जादू वाला बर्तन Bharati babbar द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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जादू वाला बर्तन

डिगरी की सुबह से सिट्टीपिट्टी ग़ुम है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा कि अब आगे क्या होगा या हो सकता है। जो कुछ उसने देखा वह जादू से कम नहीं था। वह अभी तक स्वयं को आश्वस्त नहीं कर पा रही कि ऐसा हो सकता है लेकिन आँखों देखी को कैसे झुठला दे ! सचमुच दुनिया में क्या-क्या होता है...वह तो कल्पना में भी वहाँ तक नहीं पहुँच पाती। डिगरी ने ईजा और बाबा को बताया तो सही लेकिन उन्होंने कितना समझा या उसपर कितना भरोसा किया पता नहीं। वह तो तब से खाट पर लेटे-लेटे बस वही सोच रही है। अब तो वह लाल बंगले की ओर जाने का साहस भी नहीं कर सकती।

लाल बंगले का असल नाम कुछ और ही है लेकिन उसकी छत सुर्ख लाल रंग की है इसलिए प्रायः सभी उसे लाल बंगला ही कहते हैं। सिर्फ डाकिये को उसका अंग्रेज़ी नाम याद रहता है क्योंकि वह वहाँ अक्सर ही चिट्ठियाँ देने जाता है। वह बंगला किसी सरकारी विभाग के तहत है इसलिए सरकार के बड़े-बड़े अफसर वहाँ रहने आते हैं। हमेशा डिगरी ही सबको दूध देने जाती है, लेकिन अब...

उस बंगले में रहने वाला परिवार कहाँ का है वह नहीं जानती। यूँ भी उसे अपने गाँव या घर के अलावा किसी जगह की जानकारी है ही नहीं। वह कभी स्कूल भी नहीं गयी और ना ही जाना चाहती है। उसे जंगलों में घूमना, अपनी बकरियों को चराना, गायों और भैंसों को खिलाना और मुर्गियों के बाड़े से अंडे उठाने जैसे काम ही पसंद हैं। स्कूल में किताबों में काले रंग में छपे शब्दों से तो जंगलों की हरियाली और रंगीली छटा उसे ज़्यादा मोहित करती है। हाँ, हो सकता है उन काले अक्षरों में उस जादू के बारे में कुछ लिखा हुआ भी हो, पर नहीं वह फिर भी नहीं पढ़ने वाली।

जब ईजा ने उसे बताया कि लाल बंगले में नये लोग आ गये हैं और उन्हें भी रोज सुबह दूध देने जाना होगा तो डिगरी ने झट हामी भर दी। उसे लाल बंगले का रास्ता बहुत सुहाता है। ईजा दूध से भरी बाल्टी उसे पकड़ा देती और डिगरी अपनी मस्ती में घूमते-फिरते लाल बंगले को चल देती। वहाँ जो भी रहने आता उसके बाबा वहाँ पहुँचकर पूछताछ कर आते कि दूध लेना है और कितना लेना है। 

अगले दिन उसकी नींद जल्दी खुल गयी। ईजा और बाबा बाहर बात कर रहे थे। ईजा दूध दुह रही थी और बाबा पास ही बैठे बीड़ी पी रहे थे। 

" ईजा जाना है ना लाल बंगले दूध देने ? मैं ही जाऊँगी..." 

" हाँ तू ही जा, लेकिन पहले बाल तो बना ले..." ईजा ने उसकी तरफ देखे बिना कहा। 

डिगरी ने बिना अपनी चुटिया खोले बालों पर कंघी फेर ली और ईजा के पास आकर खड़ी हो गयी। ईजा ने आधा किलो के माप वाले बर्तन से चार बार दूध लेकर दूसरी बाल्टी में डाला और फिर उसी बर्तन में एक बार पानी भरकर उसमें मिला दिया। 

" ये ले,और सम्भलकर जाना, ढाई किलो है बता देना," बाल्टी पर ढक्कन लगाकर उसे पकड़ाते हुए ईजा ने कहा।सिर हिलाकर हामी भरते हुए डिगरी ने बाल्टी थाम ली और चल पड़ी।

सारे रास्ते वह उन लोगों की कल्पना करती रही। वहाँ पहुँचकर देखा दो लड़कियाँ बंगले की सीढ़ियों पर बैठकर किसी किताब को पढ़ते हुए हँस रही थीं। डिगरी उनके बगल से बचती हुई निकल गयी फिर भी उन्होंने उसकी ओर देखा तक नहीं। तभी एक महिला बाहर आयी।

" दूध..." उसे देखकर डिगरी लगभग बुदबुदायी।

" अच्छा, आओ अंदर ," कहकर वह वापस अंदर मुड़ी।डिगरी भी उसके पीछे चली गयी। 

इससे पहले भी डिगरी ने बंगले को भीतर से देखा है लेकिन अब वह बिलकुल अलग लगा। उस महिला के साथ डिगरी रसोई तक चली गयी।

" कितना है ? " बाल्टी लेते हुए उस महिला ने पूछा।

" अढ़ाई किलो," डिगरी ने कहा।

" अढ़ाई किलो में पानी कितना किलो ? " महिला ने हँसते हुए पूछा। 

डिगरी को थोड़ा डर लगा।फिर भी धीरे से बोली," पानी नहीं है। "

" नाम क्या है तुम्हारा ?"

" डिगरी "

" स्कूल जाती हो ? "

" नहीं "

" बिना स्कूल की डिगरी ?" वह महिला हँसी। डिगरी उसकी बात समझ नहीं पायी। तभी बाहर बैठी लड़कियाँ अंदर आ गयी। उन्होंने उसकी तरफ देखा।

" ये डिगरी है," 

" डिगरी ? कौन सी डिगरी ,बीए की या एम ए की ?" दोनों हँसी।

" नाम की डिगरी, स्कूल नहीं जाती।"

इससे पहले किसी ने डिगरी को उसके नाम के बारे में कुछ नहीं कहा था, लेकिन ये लोग उसके नाम और स्कूल न जाने की बात पर जाने क्यों हँस रहे हैं! उस दिन वह बिना कुछ जाने समझे आ गयी।

धीरे-धीरे डिगरी उनसे हिलमिल गयी, लेकिन केवल उस महिला से जिसे वह आंटी कहने लगी। जिस समय डिगरी उनके घर पहुँचती वे लड़कियाँ स्कूल जाने की तैयारी में होतीं इसलिए कभी ज़्यादा बात नहीं होती। अंकल बाहर ही अखबार पढ़ रहे होते।

"आ गयी डिगरी,"  उसके पहुँचते ही वे कहते और उसके साथ ही अंदर चले आते। डिगरी को  उनसे बात करने में हिचकिचाहट होती है लेकिन आंटी उसे अच्छी लगती है। आंटी? दूध लेकर चाय का पानी चढ़ाती और  उसे कुछ न कुछ खाने को देती। लगभग रोज यही क्रम होता।

" चाय पीयेगी ?" एक दिन उसे पूछते हुए बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये उन्होंने उसे चाय की प्याली पकड़ा दी।डिगरी को मीठी चाय पसंद है लेकिन इस चाय में चीनी बहुत कम लगी। डिगरी ने कहा कुछ नहीं पर प्याली में चाय छोड़ दी।

" पानी वाले दूध की चाय अच्छी नहीं लगी ना ? " 

" मलाई वाला दूध तो डिगरी पी जाती है, तभी तो गोलमटोल है, हमारे लिए पानी डाल देते हैं इसके बाबा, है ना डिगरी ?" अंकल ने उसकी ओर देखकर कहा।

" पानी नहीं डालते दूध में," डिगरी बोल तो गयी लेकिन उसे घर की चाय और इस चाय में दूध का स्वाद सचमुच अलग लगा।

" अच्छा ? तो क्या भैंस पानी में बैठी रहती है ? बाबा को कहना पानी साफ डाला करे।" वे हँसते हुए कह रहे थे लेकिन डिगरी को थोड़ा डर भी लगा। ईजा रोज उसके सामने ही तो पानी मिलाती है। ढाई किलो में कम से कम आधा किलो और कभी दूसरे किसी ने ज़्यादा दूध मँगवाया हो तो ज़्यादा पानी मिलाकर बराबर कर देती है। 

 

घर लौटते ही उसने ईजा को सारी बात बता दी। उसकी बात पूरी सुनकर भी ईजा ने कुछ कहा नहीं।

" ईजा, इसका मतलब उनको पता है कि पानी डालते हैं हम।"

" कोई बात नहीं, कौन देता है बिना पानी के दूध...अढ़ाई में आधा किलो भी नहीं डालें तो पूरा कैसे पड़ेगा ?"

सुबह लाल बंगले पर जाने-आने में डिगरी को करीब एक घन्टा लग ही जाता, हालाँकि दूरी इतनी है नहीं। 

" तू करती क्या है वहाँ जाकर, बाल्टी देकर आना है उसमें इतनी देर लगा देती है," उसकी ईजा कहती।

" वो बाल्टी खाली करे तब तो आऊँगी..." डिगरी के उत्तर पर ईजा ने कुछ नहीं कहा। वह जान गयी कि डिगरी को वहाँ जाना,खाना और बतियाना अच्छा लगता है।

एक दिन आंटी ने दूध की बाल्टी को एक नए बर्तन में पलट दिया। डिगरी ने देखा कि बर्तन डिब्बा नुमा था। आंटी ने दूध का बर्तन चूल्हे पर चढ़ाकर ढक्कन लगा दिया। डिगरी ग़ौर से देखती रही।तभी आंटी बोली, " क्या देख रही है डिगरी ?"

" आपने ढक्कन लगा दिया..." 

उसके जवाब से हँसते हुए बोली, " ये मिल्क कुकर है,अभी जादू देखना।"

थोड़ी देर में बर्तन से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी। कुछ ही समय में सीटी की आवाज तेज़ हो गई। डिगरी विस्मित होकर देखती रही। दूध उबल गया और ढक्कन के बावजूद उफनकर गिरा नहीं। डिगरी ने सीटी वाला बर्तन पहली बार देखा, सुना तो कभी था ही नहीं। घर आकर अपनी ईजा को भी उसने बताया पर ईजा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। डिगरी को इसीलिए अपना काम अच्छा लगता है, उन उबाऊ किताबों में ये मज़ा कहाँ ! वह बर्तन सचमुच जादुई था ,जैसे ही दूध गर्म होने लगता, हल्की-हल्की आवाज़ आनी शुरू हो जाती और जब उबाल आता सीटी तेज़ से तेज़तर होने लगती। धीरे-धीरे खाते हुए डिगरी उसकी सीटी सुनने के लिए बैठी रहती। डिगरी हँसती,उसे देखकर बाकी लोग भी हँसते।

" कल चार किलो दूध चाहिये, ठीक है ? " परसों आंटी ने कहा था। उसने घर पहुँचते ही ईजा से कह दिया। कल सुबह बाबा दूध दुहने लगे तो उसने याद दिलाया। बाबा ने आधा किलो के बर्तन से छह बार मापकर दूध बड़ी बाल्टी में डाला फिर उसी बर्तन में दो बार पानी भरकर दूध में मिला दिया। डिगरी ने चुपचाप आंटी को बाल्टी पकड़ा दी।

आज इतवार की छुट्टी थी। वह दूध लेकर बंगले पर गयी तब सभी लोग बैठे जैसे उसके इंतजार में थे। रोज ही की तरह डिगरी ने दूध की बाल्टी को मेज़ पर रखा और अपनी कुर्सी पर बैठ गयी। सीटी वाला दूध का बर्तन वहीं रखा था। आंटी ने उसे उठाकर उसमें कल के बचे हुए दूध को एक दूसरे बर्तन में पलट दिया। जहाँ से सीटी बजती है उसे चाभी की तरह घुमाते हुए बर्तन को सिंक में पलटने लगी। डिगरी हैरानी से देख रही थी, उस जगह से पानी की धार निकलने लगी !

" डिगरी, तू तो कहती है पानी नहीं मिलाते...देख कितना पानी निकल रहा है..! " तभी अंकल ने कहा।

आंटी ने भी उसे देखा और आँखों के इशारे से ही पूछा। डिगरी की आँखें फटी की फटी रह गयी। सचमुच बर्तन से पानी लगातार निकल रहा था। लड़कियाँ भी हँसने लगी।

" अब क्या करेगी डिगरी, आज तो पकड़ी गयी ?" एक ने कहा तो दूसरी ने उसकी ओर देखकर मुँह बनाया।

" डिगरी, दूध में जितना पानी मिलाते हैं ना इसमें वो अलग हो जाता है...कल चार किलो में कितना पानी मिलाया हम जान गये !" अंकल बोले।

डिगरी के होश उड़ गये। उसके सामने बाबा ने चार किलो में एक किलो पानी डाला था...मतलब इनको तो रोज पता लग जाता होगा ! उसने कहा भी था ईजा से...डर के मारे डिगरी को रोना आ गया। उसने आव देखा ना ताव तुरंत उठकर दरवाज़े से निकलकर बाहर दौड़ गयी। दूध की खाली बाल्टी उठाने का भी ध्यान नहीं रहा। कुछ दूर तक उसे उनकी खिलखिलाहट सुनायी देती रही, लेकिन वह रुकी नहीं।सचमुच दूध के बर्तन से पानी निकल रहा था...दूध और पानी अलग-अलग....! ओईजा अब क्या होगा जाने !!

वह हाँफते हुए घर पहुँची। ईजा बाहर ही मिल गयी। उसे देखते ही डिगरी की रूलाई छूट गयी।

" अरे, डिगरी क्या हुआ ?" डिगरी डर के मारे सिर्फ रोती रही। उसकी ईजा को कुछ समझ ही नहीं आया।

" कुछ बतायेगी भी...और बाल्टी कहाँ छोड़ आयी ?"

कुछ देर बाद डिगरी ने आँखों देखी सुना दी। लेकिन उसकी ईजा कुछ बोली नहीं।

" तेरे बाबा ले आयेंगे बाल्टी," कहकर वह अपने काम में लग गई।

डिगरी के दिमाग में उल्टे-सीधे विचार आते रहे। बाबा बाल्टी लेने गये तो क्या होगा...वो अंकल बड़े साब हैं...कहीं बाबा को पकड़ लिया तो...

उधर लाल बंगले पर भोली-भाली डिगरी को डर के मारे भागते देख सब इतना हँसे कि सुबह-सुबह सब का मनोरंजन हो गया। डिगरी बेचारी मिल्क कुकर का भेद क्या जाने कि जादुई लगने वाले इस बर्तन में पानी उन्होंने ही डाला था। इस पानी में उबाल आने पर ही तो सीटी बजती है जिससे दूध के उबलने का संकेत मिलता है।

अगली सुबह भी हो गई। डिगरी ने लाल बंगले जाने से मना कर दिया। उसके ईजा और बाबा कहते रहे कि आज पानी बहुत ही कम डाला है इसलिए डरने की ज़रूरत नहीं है। वे चाहते थे कि डिगरी ही जाये। जो कुछ हुआ है वे लोग बच्चा समझकर ज़्यादा कुछ कहेंगे नहीं लेकिन डिगरी नहीं मानी।हारकर उसके बाबा को ही जाना पड़ा। थोड़ी घबराहट तो उन्हें भी हो रही थी। डिगरी ने क्या देखा और कितना समझा भगवान जाने। पर लड़की कह रही है और इतना डर गयी है माने कुछ बात तो होगी ही। दूध में पानी डालना कौन सी नयी बात है लेकिन यह पता लगाने का कोई बर्तन भी होता है यह तो पता ही नहीं है! सोचते हुए वह लाल बंगले पहुँच गया। उसने देखा साहब बाहर अखबार पढ़ रहे थे। उसके नमस्ते करते ही उसे देखकर बोले, " आज तुम आये, डिगरी क्यों नहीं आयी ? "

" बस वो..." तब तक घर की मालकिन भी बाहर आ गयी।

डिगरी के बाबा ने उन्हें देखा। इससे पहले कि वे कुछ बोलती उसने हाथ जोड़कर कहा," आप नाराज मत होना मैडमजी, क्या करें थोड़ा पानी तो मिलाना ही पड़ता है... आगे ध्यान रखूँगा..." उसने बाल्टी उन्हें पकड़ा दी।

" क्या बताया डिगरी ने ?" उन्होंने बाल्टी लेते हुए पूछा। उसने सारी बात बता दी।

मालकिन कुछ बोलने को हुई कि साहब बोले," थोड़ा मतलब कितना मिलाते हो ? " 

" बस...ज्यादा नहीं साहब..."

" और पानी साफ तो होता है ना ?" वे मुस्कुराये।

उसने हाथ जोड़े हुए ही सिर हाँ में हिला दिया।

मालकिन बाल्टी लेकर अंदर चली गयी। थोड़ी देर बाद दोनों बाल्टियाँ देते हुए बोली, " कल डिगरी को भेजना।" 

उसने बाल्टियाँ ले ली। जाने को हुआ कि थोड़ा रुककर हिचकिचाहट से बोला, " मैडमजी, वो जादू का बर्तन...कैसा होता है ?" साहब और मैडमजी ने एक दूसरे को देखा।

" आओ देख लो तुम भी," साहब ने कहा और उसके साथ अंदर आ गये। चूल्हे पर वही बर्तन था। थोड़ी ही देर में उससे सीटी बजने लगी। वह भी डिगरी की तरह कौतूहल से देखता रहा। सच ही बताया था डिगरी ने।

" आज जितना पानी डाला है ना वो कल निकलेगा यहाँ से,"  उन्होंने एक तरफ इशारा करते हुए कहा। साहब गम्भीर थे लेकिन मैडम मुस्कुरा रही थी। उसने आगे कुछ नहीं कहा। हाथ जोड़े और निकल गया।

घर पहुँचकर उसने सारी बात बतायी। उसकी पत्नी गौर से सुनती रही। डिगरी भी उत्सुकता से सुन रही थी,बोली," झूठ कह रही थी मैं ?" उसकी माँ हतप्रभ रह गई।

" अच्छे लोग हैं जो गुस्सा नहीं हुए,अब भी कह रहे थे कि डिगरी को भेजना...चली जाना कल से तू , " फिर मुड़कर पत्नी से कहा," उनके दूध में मत डालना पानी।" 

उसकी ईजा ने डिगरी को पुचकारते हुए कहा ," तेरे कारण से गुस्सा नहीं हुए साहब ।" डिगरी ने मुस्कुराते हुए राहत की सांस ली और उधर लाल बंगले वालों को भी पानी वाले दूध से राहत मिल गयी।

डिगरी जादू वाले बर्तन का रहस्य कभी नहीं जान पायी...

© भारती बब्बर