हमसफ़र बना लो.. pooja द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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हमसफ़र बना लो..

उस सकरी सी जगह में सोहा और सोकेश एक साथ घुसे। इतने झटके से घुसे कि उनका सिर टकरा गया। सोहा की अब तक की सारी उलझनें, सारा गुस्सा सोकेश पर फूट पड़ा।

"कहां से आ जाते हैं आप लोग। ठीक से चलना भी नहीं आता।"

"आपके ही शहर से हूं... और हां, आप तो एक्सपर्ट वॉकर लगती हैं।" सुरेश की आवाज में व्यंग्य था, लेकिन वह मुस्कुरा रहा था।

उसकी मुस्कान देखकर सोहा का गुस्सा कुछ कम पड़ गया। कुछ अलग सा आकर्षण, कुछ अलग सी बात थी उसके अंदाज में। यह फूलों की छोटी सी शॉप थी और दोनों ही अपने घर की शादियों के सिलसिले में यहां पर फूल लेने आए थे।

लेकिन बात इतने पर खत्म नहीं हुई। अभी इनके झगड़े को थोड़ा आगे बढ़ना था। अगला झगड़ा था मनपसंद फूलों के चुनाव का। फूल वाला यह देखकर हैरान था कि आखिर यह लोग किस दुनिया से आए हैं। उसकी दुकान के सारे के सारे फूल खरीद लेना चाहते हैं।

यह एक छोटा सा कस्बा था। यहां के लोग अपने घरों के दरवाजों में बंदनवार लगाने के लिए थोड़े-बहुत फूल खरीदते थे। शादी का सीजन था। बिक्री ज्यादा हो जाया करती थी। शाम तक सारे फूल खत्म हो जाया करते थे, मगर एक समय में दो ग्राहक आ जाएं और वह भी दोनों ऐसे ही पूरी की पूरी शॉप खरीद लेना चाहें।

आज तो फूल वाले को लग रहा था जैसे उसका जैकपॉट लग गया है। वह भी पक्का बनिया था। उसने तुरंत नीलामी शुरू कर दी, कहा- "जो ज्यादा दाम देगा वह सारे फूल ले जा सकता है।"

लेकिन सोहा और सोकेश समझदार थे। जल्द ही समझ गए कि इसमें दोनों का नुकसान होने वाला है। उन्होंने फूल आपस में आधे-आधे बांट लिए।

फ्लावर शॉप से बाहर निकलते ही सोकेश ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया, "आई एम सोकेश। यहां अपने दोस्त की बहन की शादी में आया हूं।"

सोहा ने आश्चर्य से कहा, "सेम हेयर! मेरा नाम सोहा है और मैं भी अपनी सहेली की शादी में आई हूं।"

"इतना आश्चर्य होता है ना यह देखकर कि इस शहर में फूलों की केवल एक ही शॉप है और यहां भी केवल इतने कम फूल हैं।" सोकेश दोस्ती आगे बढ़ाने की मूड में था।

सोहा इतनी खूबसूरत थी कि उसे देखते ही एक बार में कोई भी आकर्षित हो जाए। उसे लड़कों के मिलते ही दोस्ती का हाथ बढ़ा लेने की फितरत पता थी इसलिए वह थोड़ा रिजर्व रहती थी। उसे अपनी खूबसूरती का गुमान भी था और सतर्क रहने की आदत भी।

लेकिन सोकेश में कुछ ऐसे अंदाज में बात कही थी कि अपने आप ही सोहा के मुंह से निकल गया, "सेम हेयर। मुझे भी कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा है। दरअसल यह शहर है ही नहीं यह तो कस्बा है।"

सोकेश ने सोहा का दोस्ती का मूड देखते हुए बात और आगे बढ़ाई। दोनों स्कूटी पर थे। साथ-साथ सड़क पर चल रहे थे और बातें करते जा रहे थे।

"मुझे पहला आश्चर्य तो यह जानकर हुआ कि यहां शादियां वेडिंग प्लानर्स नहीं करते। घर के लोग ही मिलकर कर लेते हैं।"

"सेम हेयर" सोहा ने कहा तो दोनों ठहाके लगाकर हंस पड़े।

"अब आप कोई बात बोलिए और मैं 'सेम हेयर' बोलता हूं" सोकेश ने बात आगे बढ़ाई।

"मैं मुंबई में रहती हूं। यहां अपनी कजिन की मैरिज में आई हूं। हम लोग बचपन से बहुत पक्की फ्रेंड्स भी हैं। सोचा एंजॉय भी हो जाएगा, पिकनिक भी हो जाएगी। कस्बे की सभी रिचुअल्स वाली बिल्कुल देसी मैरिज का एक्सपीरियंस भी।"

"सेम हेयर," अबकी सोकेश ने कहा और दोनों फिर हंस पड़े।

"आप राइट साइड आ जाइए, मुझे यहीं लेफ्ट में रुकना है," सोहा ने कहा तो सोकेश ने इस बार फिर 'सेम हेयर' बोला। और अबकी दोनों खुशी और आश्चर्य के साथ हंस पड़े।

सोहा और सोकेश को पता चला कि वह एक ही घर में शादी में आए हैं। सोकेश, सोहा की कजिन यानी सहेली के भाई का दोस्त था।

फूलों के डेकोरेशन के लिए सोहा की प्लानिंग देखकर सोकेश के मुंह से 'वाह!' निकल गया। "इतनी अच्छी डिजाइनिंग आपने कहां से सीखी?" सोकेश ने तारीफ के अंदाज में पूछा तो सोहा मुस्कुरा उठी। "यूट्यूब से और कहां से। वैसे डिजाइनिंग तो आपकी भी बहुत अच्छी है। आपने कहां से सीखी?"

"सेम हेयर!" दोनों एक बार फिर हंस पड़े।

सोहा ने मुस्कुराते हुए कहा, "दरअसल मैं वेडिंग प्लानर बनना चाहती हूं।"

"अरे वाह! मैं भी," सोकेश बोला तो सोहा हंसने लगी।

"आपने डायलॉग बदल दिया। अबकी 'सेम हेयर' नहीं बोला।"

"हां, एक ही डायलॉग रिपीट करते अच्छा नहीं लगता। चलिए, कुछ और जानते हैं एक दूसरे के बारे में,"

सोकेश ने कुछ रूमानी अंदाज में कहा।
"सबसे पहले तो मैं यह बता दूं कि मैंने किसी को भी फ्लर्ट अलाउ नहीं किया है। क्योंकि मैं एक अच्छी वेडिंग प्लानर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहती हूं।" सोहा गुरुर से इठलाई।

"लेकिन रास्ते अगर एक हों तो किसी को हमसफर बना लेने में बुराई भी नहीं है।" सुकेश फ्लर्ट के मूड में आ चुका था।

"इतनी जल्दी बिना देखे किसी को हमसफर बनाना मेरी आदत नहीं," सोहा भी अपने गुमान के मूड में आ चुकी थी।

आज संगीत का फंक्शन था। सोहा और सोकेश दोनों के लिए ही यह पहला अवसर था जब न तो कोई सजा- सजाया स्टेज था और न ही बना-बनाया हॉल। माइक भी एक ही था और उसी माइक से जिसको भी जो कुछ भी कहना था कह सकता था।

दोनों ही वहां थे और देख रहे थे कि किस तरह से माइक तो बेचारा बीच के स्टूल पर पड़ा है और एक के बाद एक लोग अपने अपने गाने खुद ही कैसेट पर लगा कर डांस कर रहे हैं। दोनों को यह जानकर आश्चर्य हो रहा था कि जो कुछ वह अपने मम्मी-पापा से उनके जमाने का सुनते आए थे वह सब इस छोटी सी दुनिया में आज भी इस जमाने में मौजूद था।

तभी लाइट चली गई। और सब लोग मायूस हो गए कि अब गाने नहीं लग सकते तो डांस कैसे करेंगे। सोहा और सोकेश किसी बुजुर्ग की तरह मुस्कुराए और बोले कि आप लोग गाने बताइए हम लगा देते हैं। अब दोनों बारी-बारी से म्यूजिक ऐप पर लोगों के पसंदीदा गाने लगाने लगे और लोग उन पर डांस करने लगे।

इस छोटे से कस्बे के लिए इंटरनेट की यह दुनिया बिल्कुल नई थी। सोहा और सोकेश सबकी नजरों में हीरो-हीरोइन बन चुके थे।

फिर क्या था। सोकेश के अनुरोध पर सोहा डांस करने के लिए तैयार हो गई जो कि एक कपल डांस था। वह दोनों दर्शकों को देख पा रहे थे। महसूस कर पा रहे थे कि उनके डांस पर लोग किस तरीके से मुस्कुरा रहे हैं। उनके लिए यह मुस्कुराहट और उनको देखकर लड़कियों का शरमाया हुआ चेहरा नया था और उन लोगों का बाहों में बाहें डाल कर पोज बनाते हुए डांस करना उन लोगों के लिए नया अनुभव था।

फिर तो शादी के रिचुअल्स में रोमांस अपने आप ही जुड़ता चला गया। जब वह साथ खड़े होकर कुछ डिस्कस कर रहे होते कि इस चीज को ऐसे किया जा सकता है या उस चीज को वैसे किया जा सकता है, तो लोगों की आंखों में मुस्कान देखकर वह बातें रोमांटिक हो गई सी लगतीं।

"तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड है?" अचानक इन सबके बीच में सोकेश ने पूछ लिया।

"मैंने कहा था ना. फ्लर्ट अलाउड नहीं है।

"अरे यार, मौसम इतना हसीन है। फिलहाल के लिए ही सही थोड़ा सा" सोकेश ने मनुहार सी की।

इस पर सोहा गंभीर हो गई। "करियर की भागदौड़ में और जिंदगी की टेंशन में बॉयफ्रेंड बनाने का मौका ही नहीं मिला। लगा, एक बार मस्ती शुरू कर दी तो अपनी राह से भटक जाऊंगी।"

"लगता है बहुत टेंशन है तुम्हारी जिंदगी में" सुकेश ने करीब आने के मकसद से पूछा।

"हां, कुछ ऐसा ही समझ लो" सोहा का मन हुआ कि कुछ खुल जाए।

फिर दोनों गैदरिंग से बाहर निकल आए। छत पर ठंडी- ठंडी हवा चल रही थी। आसपास ढेर सारे पेड़-पौधे थे। इस बीच माहौल कुछ ऐसा लगने लगा था जैसे किसी गम भरे उमस भरे कमरे से अचानक बाहर निकल आए हों।

दोनों को ही एक दूसरे की संगत में खुलने का मन करने लगा और वे खुलते गए। जीवन के तनाव, जीवन की उलझनें, करियर न बना पाने का असंतोष, लोगों से मिलने वाले ताने, हजारों टेंशन... दोनों के पास बताने के लिए बहुत कुछ था। दोनों बातों की रौ में इस तरह बहते चले गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब बारात के आने का समय हो गया।

सब लोग उन्हें ढूंढते हुए वहां आए और कहने लगे, 'अरे, तुम लोगों को क्या तैयार नहीं होना है? पिछले 3 घंटों से तुम्हारी ढूंढ मची है घर में कि आखिर तुम दोनों चले कहां गए।'

सोहा और सोकेश ने एक दूसरे की ओर देखा। 3 घंटे ! उन दोनों को बात करते हुए 3 घंटे हो गए।

"बस 3 घंटे! मुझे तो लग रहा है हम लोग तीन युगों से बात कर रहे हैं" सोहा के मुंह से अनायास ही निकल गया।

इस पर सोकेश बहुत ही भाव भरी आंखों से उसे देखने लगा। सोहा ने तुरंत अपनी नजरें हटा लीं।

हंसते-खेलते कब 4 दिन बीत गए पता ही नहीं चला। अब वक्त था अपने-अपने घर लौटने का।

छोटे से रेलवे स्टेशन पर वह दोनों बैठे थे।

"तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?" ट्रेन की सीटी सुनकर सोकेश ने पूछा।

"कौन सी बात?" सोहा खोई-खोई सी बोली।

"वही कि रास्ता एक हो तो किसी को हमसफर बना लेने में हर्ज ही क्या है?"

तब तक ट्रेन स्टेशन पर आ चुकी थी। "अरे, सामान उठाओ और ट्रेन पर चलो।"

"तुमने जवाब नहीं दिया" सोकेश बोला।

"अरे यार! हम लोगों को एक ही ट्रेन से जाना है। अब क्या शाहरुख खान की तरह ट्रेन पर चढ़कर मुझे हाथ पकड़ कर चढ़ाना चाहते हो? तब समझोगे कि जवाब मिल गया? आंखों की भाषा पढ़ना नहीं जानते? और वहां एंकरिंग में पता नहीं क्या-क्या कर रहे थे। कौन- कौन से गाने बजा रहे थे," सोहा मुस्कुरा दी।

सोहा की मुस्कुराती आंखों में सोकेश के लिए ढेर सारा प्यार और प्यार का इजहार साफ नजर आ रहा था।

सोकेश ने आगे बढ़कर उसका हाथ थामा और दोनों ट्रेन में बैठ गए। ट्रेन चल दी।

आज दोनों एक नए सफर पर थे। दोनों का सफर भी एक था और मंजिल भी। सोहा और सोकेश दोनों को अपना हमसफर मिल चुका था।