Shadow Of The Packs - 9 Vijay Sanga द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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Shadow Of The Packs - 9

उधर दूसरी तरफ कमिशनर जयराज सिन्हा बड़ी टेंशन में अपने ऑफिस मे बैठे होते हैं की अचानक उन्हें कुछ याद आता है। वो किसी को फोन लगाने लगते हैं। “हेलो...! मेरी बात ध्यान से सुनो। यहां पर एक प्रोब्लम हो गई है। हम सबको जल्द से जले मिलना होगा। तुम सबको इनफॉर्म कर दो की अर्जेंट मीटिंग है। आज रात को सबको मिलना होगा। मुझे लगता है की हमारे दुश्मन यहां वापस आ गए हैं।” इतना कहकर जयराज सिन्हा ने फोन रख दिया।

थोड़ी देर बाद फिर से जयराज सिन्हा किसी को फोन लगाने लगता है। “विकाश...! तुम मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं तुम्हारी ड्यूटी जोसेफ होम्स और पवन कुमार के साथ लगा रहा हूं। तुम्हे हर वक्त उनके साथ रहना है। कहां जा रहें हैं, क्या कर रहे हैं, पल पल की छोटी से छोटी खबर मुझे देनी है। मैं अभी उन्हें फोन करके बता देता हूं की आज से तुम भी उनके साथ इस केश पर उनके साथ काम करोगे।”

इतना कहकर जयराज सिन्हा ने फोन काटा और जोसेफ गोम्स को फोन लगा दिया। “हेलो जोसेफ...! मैं इस केश पर तुम्हारे साथ काम करने के लिए एक नया ऑफिसर अपोइंट कर रहा हूं। इस केश की जानकारी तुम उसके साथ शेयर कर लेना।” कमिशनर ने जोसेफ गोम्स से कहते हैं।

“पर सर...! अचानक से कोई नया ऑफिसर! इसकी क्या जरूरत है सर?” जोसेफ गोम्स ने कमिशनर साहब से पूछा।

“जोसेफ ज्यादा सवाल जवाब मत करो। तुम बस वो करो जो मैं बोल रहा हूं। ये ऑफिसर पहले भी ऐसे केश पर काम कर चुका है। वो तुम्हारे बहुत काम आ सकता है। मैं उसे तुम्हारे पास भेज रहा हूं, तुम उससे बात कर लेना।” कमिशनर ने जोसेफ गोम्स को समझाते हुए कहा।

“ठीक है सर आप जैसा बोल रहें हैं वैसा ही होगा।” जोसेफ गोम्स ने कहा। इसके बाद कमिशनर ने फोन काट दिया।

“क्या हुआ सर? अचानक से टेंशन में लग रहे हो! क्या कहा कमिशनर साहब ने?” पवन कुमार ने जोसेफ गोम्स से पूछा।

“यार समझ नही आ रहा की हो क्या रहा है ? पहले तो कमिशनर साहब को हमारी बातो पर विस्वास नही था, और अब वो एक नया ऑफिसर भेज रहें हैं हमारे साथ काम करने के लिए।” जोसेफ गोम्स ने कुछ सोचते हुए पवन कुमार से कहा।

“मिल लेते हैं सर, हो सकता है उस ऑफिसर से हमे कुछ मदद मिल जाए !” पवन कुमार ने जोसेफ गोम्स को अपना सुझाओ देते हुए कहा।

“मुझे लगता है कमिशनर साहब के दिमाग में कुछ तो चल रहा है , नही तो एक तरफ तो उनको हमारी बातों पर विस्वास नही है, और वहीं दूसरी तरफ हमारे साथ काम करने के लिए एक नया ऑफिसर भेज रहें हैं, मुझे ये बात कुछ हजम नही हो रही।” जोसेफ गोम्स ने पवन कुमार से कहा।

“जोसेफ सर आपने ध्यान नहीं दिया होगा शायद, लेकिन जब हम कमिशनर साहब से मिलकर उनके ऑफिस से बाहर आ रहें थे, जब मैंने देखा था, कमिशनर साहब टेंशन में दिख रहें थे।” पवन कुमार ने जोसेफ गोम्स से कहा।

“पक्का उनके दिमाग में कुछ तो चल रहा है। चलो शाम को वो ऑफिसर मिलने आ रहा है। देखते हैं वो हमारे काम का है भी या नही।” जोसेफ गोम्स ने कुछ सोचते हुए कहा।

वहीं दूसरी तरफ विक्रांत, सुप्रिया, और बाकी सब दोस्त साथ में बैठकर चाय पी रहे होते हैं की विक्रांत सुप्रिया से कहा, “सुप्रिया अपने दोस्तों से जान पहचान तो करवाओ।”

विक्रांत की बात सुनने के बाद सुप्रिया सभी लोगों का परिचय देते हुए बोली, “ये है रूपाली, ये अमित है, ये ललित, ये यश और ये है सीखा।” कहते हुए सुप्रिया ने सबकी पहचान विक्रांत से करवाई।

“हेलो दोस्तो... मैं विक्रांत हूं।” विक्रांत ने अपना परिचय देते हुए कहा।

“अरे मैने इन्हे पहले ही तुम्हारे बारे में बता दिया है।” सुप्रिया ने अपने सभी दोस्तों को देखते हुए विक्रांत से कहा। इससे पहले विक्रांत कुछ बोल पाता , सुप्रिया की दोस्त सीखा ने बीच मे आते हुए कहा, “विक्रांत...! मुझे सुप्रिया ने बताया था की तुम्हारा घर जंगल के तरफ ही है और तुम अकेले भी रहते हो...! तुम्हे डर नहीं लगता क्या?”

सीखा के इस सवाल पर विक्रांत ने मुस्कुराते हुए कहा, “शुरू शुरू में थोड़ा डर लगता था, पर अब इतना समय हो गया है रहते हुए तो अब बिल्कुल डर नही लगता। अब तो आदत हो गई है।”

विक्रांत की बात सुनकर अमित ने विक्रांत की तरफ देखते हुए कहा, “यार मैं तो ऐसी जगह जंगल में बिलकुल ना रहूं। दिन में रहने का एक बार सोच भी लूं, पर रात में बिलकुल नहीं रह सकता।”

अमित की बात पूरी हुई ही थी की तभी ललित ने भी अमित का साथ देते हुए कहा–“तू सही बोल रहा है यार अमित। मैं भी ऐसी जगह बिलकुल नहीं रह पाऊंगा।”

विक्रांत उन सबकी बातें सुनकर मुस्कुरा रहा होता है की सुप्रिया उसे मुस्कुराते हुआ देख लेती है। “विक्रांत...! तुम ऐसे मुस्कुरा क्यों रहे हो?” सुप्रिया ने विक्रांत से पूछा।

“मैं तो अमित और ललित की बाते सुनकर मुस्कुरा रहा हूं। तुम लोग अगर इतना डरोगे तो जंगल मे ट्रैकिंग और कैंपिंग के लिए कैसे जा पाओगे?” विक्रांत ने अमित और ललित की तरफ देखते हुए कहा।

एक तरह से अमित और ललित की बात सही थी। जंगल मे किसी को भी रहने मे थोड़ा तो दर लगेगा ही। पर विक्रांत बचपन से जंगल मे रहता आया था। इसलिए उसे वहां जंगल मे रहने की आदत हो गई थी। इसलिए उसे डर भी नही लगता था।

“अरे यार हम डरते नही हैं। फिर भी जंगल में हर किसी को थोड़ा बहुत डर तो लगता ही है ना! क्यों दोस्तों?” अमित ने बाकी सबकी तरफ देखते हुए पूछा।

बाकी सबने भी ललित की इस बात पर हां में सर हिला दिया। सब लोग बात कर ही रहे थे की अचानक से अमित को पता नही क्या सूझा उसने विक्रांत की तरफ देखते हुए पूछा–“विक्रांत...! तुम अकेले क्यों रहते हो? तुम्हारे मम्मी पापा कहां है?”

अमित का सवाल सुनकर विक्रांत ने उससे कहा–“मेरे मम्मी पापा दिल्ली मे रहते हैं। इसके अलावा अभी मै तुम्हे और कुछ नही बता सकता।” विक्रांत के ये बताने के बाद सुप्रिया ने सबसे कहा–“चलो ठीक है कल दोपहर 12 बजे मिलते हैं।”

“दोस्तों सुप्रिया तो मुझे बता नही रही की हम लोग कैंपिंग के लिए कहां जाने वाले हैं! अगर तुम लोगों को इस बारे मे पता है तो तुम ही कुछ बता दो।” विक्रांत के मुंह से ये सवाल सुनने के बाद सीखा ने विक्रांत की तरफ देखते हुए कहा–“यार हमे भी इस बारे मे कुछ नही पता। ये बस सुप्रिया को ही पता है। उसी ने कोई जगह देख रखी है।” इतना कहते हुए सब अपने अपने घर जाने के लिए निकल गए।