श्याम ने जैसे ही विक्रांत को देखा, वो भागता हुआ उसके पास गया और गर्दन झुकाते हुए कहा–“चलिए विक्रांत सर...। ये बेग मुझे दे दीजिए।” श्याम ने विक्रांत से कहा और उसका बेग ले लिया।
विक्रांत ने हैरानी से श्याम की तरफ देखते हुए पूछा–“आप कौन? और आप मुझे कैसे जानते हैं?” विक्रांत ने श्याम से ये पूछा ही था की तभी कबीर उसके पास आते हुए बोला–“ये श्याम काका हैं। ये हमारे यहां ड्राइवर का काम करते हैं। तुम इन्हें नही जानते हो। तुम जब उत्तराखंड गए थे उसके कुछ ही समय बाद ही पापा ने इन्हे काम पर रखा था। ये भी हमारे परिवार के एक सदस्य हैं।”
“कबीर सर ये तो आपका बड़प्पन है।” श्याम ने नजरें नीचे झुकाते हुए कहा।
“अरे काका ये सब छोड़िए और फटाफट घर चलते हैं। मुझे सबसे मिले हुए बहुत समय हो गया है।” कबीर ने कहा और कर की तरफ चल पड़ा।
सुप्रिया ने जब श्याम की लाई हुई कार देखी तो वो समझ गई की विक्रांत जैसा दिखता है वैसा है नही। वो तो आजतक उसे एक गरीब और साधारण लड़का समझती थी। लेकिन आज वो सोचने पर मजबूर हो गई की आखिर विक्रांत की सच्चाई क्या है? और आजतक विक्रांत ने अपने बारे मे उसे कुछ बताया क्यों नही!
कुछ ही देर बाद उनकी कार एक आलीशान बंगले के पास आकर रुक गई। विक्रांत ने जब अपना बंगला देखा तो हैरान रह गया। वो सोचने लगा की वो बचपन में यहां रहा करता था! सुप्रिया भी इतना शानदार बंगला देखकर हैरान थी। उसके मन मे भी ये खयाल आने लगा की विक्रांत तो जंगल में झोपड़ी जैसे घर में रहता था और यहां इतना आलीशान बंगला! वो समझ नही पा रही थी की आखिर विक्रांत ने और क्या क्या उससे छुपाया है।
“क्या हुआ भाई...! वापस घर आना अच्छा नहीं लगा क्या?” इतना कहते हुए कबीर ने विक्रांत और सुप्रिया को अंदर जाने का इशारा किया ।
तीनों जैसे ही दरवाजे से अंदर आए थे की तभी उन्हे किसी आवाज देकर रोक लिया। जब उन्होंने देखा तो उनके सामने पृथ्वीराज खड़े थे। “अरे कहा हो रूक्मणी...! अपने बच्चों की आरती नही उतारोगी क्या?” पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी रूक्मणी को आवाज देते हुए कहा।
“जब से तुम्हारी मां को पता चला है की तुम दोनो भाई घर वापस आ रहे हो तबसे तुम्हारी मां की खुशी का ठिकाना ही नही था।” पृथ्वीराज ने विक्रांत और कबीर को देखते हुए कहा।
इसके बाद पृथ्वीराज ने अपनी पत्नी रूक्मणी की तरफ देखा और कहा–“ये देखो अब तो तुम्हारे दोनो बेटे यहां आ चुके हैं। अब जी भरकर देख लो अपने बेटों को।”
रूक्मणी अपने दोनो बेटों को अपनी नजरों के सामने देख कर बहुत खुश थी। वो इतनी ज्यादा खुश थी की खुशी के मारे उनकी आंखों मे आंसू आ गए। “आखिर तुम दोनो को घर वापस आने का समय मिल ही गया। बेटा विक्रांत तू ठीक तो है ना! पूरे 14 साल बाद तुझे देख रही हूं। बस कबीर और तेरे पापा से ही तेरी खबर मिला करती थी। अब तू कहीं मत जाना, यहीं हमारे साथ रहना।” विक्रांत की मां ने मुस्कुराते हुए विक्रांत से कहा।
“मां...! मैं तो भूल ही गया था की मैं किस परिवार से हूं ? जंगल में रहते रहते मुझे लगा की मुझसे कोई गलती हो गई जो मुझे जंगल में छोड़ा गया था। भेड़िया बनने से पहले तो मुझे यही लगता था की मैं आम इंसान हूं, पर देखो अब मैं क्या हूं।” विक्रांत ने अफसोस भरा चेहरा बनाते हुए कहा।
रूक्मणी समझ सकती थी की बचपन से किसी बच्चे को अपने परिवार से दूर कहीं अकेला रहना पड़े तो कैसा लगता है। “बेटा मैं समझ सकती हूं की तुझ पर क्या बीत रही होगी! पर हम इसमें कुछ कर भी नहीं सकते। हमारे बहुत से नियम हैं, उनमें से एक नियम ये भी है की बच्चे को आठ साल की उम्र में अपने से दूर जंगल में छोड़कर आना ही पड़ता है। उसके बाद वो बच्चे अपने आप सब कुछ सीखते हैं। उनके भेड़िया बन जाने पर ही उनको घर वापस बुलाया जाता है।” रूक्मणी ने विक्रांत को समझाते हुए कहा।
“मां ये नियम जरूरी है क्या? ऐसा नियम किस काम का जिसमे बच्चे को छोटी उम्र में परिवार से दूर जंगल में छोड़ दिया जाता है। ये भी नहीं सोचते की उन बच्चो के साथ क्या होगा!” विक्रांत ने उदासी भरे भाव से कहा।
विक्रांत और उसकी मां बात कर ही रहे होते हैं की तभी पृथ्वीराज उन्हे बीच मे रोकते हुए कहते हैं–“बेटा तुम्हे क्या लगता है...! हम बच्चे को जंगल में छोड़कर भूल जाते हैं! हम बच्चो पर पूरी नजर रखते हैं, और उन पर कोई खतरा ना आए इस बात का भी ध्यान रखते हैं। इस नियम का पालन हमारे वंश के लोग कई पीढ़ियों से करते आएं हैं, और पालन इस नियम का पालन करते रहेंगे।” पृथ्वीराज ने विक्रांत को समझाते हुए कहा।
इतने मे अचानक से रूक्मणी की नजर सुप्रिया पर पड़ती है। वो विक्रांत की तरफ देखते हुए पूछती है–“बेटा विक्रांत...! ये तेरे साथ जो आई है ये लड़की कौन है?”
“मां ये मेरी दोस्त सुप्रिया है। उत्तराखंड मे कबीर ने मेरे दोस्तो पर हमला किया था, जिसमे मेरी एक दोस्त की मौत हो गई, सुप्रिया की किस्मत अच्छी थी जो वो जिंदा बच गई, नही तो वो भी उस दिन मार चुकी होती। अब सुप्रिया भी हमारे जैसी बन चुकी है।” विक्रांत ने अपनी मां को पूरी बात बताते हुए कहा।
“लेकिन तू इसे अपने साथ यहां क्यों लेकर आ गया? तुझे पता है ना यहां जंग का माहौल बना हुआ है! ऐसे में तूने इसे यहां लाकर इसको भी खतरे में डाल दिया है।” विक्रांत की मां ने उसे समझाते हुए कहा। “मां... मैं इसे यहां दादाजी से मिलवाने के लिए लाया हूं। पापा ने कहा था की दादाजी इसको वापस इंसान में बदल सकते हैं।” विक्रांत ने अपनी मां से कहा।
विक्रांत की ये बात सुनकर रुक्मणि शक भरी नजरों से पृथ्वीराज की और देखने लगती है। “ये मैं क्या सुन रही हूं! आपने विक्रांत से ये कहा की दादाजी इस लड़की को ठीक कर सकते हैं?” रूक्मणी ने गुस्से भरी नजरों से पृथ्वीराज को देखते हुए कहा। “हां रूक्मणी...। मैने ही विक्रांत से ये कहा था। अगर मै उसे ऐसा नहीं कहता तो वो यहां शायद ही आता!” पृथ्वीराज ने कहा।
Story to be continued......
Next chapter will be coming soon.....