आई कैन सी यू - 11 Aisha Diwan Naaz द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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आई कैन सी यू - 11

अब सिर्फ बंद कमरे में लूसी चाकू लिए दहशत गर्द बन कर खड़ी थी। कुछ देर तक वो गुस्से में फुफकार भरती रही फिर धीरे धीरे उसका गुस्सा कम हुआ। अब उसने फिर से दरवाज़ा पिटना शुरु किया लेकिन अब तो कॉलेज में सन्नाटा छाया हुआ था। तीसरे मंजिल के एक कोने में एक छोटे से कमरे में बंद लूसी के चिल्लाने का कोई फायदा नही हुआ। वो समझ गई के यहां अब कोई नही है। अंधेरा छा चुका था। कमरे में जो वेंडिलेटर से हल्की रौशनी आ रही थी अब वो भी खत्म हो गई थी और कमरा बिलकुल अंधेरा हो गया था। बिजली का बोर्ड तो था लेकिन हॉल्डर पर बल्ब लगा हुआ नही था। उसने मायूसी से बोर्ड के स्विच को टक टक ऑन ऑफ किया लेकिन बल्ब था ही नही तो बत्ती कहां से जलती। लूसी का दम घुटने लगा। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो किसी कब्र में ज़िंदा दफन है। परेशानी में उसका सारा जिस्म पसीने से तर हो चुका था। उसने काली जींस और कुर्ती पहन रखी थी और गले में सिफोन का काला दुपट्टा था। उसने बहुत कोशिश की के दरवाज़ा तोड़ डाले लेकिन अब वो गुस्से में भी नही थी के उसकी ताक़त बढ़ जाए अब तो वो बस परेशान और थकी हुई थी। उसकी घुटन बढ़ती जा रही थी। 

थक हार कर दरवाज़े के पास बैठ गई। उसे याद आया के एक बार उसने एक भूत से अपना काम करवाया था। जब स्कूल में उसे उसकी दोस्तों ने इसी तरह एक कमरे में बंद कर दिया था। जो एक पुरानी लाइब्रेरी थी। वहां से किताबे नई लाइब्रेरी में शिफ्ट कर दी गई थी और अब वो कमरा खंडर जैसा दिखता था। जब लूसी ने कहा के वो भूतों से नही डरती तो उसके दोस्तों ने उसे डराने के लिए वहां बंद कर दिया था। क्यों के सब कहते थे की वहां भूत रहता है और ये बात सच थी। कमरे में एक भूत था। लूसी उसे देख कर नहीं डरी बल्के उस से पूछने लगी के तुम यहां क्यों रहते हो तो उसने बताया था के उसे किताबों की खुशबू बहुत पसंद है इस लिए। लूसी ने अपने दोस्तों के बारे में बताया के उन्हें तुम से बहुत डर लगता है। तुम एक काम करो बाहर जाकर दरवाज़ा खोलो मैं बाहर जा कर उन्हें ऐसा नाटक कर के डराऊंगी के उन्हें लगेगा मेरे अंदर भूत घुसा है। ये बात सुन कर भूत खुश हो गया क्यों के उसे इंसानों को डरा हुआ देख कर बहुत मज़ा आता है। उसने वैसा ही किया और लूसी जा कर अपने दोस्तों को पोसेस होने का नाटक कर के डराने लगी। उसके दोस्त सच में बहुत डर गए थे ये देख कर के अपने आप दरवाज़ा कैसे खुल गया और अब लूसी भूत बन कर बाहर निकल आई थी। उसने सब को डरा कर क्लास रूम से बाहर भागा दिया था। सारी लड़कियां बाहर निकल आई थी जब टीचर आए तो सब को अंदर आना पड़ा। अपनी दोस्तों का डरा हुआ चेहरा देख कर अब लूसी की हंसी नहीं रुक रही थी। उसे हंसता हुआ देख कर उसकी सहेलियां और अधिक डर रही थी ये सोच कर के उस पर भूत हावी है इस लिए हंसते हंसते आंखें लाल हो गई है।
ये वाकिया याद कर के लूसी यही सोच रही थी के काश यहां भी कोई इस तरह का भूत मिल जाता लेकिन यहां उसके अलावा एक ही इंसान था और वो था डॉक्टर रोवन पार्कर जो दूसरे बिल्डिंग के दूसरे मंज़िल में रहता था। जो ठीक उसी बिल्डिंग के सामने थी जिसमे लूसी बंद थी। उस तक लूसी की आवाज़ या दरवाज़ा पीटने की आवाज़ पहुंचना मुश्किल था। 
अंधेरे कमरे में गर्मी के साथ साथ मच्छरों का तांडव भी अलग ही मकाम पर था। फूल जैसे नाज़ुक बदन पर डंक मारने से वो तिलमिला रही थी। हाथ पैर पर मच्छरों के काटने की वजह से खुजली होने लगी थी। जैसे ही खुजलाती वो जगह सूज कर लाल हो जाता। जिसे वो बार बार अपने हाथों से सहला रही थी। इन परेशानियों में उसका जी मिचलाने लगा और अब उकताहट से रोने लगी थी। 

इसी तरह घंटों बीत गए। रात के दो बजे तक उसका सब्र टूट गया और अब वो दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से स्टील की बाल्टी पटकते हुए चिल्लाने लगी। " मुझे बाहर निकालो!... रोवन सर हेल्प!.... रोवन सर प्लीज़ मुझे बाहर निकालो!"

इधर रोवन अपने कमरे में सोया हुआ था। रात के सन्नाटे में ठक ठक की आवाज़ और लूसी की आवाज़ पूरे कॉलेज में गूंज उठी। जब भी कोई किसी को नाम लेकर पुकारता है तो उसे कोई और ध्वनि सुनाई दे या न दे लेकिन अपना नाम वो दूर से ही सुन लेता है। जब लूसी ने रोवन का नाम लिया तो उसे नींद में ही महसूस हुआ के कोई उसका नाम ले रहा है। वो अचानक उठ कर बैठ गया। ध्यान लगा कर सुनने लगा तो उसे सामने वाली बिल्डिंग से दर्द भरी आवाज़ साफ साफ सुनाई देने लगी। उसने फौरन एक टॉर्च लिया और तेज़ी से सामने वाले बिल्डिंग की ओर दौड़ा। काली अंधेरी रात और सन्नाटे में सिर्फ लूसी की आवाज़ ने रोवन के दिल को झिंझोड़ कर रख दिया। जा कर उसी दरवाज़े के पास रुका। दरवाज़ा खोलने से पहले उसका बदन सिहर उठा ये सोच कर के न जाने कौन है। एक बार दिन में ख्याल आया के कहीं कोई शैतानी हरकत तो नहीं फिर जैसे ही एक बार और लूसी ने कहा :" रोवन सर प्लीज़ मुझे बाहर निकालो!" 
उसने जल्दी में दरवाज़ा खोल दिया। 
जब दरवाज़ा खुलते ही लूसी अधमरी सी बाहर निकल आई तो रोवन के टॉर्च की रौशनी सीधे उसके चहरे पर पड़ी। उसे देखते ही रोवन अचंभित हो गया। टॉर्च की रौशनी में लूसी ने अपनी आंखें बंद कर ली और बेजान सी गशी खा कर गिरने लगी। रोवन ने उसे थाम लिया और ऐसे उठा कर नीचे जाने लगा जैसे वो कोई पांच साल की बच्ची हो। उसे उठा कर अंधेरे में संभल संभल कर सीढियां उतरते हुए उसने अपने आप से कहा :" इस लड़की में कुछ तो अजीब है जब से आई है मैं बार बार इसके सामने आ जाता हूं!... इसने खुद को बंद कैसे करवा लिया?... पागल लड़की!"

उसे अपने घर ले जा कर बिस्तर पर लिटा दिया और घर के सारे बल्ब ऑन कर दिए। जल्दी जल्दी में उसके चहरे को ठंडे पानी से रुमाल भीगा कर पोछने लगा। उसका चहरा टमाटर की तरह लाल हो गया था। रोने की वजह से आंखें सूज गई थी। रोवन को उसका मासूम चहरा देख कर तरस आ गया। उसे उस पर गुस्सा बिलकुल नहीं आ रहा था बल्कि दया की नज़रों से उसके चहरे को तक रहा था क्यों के उसे लग रहा था के इतनी प्यारी लड़की की दिमागी हालत बिगड़ी हुई है।
उसके चहरे को ठीक से साफ कर के वो बड़े से पलंग के पास खड़ा हो गया। समझ नही आ रहा था के उसे अब क्या करना चाहिए। साथ ही ये सवाल भी सता रहा था के ये लड़की उस खाकी कमरे में बंद कैसे हो गई?

कॉलेज के अंदर उसने एक अच्छा सा फ्लैट बना रखा था। उसका कमरा आलीशान था जहां हर चीज़ एहतियात से सजाया हुआ था। एक बेड रूम एक लिविंग रूम और एक किचेन था। 
लूसी ने आंखे खोली तो खुद को एक आराम दायक गद्देदार बिस्तर में पाया। कमरे में एक भीनी खुशबू फैली हुई थी। एयर कंडीशनर की ठंडी हवा उसके जिस्म को ठंडक दे रही थी। 
कुछ देर तक लेटे लेटे कमरे का जायज़ा लेने के बाद अचानक हड़बड़ा कर उठी। उठते ही अपने सामने रोवन को हाथ बांधे खड़ा पाया जो हैरतंगेज आंखों से उसे देख रहा था।

(पढ़ते रहें अगला भाग जल्द ही)