कुकड़ुकू - भाग 21 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 21

झारखंड एक आदिवासी राज्य होने के कारण वहां त्योहारों या उत्सवों मे मासाहारी भोजन होना आम बात है। रघु और मंगल कुछ देर तक वहीं बैठकर बाते करने लगे। “अच्छा मंगल, दिलीप भईया कहीं नजर नहीं आ रहे ! कहीं गए हुए हैं क्या?” 

“अरे भईया तो खेत पर कुछ काम से गए हैं। आज खेत मे थोड़ा ज्यादा काम था, इसलिए भईया, मम्मी पापा का हांथ बटाने के लिए चले गए। मैं भी जाने वाला था पर भईया ने मुझे आने से मना कर दिया और घर पर ही रूकने को कहा। तू बता, तू आज गए चराने नही गया?” मंगल ने रघु से पूछा।

 “अरे यार मैं घर पहुंचा तो देख की गाय और बकरियां तो घर पर हैं ही नहीं, शायद मम्मी अपने साथ खेत पर ले गई, चल अब मैं चलता हूं , शाम को मिलते हैं।” रघु ने मंगल से का और वहां से खेत पर जाने के लिए रवाना हो गया।

थोड़ी देर बाद वो खेत पर पहुंच गया। वहां से वो गाय और बकरियों को लेकर नदी की तरफ चराने के लिए चला गया। देखते ही देखते शाम हो गई। रघु और उसके मम्मी पापा खेत पर से घर को आने लगे। थोड़ी देर बाद वो सब घर पहुंच गए। वो तीनो आंगन मे बैठकर बातें कर ही रहे थे की, उन्होंने देख मंगल दौड़ता हुआ उनकी तरफ आ रहा है।

 मंगल रघु के घर पर आकर रूका और हाफते हुए रघु से बोला–“रघु जल्दी चल, भईया ने घर पर बुलाया है, बाकी के खिलाड़ी भी आ गए हैं, सबको दावत पर साथ मे चलना है।” मंगल ने रघु से कहा फिर उसका ध्यान रघु के मम्मी पापा पर गया। उसने जल्दी से आगे बढ़कर रघु के मम्मी पापा के पैर छू लिए, और हाफते हुए कहा–“चाचा जी, मैं रघु को अपने साथ ले जा रहा हूं , हम सभी खिलाड़ी साथ मे खाना खाने जाने वाले हैं।” मंगल ने रघु के पापा से कहा, और रघु के साथ अपने घर की तरफ चल पड़ा।

मंगल के घर पहुंचकर रघु ने देखा की टीम के सारे खिलाड़ी आए हुए हैं। जैसे ही सबने रघु को देखा, सब उससे हाथ मिलाने लगे। फिर सब बैठकर बातें करने लगे। बात करते करते कब शाम के सात बज गए पता ही नही चला। “चलो सब, खाना खाने चलते हैं, सरपंच जी का भी फोन आया था अभी, उन्होंने जल्दी आने को कहा है।” दिलीप ने सभी खिलाड़ियों से कहा और फिर सब मैदान की तरफ जाने लगे।

 जैसा की मैदान मंगल के घर से बीस मीटर की दूरी पर था तो मैदान पहुंचने मे देर तो लगना ही नही था। सभी लोग मैदान मे पहुंचे, तो उन्होंने देखा की सरपंच जी उन्हे हाथ दिखाकर अपने पास आने का इशारा कर रहें हैं। सरपंच का इशारा मिलते ही, सभी खिलाड़ी सरपंच के पास जाकर खड़े हो गए। सरपंच के पास पहुंचकर उन सबने देखा की सरपंच के साथ कुछ लोग खड़ें हैं और बाते कर रहें हैं। पर दिलीप उनको देख कर पहचान गया था। वो लोग आस पास के गांव के सरपंच थे। 

सरपंच जी ने सभी खिलाड़ियों को दूसरे सरपंचों से मिलवाते हुए कहा–“दोस्तों, ये हैं हमारे गांव के सितारे, इन लोगो की वजह से ही आज गांव मे दावत हो पा रहा है। ये लोग तीन चार साल से इस टूर्नामेंट को जीतने के लिए मेहनत कर रहे थे, पर कभी क्वार्टर फाइनल में तो कभी सेमी फाइनल मे बाहर आ जाते थे, पर इन लोगों ने हार नही मानी और आखिर कार ये टूर्नामेंट जीत ही लिया।” सरपंच की ये बाते सुनकर सभी सरपंचों ने खिलाड़ियों को शाबाशी दी और खिलाड़ियों से बाते करने लगे।

गांव के बाकी लोग भी अब खाना खाने के लिए आने लगे थे। तभी मंगल और रघु ने देखा की उनके स्कूल के बच्चे भी आए हुए थे, और सभी शिक्षक भी आए हुए थे। “भईया हम अपने दोस्तों से मिलकर आते हैं।” मंगल ने दिलीप से कहा और रघु को लेकर अपने दोस्तों से मिलने के लिए जाने लगा। 

“मंगल, जल्दी मिलकर आ जाना।” दिलीप ने मंगल से कहा।

 “जी भईया, हम जल्दी आ जायेंगे।” मंगल ने दिलीप से कहा और रघु के साथ अपने दोस्तों की तरफ जाने लगा। रघु और मंगल अपने दोस्तों से मिले और बातें करने लगे। कुछ देर तक उन दोनो ने अपने दोस्तों से बात की और फिर टीम वालोके पास आ गए। 

रघु और शिल्पा के घर वाले भी दावत पर आ चुके थे। मंगल के मम्मी पापा भी उन्ही के साथ खड़े थे। अब सब लोग खाना खाने के लिए बैठने लगे थे। दिलीप ने पहले ही सभी खिलाड़ियों को समझा दिया था की पहले वो सब सबको खाना परोसेंगे और उनके खाना खा लेने के बाद खाना खायेंगे।

 दिलीप की ये बात टीम वालो को सही लगी। सब उसकी बात से सहमत थे। सभी खिलाड़ियों ने काम आपस मे बाट लिया। कोई चावल परोस रहा था तो कोई सब्जी तो कोई रोटी परोस रहा था। लोगों को खाना परोसते हुए सभी खिलाड़ियों के चेहरे पर अलग ही खुशी थी।

 रघु खाना परोसते हुए आगे थोड़ा आगे बढ़ा ही था की उसने देखा की थोड़ी दूर पर उसके मम्मी पापा और शिल्पा के मम्मी पापा और उनके साथ मंगल के मम्मी पापा भी बैठे हुए हैं। जैसे ही रघु उनके पास खाना परोसने के लिए पहुंचा, तो शिल्पा ने मुस्कुराते हुए कहा–“आज तो रघु सेवा करने मे लगा हुआ है।” शिल्पा की बात सुनकर रघु के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई और वो शरमाने लगा। 

“अरे शांति, देख तो रघु कैसे शर्मा रहा है।” जानकी ने रघु की तरफ देखते हुए शांतिसे कहा और मुस्कुराने लगी। बाकी सब भी रघु को शर्माता देख मुस्कुराने लगे। रात के 10 बजे तक सभी लोग खाना खा चुके थे। उसके बाद टीम के खिलाड़ियों के अलावा कुछ ही गिने चुने लोग खाना खाने के लिए रह गए थे।

 सभी लोग एक साथ खाना खाने बैठ गए। तीन चार लड़के जो की खाना खा चुके थे, वो सभी खिलाड़ियों को खाना परोसने लगे। कुछ देर बाद टीम वालो ने भी खाना खा लिया था। खाना खाने के बाद सभी खिलाड़ी अपने अपने घर चले गए। रघु भी खाना खाकर अपने घर आ चुका था। रघु ने जब घर की घड़ी मे देखा तो रात के 11 बज चुके थे। “चल बेटा सो जा, सुबह जल्दी उठना है ना !” शांतिने रघु से कहा। “हां मां सो रहा हूं , वैसे भी आज बहुत देर हो गई है।” कहते हुए रघु सो गया।

Story to be continued.....
Next chapter will be coming.....