कुछ सवाल खुद से ArUu द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

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कुछ सवाल खुद से

कुछ लोग या कहूं भारत में अधिकांश लोग ये कहते हुए बहुत गर्व महसूस करते है की हम हिंदू है ।
उनसे जब हिंदू का अर्थ पूछे तो वो कहेंगे भाई हम तो हिंदू है बस। कुछ लोग तो घनघोर बगावत कर जाते है...कहते है की हम बचाएंगे धर्म को। जब उनसे पूछा जाए कैसे तो उनके पास शब्द नहीं होते । मैं कहती हूं जो चीज शास्वत है उसे मिटने का डर कैसा ।
मैंने कही पढा था जो चीज शास्वत होती है उसे मिटने का भय नहीं होता।
 खतरे में धर्म है या कुछ लोगो की सोच ? 
क्या मानवता खतरे में नहीं है ?
उसे बचाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए ? धर्म से प्राचीन मानवता है जब धर्म से ज्यादा खतरे में वो है तो पहले उसे बचाया जाए ।
मानव ही नही बचेगा तो धर्म की उपासना कौन करेगा?
ये पृथ्वी जो मानव से भी ज्यादा पुरानी है उसका हम बिना सोचे समझे दोहन कर रहे
जो हमारी जीवनदाहिनी है उसे हम विनाश की और धकेलते एक पल नही सोचते। पर जब बचाने का सोचते है तो वो चीज जो खतरे मे है ही नही
मुझे नहीं समझ आता धर्म को बचाएंगे कैसे?
लड़ झगड़ कर 
दंगे कर के 
या मानवता को मार कर?
क्या धर्म को बचाने का अचूक उपाय नही है की अपने धार्मिक ग्रंथों की उपासना की जाए 
हम हिंदू है कहना क्या सच में सार्थक है हिंदू धर्म को बचाने के लिए
या बीच सड़क पर दंगे करना 
धर्म को बचाने के लिए शस्त्र सभी ने उठाए पर शास्त्र किसी ने नहीं
श्री राम को सभी जान लिए श्री कृष्ण को कोई समझ नहीं पाया 
श्रीकृष्ण ने तो धर्म की रक्षा के लिए महाभारत तक कर दी उनके ही दिए गए वक्तव्य श्रीमद् भगवद्गीता को हम कभी समझना नहीं चाहते।
हम बड़ी बाते कर लेते है हिंदुत्व को लेकर पर न हम न ही हमारे बच्चो को हिंदू धर्म के ग्रंथो से मेल जोल करवाते है। 
अंग्रेजो ने और पश्चिमी आक्रांताओं ने जब भारत पर आक्रमण किया तो सबसे पहले हमारे ग्रंथो को नष्ट करने की कोशिश की पर हम खुद को हिंदू कहते गर्व से फूले नहीं समाते पर कभी हमने ही इन ग्रंथो को खोल कर नही देखा।
फिर हम कहते है की हम बचाएंगे हिंदू धर्म 
कैसे?
इसका जवाब किसी के पास नहीं
हिंदू सनातनी अपने मंदिरों को ले कर बहुत कट्टर हो रहे इन दिनों 
वही लोग जब मंदिर जाते है तो अपने प्रसाद का कचरा प्लास्टिक भी वही छोड़ आते है।
मैं पीछले साल हरिद्वार गई थी ।हमारी अपनी सबसे पवित्र नदी जिसे हम गंगा मां कहते है उनकी दुर्दशा देख कर में चिंतन में पड़ गई ।
लोग जो वहा पाप धोने आ रहे थे जाने कितना पाप वो वहा फैला कर आ रहे थे । गंगा मां जितनी पवित्र थी उतने ही वहा आने वाले लोग दूषित।
अपने साथ लाया कचरा प्लास्टिक और यहां तक कि गंदे कपड़े जूते भी वो गंगा के घाट पर छोड़ आते है। 
इतनी गंदगी वो भी देश की सबसे पवित्र नदी के घाट पर ।धर्म के नाम पर जबरदस्त लूट मची थी वहा। वहा लूटने को पैसे नही हमारी आस्था होती है जिन्हें हम चंद कारोबारियों को सौप आते है।
फिर हम कहते है की हिंदुत्व खतरे में है।
मैं इस साल ही अमृतसर गई स्वर्ण मंदिर  
मंदिर परिसर में इतनी सफाई और अनुशासन देख कर लगा की सच में सिख समुदाय कितना प्रयत्नशील है अपने धार्मिक स्थलों और अपने धर्म को ले कर । स्वर्ण मंदिर के चारो ओर बने जल के स्वच्छ तालाब को देख कर लगा जैसे ठहरा पानी भी निर्मल हो सकता है। 
हमने तो अपना सबसे पावन बहता पानी भी दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।
हमने बस कहने मात्र में अपनी सफलता समझ ली की हम बचाएंगे हिंदू धर्म को।
क्या सच में हम हिंदू है और ऐसे करेंगे अपने धर्म की रक्षा ?
न हम कभी कोई धार्मिक ग्रंथ पढ पाते है ना अपने धार्मिक स्थलों की इज्जत कर पाते है फिर कैसे बचा पायेंगे धर्म को।
धर्म अंदर से ही टूटा हुआ है जातियों के बीच उसके बावजूद किसी को नीचा दिखाने का एक मौका नहीं चूकते है फिर कैसे गर्व करे की हम हिंदू है ।

मेरी एक सखी से बहस हो गई इस मुद्दे पर ले कर ।
वो लास्ट में एक लाइन बोली की तू बचा प्रकृति को में हिंदू धर्म को बचाती हूं।
मैंने जब उससे पूछा कैसे ?
तो मेरा सवाल बस सवाल रह गया उसका जवाब मुझे मिलता तो में उसे अपने लेख में जरूर दर्शाती।
जब हम अपने धर्म को समझ नही पा रहे धर्म को बस स्वार्थ सिद्धि और आस्था को जब अपने कारोबार का जरिया बना बैठे है तो किस बात का गर्व करे ।
जब इन तथाकथित हिंदुओं से पूछा जाए कि इन्होंने आज तक क्या कर दिया अपने धर्म को बचाने के खातिर तो इनके मुख पर एक चीर खामोशी छा जायेगी ।
मैं कभी गर्व से नही कह पाती की मैं हिंदू हूं क्योंकि मैंने आज तक ईश्वर की मौन उपासना के सिवा धर्म बचाने के लिए कुछ नही किया। पर जो गर्व कर पाते है मैं उनसे पूछना चाहती हूं की उन्होंने क्या किया ?
क्या उन्होंने कभी धार्मिक ग्रंथ पढ़े?
क्या उन्होंने कभी मां गंगा को पावन करने के लिए कोई प्रयास किया ?
क्या उन्होंने कभी अपने मंदिरों में जा कर उनकी साफ़ सफाई की ?
क्या उन्होंने कभी अपने धार्मिक स्थलों को बचाने का प्रयास किया ?
क्या उन्होंने अपनी हिंदू संस्कृति को कायम रखा है?
सिर्फ कहने मात्र से या नारेबाजी से संभव है क्या धर्म की रक्षा ?
धरातल पर भी तो कोशिश करनी पड़ेगी जो कोई नही करना चाहता 
अपने आप को हिंदू कहने वाले धड़ले से मांस का सेवन कर जाते है जबकि किसी भी हिंदू धार्मिक ग्रंथ में मांस के सेवन का जिक्र नहीं है फिर कैसे गर्व कर पाते हो । और क्यों मैं नहीं ऐसा कोई गर्व कर पाई आज तक। 
मैं जब चंडीगढ़ गई तब एक सिख साहब से जब उनकी जाति के बारे में पूछा तो उन्होंने बोला की सिंग बनने के बाद हमारे अंदर जाति प्रथा खत्म हो जाती है फिर वो एक सिख बन जाता है उसकी कोई जाति नहीं रह जाती ।
हम हिंदू तो एक ही धर्म में ऊंच नीच की धारणा बनाए बैठे है।
मैं बस एक सवाल पूछना चाहती हूं हिंदू धर्म रक्षकों से 
क्या ऋग्वेद में वर्णित कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था उचित नहीं थी ?
इसे जाति आधारित करने से हिंदू धर्म को क्या लाभ हुआ है
और क्या जातियों में विखंडित हिंदू धर्म को वो संगठित करने और बचाने का स्वप्न संजोय बैठे है ?
क्या जाति प्रथा के रहते हिंदू कभी संगठित हो पाएंगे 
क्या श्री कृष्ण या श्री राम ने कभी मानव मानव में फर्क किया? 
तो उनके आदर्शो पर चलने वाला मानव क्यों फर्क करता है?
बहुत से सवाल हैं पर इनके जवाब मिलना कठिन है। 
संसार का मुश्किल से कोई अपवाद स्वरूप ही लोग होंगे जो खुद के धर्म को नहीं मानते और उनपे गर्व नही करते पर क्या बिना इस धर्म के लिए कुछ काम किए क्या गर्व करना सार्थक है? अपने अंदर की बुराइयां खत्म किए बिना हिंदू बनना कहा संभव है।कुछ लोग मुझे ऐसे लेखन के कारण हिंदू विरोधी ही घोषित कर देते है पर क्या हमे जरूरत नहीं है खुद में झांकने की ?
आत्मा पवित्र होगी तभी तो हम हिंदू कहलाएंगे।
क्योंकि जन्म से हिंदू होना कहा बड़ी बात है कर्म से हिंदू होना बड़ी बात है जन्म तो ईश्वर की इच्छा से हुआ है हमे जन्म से पहले तो ऑप्शन मिले नही होंगे की आपको किस धर्म को चुनना है । तो कर्म से कहो की हम हिंदू है और वैदिक संस्कृति को जीवित रखो।
और रही बात मेरी तो
जब मैं खुद धरातल पर अपनी संस्कृति के लिए कुछ कर पाऊंगी
तब मैं भी गर्व से खुद को हिंदू कह पाऊंगी।
ArUu✍🏻