डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 55 Saloni Agarwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट भाग - 55

अब आगे,

 

अपनी सौतेली बहन तनवी की बात सुन कर अब उस के सौतेला छोटे भाई अभिमान ने अपनी सौतेली बहन तनवी से कहा, "ठीक है मैं अभी इस आईडी को डिएक्टिवेट कर देता हूं, जिस से घर में किसी को कुछ पता नही चलेगा..!"

 

अपने सौतेले छोटे भाई अभिमान की बात सुन कर, अब तनवी ने अपना सिर हां मे हिला दिया और वही अभिमान ने अब अपनी सौतेली बहन तनवी को समझते हुए कहा, "और तू इस कॉपी और नोट्स को कही अच्छी सी जगह पर छुपा दे और हां दादा जी के सामने ज्यादा मत बोलना और वो जो भी पूछे उस का सोच समझ कर ही जवाब देना...!"

 

अपने सौतेले छोटे भाई अभिमान की बात सुन कर अब तनवी अपना सिर हां मे हिला दिया और जल्दी से उस कॉपी और नोट्स को अपने साथ लेकर सौतेले छोटे भाई अभिमान के कमरे से निकल कर अपने कमरे की तरफ चली गई और अब उस के सौतेले छोटे भाई अभिमान ने भी आईडी को डीएक्टिवेट कर दिया और अपने लैपटॉप को बंद कर के रख दिया..!

 

कुछ देर बाद,

 

तनवी और अभिमान दोनो एक साथ नीचे आ रहे थे और अपने दादा रघुवीर जी को देख कर अभिमान ने तो अपने दादा रघुवीर जी को गुड मॉर्निंग बोला और साइड में जाकर अपने पिता विनोद जी के पास जाकर बैठ गया और वही तनवी ने अपने दादा रघुवीर जी के गले से लग गई और अब अपने दादा रघुवीर जी से पूछने लगी, "दादू, आप अपने दोस्त के घर से इतने दिनो बाद क्यू आते हो जबकि उन का घर भी तो दिल्ली में ही है फिर भी आप उन के घर इतने इतने दिनो के लिए रहने के लिए क्यू जाते हो..?"

 

अपनी सौतेली पोती तनवी की बात सुन कर, अब उस के दादा रघुवीर जी ने अपनी सौतेली पोती तनवी से कहा, "अरे बेटा, जैसे तुम अपने दोस्त के घर उस से मिल ने के लिए जाती हो, ठीक वैसे मै भी अपने दोस्त के घर उस से मिलने चला जाता हूं और अब तो इस दुनिया में मेरा इकलौता दोस्त ही तो बचा है इसलिए मैं उस से उस का हाल चाल पूछने चला जाता हूं और अपने टाइम की कुछ यादें ताजा कर लेता हूं और मेरा दूसरा दोस्त बहुत ही जल्दी मुझे और मेरे दूसरे दोस्त अमर को छोड़ कर इस दुनिया से चला गया, जिस की मुझे और मेरे दूसरे दोस्त अमर को बहुत ज्यादा याद आती हैं..!"

 

अपने दादा रघुवीर जी की बात सुन कर, अब उन की सौतेली पोती तनवी ने अपने दादा रघुवीर जी से कुछ नही कहा और अपनी सगी मां मानसी जी के पास जाकर सोफे पर बैठ गई..!

 

वही दूसरी तरफ, बनारस में, राजवीर का विला,

 

राजवीर के मार देने वाली बात सुन कर, रूही के सगे पिता अमर की हालत खराब हो रही थी और वो अपने ही आप को कोसते हुए कहने लगे, "क्या जरूरत पड़ गई थी मुझे, इस राक्षस (राजवीर) के इस विला को देखने की जब कि मुझे पता तो चल ही गया था कि ये आदमी इंसान नही राक्षस है तो मैने ये सब किया ही क्यू, और मेरे साथ साथ अब मेरा दोस्त सुखबिंदर की भी जान पर बन आई है और मैं कुछ कर भी नही सकता हु..!"

 

रूही के सगे पिता अमर अपने मन में अपनी बात कह ही रहे थे कि अब राजवीर ने अपने पी ए दीप से पूछा, "तो बताओ किस का मैसेज आया है और उस मे क्या लिखा हुआ है..!"

 

राजवीर की बात सुन कर ही राजवीर के पर्सनल बॉडीगार्ड देव ने अपने गन को लोडेड कर लिया और रूही के सगे पिता अमर के ऊपर प्वाइंट कर दिया..!

 

जिस को देख कर अब रूही के सगे पिता अमर थर थर कांप रहे थे और वही राजवीर के पी ए दीप ने अब राजवीर से कहा, "बॉस, किसी अननोन नंबर से मैसेज आया है..!"

 

अपने पी ए दीप की बात सुन कर, अब राजवीर अपने गुस्से से अपनी किंग साइज कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और अब उस ने भी अपनी गन निकल ली..!

 

To be Continued......

 

हेलो रीडर्स, यह मेरी पहली नोवेल है। कृपया इसे अपनी लाइब्रेरी में जोड़ें, मेरी प्रोफाइल को फॉलो करे और कमेंट्स, रिव्यू और रेटिंग के साथ मुझे अपना सपोर्ट दे। अधिक जानने के लिए पढ़ते रहिए मेरी पहली नोवेल "डेविल सीईओ की स्वीटहार्ट" और अगला भाग केवल "मातृभारती" पर।