सन्यासी -- भाग - 30 Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सन्यासी -- भाग - 30

जयन्त उस वक्त तो वहाँ से चला गया लेकिन उसके मन में कुछ और ही चल रहा था,वो सुहासिनी की जिन्दगी ऐसे बरबाद नहीं होने दे सकता था,उसके मन में जो चल रहा था,उसके लिए वो योजना बना रहा था और फिर वो अपनी योजना को सफल बनाने के प्रयास में जुट गया....     और इसके लिए वो डाक्टर अरुण की क्लीनिक पहुँचा उनसे मिलने के लिए,जयन्त को अपने सामने खड़ा देखकर डाक्टर अरुण एक पल को घबरा गए,तब जयन्त ने उनके घबराए हुए चेहरे को देखकर उनसे कहा...."घबराए नहीं डाक्टर साहब! मैं आपकी क्लास लेने नहीं आया हूँ,मैं तो बस आपको आगाह करने आया हूँ कि सुहासिनी का ब्याह तय हो चुका है","ओह...तब तो वो बहुत परेशान होगी",डाक्टर अरुण बोले...."हाँ! बेचारी दिनभर रोती रहती है,ना खाती है ना पीती है",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा...."ऐसे तो उसकी तबियत बिगड़ जाऐगी",डाक्टर अरुण ने चिन्तित होकर कहा..."अब उसकी तबियत बिगड़े या तो वो रो रोकर अपना बुरा हाल कर ले,मेरे घरवालों ने तो अब उसे जहन्नुम भेजने का फैसला कर लिया है",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."मुझे आपके परिवार से ऐसी आशा बिलकुल भी नहीं थी,सोचा था कि आप सभी शिक्षित हैं,सम्पन्न है तो शायद आप लोग जाति पाँति जैसी चींज को नहीं मानते होगें,लेकिन आपका परिवार तो बहुत ही रुढ़िवादी और संकुचित सोच वाला निकला",डाक्टर अरुण जयन्त से बोले..."डाक्टर साहब! आप विलायत हो आएँ हैं, शायद इसलिए आपकी सोच बदल गई है,यदि आप भी इसी परिवेश में रहते होते तो आपकी सोच भी मेरे परिवार वालों की तरह ही हो जाती",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा...."लेकिन जयन्त बाबू! आप तो विलायत नहीं गए,आप तो हमेशा से इसी परिवेश में पले बढ़े हैं तो फिर आपकी सोच तो संकुचित नहीं है",डाक्टर अरुण ने जयन्त से सवाल किया...."वो क्या है ना! डाक्टर साहब! मैं अपने घर और समाज में एक अपवाद की भाँति हूँ,मेरी सोच और लोगों की सोच से मेल नहीं खाती,इसलिए शायद मैं किसी का भी चहेता नहीं हूँ,मेरी बातों से सभी चिढ़ते हैं,मैं हमेशा बिना स्वार्थ के दूसरों की भलाई के बारें में सोचता हूँ और इस बात से मुझे कोई फरक भी नहीं पड़ता कि ये जमाना मेरे बारें में क्या सोचता है,मैं बस वही करता हूँ जो मेरी अन्तरात्मा कहती है",जयन्त बोला..."तो इस वक्त आपकी अन्तरात्मा क्या कह रही है",डाक्टर अरुण ने जयन्त से पूछा...."इस वक्त मेरी अन्तरात्मा ये कह रही है कि मुझे आपकी और सुहासिनी की मदद करनी चाहिए", जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."सच में! आप मेरी मदद करेगें",डाक्टर अरुण ने खुशी जाहिर करते हुए कहा..."हाँ! क्यों कि अगर मैंने आपकी और सुहासिनी की मदद नहीं की तो मैं खुद को कभी माँफ नहीं कर पाऊँगा" ,जयन्त ने कहा...."यदि आप हम दोनों की मदद करना चाहते हैं तो इसके लिए आपने कोई रास्ता भी सूझा होगा", डाक्टर अरुण ने जयन्त से पूछा...."हाँ! सूझा तो है,लेकिन इसके लिए आपको भी मेरा साथ देना होगा",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा...."हाँ! मैं सुहासिनी के लिए कुछ भी कर सकता हूँ,लेकिन मुझे करना क्या होगा?",डाक्टर अरुण जयन्त से बोले..."जासूसी", जयन्त बोला..."जासूसी....मगर किसकी?",डाक्टर अरुण ने पूछा...."उस लड़के की जिससे सुहासिनी का ब्याह होने वाला है",जयन्त ने कहा..."वो भला क्यों? उस लडके की जासूसी करने से भला क्या हासिल होगा मुझे",डाक्टर अरुण बोले...."डाक्टर साहब! आप सवाल बहुत करते हैं",जयन्त खींझते हुए बोला...."माँफ कीजिए...अब कोई सवाल ना करूँगा,अब आप आगें की योजना कहें",डाक्टर अरुण बोले...तब जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा...."लड़के की जासूसी करने पर ही तो पता चलेगा कि वो कैंसा है,मैंने तो सुना है कि वो सुहासिनी से उम्र में बड़ा है और मुझे तो ऐसा लग रहा है कि वो पैसों के लालच में ही सुहासिनी से शादी कर रहा है,अगर इतना ही काबिल होता तो इस उम्र तक बिन ब्याहा ना बैठा होता,इसलिए हम दोनों अपना अपना वेष बदलकर उन लोगों के घर जाकर उस लड़के की जासूसी करेगें",जयन्त ने अरुण से कहा..."मैं तैयार हूंँ तो फिर कब चलना है,उस लड़के के घर?",डाक्टर अरुण ने जयन्त से पूछा..."अभी भी मामला अधर में लटका हुआ है डाक्टर साहब!,वो इसलिए कि अभी मुझे लड़के के घर का पता ठिकाना नहीं मालूम, मैंने उस रिश्ते में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखाई तो किसी ने मुझे बताया ही नहीं कि वो लड़का कहाँ रहता है",जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."तो फिर अब क्या होगा?",डाक्टर अरुण ने जयन्त से पूछा..."फिकर मत कीजिए,बड़ी भाभी सुरबाला को सब मालूम होगा,मैं उन्हीं से पूछकर ही सारी योजना बनाकर आपके पास आता हूँ,रात को आठ बजे बोरिया बिस्तर बाँधकर तैयार रहिएगा,रात भर सफर करके सुबह उसी लडके के गाँव में डेरा डालेगें",जयन्त ने अरुण से कहा..."जी! बहुत अच्छा! मैं आठ बजे तैयार रहूँगा",डाक्टर अरुण बोले...तब जयन्त डाक्टर अरुण से बोला..."और सुनिए ये आपका सूट बूट वहाँ नहीं चलेगा,वहाँ आपको एक गरीब मजदूर का चरित्र निभाना है,तो इसलिए धोती,बण्डी और एक गमछे का इन्तजाम कर लीजिएगा और अगर आप इन सबका इन्तजाम नहीं कर सकते तो मुझे बता दीजिए,मैं अपने साथ ये सब लेता आऊँगा और याद रहे कुछ भी नया नहीं चलेगा कि आप अभी उन्हें खरीदने बाजार चले जाएँ","ठीक है,मैं ये सब चींजे अपने माली काका से माँग लूँगा",डाक्टर अरुण बोले...."ये हुई ना बात,मैं अब चलता हूँ रात को आठ बजे आपकी क्लीनिक के बाहर मिलते हैं और सुनिए मोटर और ड्राइवर आपके रहेगें,आपका ड्राइवर हम दोनों को गाँव की सीमा तक छोड़कर वापस आ जाऐगा", जयन्त ने डाक्टर अरुण से कहा..."जी! जयन्त बाबू! मैं सब कुछ तैयार करके रखूँगा",डाक्टर अरुण जयन्त से बोले..."ठीक है तो अब मैं चलता हूँ,जय रामजी की! "    फिर ऐसा कहकर जयन्त वहाँ से चला गया और डाक्टर अरुण उसे अचरज भारी निगाहों से जाते हुए देखते रहे....     जयन्त फिर घर पहुँचा और बड़े ही अच्छे मन से वो घर के भीतर गया,उसने दोपहर का खाना खाया और खाने की बहुत तारीफ की क्योंकि उस दिन का खाना उसकी बड़ी भाभी सुरबाला ने बनाया था,तब सुरबाला जयन्त से बोली..."क्या बात है छोटे देवर जी! आज आपका मूड तो बड़ा अच्छा है?","हाँ! भाभी! सोचता हूँ कि मैं दो चार रोज के लिए हरिद्वार चला जाऊँ,शायद वहाँ जाकर मुझे कुछ सद्-बुद्धि आ जाएँ",जयन्त ने सुरबाला से कहा..."ये भी आपने खूब कही देवर जी! सद्-बुद्धि की तो आपको बहुत जरूरत है,लेकिन सुहासिनी के ब्याह तक तो लौट आऐगें ना",सुरबाला ने जयन्त से पूछा..."हाँ! तब तक तो वापस आ जाऊँगा",जयन्त सुरबाला से बोला.."क्योंकि अब तो विवाह-पत्रिकाएँ(शादी का कार्ड) भी छपकर आ चुकी हैं", सुरबाला बोली....   तब जयन्त का दिमाग़ दौड़ और उसने सोचा अब तो सुरबाला भाभी से लड़के का पता ठिकाना पूछने की भी जरूरत नहीं है,शादी के कार्ड में ही सब कुछ मिल जाऐगा और इसलिए उसने सुरबाला से कहा...."जरा! मैं भी तो विवाह-पत्रिका देखूँ कि कैसीं है वो",और फिर जयन्त के कहने पर सुरबाला विवाह पत्रिका ले आई और जयन्त उसे देखने लगा,फिर वो उसे अपनी जेब में रखकर अपने कमरे की ओर चला गया.....

क्रमशः.....

सरोज वर्मा....