बेखबर इश्क! - भाग 8 Sahnila Firdosh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Passionate Hubby - 4

    ॐ गं गणपतये सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु स्वाहा॥अब आगे –Kayna...

  • ऑफ्टर लव - 28

    सुबह सुबह त्रिशा महादेव के मंदिर में पूजा कर रही होती है। तभ...

  • हिरन और चूहा

    1. आज्ञा पालन एक समय की बात है। रेगिस्तान के किनारे स्थित एक...

  • अपराध ही अपराध - भाग 5

    अध्याय 5 पिछला सारांश- एक करोड़ रूपया तिरुपति के दान पेटी मे...

  • आखेट महल - 5 - 2

    उसने युवक को यह भी बता दिया कि कोठी से भागने के पहले रात को...

श्रेणी
शेयर करे

बेखबर इश्क! - भाग 8

नोट पर लिखे कनिषा का नोट पढ़ते हुए के इशांक हाव भाव बदल गए,गुस्से से उसने उसके नोट को मोड़ा और अगले ही पल फर्श पर फेंकते हुए खुद में ही बड़बड़ाया...."इस लड़की की इतनी हिम्मत कैसे हुई, इसने मुझे दूसरी बार डायनासोर से कम्पेयर किया!".....इतना कह उसने कनीषा के जोड़े को उठाया और उसे कमरे के बीचों बीच फेंक दिया,जिसके बाद वो आक्रोश में चिल्लाया......"हलील... हलील!!"

उसके चिल्लाने के दो मिनट बाद ही हलीला हड़बड़ी में दौड़ते हुए आया और अपने पैरों को जबरदस्ती रोक लगाते हुए बोला...."सर!"

"घर में माचिस है?"....पूछते हुए इशांक कनिषा के शादी के जोड़े और उसके गहनों को ऐसे घूर रहा था,जैसे वहां फर्श पर स्वयं कनिषा बैठी हो।।

"जी सर!".... हलील जो इशांक के अगले कदम के बारे में कोई गेस भी नही लगा सकता था,उलझन भरे अंदाज से बोला।।

"तो मेरा मुंह क्यों ताक रहे हो,जा कर ले आओ!".... अयांश हलील पर अपने गुस्से को निकालते हुए चिल्लाया,जिससे हलीला वहां से मुड़ा और एक लगभग पांच सेकंड में ही उसकी आंखो से ओझल हो गया,पांच मिनट बाद जब वो हाथ में माचिस लिए आया,उसके आगे बढ़ने से पहले ही इशांक ने वो माचिस उसके हाथ से झपट लिया और दूसरे ही पल उसके एक तिल्ली को जला कर शादी के जोड़े पर फेंक दिया।।

"आप ये क्या कर रहेईईईई"....कपड़े में सुलगते आग को देख हलील चीखा,लेकिन जल्द ही उसने अपने मुंह पर हाथ रख खुद को काबू में कर लिया,दूसरी ओर इशांक तब तक उस पर जलती तिल्लियों को फेकता रहा,जब तक की उसके हाथ में लिए हुए माचिस का डब्बा खाली नही हो गया।।


धीरे धीरे जोड़े में लगी आग की लपटें ऊपर उठने लगी और कमरा धुएं से भर गया,चुकीं हलील इशांक को काफी लंबे समय से जनता था,इसलिए उसकी ऐसे पागलपन पर उसे कोई हैरानी ना हुई और वो धुएं के बीच धीरे से कमरे से बाहर निकल गया,वहीं इशांक तब तक वहां खड़ा रहा जब तब की जोड़ा राख ना हो गया, उस बूझ चुके गर्म राख को अपने हाथ में लेते हुए इशांक होंठो ही होंठो में बुदबुदाया....."मुझसे नफरत कर के तुम निराश नही होगी,मैं खुद से नफरत करने के तुम्हे हर पल मौका दूंगा,वेट एंड सी मिसेज देवसिंह,मेरे रूम को दो हजार के लायक समझने की कीमत तुम्हे चुकानी पड़ेगी,तुम सोचती हो तुम मेरे छः करोड़ पे कर सकती हो,मैं तुम्हारी औकात छः पैसे की भी नही छोडूंगा,तुम मेरे पास भागते हुए आओगी,और गिड़गिड़ाओगी,तब तुम्हे पता चलेगा कि किसी से शिद्दतन नफरत कैसे होती है।।
___________________

दूसरी ओर कनिषा ने आंखे खोली तो उसकी पहली नजर सफेद रंग की सीलिंग पर पड़ी और कानो में किसी के कदमों की हलचल भी सुनाई पड़ रही थी,सीलिंग से अपनी नजरें दूसरी ओर घुमाने पर उसने अपने बगल में एक नर्स को खड़ा देखा जो उसके हाथ की नसों में लगे ड्रिप को ठीक कर रही थी।।

कनिषा को होश में देख नर्स ने पूछा...."अब आप कैसा महसूस कर रही है?"

कमरे के हर कोने में अपनी नजरें घुमाते हुए कनिषा को जब यकीन हो गया की वो हॉस्पिटल के कमरे में है, तो उसने नर्स से पूछा....."मैं यहां कैसे आई?"

"आपको डॉक्टर संस्कार यहां लाए थे,,आपका बीपी और शुगर लेवल नीचे चला गया था, इसलिए आप बेहोश थी,डॉक्टर ने आपको ड्रिप लगा दी है,कुछ देर में वो आपको देखने आयेंगे,ड्रिप खत्म होने तक आराम कीजिए,उसके बाद कुछ खा लीजिएगा!"......इतना कह नर्स ने वहां से इस्तमाल किए इंजेक्शन को उठाया और बाहर जाने से पहले, दरवाजे के पास ही रखे डस्टबिन में डाला दिया।।

नर्स द्वारा दरवाजा बंद कर देने पर कनिषा ने अपने हाथ में लगे ड्रिप पर एक नजर डाला और आहिस्ते से उठ कर बैठ गई,पहले ही उसे अपने डैड का हॉस्पिटल बिल पे करना था,और अब उसे खुद के बिल्स भी देने होंगे, इस बारे में सोच कर ही उसने अपने दूसरे हाथ से सिर के बालों को पकड़ लिया और अजीब तरह से उन्हें उखाड़ते हुए पैरों को बेड पर पटकने लगी।।


तभी साइड टेबल पर रखे उसके बैग से फोन में नोटिफिकेशन आने की आवाज सुनाई पड़ी,जिसे बेमन से ही उसने उठा लिया,बैग से फोन निकाल कर उसने जब मैसेज पढ़ा,अचानक से उसकी निराश आंखो में चमक आ गई,ये गवर्मेंट की ओर से भेजा गया मैसेज था,जिससे उसे मालूम पड़ा कि दो महीने पहले जिस स्कॉलरशिप का एग्जाम उसने यूं ही दोस्तो का साथ देने के लिए दिया था,उसमे वो पास हो गई थी,और सरकार की ओर से तीस हजार रुपए उसके बैंक में ट्रांसफर कर दिया गया था,पूरे डिटेल को पढ़ने के बाद जल्दी से उसने अपने से हाथ से ड्रिप खींचा और बैग को पीठ पर लटका कर बेड से नीचे उतर गई,कमरे से बाहर निकलते ही उसे एहसास हुआ की वो इस वक्त उसी हॉस्पिटल में है,जिसमे उसके डैड को एडमिट है।

ड्रिप को बेतरतीबी से खींचने से उसके हाथ से खून निकल रहा था,जिसे अपने दूसरे हाथ से दबाए हुए,सबसे पहले वो अपने डैड को देखने के लिए भागी,हालंकि जब वो बिना ध्यान दिए हॉस्पिटल लॉबी में दौड़ रही थी, उसका कंधा, दूसरे आदमी के कंधे से टकराया जिससे वो फर्श पर गिर गई,ड्रिप पूरा ना होने की वजह से उसका शरीर अभी भी स्थिर नहीं हो पाया था,इसलिए जब वो उठने की कोशिश करने लगी,उसका सिर घूम गया और वो वापस फर्श पर बैठ गई,अपने सिर पर हाथ फेरते हुए, उसने सामने खड़े इंसान से माफ़ी मांगने के लिए जैसे ही उसने अपना सिर ऊपर उठाया,उसने देखा सामने इशांक अपने डैड के व्हीलचेयर को पकड़े खड़ा था,उसकी फूले हुए नथुने और तनी भौंहैं इशारा कर रही थी की वो अपने गुस्से को जबरदस्ती दबाने की कोशिश कर रहा है।।

उसकी बेजार आंखो में दो पलों तक घूरते रहने के बाद कनिषा ने महसूस किया की उसका दिल काफी तेजी से धड़कने लगा,और डर से पेट में गुड़गुड़ होने लगी है,यहां से बच निकलने का वो कोई और उपाय सोच पाती,उससे पहले ही इशांक अपने डैड को लेकर ऐसे आगे बढ़ गया जैसे उन दोनो की कभी मुलाकात हुई ही नहीं थी,,उसे अनजान की तरह ट्रीट करने का कारण कनिषा समझ ना पाई,और खड़ी हो कर उसके लंबे कद काठी को घूरने लगी,,तभी ना जाने कहां से उसके सामने संस्कार आ खड़ा हुआ और चेहरे के सामने हाथ हिलाते हुए बोला...."अब कैसा लग रहा है,तुमने अपना ड्रिप खत्म किया?"

कनिषा किसी गहरी सोच में डूबा हुआ देख,उसने भी उसकी नजरों को पीछा किया, वहां इशांक को देख ना जाने क्यों लेकिन उसके भाव थोड़े बदल गया, चेहरे पर घृणा लिए उसने कनीषा की बाहों को पकड़ा और एग्रेसिव तरीके से दबाते हुए पूछा...."जानती हो उसे आदमी को?

संस्कार के इस हरकत से कनीषा अपने ख्यालों से बाहर तो निकल गई,लेकिन उसके इस एग्रेसिवनेस भरे दबाव पर उलझे हुए बोली...."आह्ह्ह्ह,यू हार्टिंग मी!"

"ओह".... कनिषा के बाजुओं को छोड़ते हुए संस्कार ने कहना जारी रखा....."सॉरी...आई एम सो सॉरी,मैं बस जानना चाहता हूं की क्या तुम उसे जानती हो??"

संस्कार के इस सवाल को सुन इशांक जो कुछ कदम दूर जा चुका था,अचानक रुक गया और अपने फोन को निकाल कर ऐसे दिखाने लगा जैसे वो उसमे कुछ टाइप कर रहा हो,लेकिन हकीकत में उसने फोन को अनलॉक भी नही किया था,वो बस इंतजार कर रहा था कनिषा के जवाब का,वहीं ना चाहते हुए भी कनिषा का दिल उसे बार बार ये एहसास दिला रहा था की उसकी शादी हो चुकी है,और वो सामने खड़े इंसान की पत्नी है,फिर भी उसने अपना सिर ना में हिलाया और कुछ खोई खोई सी अंदाज में बोली....."नही जानती,शायद वो रोबोटिक कंपनी के सीईओ हैं।।"

"राहत की बात है!"....संस्कार ने आगे से कहा।।।

इधर इशांक कनीषा के जवाब से उसी तरह की निराशा महसूस कर रहा था,जैसे की सुबह उसके जोड़े और मंगलसूत्र को फेंका हुआ देख महसूस हुआ था,,हर एक कदम पर कनिषा उसके अठारह सालों की दर्दनाक नफरत को और अधिक बढ़ा रही थी,उसके जवाब से इशांक की उंगलियां फोन पर कस गई,और अगले ही पल उसने मुड़ कर अपने असिस्टेंट को कुछ इशारा किया,एक बार जब असिस्टेंट ने उसके डैड के व्हिलचेयर को संभाल लिया, तो लंबे लंबे कदमों से चलते हुए इशांक कनिषा के नजदीक पहुंचा और उसे समझने का भी मौका ना देते हुए,अपने साथ खींचते हुए ले कर चलने लगा।।

उसके अचानक किए गए इस हरकत से कनिषा सहम सी गई,वो नही जानती थी की इशांक अब क्या करेंगे,जिसके कारण वो अपने हाथ को छुड़ाने के लिए उस पर झटका देती रही और दूसरे हाथ से इशांक के चमड़े को नोचने लगी,फिर भी इशांक पर जैसे कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा और वो उसे तब तक अपने साथ लेकर चलता रहा,जब तक वो ऐसी जगह ना आ गए जहां एक भी इंसान मौजूद नही था।।

इशांक जब एक सुनसान जगह रुका कनिषा का डर और अधिक बढ़ गया,फिर भी उसने पैनिक ना होते हुए इशांक से छूटने की कोशिश जारी रखा,और लगातार उसकी हाथ के चमड़े को नोचती रही, इशांक जो उसकी हरकतों से काफी असंतुष्ट था, हाथ में उठ रहे जलन के कारण कनीषा के कलाई को मोड़ा और उसे धकेलते हुए पास के दीवाल पर लगा दिया,गुस्से से उसकी गर्दन की नसे उभर आई थी,और चेहरा लाल हो गया था,उसके कांपते हाथ ये गवाही दे रहे थे,की वो कनिषा को नुकसान पहुंचाने से खुद को रोक रहा है।।

आंसुओ से झिलमिल सुंदर आंखो को नादानी से झपकाते हुए कनिषा उसके गुस्से को देख बार बार गिड़गिड़ा रही थी...."छोड़िए मुझे प्लीज,अगर आप ऐसे ही मेरा पीछा करते रहेंगे तो मैं आपकी पुलिस में कंप्लेन कर दूंगी,,मुझे आपके साथ कोई रिश्ता नहीं रखना,मैं आपका कर्ज चुका दूंगी, प्लीज मेरा पीछा करना बंद कर दीजिए।....

कनिषा का बार बार गिड़गिड़ाना इशांक के गुस्से को कम करने के बजाए और अधिक बढ़ा रहा था,जिसके कारण उसने अपने ऊपर से नियंत्रण खो दिया,और एकदम से अपनी मुट्ठी को कनिषा के चेहरे की ओर बढ़ाने लगा।

इशांक का पंच मुंह पर लगने के डर से कनिषा चिल्लाई और आंखो को मिच कर बंद कर लिया,हालांकि गुस्से से हांफते इशांक ने अपने जज्बात के साथ साथ,हाथ को भी उसके चेहरे पर लगने से पहले ही रोक लिया और दांत दांत चढ़ाए बोला....."मुझे नही जानती,झूठ बोलना इतना आसान है तुम्हारे लिए,,उस डॉक्टर को तो अच्छे से जानती होगी ना,इसलिए तो इतना पर्सनल हो रहा था तुमसे......मेरी बात कान खोल कर सुनो...उ...उस डॉक्टर से दूर हो जाओ!"....

अपनी बात खत्म करते ही इशांक ने उसकी कलाई को छोड़ दिया,लेकिन फिर भी कनीषा अपने डर से निकल ना पाई और दीवाल पर यूं ही चिपकी रही,उसकी बंद पलकों के बीच फंसे आंसू की बंद अब लुढ़कते हुए गालों पर गिरने लगे थे,जो फर्श पर गिरते उससे पहले ही इशांक जो बड़ी ही गौर से उन आंसुओ को देख रहा था,उसे अपनी हथेली पर रोक लिया।।

आंसुओ के ठंडे एहसास ने उसके नफरत से भरे दिल में अजीब सी सनसनाहट दौड़ा दी,नफरत से जलते उसके दिल में अचानक बर्फ सी ठंडक महसूस हुई,जिससे कुछ हिचकिचाते हुए उसने कनीषा के गालों पर गिरे आंसुओ को पोंछने के लिए अपने रुमाल को बाहर निकाला,लेकिन अंत में उसने उस रुमाल को कनिषा के पैरों के पास गिरा दिया और वहां से चला गया।।

इशांक के वहां से जाने का आभास हुआ,तब ही कहीं जा कर कनीषा ने अपनी भयभीत पलकों को खोला,खुद को संभालते हुए वो वहां से एक कदम भी आगे बढ़ाती,उससे पहले ही संस्कार जो वहीं छुप कर उन पर नजर बनाए हुए था,अचानक सामने आ धमका और कनीषा से बोला...."तुमने कहा की तुम उसे नही जानती,और वो तुम्हे वहां से इतने हक से खींच के लाया,जैसे वो हसबेंड हो तुम्हारा!"

"आप इतना पर्सनल क्यों हो रहे है मुझसे, सुबह मेरी मदद की उसके लिए थैंक यू,,लेकिन अब बस! प्लीज अकेला छोड़ दीजिए मुझे!!"..... कनिषा ने संस्कार को दुत्कारते हुए कहा,जिस पर संस्कार ने एक सादी सी मुस्कान भरी और इशांक के रुमाल पर अपने जूते को रख उसे कनीषा की नजरों से दूर सरका दिया।।

"ओह,ये दिल दुखाने वाली बात थी,फिर भी ओके,लेकिन क्या मैं इन आंसुओ को पोंछने की हिम्मत कर सकता हूं?"....इतना कहते हुए संस्कार ने कनीषा के हाथ में अपना रुमाल पकड़ाया और जाते जाते बोला....."सुंदर लड़कियों के चेहरे पर आंसू अच्छे नहीं लगते,किसी को रुलाने का हक दे रखा है,तो मुझे उन्हे पोंछने का भी हक दे दो!"


कनिषा से दूर जाते हुए संस्कार ने अपने दोनो हाथो को जेब में भरा और कंधे को उचका लिया,उसके होंठो पर कुटिलता भरी मुस्कान थी,और अगले ही पल वो खुद में ही बड़बड़ाया....."क्या मजबूरी थी की तुमने इशांक जैसे इंसान से शादी की,अब इशांक से अपना बदला पूरा करने के लिए मुझे एक खूबसूरत लड़की को इस्तमाल में लाना होगा,आह्ह्ह्हह....(अपने सीने पर हाथ रख)ये दुनिया जालिम है,लेकिन इन्हें मुझसे कौन बचाएगा?".....

(Hi everyone!  मैं प्रतिलिपि एप पर भी लिखती हूं, अगर आप इस कहानी को पूरा एक साथ पढ़ना चाहते हैं तो प्रतिलिपि पर अपलोड है। समीक्षा जरूर दें।)