आई कैन सी यू - 6 Aisha Diwan Naaz द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

आई कैन सी यू - 6

अभी ग्यारह ही बजे थे। पूरे कॉलेज में छात्रों की चहल पहल थी। मौसम में थोड़ी सी गर्मी थी लेकिन ठंडी हवाएं चलने से न ज़्यादा गर्मी का एहसास था ना ठंडी का। हमारा पहला लेक्चर खत्म हुआ और मैं जल्दी से उठकर क्लास से बाहर जाने लगी। मुझे जाते देख रूमी ने आवाज़ दी :" अरे अब तुम कहां चली ?

मैंने जाते हुए मुड़कर उसे जवाब दिया :" तुम कुछ देर मेरा यहां इंतजार करो मैं बस थोड़ी देर में आती हूं! अगर सेकेंड लैक्चर के लिए सर आ जाए क्लास में तो मुझे कॉल कर देना मैं आ जाऊंगी!"

जल्दी-जल्दी में उसे जवाब देकर मैं बाहर चली गई इस इरादे से के उस सफेद साड़ी वाली को देख पाऊं तो उस से पूछूंगी की वो कौन है? मेरे दिल की बेचैनी मुझे डायरेक्टर सर के ऑफिस के बाहर तक ले गई। मैंने अपने आसपास देखा पर वह मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। मैंने खिड़की के अंदर झांक कर देखा तो डायरेक्टर सर अपनी कुर्सी पर बैठे कुछ कागज़ात पर अपना सिग्नेचर कर रहे थे। एक चपरासी उनके डेस्क के बगल में हाथ बांधकर खड़ा हुआ था। कमरे के अंदर भी मुझे वह भूतनी दिखाई नहीं दी। 

उनके ऑफिस के बाहर काफी शांति थी मतलब मुश्किल से ही कोई आता जाता था। ऑफिस के बाहर कई तरह के पौधों और फूलों के गमले रखे हुए थे। मैं वहीं खड़ी होकर अपने आप से कह रही थी कि न जाने वह चुड़ैल इस समय क्यों नहीं है शायद सुबह के वक्त नहीं रहती होगी ऐसा हो सकता है की कभी-कभी उसकी शक्तियां कमज़ोर होती है जिस वजह से वह सर के आगे पीछे नहीं कर पाती होगी।"

इसी दौरान चपरासी ऑफिस से निकल कर चला गया और मैं मुफ़्त की जासूस बनकर वहां खड़ी अपने आप में केस सुलझाने की कोशिश कर रही थी के डॉयरेक्टर सर भी बाहर आ गए। मुझे अपने दरवाज़े के बाहर देख कर उनके कदम रुक गए। जैसे ही मेरी नज़र उन पर पड़ी मेरा दिल ज़ोर से फड़फड़ाने लगा। वैसे तो मैं किसी से नहीं डरती पर इनके बारे में सुनने के बाद मुझे इस बात का डर था कि कहीं वो मुझे डांट ना दे और मैं किसी की डांट सुनकर चुप नहीं रह सकती अगर कोई मुझे बिना वजह डांट देता है तो मुझे सामने वाले से डबल गुस्सा आ जाता है फिर मुझे भी नहीं पता की मैं कितनी कड़वी बातें बोल जाऊंगी। 

उन्होंने ने अपनी आंखों को हल्का सा सिकुड़ कर मुझे देखा और फिर कड़क कर कहा :" तुम कौन हो और यहां क्या कर रही हो?"

मेरे दिमाग में सीटियां बज रही थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या बहाना बनाऊं लेकिन कुछ न कुछ तो बोलना पड़ेगा इस लिए मैं ने सहमे हुए आवाज़ में सर झुका कर कहा :" गुड मॉर्निंग सर! मैं लूसी साइरस पीजी की स्टूडेंट!... मैं यहां अपने दोस्त को ढूंढ रही थी वह चुड़ैल जैसी दिखती है। क्या आपने देखा उसे?

यह कहकर मैंने अपनी जुबान काट ली। मेरे दिमाग में वह चुड़ैल घूम रही थी इसलिए मेरे मुंह से चुड़ैल ही निकल गया खैर वह चुड़ैल मेरी दोस्त तो नहीं हो सकती।

फिर वही हुआ जिसका मुझे डर था। उन्हें मेरी बातों से गुस्सा आ गया और खा जाने वाली नज़रों से देखते हुए कहा :" सुनो बेवकूफ लड़की! यहां स्टूडेंट हो स्टूडेंट बन कर रहो मेरे ऑफिस के आसपास तितली बनकर मंडराने पर मैं पर काट दूंगा! पर काटने से मतलब के कॉलेज से रास्टिकेट कर दूंगा!.... मेरे सामने कोई स्टूपिड हरकत की तो बहुत बुरा होगा। समझ गई ?"

उनके इन कड़वे शब्दों ने मेरे जिस्म के खून को लावे की तरह खौला दिया। मैं ने भी आंखें दिखा कर जवाब दिया :" आप कोई फूल नहीं है जो मैं तितली बन कर मंडराने लग जाउंगी और दुनिया में आपका ही कॉलेज नहीं है कि मुझे निकाले जाने का डर सताएगा और हां!... मैं बेवकूफ नहीं हूं।"

पूरे एटीट्यूट के साथ उन्हें जवाब देकर मैं तेज़ी से चलकर अपने क्लास की ओर चली गई। मुझे इतना गुस्सा आ रहा था की जैसे मेरे अंदर आग भड़की हो और उसका धुआं काम से निकल रहा हो। 
ज़ाहिर सी बात है के डायरेक्टर सर को भी मेरे जवाब से इतना ही गुस्सा आ रहा होगा। शायद ही किसी स्टूडेंट ने उन्हें इस लिए जवाब दिया होगा कभी। 
अपने क्लास तक आते-आते मेरा गुस्सा शांत हो गया और जब शांत हुआ तो मुझे डर लगने लगा की कहीं सच में वह मुझे कॉलेज से ना निकाल दे, बड़ी मुश्किल से मैं ने अपने परिवार को मनाया था और यहां बहुत सारी उम्मीदें लेकर आई थी। इसीलिए गुस्से में मुंह बंद ही रखना चाहिए लेकिन अब पछताने से क्या फायदा अब तो सिर्फ टेंशन ही बच गया था।

आज तो मैं बिल्कुल ही पढ़ाई नहीं कर पाई। मैं बहुत चिंतित थी। ऐसा लग रहा था के बस कभी भी मुझसे कहा जायेगा के तुम अब कॉलेज नहीं आ सकती। "You are rusticated"
हमारे यहां एक कहावत है"चोर का मन पुलिस पुलिस" आज मुझे इस कहावत का मतलब समझ आ गया था। 

क्लास खत्म होने के बाद 4:30 बजे के करीब मैं रूमी और वर्षा साथ में ही चल रहे थे। वे दोनों आज पहली बार मिली थी फिर भी बिछड़े दोस्तों की तरह बातें कर रही थी और मैं बस मुंह लटकाए अपने कदम गिन रही थी। वर्षा को उसका कोई पुराना स्कूल का दोस्त दिख गया। वो और रूमी रुक कर उस लड़के से हाय हेलो करने लगी। वर्षा ने हमे उस से परिचय करवाया :" लूसी और रूमी! ये यश है मेरा स्कूल फ्रेंड और यश ये दोनो मेरी नई नई दोस्त है।"

मुझे तो कुछ अच्छा ही नहीं लग रहा था इस लिए मैं बस हेलो कह कर आगे बढ़ गई और वे दोनों यश से बातें करने में व्यस्त हो गई। उन्हे मेरे वहां से निकल जाने का एहसास ही नहीं हुआ। 

मेन गेट पहुंचने के ठीक कुछ पहले मुझे फिर से डायरेक्टर सर दिखे। वो भी बाहर की ओर जा रहे थे लेकिन इस बार मुझे वो चुड़ैल भी दिखी। उसी तरह चहरे पर हल्की शैतानी मुस्कान थी। उसी तरह रोवन सर को देखते हुए चलती हुई जा रही थी। 

मैं सामने वाले रास्ते पर खड़ी थी और साइड वाले रास्ते से डायरेक्टर सर जा रहे थे। दोनों रास्ते मेन गेट तक जाती है। 
जैसे ही वो मेरे सामने से गुजरी मैं ने उसे बेझिझक कहा :" रुको!"

मेरे रुको कहने से वो नहीं रुकी बल्के डायरेक्टर सर के रुक जाने से वह भी रुक गई। मैं उस औरत के ठीक सामने गई और गुस्से से उसे घूरते हुए बोली :" तुम्हें पता भी है तुम्हारी वजह से आज मेरी कितनी बेइज्जती हुई और मुझे कितनी टेंशन झेलनी पड़ रही है!... कहीं अकेली मिल जाओ तुम! फिर मैं बताऊंगी तुम्हें की मैं क्या चीज हूं।... तुम्हें तो मैं कच्चा चबा जाऊंगी।"

(मैं ने ये शब्द दांत पीसते हुए कहा)

मेरे हिसाब से मैं उस औरत के सामने खड़ी थी लेकिन डायरेक्टर सर के हिसाब से मैं उनके सामने खड़ी हूं क्योंकि हमारे बीच वह औरत थी और उस औरत को मैं देख सकती थी डायरेक्टर सर नहीं, इसलिए उन्हें लगा कि मैं उनसे यह सब कह रही हूं। 

(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)