बेखबर इश्क! - भाग 5 Sahnila Firdosh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • ऋषि की शक्ति

    ऋषि की शक्ति एक बार एक ऋषि जंगल में रहते थे। वह बहुत शक्तिशा...

  • बुजुर्गो का आशिष - 9

    पटारा खुलते ही नसीब खुल गया... जब पटारे मैं रखी गई हर कहानी...

  • इश्क दा मारा - 24

    राजीव के भागने की खबर सुन कर यूवी परेशान हो जाता है और सोचने...

  • द्वारावती - 70

    70लौटकर दोनों समुद्र तट पर आ गए। समुद्र का बर्ताव कुछ भिन्न...

  • Venom Mafiya - 7

    अब आगे दीवाली के बाद की सुबह अंश के लिए नई मुश्किलें लेकर आई...

श्रेणी
शेयर करे

बेखबर इश्क! - भाग 5

"मैं आपके लायक नही हूं,मुझे लगता है....आप मेरे लायक नही है,जरूरत के हिसाब से लुढ़कने वाले बिना पेंदी के लोटा है आप,और मैं आपके इस अकड़ से बने महल में रहने या आपके उन पैसे के आगे कटपुटली बनने के मकसद से नही आई हूं,मुझे बस अपने वो कपड़े चाहिए थे, जो आपके इस जबरदस्ती पहनाए शादी के जोड़े को उतार कर फेकने में मेरी मदद करे, इसके बाद मैं इस जगह से हमेशा के लिए चली जाऊंगी,और खबरदार कभी मेरे पीछे आए तो!".....इतना कहने के बाद कनिषा ने अपनी ऊपर की हुई उंगली को मुठ्ठी में समेटा और अपने सीने पर थपथपाते हुए मुड़ कर चली गई,एक ही सांस में सब कुछ कहने की वजह से उसे कुछ पलों तक सांस लेने में भी परेशानी शुरू हो गई थी,हालांकि वो ठीक से दो कदम भी आगे ना बढ़ी होगी की उसी पल इशांक जो उसकी वजनी एटीट्यूड के आगे खुद को दबा हुआ महसूस कर रहा था,अचानक से उसे बांह से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाते हुए करीब खींच लिया।।

जिसके बाद उसने कनीषा को संभलने या समझने का मौका तक ना दिया और दांत पर दांत चढ़ाए गुस्से से उसकी आंखो मे देखने लगा, शराब की बदबू और इशांक के बिगड़ैल मूड को देख कनिषा की आंखे डर से फैल गई और वो छूटने के लिए कसमसाई,लेकिन छोड़ने के बजाए इशांक ने उसकी चूड़ियों से भरी कलाई पकड़ी और बेरहमी से दबाते हुए मोड़ कर पीठ से लगा दिया...."आज पहली और आखरी बार तुम्हे ये बता रहा हूं,मेरे मर्जी के बगैर एक भी कदम इस घर के बाहर मत रखना,वरना.......

कहते हुए इशांक ने अपने हथेली पर कुछ गीलापन महसूस किया, जो एकांशी के चूड़ियों के टूट कर उसके हथेली में चुभने के कारण था,,इसलिए जब उसने एकांशी की कलाई छोड़ी टूटी हुई सारी चूड़ियां फर्श पर बिखर गई,अपने हथेली में चुभे टुकड़ों को बेरहमी से खींच कर निकालने में इशांक ने जरा भी देर ना लगाई, हालांकि ये करते हुए उसके चेहरे पर सिवाए घृणा के कोई दर्दनाक भाव नजर नही आ रहे थे, सुबह के छः बजे से इशांक ने कनीषा के साथ जो कुछ भी किया था,इसके बाद उसके अंदर इतनी ताकत नहीं बची थी की वो इशांक के चेहरे को देखे,यहां वापस लौटना ही उसकी सबसे बड़ी गलती थी,इसलिए इससे पहले की इशांक इससे ज्यादा कुछ कहे या उस पर रौब झाड़े,वो एंट्रेंस गेट की ओर भागी।।

लेकिन वो बाहर निकल पाती उससे पहले ही इशांक ने पॉकेट में रखे रिमोट कंट्रोल के बटन को दबा दिया,जिससे  एंट्रेंस पर लगा बड़ा सा दरवाजा ऑटोमेटिकली लॉक हो गया,दरवाजे को लॉक होता देखने के बाद भी कनिषा अपनी जगह पर रुकी नहीं,बल्कि वहां पहुंच जबरदस्ती उसे खोलने की कोशिश करने लगी,काफी जोर लगाने के बाद भी जब उससे वो गेट ना खुला तो उसने पास में लगे कोड लॉक में लगातार पिन डाला शुरू कर दिया, जो हर बार गलत हो जाता और पूरे घर में अजीब तेज अलार्म सुनाई देने लगता,
जिसके कारण इशांक के डैड के साथ घर का सर्वेंट हलील भी जाग गया और भागते हुए नीचे आ गया,हालांकि जब उसने इशांक और कनिषा को एक साथ हॉल में देखा तो, कुछ रिएक्ट कर पता उससे पहले ही इशांक गरजा....."डैड के कमरे में जाओ और उन्हे यहां आने से रोको,और हिम्मत भी मत करना इस तरफ झांकने की!!"

"जी...जी.... छोटे साहब!"......कहते हुए हलील ने अपना सिर दो बार को हिलाया और तेजी से दौड़ते हुए इशांक के डैड के कमरे की ओर भाग गया,वहां पहुंच उसने मिहिर देवसींह (इशांक के पिता) को अपने व्हील चेयर को ठीक करते देखा,जिसके कारण उसने जल्दी से दरवाजा लॉक किया और उनके करीब पहुंच उन्हे बाहर जाने से रोकने लगा।।

दूसरी ओर इशांक कनिषा की कोशिशों पर अजीब तरह की व्यंग्यात्मक मुस्कान मुस्कुराया और धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा,उसके कदमों की आहट की वजह से कनिषा की कोशिशें और तेज हो गई,,तभी उसने महसूस किया की इशांक ने अपने हाथों को दरवाजे पर टिका रखा और वो दोनो तरफ से घिर गई है, संकोचते हुए कनिषा पीछे को मुड़ी तो आंखों के आगे इशांक का वही हठीला चेहरा नजर आने लगा,जिसके कारण उसने अपने आप को दरवाजे से यूं चिपका लिया,जिससे वो किसी भी तरह से इशांक के बॉडी के स्पर्श में ना सके.....



"तुम बदकिस्मती हो इस घर की,सालों पहले तुम्हारी जैसी ही एक औरत इस घर में रहती थी,,और देखो आज फिर मुझे पैसे के आगे बिकने वाली एक लड़की मिली,जिसके अंदर किस बात का गुरूर है,यही मुझे समझ में नहीं आ रहा,,बिकने वाली औरतें इतना गुरूर नही करती,अगर मेरी बात पर यकीन नही तो तुम वैश्य बाजार में जा कर......इशांक अपनी बात को खत्म भी ना कर सका था की उसी पल कनिषा का जोरदार थप्पड़ उसके गालों पर पड़ा,जिससे इशांक का चेहरा दूसरी ओर को मुड़ गया और अपनी आंखों को फाड़े चमचमाते फर्श को घूरने लगा।।

"मैने आपसे पैसे लिए है,तो चुका भी दूंगी,लेकिन खबरदार जो कभी मुझे उन औरतों से कंपेयर किया,जिनकी कोई इज्जत नहीं होती।।"...... कनिषा आंखो के आंसू लिए गुस्से से कांपते हुए चिल्लाई....."आपको इतना ही शौक था अपने हिसाब से चलाने वाली लड़की की तो...गलती से किए उस साइन वाले पेपर को फाड़ कर फेंक क्यों नही दिया,और ले आते उसी वैश्या बाजार से कोई लड़की,जो आपके हुकम का पालन करती और आपके उंगली पर नाचती।।

वहीं उस एक थप्पड़ की वजह से इशांक की आंखो में गुस्से की भवर बनने लगी थी,जिन्हे खुद के अंदर रोक रहने की पेसेंश उसके कभी थी ही नहीं,जिसके कारण उसने अगले ही पल में कनिषा को बांह से पकड़ा और रिमोट की मदद से दरवाजा खोलते हुए उसे किसी पालस्टिक की गुड़िया की तरह बेतरतीबी से बाहर धकेल दिया।।

दबाव से लगे धक्के की वजह से कनिषा खुद पर कंट्रोल ना रख पाई और फर्श पर जा गिरी,बचाव में उसने अपनी हथेली को फर्श पर टिकना चाहा तो कलाई में भी बुरी तरह मोच आ गई,दर्द से वो उभरी भी नही थी की तभी इशांक ने जबरन उसके जबड़े को पकड़ा और उसे अपनी ओर देखने के लिए मजबूर करते हुए चिल्लाया....."दुबारा मुझे अपना ये मासूमियत के पीछे छुपे लालची चेहरे के साथ नजर मत आना,जान ले लूंगा तुम्हारी!!"....इतना कहते हुए इशांक ने उसके जबड़े पर झटका दिया और उसे वहीं छोड़ अंदर चला गया,दरवाजे को बंद करने से पहले उसने एक नजर भी कनिषा की तरफ देखना जरूरी ना समझा।

इधर कनिषा ने अपने जबड़े को सहलाया और अपनी मोच आई कलाई को पकड़ कर धीरे से खड़ी हो गई,अपने पिता के ऑपरेशन के लिए उसे पैसे तो मिले नही,बल्कि उल्टा इशांक ने उसे इतना अज़िय्यत दिया की उसे अपना जीना तक बोझ लगने लगा,,जितना वो सभी घट रही घटनाओं के बारे में सोच रही थी,उसकी सांसे उतनी ही तेज और बैचेन होती जा रही थी,चेहरा पीला और बोझाल सा हो गया था और आंखो से आंसू एक पल के लिए भी थमे ना थे,बातों ओर यादों का बोझ लिए वो बंगले से बाहर निकली ही थी,की उसी पल उसने सड़क पर कुछ लड़कों को देखा जो बाइक्स पर सवार थे,और उनके हाथों में शराब और सिगरेट दिखाई पड़ रही थी,डर कर कनिषा ने अपने कदमों को वापस इशांक के बंगले की ओर कर लिया,और जल्दी से गार्डन की ओर बढ़ कर मुलायम घास पर, एक पेड़ के नीचे दुबक कर बैठ गई।।

ऑपरेशन के लिए पैसों के इंतजाम के बारे में सोचते हुए और दिन भर के भाग दौड़ के कारण उसे कैसे खुले आसमान के नीचे नींद आ गई,वो जान भी ना पाई....

दूसरी ओर इशांक अपने कमरे में लौटने लगा तो देखा सामने उसके डैड व्हील चेयर पर बैठे उसे अजीब तरह से घूर रहे थे,जो इससे पहले कुछ कहते इशांक ने उन्हें रोक दिया......"डैड आप मेरे और उस लड़की के मामले से दूर रहे,ये सबसे बेहतर तरीका है खुद को परेशान करने से बचाने के लिए।।

अपनी बात खत्म कर इशांक ने सीढ़ियों के पहले स्टेप पर पैर रखा की था की तभी उसे डैड ने उसे टोक दिया....."अगर आप चाहते है की मैं आपके और उस लड़की के मामले से दूर रहूं तो,उसे लेकर यहां से चले जाइए,अपने खरीदे गए बंगले पर,मुझे अपने घर में आधी रात को तमाशा देखने का कोई शौक नहीं है!!....इतना कह मिहिर देवसिंह ने हलील को कमरे में ले चलने को इशारा किया और जाते जाते बोला....."मानता हूं की आपकी नफरत जायज है,लेकिन रात के इस पहर एक लडकी को बाहर निकाल कर उसके इज्जत पर दाव लगा देना बिलकुल नाजायज था,अगर कल को उसके साथ कुछ होता है तो उसके जिम्मेदार सिर्फ आप होंगे।।।

मिहिर के चले जाने के काफी देर बाद तक इशांक उसी जगह खड़ा उनकी बातों में छुपे नाराजगी के बारे में सोचता रहा,घर से चले जाने की बात इशांक के दिल में चुभ रही थी,,इतने सालों में उसके पिता ने कभी उसे खुद से दूर चले जाने को नही कहा था,यहां तक की जब वो किसी बिजनस ट्रिप पर जाता तब भी उसके पिता को चैन नही आता था,लेकिन आज सिर्फ उस एक लड़की की वजह से उसके पिता भी उसे खुद से दूर कर देना चाहते थे,,अगर वो यहां से भागने के लिए तमाशा ना करती तो शायद इस वक्त ऐसी परिस्थिती ना आई होती.....सोचते सोचते जब वो कमरे में पहुंचा,उसने यूं ही अपनी नजर घड़ी की ओर उठा दी....

रात के ग्यारह पैतालीस होता देख,उसके कानो में अपने डैड की कहीं बात गूंज गई की कनिषा को इस वक्त घर से बाहर करना बिल्कुल भी सही नही था,हालंकि इशांक ने इस पर ज्यादा ना सोचा और अपने दिमाग में कनिषा के लिए आए हल्की फिक्र को भी झटक कर खत्म कर दिया,जिसके बाद उसने एक गर्म शॉवर लिया और आ कर बेड पर लेट गया।।

इनसॉम्निया (नींद ना आना) की परेशानी उसे तब से थी, जब वो मात्र आठ साल का था,,जिसके बाद काफी इलाज कराने के बाद भी उसे कोई फायदा ना हुआ था और वो सालों से सारी रात खुले आंखो के साथ ही गुजरता आया था,लेकिन आज उसे नींद ना आने के साथ साथ एक अलग तरह ही चिंता भी हो रही थी, जो कनिषा के फिक्र तक तो पहुंच रही थी,पर इशांक उसे स्वीकारना नही चाहता था,इसलिए अंत में वो बेड से उठा और कमरे की खिड़की को खोल कर खड़ा गया।।

ये पूर्णिमा की रात थी,चांद अपनी चांदनी को हर तरफ बिखेरे हुए थी,और हड्डी तक को कपकपा देने वाली हवा पूरे वातावरण को सर्द बना रही थी,कुछ ही देर में इशांक को उस ठंडी हवा ने इतना सर्द कर दिया की वो खिड़की बंद करने लगा,उसी पल गार्डन में एक पेड़ के नीचे बैठी कनीषा पर उसकी नजर पड़ी,जो ऐसे बैठी थी जैसे वहीं पर जम गई हो।।।

रेटिंग मिलेगी तो इनकी सेटिंग होगी😀