अध्याय 5: सत्य का सामना
राजवीर अब हवेली की ओर वापस जा रहा था, लेकिन इस बार उसके मन में कोई भय नहीं था। उसके कदम दृढ़ थे, और उसके भीतर एक नई शक्ति का संचार हो चुका था। वह जानता था कि उसे क्या करना है और कैसे करना है। हवेली के रहस्यों को उजागर करने के लिए वह पूरी तरह तैयार था।हवेली के पास पहुंचते ही राजवीर को महसूस हुआ कि हवेली अब भी वही भयानक उपस्थिति बनाए हुए है, लेकिन अब वह इसके प्रभाव में नहीं था। उसने दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश किया। हवेली के अंदर का माहौल अब पहले जैसा नहीं लग रहा था। वह ठंडक और डर जो पहले उसके मन को घेर लेता था, अब गायब हो चुके थे। राजवीर ने सीधा कदम उस गुप्त तहखाने की ओर बढ़ाया, जहां से उसने ताबीज उठाया था।
सीढ़ियों से उतरते समय उसे एक अजीब सी शांति का अनुभव हो रहा था, मानो हवेली उसे वापस बुला रही हो, लेकिन इस बार किसी खतरे के लिए नहीं, बल्कि एक अनसुलझे रहस्य को उजागर करने के लिए।जैसे ही वह तहखाने में पहुंचा, उसने देखा कि सब कुछ पहले जैसा ही था। ताबूत, पेंटिंग्स, और वो सभी चिन्ह जिनका अर्थ वह अब तक नहीं समझ पाया था। राजवीर ने धीरे से ताबीज को उस ताबूत के ऊपर रखा, जहां से उसने उसे उठाया था। ताबीज को रखते ही तहखाने में एक हल्की सी कंपकंपी महसूस हुई, और ताबीज की चमक अचानक बढ़ गई। ताबीज ने ताबूत के ऊपर बने प्रतीकों को फिर से सक्रिय कर दिया। राजवीर को ऐसा लगा जैसे कि ताबीज अब ताबूत के साथ संवाद कर रहा हो। तभी, ताबूत अपने आप धीरे-धीरे खुलने लगा। राजवीर ने टॉर्च की रोशनी ताबूत के अंदर फेंकी। ताबूत के अंदर एक पुरानी किताब और एक धातु की चाबी पड़ी हुई थी। किताब बहुत ही पुरानी और बिखरी हुई हालत में थी, लेकिन वह राजवीर के हाथ में आने के लिए तैयार लग रही थी। उसने धीरे से किताब को उठाया और उसके पन्ने पलटने लगा। किताब में वही रहस्यमय लिपि लिखी थी, जो उसने ताबीज पर देखी थी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, अब वह इन लिपियों को पढ़ने में सक्षम था। किताब के पहले पन्ने पर लिखा था, "कालातंत्र का सच: जिनकी आत्माएं इस ताबीज से बंधी हैं, वे कभी मुक्ति नहीं पा सकतीं, जब तक कि उन्हें सत्य का सामना न करना पड़े।"
राजवीर ने ध्यान से पढ़ा। यह किताब उस प्राचीन सम्प्रदाय की थी, जिसने इस ताबीज को बनाया था। किताब में लिखा था कि यह ताबीज न केवल शक्ति का स्रोत था, बल्कि एक श्राप भी था। जिसने भी इस ताबीज को धारण किया, उसे अपने जीवन में असंख्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, और अंत में उसे अपने ही अतीत का सामना करना पड़ा।चाबी का उपयोग किसी गुप्त दरवाजे को खोलने के लिए था, जिसे किताब में "अनंत दरवाजा" कहा गया था। इस दरवाजे के पीछे वह सारी सच्चाई छिपी हुई थी, जिसे ताबीज ने सदियों से अपने अंदर संजोए रखा था। राजवीर ने किताब को बंद किया और चाबी को ध्यान से देखा। उसने सोचा कि शायद यह चाबी हवेली में ही किसी गुप्त दरवाजे को खोलने के लिए है। उसने हवेली के हर कोने की जांच करनी शुरू की, लेकिन कोई भी दरवाजा या गुप्त कक्ष नहीं मिला। तभी, उसे याद आया कि हवेली की पेंटिंग्स में एक खास पेंटिंग थी, जिसमें एक दरवाजे की तस्वीर थी। वह पेंटिंग वही थी, जिसमें एक राजसी व्यक्ति की रहस्यमयी मुस्कान दिखाई दे रही थी। राजवीर ने पेंटिंग को ध्यान से देखा और पेंटिंग के कोने में एक छोटा सा चिह्न देखा, जो शायद पहले उसकी नजर से छूट गया था।
उसने पेंटिंग को हटाया और देखा कि उसके पीछे एक गुप्त दरवाजा था। दरवाजे पर वही प्रतीक बने हुए थे, जो ताबीज और किताब में थे। राजवीर ने धड़कते दिल से चाबी निकाली और दरवाजे में डाल दी। चाबी घुमाते ही दरवाजा अपने आप खुल गया। अंदर अंधेरा था, लेकिन राजवीर ने बिना किसी हिचकिचाहट के कदम रखा। अंदर एक लंबी सुरंग थी, जो हवेली के नीचे किसी अज्ञात स्थान की ओर जाती थी। राजवीर ने टॉर्च की रोशनी के साथ सुरंग के अंदर जाना शुरू किया। सुरंग के दोनों ओर दीवारों पर अजीबोगरीब चित्र बने हुए थे, जो किसी अज्ञात कहानी को बयां कर रहे थे। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता गया, उसे एक हल्की रोशनी दिखने लगी।आखिरकार, सुरंग खत्म हुई और वह एक बड़े कक्ष में पहुंचा। इस कक्ष के बीचोंबीच एक विशाल पत्थर की वेदी थी, जिसके ऊपर वही ताबीज रखा हुआ था। लेकिन यह वही ताबीज नहीं था जो राजवीर के पास था; यह ताबीज उससे कहीं बड़ा और भव्य था। कक्ष की दीवारों पर चित्रों के साथ-साथ लिपियाँ भी लिखी हुई थीं, जो उस ताबीज की कहानी बयान कर रही थीं। यह ताबीज केवल शक्ति का स्रोत नहीं था, बल्कि यह उन आत्माओं को बांधने वाला एक साधन भी था, जिन्होंने कभी अनंत शक्ति की लालसा में अपनी आत्मा को बेच दिया था। राजवीर ने वेदी के चारों ओर ध्यान से देखा।
उसे समझ आ गया था कि यह कक्ष उस प्राचीन सम्प्रदाय का मुख्य केंद्र था, जहां यह ताबीज बनाया गया था। वेदी पर रखे बड़े ताबीज को देखते ही उसे समझ आ गया कि यह वही ताबीज है, जिसकी शक्ति के पीछे सारी घटनाएं हो रही थीं। राजवीर ने छोटी ताबीज को वेदी पर रखा। जैसे ही उसने ऐसा किया, पूरा कक्ष हल्कने लगा। दीवारों पर बने चित्र और लिपियाँ जीवंत हो उठीं। राजवीर के सामने अब ताबीज की असली शक्ति का खुलासा हो रहा था। ताबीज की शक्ति से उत्पन्न हुई ऊर्जा ने राजवीर के चारों ओर एक सुरक्षा कवच बना दिया। वह अब देख सकता था कि ताबीज से निकलती हुई शक्तियाँ उसे घेर रही हैं, लेकिन वे उसे नुकसान नहीं पहुंचा रही थीं। अचानक, राजवीर के मन में एक भयानक सच्चाई का अहसास हुआ। यह ताबीज न केवल शक्ति का स्रोत था, बल्कि यह एक ऐसा श्राप भी था, जिसने सदियों से इस सम्प्रदाय के सदस्यों को बंदी बना रखा था। और अब, राजवीर को उन आत्माओं को मुक्त करने का अवसर मिला था। उसने मन ही मन निर्णय लिया कि वह इस श्राप को समाप्त करेगा। उसने ताबीज के ऊपर ध्यान केंद्रित किया और वह मंत्र याद किया जो पुजारी ने उसे सिखाया था। उसने मंत्र का जाप करना शुरू किया और ताबीज की ऊर्जा को नियंत्रित करने की कोशिश की।
धीरे-धीरे, ताबीज की चमक मद्धम पड़ने लगी, और कक्ष में एक अद्भुत शांति फैलने लगी। दीवारों पर बने चित्र धुंधले होने लगे, और वह लिपियाँ भी गायब होने लगीं। कुछ ही क्षणों में, ताबीज ने एक आखिरी बार चमक छोड़ी और फिर से शांत हो गया। कक्ष में अब केवल वेदी और वह छोटा ताबीज बचा था। राजवीर ने महसूस किया कि उसने कुछ बहुत बड़ा हासिल किया है। वह ताबीज को उठाकर वेदी पर छोड़ दिया और पीछे मुड़कर सुरंग की ओर बढ़ गया। उसे अब लग रहा था कि वह हवेली के श्राप से मुक्त हो गया है, और साथ ही उस प्राचीन सम्प्रदाय की आत्माओं को भी मुक्ति दिला दी है। राजवीर ने हवेली से बाहर निकलकर एक गहरी सांस ली। सूरज अब पूरी तरह उग चुका था, और उसके जीवन में भी एक नई रोशनी फैल गई थी। वह जानता था कि यह यात्रा कठिन थी, लेकिन उसने अपने डर का सामना किया, सत्य को जाना और उस रहस्य को उजागर किया जिसने सदियों से इस जगह को जकड़ रखा था। राजवीर ने हवेली की ओर एक आखिरी बार देखा और फिर गांव की ओर बढ़ गया। वह जानता था कि उसकी कहानी अब एक नया मोड़ ले चुकी है, और वह इसके लिए पूरी तरह से तैयार है।
आगे ज़ारी है.........
अब आगे दिल से देखें की आगे सफ़र में क्या-क्या होगा....?
अगला अध्याय:- नए सफ़र की शुरुआत...