सन्यासी -- भाग - 10 Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सन्यासी -- भाग - 10

और उधर घर पर आज नलिनी को उसकी बहूओं ने कोई भी काम नहीं करने दिया,इसलिए आज नलिनी का पूरा दिन बड़ा ही आलस भरा बीता,जब जयन्त काँलेज से घर आया तो सबसे पहले वो नलिनी का हाल चाल लेने उसके कमरे पहुँचा,तब नलिनी उससे बोली...
"आज तो मैं बैठे बैठे ही थक गई,अगर मैं दो तीन दिन यूँ ही फुरसत से बैठी रही तो बिलकुल से पागल ही हो जाऊँगीं"
"माँ! अब तुम्हारी उम्र काम करने की नहीं आराम करने की है,इसलिए तुम केवल आराम ही किया करो", जयन्त नलिनी से बोला...
"बेटा! मुझे आराम करने की आदत नहीं है,मैं अपनी माँ के यहाँ भी बड़ी थी तो वहाँ मैंने बहुत काम किया और फिर ब्याहकर इस घर आई तो यहाँ भी सास ने साँस नहीं लेने दी,बस इसलिए काम करने की आदत पड़ गई,अब तो मुझसे चैन से नहीं बैठा जाता",नलिनी बोली...
"अब आदत डाल लो चैन से बैठने की",जयन्त बोला...
"मुझसे तो ना बैठा जाऐगा",नलिनी परेशान होकर बोली...
"अच्छा! ठीक है! डाक्टर साहब आऐगें ना आज,तुम्हारे हाथ की पट्टी बदलने",जयन्त ने पूछा...
"कह तो रहे थे कि शाम को आऐगें",नलिनी बोली...
"ठीक है,जब वे आएँ तो मुझे जगा लेना,क्योंकि मैं सोने जा रहा हूँ,बहुत नींद आ रही है मुझे",
और ऐसा कहकर जयन्त अपने कमरे में चला गया,फिर जब शाम को डाक्टर साहब आएँ तो जयन्त को जगा लिया गया,जयन्त ने डाक्टर साहब से मुलाकात की और पूछा कि उसकी माँ के हाथ की चोट अब कैंसी है तो डाक्टर साहब ने कहा कि अब बेहतर है,फिर डाक्टर साहब ने नलिनी के हाथ की पट्टी बदली और वे चले गए....
अभी शाम ही हुई थी,रात ज्यादा गहराई नहीं थी कि दरवाजे पर किसी ने जोर की दस्तक देते हुए कहा...
"मालकिन...मालकिन...जल्दी से दरवाजा खोल देव"
जयन्त महरी की आवाज़ सुनकर समझ गया था कि वो धनिया है,शाम के जूठे बरतन धोने आई होगी, लेकिन आज तक उसने कभी भी ऐसे दरवाजा नहीं खटखटाया,इसलिए यही सब सोचकर जयन्त ने जल्दी से जाकर दरवाजा खोला,दरवाजा खोलते ही धनिया जयन्त के पैरों पर गिर पड़ी और उससे बोली...
"हमें बचाई लेव छोटे बाबू! हमार भरतार हमें मारे खीतिर पीछे पड़ा है",
"लेकिन क्यों,वो तुम्हें क्यों मारना चाहता है",जयन्त ने पूछा...
"अब हम तुम्हें का बताई छोटे बाबू! पिऐ खीतिर रुपया माँगत रहा है,हम नाहीं दिए तो मार पीट पर उतारू हुई गए, लठ्ठ लइके हमार पीछे पड़े हैं और हम भाग के इहाँ आ गए",धनिया रोते हुए बोली...
"तुम उसके माँ बाप से कुछ क्यों नहीं कहती",जयन्त बोला...
"ससुर नाहीं हैं,सास तो और चण्डाल ही हमार,हमारे भरतार से कहत रही कि ई पइसा ना दे तो बेच दे इहका",धनिया रोते हुए बोली...
"और तुम्हारे माँ बाप कहाँ हैं",जयन्त ने पूछा...
"हम अनाथ हैं छोटे बाबू! मामा माई पालपोस के ब्याह कर दिए बस उनकी जिम्मेदारी खतम",धनिया बोली...
"तुम पुलिस के पास क्यों नहीं जाती",जयन्त ने कहा...
"छोटे बाबू! तुम्हें का लागत है कि इतना सरल है पुलिस के पास जाना,अगर हम पुलिस के पास गए तो हमार भरतार हमार खाल उधेड़ देई, ऊपर से हम अपन बिटिया का मुँह देख के रहि जात हैं कि कहाँ जइबे उहका लइके,ऊ घर के सिवाय और कौन्हों ठिकाना नाहीं है हमार",धनिया रोते हुए बोली....
धनिया अभी अपना दुखड़ा जयन्त से रो ही रही थी कि तभी नलिनी घर से निकलकर बाहर आकर बोली...
"क्या हुआ ,तुम दोनों बाहर क्यों खड़े हो?"
"अब का बताई मालकिन! हमार तो किस्मत फूट गई है,इन तान का मड़ई हमार पल्ले पड़ा है कि जन्दगी नरक बन गई है,जब देखो तब दारु, जुआँ और मारपीट,तंग आ गए हैं हम तो अपन जन्दगी से",धनिया रोते हुए नलिनी से बोली...
"फिर से मारा क्या उसने तुझे",नलिनी ने पूछा...
"नाहीं मार पाएँ,हम घर से भाग के इहाँ आ गए",धनिया बोली...
"कोई बात नहीं,चल भीतर आजा,जो कहना है भीतर आके कह,नहीं तो अगर पड़ोसियों ने देख लिया तो बात का बतंगड़ बना देगें",नलिनी ने धनिया से कहा...
और फिर धनिया ने भीतर आकर अपनी रामकहानी सुनाई,वो थोड़ी देर रोती रही फिर सबसे बोली...
"चलो! हम बरतन धो लेते हैं,जे सब तो लगई रहत है जन्दगी मा",
इसके बाद उसने जूठे बरतन धुले और काम निपटाकर वो अपने घर चली गई और जब वो दूसरे दिन सुबह काम पर आई तो उसके शरीर में जगह जगह पर चोटों के निशान थे,उसके पति ने रात में उसे बहुत पीटा था, लेकिन उसकी चोट देखकर उससे किसी ने कुछ पूछा नहीं क्योंकि सभी को पता था कि उसके साथ क्या हुआ है....
लेकिन ये सब जयन्त को बरदाश्त नहीं था और उसने धनिया से उसके घर का पता पूछा,क्योंकि वो उसके घर जाकर उसके पति को सुधारना चाहता था,तब नलिनी ने जयन्त से कहा....
"पति पत्नी का आपसी झगड़ा है,तू क्यों बीच में पड़ता है,वो दोनों आपस में निपट लेगें",
"आपस में निपट लेगें.....क्या मतलब है कि वो दोनों आपस में निपट लेगें,ये तुम क्या कह रही हो माँ!,एक औरत होकर तुम धनिया का दुख नहीं समझ सकती,तुम्हें उसके चोटों के निशान दिखाई नहीं दे रहे हैं क्या, जानवरों की तरह पीटा गया है इसे,इसका पति मुझे मिल जाएँ ना तो मैं उसकी हड्डी पसली तोड़कर रख दूँ", जयन्त चीखा....
"बेटा! दूसरों के मामलों में अपनी टाँग नहीं घुसाया करते,तू उसके पति को कुछ कहेगा तो कल को उसके पति ने हमारे दरवाजे पर आकर कोई तमाशा खड़ा कर दिया तो फिर क्या होगा, तब तो हमारी इज्जत मिट्टी में मिल जाऐगी" नलिनी जयन्त से बोली....
"माँ! तुम किस इज्ज़त की बात कर रही हो,तब तुम्हें अपनी इज्ज़त का ख्याल नहीं आता जब तुम्हारा मँझला बेटा उस वेश्या मुन्नीबाई के पास पड़ा रहता है और तब तुम्हारे मुँह से एक भी बोल नहीं निकलते कि अपने बेटे को जरा समझा लो",जयन्त गुस्से से बोला...
"देख! अब तू अपनी हद पार कर रहा है",नलिनी गुस्से से बोली...
"तुम भी बाबूजी से कम थोड़े ही हो,जो तुम सालों से चुप रही हो ना तो ये उसी का नतीजा है,तुम्हारी चुप्पी ने ही घर का ऐसा हाल बना दिया है",जयन्त गुस्से से बोला...
"हाँ....मैंने चुप्पी साध रखी है,नहीं जा सकती मैं उनके खिलाफ",नलिनी गुस्से से बोली....
"मैं तुम्हें उनके खिलाफ नहीं, गलत के खिलाफ जाने को कह रहा हूँ माँ!..... तुम मेरी बात समझती क्यों नहीं", जयन्त बोला...
तब नलिनी गुस्से से बोली....
"नहीं समझना मुझे कुछ भी, तू मुझे कुछ भी समझाने की कोशिश मत कर,मैं नहीं बदल सकती,तू एक साठ साल की औरत से कैंसी उम्मीद करता है,वो औरत जो कभी भी अपने परिवार और समाज के उसूलों के खिलाफ नहीं गई,वो तेरे कहने से समाज के सारे कायदे तोड़ दे, मुझे जीवन भर मायके और ससुराल में यही समझाया गया है जयन्त! कि मेरा पति मेरा परमेश्वर है और मुझे कभी भी उसके सामने अपनी जुबान नहीं खोलनी है, तो मैं वही तो कर रही हूँ"
"तो पूजती रहो अपने परमेश्वर को,लेकिन मुझसे तो ये सब नहीं देखा जाऐगा,जाओ सब भाड़ में मुझे क्या लेना देना"
और ऐसा कहकर जयन्त अपने कमरे में चला गया,जयन्त के जाते ही धनिया नलिनी से बोली...
"मालकिन! हमरी खातिर तुम छोटे बाबू से बहसबाजी ना करो,हमार मामला है तो हम निपट लेगें"
और फिर इतना कहने के बाद धनिया ने बाक़ी का काम निपटाया और अपने घर चली गई,लेकिन शाम को वो काम पर नहीं आई तो सुरबाला और गोपाली को जूठे बरतन धोने पड़े,फिर दूसरे दिन सुबह जब दूधवाला दूध देने आया तो उसने सबको बताया कि कल रात धनिया ने अपनी बच्ची के साथ कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी,ये खबर सुनकर सभी दंग रह गए....
ये खबर सुनकर अब जयन्त के गुस्से का पार ना था और वो अपनी माँ नलिनी से बोला....
"माँ! अगर कल तुम मुझे धनिया के घर जाने देती तो आज वो जिन्दा होती"
लेकिन अब नलिनी भी क्या जवाब देती,अब उसके हाथ में कुछ भी नहीं रह गया था,सिवाय अफसोस....

क्रमशः....
सरोज वर्मा...