अजीब-सी शुरुआत - भाग 4 Abhishek Chaturvedi द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अजीब-सी शुरुआत - भाग 4

अध्याय 4: अंतिम अनुष्ठान**

राजवीर का दिल तेजी से धड़क रहा था। वह समझ नहीं पा रहा था कि अचानक क्या हो गया। ताबीज की शक्ति ने पूरे कक्ष को अपनी गिरफ्त में ले लिया था, और पुजारी के मंत्र भी अब उसकी शक्ति को नियंत्रित करने में नाकाम हो रहे थे। 

कक्ष में अंधकार इतना घना हो गया था कि हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था। तभी, राजवीर ने महसूस किया कि उसके आसपास कोई अदृश्य उपस्थिति है। यह उपस्थिति पहले की तरह केवल हवा में घुली हुई नहीं थी, बल्कि अब वह महसूस कर सकता था कि वह उसके बेहद करीब है।

पुजारी ने अपनी आवाज़ ऊँची करते हुए कहा, "यह ताबीज साधारण नहीं है, यह किसी बहुत बड़ी शक्ति का प्रतीक है। इसे निष्क्रिय करने के लिए हमें तंत्र-मंत्र के साथ ही आत्मबल की भी आवश्यकता होगी।"

राजवीर ने खुद को संभालते हुए कहा, "तो हमें क्या करना होगा?"

पुजारी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "तुम्हें अपने भीतर की शक्ति को जागृत करना होगा। ताबीज तुम्हें भटका सकता है, तुम्हें भयभीत कर सकता है, लेकिन अगर तुमने हिम्मत बनाए रखी, तो तुम इसे नियंत्रित कर सकते हो।"

राजवीर ने पुजारी की बातों को ध्यान से सुना और अपने भीतर एक दृढ़ निश्चय का संचार किया। उसने महसूस किया कि उसे इस ताबीज के भय से ऊपर उठना होगा। यह ताबीज जितना शक्तिशाली था, उतना ही उसके मन को कमजोर करने की कोशिश कर रहा था।

पुजारी ने राजवीर से कहा, "तुम्हें अपने भीतर के डर को जीतना होगा। तुम्हारे मन की शक्ति ही इस ताबीज की शक्ति को नियंत्रित कर सकती है।"

राजवीर ने अपनी आँखें बंद कीं और अपने मन को शांत करने की कोशिश की। उसे अचानक याद आया कि जब वह बच्चा था, तब उसकी दादी उसे एक मंत्र सिखाया करती थीं, जो उसे भय से लड़ने में मदद करता था। वह मंत्र उसे अब याद आ रहा था। 

राजवीर ने धीरे-धीरे उस मंत्र का जाप करना शुरू किया। हर शब्द के साथ वह अपने मन की शांति को महसूस करने लगा। अंधकार धीरे-धीरे कम होने लगा और ताबीज की चमक भी मंद पड़ने लगी। 

पुजारी ने भी अपने मंत्रों को और तेज कर दिया। दोनों के मंत्रों की संयुक्त शक्ति ने पूरे कक्ष को गूंजा दिया। ताबीज की चमक अब धीरे-धीरे मद्धम पड़ने लगी और कक्ष में अंधेरा हटकर रोशनी फैलने लगी। 

कुछ ही क्षणों में, ताबीज ने एक तेज चमक छोड़ी और फिर अचानक शांत हो गया। कक्ष में अब पूर्ण शांति थी, और ताबीज अब एक साधारण पत्थर की तरह दिख रहा था। राजवीर ने महसूस किया कि उसके कंधे से एक भारी बोझ उतर गया है।

पुजारी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "तुमने कर दिखाया, राजवीर। तुमने ताबीज की शक्ति को नियंत्रित कर लिया।"

राजवीर ने ताबीज को देखा, और उसे अब वह साधारण लगने लगा था। लेकिन उसे इस बात का अहसास हो गया था कि यह ताबीज किसी साधारण चीज का प्रतीक नहीं था। इसके पीछे एक गहरा रहस्य छिपा हुआ था, जिसे जानने के लिए अब वह पूरी तरह तैयार था।

"अब क्या करना है, पुजारी जी?" राजवीर ने पूछा।

पुजारी ने मुस्कराते हुए कहा, "अब तुम्हें इस ताबीज को वहीं लौटाना होगा, जहां से यह आया है। हवेली में उस जगह पर इसे वापस रखना होगा, जहां से तुमने इसे उठाया था। तभी यह पूरी तरह से निष्क्रिय हो पाएगा।"

राजवीर ने सिर हिलाया। वह अब पूरी तरह से समझ चुका था कि यह यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है। उसे वापस हवेली में जाना होगा, लेकिन इस बार वह अपने डर को पीछे छोड़ चुका था। 

पुजारी ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा, "याद रखना, राजवीर। इस ताबीज के साथ खेलना आसान नहीं है। लेकिन अब तुमने इसे समझ लिया है। इसे वापस करने के बाद, तुम्हें इसके बारे में और भी गहराई से जानने की कोशिश करनी होगी। तुम्हारे सामने कई और चुनौतियाँ आएंगी, लेकिन अब तुम तैयार हो।"

राजवीर ने ताबीज को अपने पास रखा और मंदिर से बाहर निकल आया। बाहर निकलते ही उसने देखा कि सूरज की किरणें धीरे-धीरे फूटने लगी थीं। यह एक नया दिन था, और उसके जीवन में भी एक नया अध्याय शुरू होने वाला था।

राजवीर अब हवेली की ओर लौटने के लिए तैयार था, लेकिन इस बार वह अकेला नहीं था। वह अपने साथ पुजारी के ज्ञान, अपने आत्मबल और उस रहस्यमयी ताबीज को लेकर जा रहा था। 

क्या राजवीर ताबीज को वापस रखकर उस रहस्य को पूरी तरह से सुलझा पाएगा? या फिर हवेली में उसके सामने और भी बड़े रहस्य खड़े होंगे? 


आगे जारी है......
अब आगे अगले भाग में पढ़ें की क्या होगा जब......
"सत्य का सामना"