बेखबर इश्क! - भाग 1 Sahnila Firdosh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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बेखबर इश्क! - भाग 1

एक कमरे के किंग साइज बेड पर दुल्हन के लिबास में पड़ी लड़की (कनिषा)बड़ी ही देर से सुबक रही थी,उसके आंसुओ से बेडशीट का वो हिस्सा पूरी तरह गिला हो चुका था,जिस जगह उसके आंसू बिना रुके गिरे जा रहे थे।।

ठीक उसी पल कमरे का दरवाजा खुला और सफेद शेरवानी पहने एक दिल लुभावन सुंदर चेहरे वाला शख्स (इशांक) अंदर दाखिल हो गया,उसकी आंखे गुस्से से फैली हुई थी,और माथे पर पड़ी बल उसके तनाव को साफ जाहिर कर रही थी.....

कमरे का माहौल मौत की तरह शांत और उदासी से भरा हुआ था, उस कनीषा के धीमे धीमे सुबकने की आवाज पूरे कमरे में एक अलग तरह की गमगीन भावना पैदा कर चुकी थी,जो सामने खड़े इशांक के जबरदस्ती दबाए गुस्से को और अधिक भड़का गई,जिससे वो लगभग उस रोती कनीषा पर झपट पड़ा और उसकी कलाई को पकड़कर बेड पर सीधा बैठाते हुए कर्कश सी आवाज में बोला....."तो आखिरकार तुमने अपनी जात की असली रंग दिखा ही दिया,,बताओ अपने आप को मुझे सौंपने के लिए क्या कीमत चाहती हो तुम??"


कनिषा की आंखो में तकलीफों से झुझने का मंजर आंसुओ के गिरते कतार में बहे जा रहा था,जिस पर गुस्से में भड़के उस लड़के को जरा भी तरस ना आई,और उसने एक बार फिर उसकी कलाई को मोड़ कर पीठ पर लगा दिया,दर्द से कराहते हुए लड़की ने अपने चेहरे को ऊपर उठाया तो देखा सामने खड़ा लड़का गुस्से से कांप रहा था,और उसके अंदर दया की कोई भावना नज़र नही आ रहा थी।।

दुल्हन के लिबास में बिलकती कनिषा का मेकअप पूरी तरह बिगड़ा हुआ था,उसके काजल आंखो के चारो और पसर चुके थे,होंठो पर दर्द की आह के अलावा कोई सुर्खी नजर नही आ रही थी,,बालों को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे ना जाने कब से उसने उसमे कंघी ना किया था,उसके लबों से सिसकी भरने के अलावा जब कोई आवाज ना निकली तो लड़के ने उसके जबड़े को अपने दूसरे हाथ से पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया....."औरत की हर एक जात की तरह तुम भी सिर्फ पैसों के लिए बिक सकती हो,तो आखिर सुबह से उतना नाटक क्यों किया???"

"मैं को...कोई नाटक नही कर...कर रही थी!".....रोने के बीच में कनीषा ने टूटे मन से खुद को किसी तरह बोलने पर मजबूर किया,जिस पर इशांक और अधिक कर्कश और गहरी आवाज में बोला...."नाटक नही कर रही थी??"....ऐसा कहते हुए वो हस पड़ा,,लेकिन वो हंसी उसके गुस्से से भी ज्यादा भयानक महसूस हो रही थी,हालंकि जब उसने अपनी हंसी खत्म की वो एक बार फिर गंभीरता के उसी हाव भाव में लौट आया और अगले ही पल उसके जबड़े को छोड़ते हुए कहने लगा....."मेरे पास इतना वक्त नहीं की मैं तुम पर इसे बर्बाद करूं,
इसलिए अपनी कीमत बोलो,और मुझसे साल भर के लिए शादी करो,,वो भी सिर्फ विक्रम को दिखाने के लिए,उसके बाद मैं तुम्हे आजाद कर दूंगा,लेकिन तब तक तुम मेरे साथ,मेरे घर में,मेरी पत्नी बन के रहोगी!!"

"मैं इन सब के लिए तैयार हूं,लेकिन बदले में मुझे......कहते कहते उसकी आवाज रोने की सिसकियों में ही कहीं खो गई,,कहीं ना कहीं वो जानती थी की आज जिस समझौते को वो करने जा रही है,वो उसकी जिंदगी में सिवाए तकलीफों के कुछ नही देगा,फिर भी वो ये करने के लिए मजबूर थी,अगर वो उससे पैसे ना लेती तो...उसके डैड सड़क पर आ जाते और ऐसा भी हो सकता था,की उन्हें कुछ सालों के लिए जेल भी जाना पड़ता,इसलिए उसने खुद को मेंटली स्ट्रॉग किया और कांपती आवाज में अपनी बात रख दी....."मैं चाहती हूं की आप मेरे डैड की कम...कम्पनी के शेयर्स खरीद कर उन्हें वापस कर दें,और उनका टैक्स भी पे कर दें,इसके बाद आप जो कुछ चाहे मैं करूंगी,प्लीज मेरे डैड की हेल्प कर दें!..... कहते हुए कनिषा आवाज के साथ रोने लगी।।

इधर इशांक को उसकी उतनी बड़ी कीमत पर कोई हैरानी ना हुई,उसने अपनी पलकों को उठा कर कमरे के दीवाल पर टंगी घड़ी में वक्त देखा,और कनिषा को कलाई से  पकड़ कर खींचते हुए बेड से घसीट कर उतार दिया, उस भरी भरकम लहंगे को पहने कनीषा संभल ना सकी और गिरने लगी,जिस पर ईशांक ने कोई प्रतिक्रिया ना किया और अपनी मर्जी के अनुसार उसे वैसे ही खींचते हुए कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ने लगा....

हालंकि दरवाजे तक पहुंचते पहुंचते उसे ना जाने क्या याद आया,लेकिन वो रुक गया....उसने कनीषा की कलाई छोड़ दी,और कमरे से ही लगे हुए चेंजिंग रूम की ओर बढ़ गया,कमरे और चेंजिग रूम के बीच एक बड़ा सा कांच का दरवाजा था,जिसमे से इंसान के शरीर का अक्श तो दिखाई देता था,पर कुछ भी साफ नजर नही आ रहा था....चूंकि कनिषा पहले ही हारे हुए मन से इशांक देवसिंह जैसे घमंडी लड़के से शादी के लिए तैयाये हुई थी,इसलिए उसे पलके उठाने तक की हिम्मत नही हो रही थी,,कुछ समय बाद इशांक अपने हाथों में एक चेक लिए चेंजिग रूम से बाहर निकला और फर्श पर एक ओर गिरे अपनी दुल्हन के चुन्नी को उठा लिया....

लड़की की ओर बढ़ते हुए उसने बेढंगे तरीके से उसके मुंह पर चेक फेंक दिया,जिसके बाद उसने तुरंत ही उसके सिर पर चुन्नी को रखा और उसे आगे से खींचते हुए गले तक का घूंघट बना दिया,उसके कलाई को पकड़ कर खींचने से पहले इशांक ने वही अपनी मन के कड़वाहट को शब्दों में घोले कहने लगा...."एक बार शादी हो जाए,फिर ये चेक उठा कर टैक्स के पैसे भर लेना,तुम्हारी डूबती कंपनी के श्येर्स शादी के आखिरी फेरे तक, वापस तुम्हारे डैड के नाम पर कर दी जाएगी!!"....इतना कहने के बाद इशांक ने कनीषा को कोई मौका ना दिया,कुछ कहने या अपनी किस्मत को कोसने का,और बेतरतीबी से खींचते हुए अपने आलीशान से बंगले के कॉरिडोर में चलने लगा।।

लहंगे और घूंघट की वजह से कनिषा कहां कदम रख रही थी,ये उसे खुद भी पता नही चल पा रहा था,वो बस अपने पूरे शरीर पर एक प्रबल खिंचाव महसूस करते हुए लगभग दौड़ रही थी, इस बीच कई बार उसके पैर लहंगे में फंस रहे थे,पर वो गिरते पड़ते चलने के अलावा कर भी क्या सकती थी,अभी से ठीक अठारह घंटे पहले वो एक अनजाने में किए गए साइन की वजह से,इशांक देवसिंह जैसे अभिमानी और मतलबी इंसान की लीगल पत्नी बन चुकी थी,फिर भी इशांक क्यों उससे फेरे लेना चाहता था,इस बात का उसके पास कोई जवाब नही था।।

अपने ही सोच में उलझे उसे ये तक खबर ना लगी की वो कब सीढ़ियों तक खींच ली गई थी,,जिसके कारण जैसे ही इशांक ने उसे सीढ़ी से उतारा,उसका बैलेंस बुरी तरह बिगड़ गया और वो अपने ही पैरों में उलझ कर इशांक के पीठ पर गिर गई,उसके गिरने से इशांक अपनी जगह पर रुक गया और उसके उठने का इंतजार करने लगा,हालंकि दो बार उसके पीठ पर फिसलने के बाद आखिरकार कनिषा सीधा खड़ा हुई,जिसके अगले पल में ही इशांक ने उसे दुबारा खींचना शुरू कर दिया।।।

(क्रमश:)