कुकड़ुकू - भाग 20 Vijay Sanga द्वारा नाटक में हिंदी पीडीएफ

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कुकड़ुकू - भाग 20

अचानक शिल्पा को याद आया की रघु का जन्म दिन भी तो उसी दिन है। से रघु की तरफ देखते हुए पूछा–“मेरा तो तूने पूछ लिया, पर तेरा भी तो जन्म दिन उसी दिन है, तू क्या करने वाला है?” शिल्पा की ये बात सुनकर रघु ने कहा– “यार मुझे भी नही पता, देखते हैं पापा मम्मी क्या करते हैं।” कहते हुए रघु हलवा खाने लगा। 

दोनो ने हलवा खाया और फिर दोनो घर जाने लगे। अचानक से शिल्पा ने रघु को देखते हुए कहा–“रघु ले साइकिल चला।” शिल्पा की ये बात सुनकर रघु ने कहा– “अगर मैं साइकिल चलाऊंगा तो तू क्या करेगी?” 

“मैं पैदल आऊंगी और क्या?” शिल्पा ने कहा और हंसने लगी। रघु को समझ नही आ रहा था की इसको अचानक क्या हो गया? रघु ने उसकी तरफ देखा और कहा–“सच बता हलवे मे क्या था?”

 रघु की ये बात सुनकर शिल्पा ने कहा– “क्या था का क्या मतलब ! कुछ भी नही था, क्यों? तू ऐसा क्यों पूछ रहा है?”

 “अरे तूने मुझे साइकिल पकड़ा दी, और खुद पैदल आने वाली है ना, इसलिए पूछ रहा हूं।” रघु ने शिल्पा से कहा। 

“अरे यार कितना बड़ा बुद्धु है तू , मेरे कहने का मतलब था की तू साइकिल चला और मैं पीछे बैठूंगी।” शिल्पा ने रघु को समझाते हुए कहा और रघु को साइकिल चलाने का इशारा करके साइकिल के पीछे बैठ गई। रघु ने साइकिल चलाना शुरू किया और दोनो बातें करते करते घर के लिए रवाना हो गए।

थोड़ी देर बाद दोनो गांव पहुंच गए, रघु ने साइकिल सीधे शिल्पा के घर पर रोकी। “अरे बेटा रघु , आज तू इसको बैठा कर ला रहा है ! क्या हुआ इसको?” शिल्पा की मां जानकी ने रघु से पूछा। 

“पता नही चाची, अचानक इसको क्या हुआ ! इसने मुझे साइकिल चलाने को कहा तो मैं साइकिल मे इसको बैठा कर ले आया।” रघु ने शिल्पा की मां से कहा। 

इतने मे शिल्पा ने बीच मे आते हुए कहा– “अरे मां, सब स्कूल मे इसकी तारीफ कर रहे थे, तो मैने सोचा, फुटबॉल खेलने मे तो ये उतना भागता दौड़ता है, देखूं तो सही स्कूल से घर तक साइकिल चला पाएगा या नहीं।” इतना कहते हुए शिल्पा मुस्कुराने लगी।

 “अरे ये लड़की आए दिन कोई नयी शरारत करती रहती है।” शिल्पा की मां ने कहा और रघु की तरफ देखते हुए बोली– “अरे बेटा रघु , ये पागल तो आए दिन कोई न कोई शरारत करती रहती है, आज इसने शरारत के लिए तुझे पकड़ लिया।” 

शिल्पा की मां आगे और कुछ बोल पाती उससे पहले रघु ने बीच मे टोकते हुए कहा– “अरे चाची कोई बात नही, वैसे भी मुझे इसकी शरारतों को आदत है, और कभी ये ज्यादा दिन तक कोई शरारत नही करती है तो हैरानी होती है की ये ठीक तो है ना !” रघु की ये बात सुनकर शिल्पा की मां और रघु मिलकर हंसने लगे। 

“अरे हां चाची, आपने जो हलवा भेजा था, वो बहुत स्वादिष्ट था, थोड़ा बचा है क्या?” रघु , शिल्पा की मां से पूछता है।

 “अरे बेटा, तू पूछता नही तो भी मैं तेरे घर पर भिजवाने वाली थी। मैं सुबह तेरे घर पर हलवा देने के लिए गई थी, पर तेरे मम्मी पापा खेत पर जा चुके थे। तू दो मिनट रूक, मैं लेकर आती हूं।” इतना कहकर जानकी घर के अंदर गई, और एक टिफिन मे हलवा लेकर बाहर आई और रघु को देते हुए कहा– “ये ले बेटा, और मम्मी पापा से कहना की खाकर बताए की कैसा बना है।” 

“जी चाची मैं बोल दूंगा।” रघु ने इतना कहा और अपने घर की तरफ चल पड़ा। घर जाते समय उसने देखा की बहुत से लोग गांव के मैदान मे कुछ करने मे लगे हुए हैं। उसने थोड़ी देर तक खड़े होकर सोचा, फिर उसे याद आया की आज तो गांव मे दावत होने वाली है। 

गांव का मैदान रघु के घर के पास होने की वजह से रघु को आते जाते मैदान मे हो रहे चीजों का पता चल जाया करता था। रघु अपने घर पहुंचा और आंगन मे बैठ गया। 

थोड़ी देर तक वो आंगन मे बैठा रहा, फिर घर के अंदर चला गया। उसने मुंह हाथ धोकर खाना खाया ही था की उसे याद आया की स्कूल में शिल्पा के साथ गलत बर्ताव करने के कारण मंगल उससे नाराज है। उसने घर का दरवाजा बंद किया और मंगल के वहां जाने लगा। 

उसने मंगल के घर पर पहुंच कर आवाज लगाई– “मंगल... घर पर कोई है क्या?” रघु की आवाज सुनकर मंगल घर से बाहर आया और गुस्से से कहा– “क्या है बोल?”

 “अरे भाई तू अभी तक मुझसे नाराज़ है क्या? अरे यार अब तो मैने शिल्पा को भी सॉरी बोल दिया है, अब तो वो भी मुझसे बात कर रही है।” रघु की ये बात सुनकर मंगल के चेहरे पर मुस्कान आ गई, और उसने पूछा– “सच मे भाई ! उसने तुझे माफ कर दिया !” 

मंगल की खुशी देख कर रघु समझ गया था की अब मंगल उससे नाराज नहीं है। “एक बात बता, मैने शिल्पा से गलत तरीके से बात की थी, तो उसका नाराज होना तो समझ में आया, पर तू मुझसे क्यों नाराज था?” रघु ने मंगल से पूछा और उसके जवाब का इंतजार करने लगा। 

“यार मुझे इसलिए गुस्सा आया क्योंकि तू मेरा दोस्त है, और मैं नही चाहता की मेरा दोस्त किसी से बुरा बर्ताव करे, या तेरी वजह से किसी को कोई तकलीफ पहुंचे।” मंगल ने रघु से कहा। 

मंगल की ये बात सुनकर, रघु ने मंगल को गले लगाते हुए कहा– “भाई तू मेरे लिए कितना सोचता है, तू मेरा सच्चा दोस्त है।”

 “अबे बस कर, नही तो कोई देखेगा तो गलत समझ लेगा।” मंगल के ये कहते ही दोनो दोनो हंसने लगे। 

सचमे मंगल और रघु की दोस्ती बहुत गहरी थी, दोनो बचपन से एक दूसरे के साथ खेलते हुए बड़े हुए थे। दोनो के घर वालो को भी पता था की वो दोनो कितने अच्छे दोस्त हैं। दोनो मे से कभी भी किसी को कोई काम होता था, या दोनो मे से किसी को कोई काम होता था, तो दोनो एक दूसरे की मदद करते। दोनो एक दूसरे के लिए हमेशा खड़े रहते, दोनो की दोस्ती सचमे मिसाल देने लायक थी। 

मंगल का घर मैदान से लगभग बीस मीटर की दूरी पर ही था। “अच्छा यार मंगल , तुझे पता चला की आज दावत मे क्या क्या बनने वाला है?” रघु ने मंगल से पूछा। “यार मैने कुछ देर पहले मैदान मे चार बकरे बंधे देखे थे, पर अब वो नजर नहीं आ रहे, लगता है आज तो बकरों का दाव है।” ये कहकर मंगल ने तिरछी नजर से रघु की तरफ देखा, और मुस्कुराने लगा। मंगल का इशारा रघु समझ गया था। वो समझ गया था की आज दावत मे बकरे कटेंगे।
Story to be continued.....
Next chapter will be coming soon....