अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 48 रितेश एम. भटनागर... शब्दकार द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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अर्धांगिनी-अपरिभाषित प्रेम... - एपिसोड 48

हंसी खुशी दो दिन बीतने के बाद यानि चौथी के दिन पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि पग फेरे कराने के लिये मैत्री को लेने कानपुर उसकी ससुराल आ गये, आज चूंकि मैत्री को लखनऊ जाना था और मेहमान आ रहे थे इसलिये जतिन भी ऑफिस नही गया था...


घर मे आने के बाद जहां एक तरफ राजेश समेत सभी मेहमानो ने बबिता और विजय के पैर छूकर आशीर्वाद लिया वहीं दूसरी तरफ बबिता, विजय और जतिन ने भी बहुत ही हर्षित तरीके से सारे मेहमानो का स्वागत किया.... मेहमानो के घर मे आने के बाद सब लोग खुश होकर एक दूसरे के हालचाल ले ही रहे थे कि तभी राजेश ने जतिन से कहा- मैत्री कहीं दिखाई नही दे रही है....


जतिन ने जवाब दिया- वो सुबह से ही आप सबके लिये खाने पीने की तैयारी मे लगी है... रसोई मे है, शायद उसे पता नही चला कि आप लोग आ गये हैं.... रुकिये मै बुलाता हूं...


जतिन को रोकते हुये राजेश ने कहा- जतिन भाई मै जाकर बुलाता हूं...


राजेश के कहने पर जतिन ने कहा - हां ये ठीक रहेगा, तुम्हे अचानक से देखकर मैत्री को अच्छा लगेगा... 


इसके बाद राजेश किचेन के दरवाजे तक गया और बड़े प्यार से उसने मैत्री को आवाज लगायी- मैतू.....!!


राजेश की आवाज सुनकर किचेन मे काम कर रही मैत्री चौंक गयी और बहुत जादा खुश होते हुये बाहर आयी और "भइया" बोलते हुये राजेश के सीने से लग गयी...


राजेश भी खुश होते हुये बोला- अल्ले मेली गुड़िया... कैसी है बेटा...


मैत्री ने कहा- मै अच्छी हूं भइया... भाभी नही आयीं क्या...??

राजेश ने कहा- आई है ना, सब लोग आये हैं... सब बाहर हैं...


इसके बाद मैत्री खुश होते हुए तेज तेज कदमो से चलकर ड्राइंगरूम मे आयी और नेहा को देखकर बहुत खुश होते हुये उसके पास गई और "भाभी" बोलकर उसके गले लग गयी..


मैत्री के गले लगने पर नेहा भी खुश होते हुये बोली- अह्हा... दीदी... क्या बात है... जतिन भइया जी के प्यार का रंग आपके चेहरे पर साफ साफ दिख रहा है....


नेहा की बात सुनकर मैत्री शर्मा गयी... इसके बाद वो सुरभि से भी इसी गर्मजोशी से मिली तो सुरभि ने कहा- नेहा दीदी सही कह रही हैं दीदी... बिल्कुल ताजे ताजे फूल की तरह खिली हुयी सी लग रही हो आप... 


अपनी दोनो भाभियो से अपनी तारीफ सुनकर मैत्री शर्मायी हुयी सी हंसी हंसने लगी.... इसके बाद अपने छोटे भाई सुनील के पास जाकर मैत्री ने जब उससे नमस्ते करी तो सुनील ने भी बड़े प्यार से मुस्कुराते हुये मैत्री के सिर पर हाथ फेर दिया.... 


ऐसे ही सब लोगो के बीच बाते होती रहीं और हंसी मजाक के बीच लंच करने के बाद जब मैत्री को मायके भेजने की बारी आयी तो जतिन ने मैत्री से कहा- मैत्री जरा दो मिनट सुनना... 


ऐसा कहकर जतिन अपने कमरे मे चला गया और उसके बुलाने पर मैत्री भी उसके पीछे पीछे कमरे मे चली गयी... कमरे मे जाने के बाद जतिन ने अपनी जेब मे हाथ डालकर उसमे से कुछ पैसे निकाले और मैत्री को वो पैसे देते हुये कहा- मैत्री ये कुछ पैसे हैं, ये अपने पास रखो... और खर्च करने मे बिल्कुल भी मत हिचकना, ये पैसे तो क्या मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है.... 


ऐसा कहकर जतिन मुस्कुराने लगा.... मैत्री ने वो पैसे जतिन से लेते हुये कहा- आप अपना ध्यान रखियेगा जी... 


जतिन ने मुस्कुराते हुये कहा- हां... और तुम भी अपना ध्यान रखना... गर्मी बहुत बढ़ रही है तो दोपहर मे घर पर ही रहना.... 


जतिन की इस बात पर मैत्री हल्का सा हंसी और हंसते हुये बोली- जी सिर्फ दो दिन के लिये ही तो जा रही हूं... इतनी चिंता मत करिये, मै कहीं जाउंगी ही नही.. आप प्लीज अपना ध्यान रखियेगा क्योकि आपको तो जाना ही होता है बाहर.... 

जतिन ने बड़े प्यार से कहा- हां मै भी अपना ध्यान रखूंगा... 


एक दूसरे से बात करके जतिन और मैत्री अपने कमरे से बाहर आ गये... इसके बाद जतिन की मम्मी बबिता ने राजेश, सुनील, नेहा और सुरभि चारो का टीका किया और दोनो बहुओ को एक एक साड़ी और राजेश और सुनील को पैंट शर्ट के कपड़े के साथ मिठाई का डिब्बा देकर घर से बड़े ही प्यार और सम्मान के साथ विदा कर दिया... जहां एक तरफ मैत्री के जाने के बाद घर एकदम सूना सूना हो गया था वहीं दूसरी तरफ सबसे हंसी मजाक और बाते करते करते कानपुर से लखनऊ तक का रास्ता कब कट गया मैत्री को पता ही नही चला, लखनऊ पंहुच कर राजेश की कार घर के पास बनी मेनरोड से जब अंदर घर की तरफ मुड़ी तो राजेश ने कार अपने घर की तरफ ले ली... राजेश के घर की तरफ कार मुड़ने पर मैत्री ने धीरे से राजेश से कहा- भइया पहले घर की तरफ चले चलते मम्मी पापा से मिलने का बहुत मन हो रहा है.... 


असल मे मेनरोड से मुड़ते ही अंदर की तरफ दो रास्ते थे... एक बांयी तरफ  एक दांयी तरफ... बांयी तरफ वाले रास्ते से जाने पर जगदीश प्रसाद का घर आता था और दायीं तरफ उनका पुश्तैनी मकान... जिसमे मैत्री के चाचा का परिवार रहता था यानि राजेश का घर... इसलिये कार जब दांयी तरफ मुड़ी  तो मैत्री ने राजेश से पहले घर चलने की बात करी... मैत्री की बात का जवाब देते हुये राजेश ने कहा - ताऊ जी ताई जी के पास ही चल रहे हैं... चिंता मत कर... 


मैत्री ने कहा- पर हमारा घर तो उस तरफ है... 

मैत्री की बात सुनकर राजेश ने हंसते हुये कहा- हां जानता हूं... लेकिन उस दिन तेरे विदा होकर कानपुर जाने के बाद हम सब ताऊ जी और ताई जी को अपने साथ ले आये थे क्योकि हम मे से कोई नही चाहता कि ताऊ जी और ताई जी तेरे ससुराल जाने के बाद अकेले उस घर मे रहें, जब भरा पूरा परिवार नजदीक ही है तो अकेले रहने का क्या फायदा... और फिर ताऊ जी की तबियत अभी कुछ दिन पहले ही खराब होकर हटी है ऐसे मे हम नही चाहते कि उन्हे इस उम्र मे अकेला छोड़ें, यहां रहेंगे सबके बीच तो हम सब उनका अच्छे से ध्यान रख पायेंगे... 


राजेश की ये बात सुनकर मैत्री बहुत खुश हुयी और खुश होते हुये बोली- आपने मेरी बहुत बड़ी उलझन खतम कर दी भइया, मुझे भी हर समय यही चिंता लगी रहती थी कि मम्मी पापा अकेले हो गये हैं.... थैंक्यू सो मच भइया..!! 


मैत्री की बात सुनकर नेहा बोली- इसमे थैंक्यू की कोई बात नही है दीदी, ताऊ जी और ताई जी ने हमेशा हमे प्यार दिया कभी भेद नही किया... तो ये तो हम सबका फर्ज था.... 


नेहा की बात सुनकर मैत्री ने खुश होते हुये राहत की सांस ली... इसके बाद सारे लोग घर पंहुच गये... कार के रुकते ही अपने मम्मी पापा से मिलने के लिये बेहद व्याकुल मैत्री कार से उतरी और तेज तेज कदमों से चलकर घर के अन्दर चली गयी, मैत्री ने अंदर जाकर देखा कि उसके पापा जगदीश प्रसाद बाहर के कमरे मे ही बैठे टीवी देख रहे हैं... उन्हे देखकर मैत्री ने खुशी मे भावुक होते हुये आवाज लगायी- पापा...!! 


मैत्री का आवाज सुनकर ऐसे जैसे मैत्री के आने के इंतजार मे जगदीश प्रसाद आधे हुये जा रहे थे... एकदम से दरवाजे की तरफ पलटे और खुश होकर हड़बड़ाते से मैत्री को देखते हुये बोले- अरे मेरा लाल आ गया.... (मैत्री की तरफ दोनो हाथ फैलाये हुये बढ़ते वो बोले) अरे मेरा बच्चा आ गया.... (मैत्री को देखकर वो इतना खुश हुये कि वो रोने लगे और उसे अपने गले से लगाते हुये बोले) मेरी गुड़िया मेरी बच्ची... चार दिनो मे ही तुझे देखने के लिये आंखे तरस गयी थीं... 


मैत्री भी रोते हुये बोली- पापा मुझे भी बहुत चिंता हो रही थी आप दोनो की लेकिन राजेश भइया ने रास्ते मे बताया कि वो आपको यहां ले आये हैं तब मुझे सुकून मिला.... आप रोइये मत पापा प्लीज.... ( बहुत प्यार से अपने पापा जगदीश प्रसाद के आंसू पोंछते हुये मैत्री ने कहा) पापा... मम्मा कहां हैं...?? 


"मै यहां हूं बेटा" मैत्री को देखकर बहुत भावुक हुयीं सरोज ने कहा... 


इसके बाद मैत्री अपनी मम्मी के पास गयी और उन्हे गले लगाते हुये रुंधे हुये गले से बोली- मम्मा आपकी बहुत याद आती है लेकिन कानपुर मे मम्मी जी का व्यवहार बिल्कुल आपके जैसा है.... वो सब लोग बहुत अच्छे हैं और मै बहुत खुश हूं प्लीज आप मत रोना... 


अपनी मम्मी सरोज ने रोने के लिये मना करते करते मैत्री खुद रोने लगी तो उसके आंसू पोंछते हुये सरोज ने कहा- मै जानती हूं बेटा वो लोग बहुत अच्छे, सच्चे, जिम्मेदार और ईमानदार लोग हैं.... इसीलिये हमे बस तेरी याद आती थी लेकिन कहीं ना कहीं एक सुकून भी था कि इतने कष्ट सहने के बाद हमारी बच्ची को इतना अच्छा परिवार मिल गया....


अपनी मम्मी से बात करने के बाद मैत्री अपने चाचा चाची से मिली और उन दोनो ने भी उसको बहुत प्यार करके उसके सिर पर हाथ रखकर उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद दिया... मैत्री के आने से घर का माहौल एकदम से बदल गया... सब बहुत खुश थे.... 


क्रमशः