हीर... - 24 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हीर... - 24

अपनी गोद में सिर रखकर लेटे राजीव के सोने के बाद चारू भी थोड़ा कम्फर्टेबल होते हुये बैठ गयी और अपना सिर अपनी सीट की बैक पर टिकाने के बाद वो खो गयी.. राजीव के साथ की अपने अतीत की यादों में.... 

आज से करीब इक्कीस साल पहले जब राजीव और चारू दोनों वही कोई छ: साल के रहे होंगे, उस समय चारू का निकनेम ज्योति हुआ करता था और वो राजीव के साथ कानपुर के ही सैंट कौटिल्या कॉन्वेंट प्री स्कूल में नर्सरी बी में पढ़ती थी, चूंकि राजीव और चारू (उस समय ज्योति) बहुत छोटे थे इसलिये जहां एक तरफ़ मधु.. राजीव को लेने स्कूल जाया करती थीं वहीं दूसरी तरफ़ चारू को लेने के लिये उसकी मम्मी ममता दो साल की आर्ची को गोद में लेकर स्कूल आया करती थीं... इन दोनों बच्चों की दोस्ती की वजह से ममता और मधु में भी अच्छी जान पहचान या ये कहें कि दोस्ती हो गयी थी तो गलत नहीं होगा.. अब दोस्ती हो गयी थी तो कभी कभी मधु.. राजीव को लेकर ममता के घर चली जाया करती थीं और कभी कभी ममता.. चारू और आर्ची को लेकर उनके घर चली जाया करती थीं, ऐसे ही मिलते जुलते उन दोनों के संबंध बिल्कुल परिवार जैसे हो गये थे... 

ऐसे ही एक दिन शाम के वही करीब पांच बजे का समय था और मधु.. राजीव को पढ़ा रही थीं... 

राजीव का दिमाग वैसे तो बचपन से ही बहुत तेज़ था लेकिन जब वो छोटा था तब पढ़ाई का बहुत बड़ा चोर था, होमवर्क करने के नाम पर पचास बहाने.. नखरे सब कुछ हो जाते थे बस ऐसे ही उस दिन भी राजीव पढ़ने से बचने के बहाने बना रहा था और मधु के बार बार कहने पर भी होमवर्क करने की बजाय इधर उधर जाने किधर किधर कि बातें करने लग जाता था ताकि मधु का दिमाग भी उसे पढ़ाने से हट जाये और वो उसकी बातों में फंसकर उसे खेलने के लिये चली जाने दें लेकिन... ऐसा उस नन्हे से राजीव को लग रहा था, उस छोटी सी उम्र में उसे ये एहसास नहीं था कि जो उसके बगल में बैठी उसे पढ़ा रही हैं वो उसकी मां हैं और उन्होंने ही उसे पैदा किया है ना कि उसने...!! 

मधु का नेचर हमेशा से बहुत सॉफ्ट रहा इसलिये वो चाहे जो हो जाये राजीव पर कभी ना तो हाथ उठाती थीं और ना ही कभी उस पर चिल्लाती थीं और अलग तरीके से ही राजीव के बहानों का जवाब देकर उसे तब तक पढ़ाती थीं जब तक उसका होमवर्क पूरा ना हो जाये.... 

उस दिन भी मधु ऐसे ही गोल मोल तरीके से राजीव के मासूम से बहानों का जवाब देते हुये उसे पढ़ा ही रही थीं कि तभी बाहर से किसी ने दो तीन बार डोरबेल बजा दी... 

डोरबेल की आवाज़ सुनकर इससे पहले कि मधु उठ पातीं... पहले से ही बेमन से होमवर्क कर रहे राजीव को जैसे पढ़ाई से छुटकारा मिल गया हो वैसे एकदम बिजली की सी फुर्ती से वो अपनी पेंसिल फेंककर अपनी जगह से उठकर दरवाजे की तरफ़ भागने लगा... 

उसे ऐसे भागते देख मधु ने कहा- अरे तू कहां जा रहा है, चल पेंसिल उठा और पढ़ने बैठ.. मैं देख लूंगी कि कौन है गेट पर...!! 

राजीव बाहर जाते जाते रुका और बड़ी मासूमियत से "अले मम्मा.. कोई आया है ना!!" कहते हुये ड्राइंगरूम से निकलकर मेनगेट की तरफ़ चला गया.. 

अब राजीव छोटा सा... वो गेट तो खोल नहीं सकता था इसलिये मेनगेट के दोनों पल्लों के बीच बनी जगह से झांक कर उसने बाहर देखा और मेनगेट की तरफ़ चलकर आ रहीं मधु से एकदम से एक्साइटेड सा होते हुये बोला- मम्मा... खिच्ची आंटी!! (मतलब खिचड़ी आंटी...) 

मधु से ये बात बोलते ही राजीव ने फिर से बाहर झांका और बोला- अले ज्योति तू लो क्यों लही है? 

मधु ने भी जब सुना कि बाहर राजीव की खिचड़ी वाली आंटी खड़ी हैं तो वो भी खुश हो गयीं और मेनगेट खोलकर "अरे वाह बहन जी... आइये आइये!!" कहते हुये उन्हें अंदर बुला लिया... 

ममता को गेट के अंदर बुलाने के बाद उन्होंने सबसे पहले ममता की गोद में गोल हैट लगाकर बैठी नन्हीं सी आर्ची को दुलारते हुये अपनी गोद में ले लिया और उसे प्यार करने लगीं, इधर राजीव ने फौरन ज्योति (चारू) का हाथ पकड़ा और उसे लेकर अंदर आने लगा... 

अंदर आते हुये ममता ने हंसते हुये मधु से कहा- आज बहुत बड़ी प्रॉब्लम आ गयी बहन जी तो मैंने सोचा इस प्रॉब्लम का हल सीधे आपसे ही निकलवा लूं!! 

मधु ने भी हंसते हुये कहा- कैसी प्रॉब्लम बहन जी? 

"अंदर चलकर ज्योति से ही पूछ लीजिये!!" ममता ने कहा... 

इसके बाद जब सारे लोग अंदर ड्राइंगरूम में आकर बैठ गये तब मधु ने जब ज्योति की तरफ़ देखा तो वो थोड़ा चौंक गयीं और आर्ची को अपनी गोद में सीधा बैठाते हुये वो ज्योति से बोलीं- अल्ले मेला बच्चा.. ऐसे क्यों रो रही है बेटा!! 

मधु ने देखा कि ज्योति बहुत दुख करकेे लगातार बस सुबकियां लिये जा रही है, उसे ऐसे सुबकते देख मधु ने बड़े प्यार से उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ़ खींचा और उसके आंसू पोंछते हुये वो बोलीं - क्या हुआ बेटा आप ऐसे क्यों रो रहे हो? मम्मा ने कुछ कहा क्या... 

ज्योति खिसियाते हुये बोली- नई... 

इसके बाद ज्योति अपनी जगह पर बैठी हंस रहीं ममता की तरफ़ देखकर रोने लगी... 

मधु ने ज्योति के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुये पूछा- तो क्यों रो रहे हो आप बेटा? 

ज्योति सुबकते हुये बड़ी मासूमियत से बोली- मुझे लाजीव से छादी कलनी है!! 

क्रमशः