सीने पर हाथ रख)ये दुनिया जालिम है!!".....

इतना कह वो मुस्कुराया और अपने फोन को निकाल कर,,एक फोटो को देखने लगा,जिसमे कनीषा ईशांक के गार्डेन में पेड़ के नीचे आंखे बंद कर सोई थी,स्क्रीन पर उसने अपनी उंगली स्वाइप की तो उसके स्क्रीन पर वो तस्वीर भी आ गई,जिसमे इशांक कनीषा को घर से बाहर निकाल रहा था,ये देखते हुए वो कल रात की यादों में कहीं खो सा गया,जब वो अपनी बालकनी में खड़ा उन लम्हों को याद कर रहा था,जब उसकी पत्नी उसके साथ थी,और इस पूरी दुनिया में उनके जितना खुशहाल शादीशुदा जोड़ा कहीं भी नही था।।

उन पुराने बीते लम्हों को याद करते हुए हर रोज को तरह आज भी उसकी आंखे भर आई थी,की तभी उसकी नजर इशांक पर पड़ी,जिसके कारण उसकी जिंदगी में अब सिर्फ अकेलापन बाकी रह गया था,उसे किसी लड़की के साथ अजीब सा सुलूक करता देख,उसे हैरानी तो नही हुई,पर उससे बदला लेने का अच्छा मौका जरूर दिखा,जिसके कारण उसने अपने फोन को निकाला और लड़की को पहचानने के लिए जूम कर, तस्वीर खींच ली।।।

अपने ख्यालों में गुम संस्कार सिर नीचे किए,मुस्कुराते हुए चल रहा था,तभी उसकी नजर एक जोड़े चमाचमते जूते पर पड़ी,जिन्हे देखते ही वो समझ गया की असका रास्ता रोके इशांक खड़ा है,अप्रसन्नता से अपनी नजरों को इशांक के चेहरे पर ले जाते हुए,वो हिकारत भरी हंसी हंसा....."वो लड़की काफी स्वीट है,मुझे लगता है,वो मेरी बीवी की जगह लेने के लायक है,तुम क्या सोचते हो??"

पहले ही संस्कार को कनिषा के साथ देख भड़के हुए इशांक ने जब उसकी ये बात सुनी गुस्से से उसकी आंखे लाल हो गई और अगले ही पल उसने संस्कार का कॉलर पकड़ लिया...."तुम्हारी दुश्मनी मुझसे है, कनीषा को बीच में लाने की कोई जरूरत नही है,मर्द हो तो मर्द की तरह लड़ो,लड़की के कंधे पर बंदूक रख कर चलना तुम्हे शोभा नही देता!"

"मुझे सोभामन बनना भी नही है?मैने जो खो दिया उसके बाद तुम उम्मीद करते हो की मैं डिसेंट बन के रहूं,समझना नायरा ( संस्कार की पत्नी) के साथ मैं भी मर चुका हूं,और मुर्दे ना तो सोभामान होते है,और ना ही उसके कमीनेपन की कोई हद होती है,इसलिए अपनी बर्बादी की उल्टी गिनती शुरू कर दो,मिस्टर इशांक देवसिंह!".....कहते हुए संस्कार ने इशांक की कलाई को मजबूती से पकड़ कर अपने कॉलर से दूर खींचा और होंठो पर तल्खी भरी मुस्कान लिए उसके कंधे पर दो बार थपथपाने के बाद वहां से चला गया।।

इधर कनिषा इशांक के द्वार कहे संस्कार से दूर रहने की बात पर सोचते हुए,अपने डैड की रूम की ओर बढ़ने लगी थी की,तभी उसकी नज़र इशांक और संस्कार पर पड़ी,जिनके चेहरे पर बने कड़वे भाव बता रहे थे की...वो दोनो एक दूसरे को जरा भी पसंद नही करते,, इशांक को उसका कॉलर पकड़े देख कनीषा मुंह बिचकाते हुए बोली....."इस आदमी की बनती किससे है,सब से तो लड़ता ही फिरता है,,मैं नही डरी तो अब बेचारे संस्कार को डराना चाहता है,इस आदमी को तो नासा के लैब में भेज देना चाहिए,या फिर मंगल ग्रह पर टेलीपोर्ट कर देना चाहिए,वहीं अकेले रहेगा,ना लड़की होगी,ना ही कोई लड़का और ना ही मिलेगा किसी से नफरत करने का रीजन।।


हल्की झड़प के बाद संस्कार वहां से चला गया तो अचानक ही इशांक की निगाहे लगभग दस कदम की दूरी पर खड़ी कनिषा की निगाहों से टकरा गई,एक पल पहले वो गुस्से में इस कद्र अपना आपा खो चुका था,की बस कनीषा के ऊपर हाथ उठने ही वाला था, इस ख्याल ने जैसे इशांक को लज्जित कर दिया,हथेली पर गिरे आंसू की जगह उसे कुछ जलन महसूस हुई तो उसने अपनी नजरों को कनीषा के चेहरे से हटा कर हथेली पर देखना शुरू कर दिया।

उस पर बेवजह चिल्लाने और इंसल्ट करने से कनिषा भी इस वक्त उसकी सकल नही देखना चाहती थी,कहीं ना कहीं वो इशांक के एग्रेसिव बिहेवियर से डर भी गई थी,,,इसलिए इशांक ने अपनी निगाहें नीचे की तो अच्छा मौका पा कर वो दौड़ते हुए वहां से भागने लगी,हालंकि जैसे ही वो इशांक के समीप से गुजरी एकदम से उसे अपनी कलाई पर किसी जकड़न का एहसास हुआ जिसके कारण उसके तेजी से भागते पैरों पर ब्रेक लग गया और उसने झट से अपना सिर नीचे कर अपनी कलाई को देखना चाहा।।।

"हाथ छोड़िए मेरा,आप जो ये घडी घडी मेरा हाथ पकड़ लेते है,नफरत होती है मुझे इससे,आपके नजदीकी से,आपकी स्मेल से,आपके चेहरे से, आपकी शख्सियत से.... हर एक चीज जो आपसे जुड़ी है,मुझे सब पर शर्म आती है,ये सोच कर की मैं आपकी दुल्हन बनी थी कल, मुझे खुद से भी नफरत होती है।।""..... कनिषा अपनी दांतों को एक दूसरे पर पीसते हुए,दबी सी लेकिन गुस्से भरी आवाज में बोली और अगले ही पल अपने हाथ को इशांक की पकड़ से झटक कर अलग कर लिया।।

"इसलिए तुमने वो मंगसूत्र और सिंदूर फेंक दिया था??क्योंकि तुम्हे मेरे साथ एक रिश्ता में होने शर्मनाक लगता है?"....



"सही कहा,आपसे जुड़ी कोई भी चीज मैं अपने पास नही रखना चाहती,और उम्मीद करती हूं की आपकी सकल दुबारा ना देखनी पड़े,मेरे रास्ते में मत आइएगा और दुबारा मेरे साथ वो करने की कोशिश मत कीजिएगा,जो आज किया।।".....इतना कह कनिषा दो कदम आगे बढ़ी की तभी इशांक की भारी आवाज उसके कानो में पड़ी...."मैं तुमसे यही उम्मीद कर रहा था!"....

इतना सुनना था की कनिषा ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा..."ओह प्लीज,अब आप फिर से वहीं औरतों को लेकर अपनी जजमेंट मत सुनाने लगिएगा,मुझे कोई दिलचस्पी ही नही है आपके नफरत में,,आपको अपनी जिंदगी के साथ जो भी तमाशे करने है,करते रहिए,मैं सारे रिश्ते यहीं खत्म करती हूं और....

कनिषा अपनी बात खत्म करने ही लगी थी की उसी पल इशांक उसकी ओर बढ़ा और कानो की ओर झुंकते हुए फुसफुसाहट के साथ बोला....."मुझसे जुड़ी हर एक चीज से तुम्हे शर्म आती है ना...पर क्या तुम ये बात जानती हो की मुझे तुम्हारी हर एक चीज से घिन आती है,इसलिए  तुम्हारी छुए हर एक चीज को मैं जला कर आया हूं।।"

"अच्छा किया...मेरी चीज़ें आपके घर में होती तो मेरी किस्मत में सिर्फ बैडलक ही आता!"...... इतना कहने के बाद कनिषा कशिश भरी मुस्कुराहट लिए वहां से चली गई,और इशांक उसके कांच से नाजुक जिस्म को तब तक घूरता रहा,जब तक की वो पूरी तरह उसकी आंखो से ओझल ना हो गई,वो उससे अपना आपा खो देने के लिए माफ़ी मनाना चाहता था,वो चाहता था की कनीषा को समझाए की वो संस्कार से दूर रहे,लेकिन हर बार की तरह उनकी बातें एक दूसरे से नरफत जताने में ही खत्म हो गई, और दोनो अपने इगो में जलते हुए एक दूसरे से दूर हो गए।।

इधर कनिषा ने भले ही इशांक को जाहिर नही होने दिया,लेकिन जिंदगी का इतना सुंदर रिश्ता यूं उलझते देख कहीं ना कहीं उसे तकलीफ हो रही थी,और उसके दिल में ये बात ठहर सी गई की इशांक ने उसके शादी के जोड़े को जला दिया,वो उन्हे वहां छोड़ कर आई क्योंकि... उसे खुद के लिए लालची शब्द नही सुनना था,वो नही चाहती थी की इशांक अपने दिए गए महंगे जेवर की वजह से उसे पैसे के लिए ललायित लड़की समझे,सोचते हुए जब वो अपने डैड के पास पहुंची,बिना हरकत के शरीर को बेड पर बेसुध पड़ा देख,वो अपनी सभी तकलीफों को काबू ना कर पाई और उनसे लिपट कर बिलखते हुए कहने लगी....."कोई नही है डैड,मेरे पास कोई नही है...जिसके कंधे पर सिर रख के अपनी तकलीफों को कम कर सकूं,आपकी नजर से मुझे इस दुनिया में कोई नहीं देखता डैड,किसी के लिए मैं बदचलन हूं,तो किसी के लिए लालची और कुछ लोगों के लिए घर तोड़ने वाली औरत,सिर्फ आपकी ही लाडली हूं,उठ जाइए ना,,बहुत डर लग रहा है,मैं सब से छुपाती हूं....लेकिन बहुत डर लगता है,मैं स्ट्रॉन्ग नही हूं,मुझे आपके सहारे की जरूरत है डैड, प्लीज मेरा साथ मत छोड़िए.....!!"

वहीं उनके सीने पर सिर टिकाए,वो तब तक रोती रही जब तक की वहां एक नर्स ना गई।।

"एक्सक्यूज मी!आप इनकी फैमली से हैं??".....

अपने आंसुओं को पोंछ, कनिषा ने सिर उठाया तो नर्स को देख हां में सिर हिला दिया,,जिसे देख नर्स ने कहा......."अपने इनका बिल पे कर दिया है?"

"नही!".... कनिषा ने धीमे स्वर में कहा।।

"ओह तो माफ कीजिएगा,अब इससे ज्यादा पेशेंट को फ्री में ट्रीटमेंट नही दिया जा सकता,आप इन्हे किसी सरकारी हॉस्पिटल में ले जाइए,नही तो बिल पे कर दीजिए!!".....

"इसकी जरूरी नही है,मैं अभी पे कर देती हूं,कितना देना होगा??".....

"काउंटर पर चेक कीजिए,पेशेंट के नाम पर ही बिल बन रहा होगा,पेशेंट की हालत में भी कल से कोई सुधार नहीं है,तो अगर आप ऑपरेशन के लिए सिंसियर नही होती है तो,इनके बचने का चांस काम हो जायेगा!!"

"मैं ऑपरेशन करवाना चाहती हूं,क्या आप बता सकती है की कितना खर्च आएगा इन सब में??".... कनीषा ने हड़बड़ी में पूछा जिस पर नर्स ने कहा शुरू किया...."अब तक के आपके हॉस्पिटल बिल्स को देखते हुए पूरा खर्च दो लाख तक आ जायेगा और आगे दवाइयों को काउंट कर लिया जाए तो ढाई लाख तक सा कुछ हो जायेगा!!"

"ढाई लाख!"...... कनिषा ने हैरानी से पूछा।।।

"जी,लेकिन पहले आप बिल पे कर दीजिए!!"......नर्स ने जवाब दिया और वहां से चली गई,जिसके बाद कनीषा अपने डैड के पीले पड़े चेहरे पर देखा और लंबी सांस  अपने फेफड़ों में भरते हुए बोली....."डैड कहां से लाऊंगी मैं इतने सारे पैसे??मेरे बैंक और स्कॉलरशिप के पैसे मिला कर तो बस नब्बे हजार ही होंगे,पर आप फिक्र मत कीजिए मैं कोई ना कोई रास्ता निकाल लूंगी, बिल चुकाने के बाद मैं फिर से आपसे मिलने आऊंगी,तब तक आप आराम कीजिए!".... अपने बेहोश डैड से बाते करते हुए कनिषा जाने से पहले उनकी ओर देख कर मुस्कुराई,जो ऐसा था मानो वो को परिस्थिति से लड़ने के लिए तैयार कर रही हो।।

हॉस्पिटल बिल देने के बाद कनिषा एक दो घंटे तक अपने डैड के कमरे में ही बैठी पैसे के इंतजाम के बारे में सोचती रही,तभी उसे याद आया की आज महीने का आखरी दिन था और कल पहले तारीख से उसे इंटर्नशिप के लिए  ऑफिस भी जाना था,याद आते ही उसने अपने डैड के माथे पर हाथ रखा और उनसे कहने लगी...."जानते है डैड मेरे साथ इन सब की शुरुवात दो महीने पहले ही हुई थी,जब मैं पहली बार उस एरोगेंट टिनमैन(इशांक) से मिली थी, काश! उस रोज मैने उसका पीछा ना किया होता!!".....

इतना कहते कहते वो उन यादों में खो गई,,जब पहली मुलाकात में ही उसने इशांक से पंगा मोल लिया था... उस दिन तेज हवा के साथ भारी बारिश भी हो रही थी,और उसी बारिशों के बीच कनीषा तेजी से भाग रही थी,उसने हल्की गुलाबी रंग की अनारकली सूट पहन रखी थी,,उसके कानो के झुमके तेजी से हिलते जा रहे थे,,उसने आंखे में काजल की पतली डोरी खीच रख थी, जो किनारे से उसके आंखो से बाहर निकले हुए थे,,उसके गुलाबी होठ बार बार किसी का नाम पुकारते हुए हिले जा रहे थे,और उसके लंबे केशों से बारिश का पानी टपकते हुए उसकी कमर को पूरी तरफ से भींगा रहा था,,,उसके एक हाथ मे एक समोसा और एक हाथ में पानी का बोतल भी दिखाई दे रहा था।।।



सामने सड़क पर एक रोल्स रॉयस ब्लैक कार भी तेजी से आगे बढ़ती जा रही थी जिसका ड्राइवर पीछे भागती कनिषा को अपने साइड मिरर मे आसानी से देख पा रहा था," सर कार के पीछे एक लड़की तेजी से भाग रही है,,क्या कार को रोक दूं??....ड्राइवर ने दबी से आवाज में पूछा!!!

नही...कार के पिछले सीट पर बैठा सख्स( इशांक) बिना पीछे देखे ही कर्कश सी आवाज में जवाब दिया और वापस अपने लैपटॉप में देखने लगा,उसके माथे पर उभरी लकीर बता रही थी, की वो किसी ऐसी चीज़ को पढ़ रहा था जिससे उसका तनाव पल पल बढ़ता जा रहा था।।

(क्रमश:)

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