डॉक्टर के चले जाने के बाद भी आभा देर तक बरामदे में ही बैठी रही।मेज़ पर चाय की जूठी प्यालियों के नीचे मेडिकल रिपोर्ट के पन्ने फड़फड़ाते रहे।कमरे से टीवी चलने की आवाज़ आ रही थी लेकिन आभा के कानों में सिर्फ डॉक्टर के शब्द गूँज रहे थे..." तुम्हें विनय को सम्भालना होगा आभा..." अन्ततः उसका डर सच साबित हो ही गया।
आभा ने रिपोर्ट उठाकर लिफाफे में डाली और भीतर आ गयी।विनय भावशून्य-सा टकटकी लगाये टीवी देख रहा था।पल भर आभा को लगा कि वह डॉक्टर के आने के बारे में कुछ पूछेगा लेकिन विनय ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया।विनय की यही चुप्पी उसे खटकने लगी है।डॉक्टर ने आभा से इसकी आदत डाल लेने को कहा है लेकिन लगातार बोलने वाले विनय की यह ख़ामोशी आभा को बहुत परेशान करती है।अब विनय अपनी ओर से कोई बात नहीं करता,आभा कुछ पूछे तब भी कम से कम शब्दों में उत्तर देता है या कभी-कभी कोई प्रतिक्रिया ही नहीं देता।आभा को लगने लगा है जैसे घर के भीतर विनय और वह अलग-अलग द्वीपों पर रह रहे हैं।
विनय की सेवानिवृत्ति के बाद उसने सोचा था कि जीवन की आपाधापी में एकसाथ रह सकने के उन गुमशुदा पलों की भरपायी अब हो सकेगी जो दोनों चाहते रहे हैं।सात साल हो गये विनय को विश्वविद्यालय से प्रोफेसर के पद से निवृत्त हुए।उसके अगले ही साल आभा ने भी स्वेच्छा से कॉलेज की नौकरी छोड़ दी।दोनों को ही घूमने-फिरने का बहुत शौक रहा है, इसलिए हर साल वे घुमक्कड़ी के लिए एक नया स्थान खोज लेते।उनकी बेटियाँ भी उनके प्रति आश्वस्त हैं।उनकी जोड़ी दूसरों के लिए ईर्ष्या का विषय भी रही है क्योंकि दोनों हर मामले में एक दूसरे के पूरक रहे हैं।विशेषकर विनय जैसा पति तो आभा की सखियों की दृष्टि में दुर्लभ प्रजाति का है।
" तुम दोनों की केमिस्ट्री तो ना... सीरियसली, विनय जैसा हसबंड मटेरियल बनना बन्द हो चुका है आभा,यू आर डैम लकी...।" सखियों का ऐसा कहना आभा को गौरवान्वित करता।अपनी बेटियों के लिए भी आभा ईश्वर से विनय जैसा वर माँगती रही।अपनी जुड़वा बेटियों की शादी उन्होंने नौकरी में रहते हुए ही कर दी।महिमा शादी के बाद ऑस्ट्रेलिया में स्थायी हो गयी और गरिमा मुम्बई में।नौकरी में रहते हुए ही विनय और आभा ने अपने लिये एक खूबसूरत-सा मकान भी बना लिया।विनय को खुली जगह पर रहना पसन्द है इसलिए उसने मकान के आगे-पीछे काफी जगह रख छोड़ी है।अगली तरफ क्यारियों में फूलों के बेशुमार पौधे हैं तो पिछली तरफ मनपसंद सब्ज़ियों की क्यारियाँ।दोनों ने जीवन का अत्यधिक आनंद उठाने के पर्याप्त साधन जुटा रखे हैं।उनका सामाजिक सरोकार भी अच्छा रहा है।कुलमिलाकर आभा और विनय के पास सुखद जीवन के समस्त कारण हैं।
सुबह सूर्योदय से पहले उठकर लम्बी सैर के बाद बागबानी करना विनय का शौक रहा है और चाय पीते हुए फूलों और पौधों पर विस्तार से आभा को बताना उसकी आदत बन गयी है।इसलिए उस दिन विनय को देर तक सोता देखकर आभा को आश्चर्य तो हुआ पर उसने अधिक न सोचते हुए अनदेखी कर दी और अकेले जाकर जल्दी लौट आयी।
" क्या हुआ प्रोफेसर साहब, आज सैर पर नहीं जाना था क्या?"
" आज बिलकुल जी नहीं चाहा," चाय पीते हुए आभा के सवाल पर विनय ने हल्की सी ही प्रतिक्रिया दी।
" हरसिंगार इकट्ठा कर लिये क्या तुमने ?" विनय ने पूछा।
" अभी कहाँ...हरसिंगार खिलने में तो अभी बहुत समय है..." आभा ने कहा तो विनय ने कुछ हैरानी से उसे देखा।
उनके घर के बगीचे में हरसिंगार का खूबसूरत छोटा पेड़ है।शादी की पच्चीसवीं वर्षगाँठ पर विनय ने उसका पौधा लगाया था।उसमें बारिशों के बाद अगस्त से नवंबर तक फूल खिलते हैं।
" तुम्हें पता है विनय,ये फूल पारिजात के आँसू हैं जो वह अपने प्रेमी सूर्य के वियोग में हर रात बहाती है...इसीलिए ये धरती पर गिर जाने के बाद भी पूजन के योग्य माने जाते हैं।कितना पवित्र होगा ना उसका प्रेम...!"
उसके कुछ समय बाद ही विनय अपने शोध कार्य के सिलसिले में दो साल के लिए अमेरिका रहने के बाद जब लौटा तब आभा अपने आँसू रोक नहीं सकी।वहाँ से लाये ढ़ेर सारे उपहार देने के बाद विनय ने आभा के आगे हरसिंगार से भरी अपनी बन्द मुट्ठी को खोलते हुए कहा, " और ये तुम्हारे आँसू...।" उसके बाद विनय लगभग रोज ही एक कटोरे में झड़े फूल इकट्ठा कर के रखने लगा।
अगली सुबह भी विनय ने घूमने जाने के लिए आनाकानी की लेकिन आभा ने उसे जबरदस्ती उठा ही दिया।विनय भी साथ चला तो गया लेकिन उसके शिथिल कदम उसके अनमनेपन को छुपा नहीं सके।घूमते हुए प्रतिदिन मिलने वाले समवयस्क लोगों के साथ राजनीति या अन्य विषयों पर धुआँधार बहस करना भी विनय की आदत रही है, लेकिन उस दिन उसने अपनी टोली को दूर से ही हाथ हिलाकर विदा किया और घर लौट आया।
" तुम्हारी तबियत ठीक तो है न विनय ? " आभा ने विनय को नाश्ते की मेज पर पूछ ही लिया।
" ह्म्म, ठीक है...क्यों ?"
" खोये-खोये रहने लगे हो।"
विनय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।आभा ने डॉक्टर नदीम को फोन करके शाम को घर बुला लिया।नदीम विनय का पुराना दोस्त होने के साथ-साथ उनका फॅमिली डॉक्टर भी है।शाम को नदीम के साथ विनय को अपने पुराने अवतार में आता देखकर आभा निश्चिन्त हो गयी।
" क्या हुआ है इसे... बिलकुल नॉर्मल तो है मेरा यार," नदीम ने जब ऐसा कहा तो विनय ने हैरान होकर आभा की तरफ देखा।
" तुमने क्या कहा इसे ? क्या हुआ है मुझे...एक दिन जल्दी नहीं उठा तो तुमनें डॉक्टर घर बुला लिया ? " विनय के मुँह से नदीम के लिए ये शब्द भी आभा को चुभ गये।नदीम ने हँसकर बात को टाल दिया।
" मैं खुद आया हूँ...क्यों, नहीं आ सकता क्या ?"
विनय ने तब कुछ नहीं कहा।लेकिन नदीम के चले जाने के बाद वह आभा पर फिर नाराज़ हुआ।इतनी छोटी बात पर विनय की यह प्रतिक्रिया आभा को परेशान भी कर गयी और चिंतित भी।
विनय की सुबह की सैर अनियमित हो गयी लेकिन आभा ने कुछ नहीं कहा।वह अकेली जाकर जल्दी लौट आती।कभी-कभी तो उसके लौटने के बाद तक विनय सोता ही रहता या कभी-कभी भावशून्य होकर उसकी ओर देखता तो आभा असमंजस में पड़ जाती।उसने ग़ौर किया कि विनय न सिर्फ कम बोलने लगा है,लोगों से मिलने जुलने से कतराने भी लगा है।
एक दिन विनय का पुराना विद्यार्थी प्रखर घर आया।वह विनय के बहुत प्रिय विद्यार्थियों में रहा है।वह जब भी आता विनय के साथ अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर खूब चर्चा करता।
"तुम दोनों बहस तो ऐसे करते हो जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति तुम्हारी सलाह पर ही फैसले लेगा..." आभा हँसकर कहती।
" सर को वर्ल्ड पॉलिटिक्स का जितना ज्ञान है, उसने तो वाक़ई इनसे सलाह लेनी चाहिये," प्रखर विनय की तारीफ में कहता।विनय को भी प्रखर के साथ इस किस्म की बैठक करना बहुत अच्छा लगता रहा है,लेकिन उस दिन उसके आने पर विनय के चेहरे पर उत्साह का वो भाव नहीं दिखायी दिया।
" सर की तबियत ठीक नहीं है क्या ? "
विनय जब कुछ देर तक कमरे से बाहर नहीं आया तो प्रखर से भी पूछे बिना नहीं रहा गया।
" नहीं ऐसा नहीं है, लेकिन आजकल कुछ थके हुए से रहने लगे हैं," कहकर आभा ने विनय को आवाज़ लगायी, " बाहर आओ, देखो तो कौन आया है..."
विनय आ गया लेकिन उसके चेहरे पर उत्साह दिखा नहीं।
" आज आपका ज़्यादा समय नहीं लूँगा सर, बस आपको ये देने आया हूँ," कहते हुए प्रखर ने मिठाई के एक बड़े से डिब्बे के साथ शादी का निमंत्रण पत्र आगे बढ़ाया, " प्लीज़ आप दोनों आइयेगा ज़रूर..."
"अरे वाह, बहुत बधाई बेटा," आभा ने आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से प्रतिक्रिया दी।
" काँग्रेजुलेशन्स..." विनय का बस इतना ही कहना शायद प्रखर को भी अजीब लगा इसलिए उसने कुछ-कुछ प्रश्नवाचक सी दृष्टि से आभा को देखा।
" हम ज़रूर आयेंगे..." आभा ने मुस्कुराते हुए कहा लेकिन उसकी असमंजसता प्रखर भाँप गया।बिना अधिक कुछ कहे वह चला गया।
" विनय, आर यू ओके ? " उसके जाते ही आभा ने पूछा।
" कौन था ये ?" विनय ने प्रश्न के उत्तर में आभा से ही पूछ लिया।
" विनय...तुम... तुमने प्रखर को नहीं पहचाना...?" आभा को पहली बार चिंता के साथ डर भी लगा।विनय ने कोई उत्तर नहीं दिया।प्रखर को भी विनय का बर्ताव कुछ अटपटा लगा तभी उसने शाम को फोन किया।
" प्रखर...मैं समझ नहीं पा रही...विनय कुछ नॉर्मल-सा नहीं लग रहा आजकल...जानते हो उसने तुम्हें पहचाना नहीं...।"
" मुझे भी ऐसा ही लगा...हमें डॉक्टर से बात करनी चाहिये , आप कहें तो मैं आ जाता हूँ," प्रखर ने कहा।
" मैं नदीम से बात करती हूँ ।"
" प्लीज़,मुझे भी बता देना ।"
आभा के फोन करने पर नदीम घर आ गया।विनय ने साथ बैठकर चाय पी।सबसे अच्छी बात ये थी कि उसका मूड ठीक रहा और उसकी बातें सामान्य थी।
" नदीम,विनय आजकल बहुत आलसी हो गया है।इसे कहो सेहत पर ध्यान दे," आभा ने विनय के अच्छे मूड को देखकर डॉक्टर को इशारा किया।
" तुम मेरी सेहत के पीछे हाथ धोकर क्यों पड़ी हो ?" विनय ने कहा।
" अच्छा बताओ तुम्हें घर से बाहर निकले कितने दिन हो गये हैं, उसपर कोई घर आ जाये तब भी तुम नॉर्मली बात नहीं करते..."
" किससे नहीं की बात...नदीम से कर नहीं रहा ? " उसकी बात सुनकर नदीम मुस्कुराया।
" उस दिन प्रखर से की थी ?"
" प्रखर कब आया घर ?"
आभा ने नदीम को देखा।वह आभा का इशारा समझ गया।
" परसों ही तो आया था...ये देकर गया नहीं तुम्हें ? " आभा ने कार्ड उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा।विनय कार्ड खोलकर देखता रहा।कार्ड पढ़कर उसके चेहरे पर असमंजस और आश्चर्य का भाव स्पष्ट हो गया।उसने कुछ न समझते हुए आभा और नदीम की ओर देखा।
" कोई बात नहीं विनय, होता है ऐसा कभी-कभी..." नदीम के स्वर में उसके लिए आश्वासन होते हुए भी उसके शब्दों का गाम्भीर्य आभा से छुपा नहीं।
" हाउ इज़ इट पॉसिबल...!" विनय बुदबुदाया।कुछ पल तीनों ही चुप रहे।
" डोंट वरी विनय, कुछ दवाई देता हूँ...चेक अप कर लेते हैं,यू विल बी ओके।"
डॉक्टर के आश्वासन के बावजूद आभा की चिंता कम नहीं हुई।
" आभा...प्रखर को जाने क्या लगा होगा !" डॉक्टर के जाने के बाद विनय ने कहा।
" उसकी चिंता मत करो...वो कुछ नहीं कहेगा...पर तुम ध्यान रखो विनय।"
" आजकल तुम छुट्टी पर क्यों हो ?कॉलेज नहीं जाती ?" विनय के पूछने पर आभा ने कोई उत्तर नहीं दिया।विनय ने दोबारा नहीं पूछा लेकिन प्रश्नवाचक दृष्टि से आभा को देखता रहा।शाम को प्रखर का फोन आया।विनय का हालचाल पूछने पर आभा ने फोन उसे ही पकड़ा दिया।
" प्रखर तुम जानते हो मैं डिपार्टमेंट की बातें घर पर नहीं करता..."
" सर मैं भी आजकल डिपार्टमेंट नहीं जा रहा, शादी पर आ रहे हैं ना आप ?"
" किसकी....कब है शादी ? छुट्टियाँ खत्म होने से पहले करोगे तो आ सकूँगा..."
आभा चुपचाप सुनती रही।विनय ने बिना कुछ कहे फोन काट दिया और कमरे में चला गया।
शादी के दिन भी विनय तैयार नहीं हुआ।आभा के लिए उसे घर छोड़कर जाना सम्भव नहीं था।उसने फोन पर प्रखर से बात करके उसे बधाई देते हुए बता दिया।
महिमा और गरिमा को पता चला तो दोनों का चिंतित होना स्वाभाविक ही था।महिमा का ऑस्ट्रेलिया से आना सम्भव नहीं था लेकिन वह रोज फोन करके आभा से हालचाल पूछ लेती।गरिमा छुट्टी लेकर आ गयी।विनय कुछ क्षणों तक उसे देखता रहा।
" पापा...!" वह मुस्कुराती हुई उसकी तरफ बढ़ी तो वह भी मुस्कुराया।
" कब आयी बेटा ?" उसे सहज होता देखकर माँ-बेटी ने आश्वस्त होकर एक-दूसरे को देखा।
उसके बाद कुछ दिनों तक विनय ठीक रहा, हालाँकि अपनी पुरानी दिनचर्या को वह बिलकुल भूल गया।अब उसकी सुबह भी देर से होती और आभा के साथ बैठकर बातें करने की आदत भी छूट गयी।जब तक गरिमा घर पर थी,वह कुछ सामान्य रहा लेकिन पिता का बदला हुआ रूप गरिमा को भी चिंतित करने के लिए काफी था।
" तुम ऑस्ट्रेलिया से कब आयी ? " कभी-कभी विनय उसे महिमा समझ कर पूछ लेता।
" अभी मैं ऑस्ट्रेलिया गयी ही नहीं पापा..." एक दो बार गरिमा ने हँसकर कह दिया तो विनय ने उसे गुस्से से देखकर कहा," ऍम आय जोकिंग...?"
" विनय, गरिमा मुंबई में है, भूल गये क्या ?" आभा ने कहा तो वह उसे एकटक देखता रहा।
" मुझे तुमनें पहले क्यों नहीं बताया ?" उसने शिकायत करते हुए उल्टा आभा से ही नाराज़गी व्यक्त कर दी।
डॉक्टर का कहना था कि फिलहाल विनय की हालत चिंताजनक नहीं है और उसके साथ सामान्य व्यवहार करते रहना चाहिये।नदीम के आश्वासन पर गरिमा कुछ दिनों बाद लौट गयी लेकिन उसने कह दिया कि यदि समस्या गम्भीर होती हो तो वह दोनों को मुंबई ले जायेगी।गरिमा को विदा करते हुए विनय पहले की तरह भावुक भी नहीं हुआ।विनय को घर पर अकेले छोड़कर जाना आभा को सुरक्षित नहीं लगता इसलिये उसकी दिनचर्या भी बदल गयी।विनय कभी कभी पूरा दिन चुप रहता, तब आभा को घर काटने को दौड़ता लेकिन वह काम में लगी रहती।विनय उसे बगीचे में काम करते हुए चुपचाप देखता रहता।
"मेरी क्लास का टाइम हो रहा है, नाश्ते में कितनी देर लगेगी अभी ?" एक दिन सुबह वह रसोई में थी तभी विनय ने तैयार होते हुए कहा।वह अक्सर विश्विद्यालय जाने की बात करता।कई बार वह राजनीति की मोटी पुस्तकें खोल कर पढ़ता और लेक्चर की तैयारी करता।कभी छुट्टी खत्म होने के बारे में पूछताछ करता लेकिन नदीम के कहने पर आभा ने विनय की ऐसी बातों पर चिंता करना छोड़ दिया।
" आज छुट्टी है विनय," हर बार आभा यही कहती।आज भी उसने यही कहते हुए उसे नाश्ता दे दिया।
" आप मेरी वाइफ को बुला लीजिये प्लीज़," एक दिन नाश्ते की मेज पर बैठते ही विनय ने कहा।आभा ने कुछ देर उसे देखा।विनय की कुछ बातों से उसे ठेस लगती।विनय के चेहरे पर एक अपरिचित-सा भाव आ जाता जो आभा को विचलित कर देता।फिर भी हलकी-सी मुस्कान के साथ उसने कहा, "ठीक है..."
उसे मुस्कुराते हुए देखकर भी विनय के चेहरे पर रोष था।आभा नदीम से विनय के आचरण और बातों के बारे में अक्सर बात कर लेती।नदीम घर आता तो कभी-कभी विनय आभा से नाराज़ भी होता कि वह डॉक्टर से उसके विषय में इतनी बात क्यों करती है!उसे लगता कि वह स्वस्थ है और आभा जबरदस्ती उसे जाने कौन कौन सी दवा खिलाती रहती है।
इधर कुछ दिनों से विनय आभा के साथ अपरिचित-सा रहने लगा था।
" देखिये आप ऐसा नहीं कर सकती..." एक बार रात को आभा सोने की तैयारी में थी कि विनय ने गौर से उसे देखते हुए कहा।
" क्या नहीं कर सकती?"
" यहाँ नहीं सो सकती...मेरी पत्नी..."
" फिर मैं..."
विनय ने उसकी ओर असमंजस दृष्टि से देखा।फिर चुपचाप करवट लेकर सो गया।आभा को विनय के साथ बिताये चालीस वर्ष चलचित्र की तरह याद आते रहे...कितना सुखद जीवन बिताया है दोनों ने।सेवानिवृत्त हो जाने के बाद के जीवन को लेकर भी कितनी योजना बनायी है...लेकिन यकायक जैसे समय रुक गया...डॉक्टर ने विनय की स्मरणशक्ति चले जाने के बारे में सचेत किया था लेकिन उसका प्रत्यक्ष सामना करना कितना कठिन है, इसका आभास उसे आज हुआ।विनय उसे भी भूल सकता है...
विनय कुछ ही देर में खर्राटे लेने लगा पर आभा की आँखों से नींद ग़ायब हो गयी।पिछले कुछ समय से विनय भुलक्कड़ होता जा रहा था लेकिन इस बात को दोनों ही मज़ाक में लेते हुए टालते रहे हैं।किसी का नाम भूल जाना, कोई वस्तु रखकर उसे ढूँढते रहना या तिथि, दिन, समय भूल जाना विनय के लिए आम बात हो गयी थी।आभा विनय को बुड्ढे हो जाने की बात कहकर मज़ाक करती रही।काश उसने उन बातों पर गम्भीरता से सोचा होता...उसे अब याद आ रहा है कि पहले भी विनय कुछ लोगों को पहचान नहीं पाया था।जिन लोगों से रोज का सरोकार नहीं होता उन्हें न पहचान पाना संभव हो सकता है, यही सोचकर आभा ने उनका गम्भीर अर्थ नहीं निकाला।फिर विनय की दिनचर्या भी काफी व्यस्त रहा करती, ऐसे में किसी असाध्य रोग की आशंका होती भी कैसे ! प्रखर को न पहचान पाने की घटना के बाद नदीम ने विनय के सेहत की पूरी जाँच कराने की सलाह दी।विनय का व्यवहार,चिड़चिड़ापन, स्मरणशक्ति का अभाव और जीवन के प्रति अकस्मात नीरस हो जाना अल्ज़ाइमर की आशंका की तरफ इंगित कर रहा था और उसकी मेडिकल रिपोर्ट ने नदीम और आभा की उसी आशंका को उनके सामने उघाड़कर रख दिया।नदीम ने आभा को विस्तार से समझाया कि विनय को अकेला छोड़ना खतरनाक हो सकता है क्योंकि इस परिस्थिति में आवेश में आकर वह अपने आप को नुकसान पहुँचा सकता है।विनय का ध्यान रखने के लिए एक सहायक था लेकिन अब आभा का भी घर से बाहर निकलना लगभग बन्द हो गया।कोई परिचित आ भी जाता तो विनय कमरे से बाहर आने से मना कर देता या उनके सामने चुपचाप बैठे रहता।कभी-कभी वह सारा दिन कुछ भी नहीं बोलता,ऐसे में आभा का दिन भी मौन रहकर ही बीत जाता।
विनय अपने विगत से जितना अपरिचित होता जा रहा था, आभा उतनी ही स्मृतियों के सहारे रहने लगी।विनय के साथ बीते दिनों की बातें करना जितना सुखद हो सकता था, उन्हें अकेले याद करते रहना आभा को उतना ही विचलित करने लगा।आभा को ऐसा लगता जैसे उन यादों का जो सिरा विनय के हाथ में था उसे उसने छोड़ दिया है और आभा अपने सिरे को जितना भी कसकर पकड़ने की कोशिश करती उतना ही वह सरक जाता।वर्तमान के साथ-साथ बीती ज़िंदगी के अनुभव भी अकेली आभा के रह गये थे।अपने लिये विनय की आँखों में अपरिचय का भाव उसे असहनीय और दुःखद लगता।विनय एक स्वरचित व्यूह में बंधता जा रहा था।बेटियों का फोन आने पर कभी तो बात कर लेता लेकिन कभी चुपचाप मूकदर्शक बना माँ-बेटी की बातें सुनता रहता।नदीम फोन पर रोज बात करता ,सप्ताह में दो-तीन बार मिलने भी चला आता।
" अल्ज़ाइमर में याददाश्त कमजोर हो जाती है, लेकिन उसे कुछ याद ही नहीं रहेगा ऐसा भी नहीं है...कभी वह तुम्हें पहचान न सके तो ये समझना भी ग़लत होगा कि वह तुम्हें भूल गया है..." नदीम के आश्वासन के बावजूद आभा को विनय की आँखों का अनजानापन विचलित करता।जिस व्यक्ति ने उसे सर्वाधिक प्रेम किया है और जिसका होना आभा के जीवन का अपरिहार्य भाग है उसी के लिए वह अपरिचित हो गयी।
"आप मेरा बहुत ध्यान रखती हैं, मेरी वाइफ भी ऐसा ही करती है..." आज विनय ने उसे खाना परोसते हुए देखा तो कहा।आभा को याद आया जब उसने कहा था," जानते हो विनय, मेरी सहेलियाँ क्या कहती हैं...ऊपरवाले ने तुम्हारी तरह के पति बनाना बन्द कर दिया है..." तो विनय हँसते हुए बोला था," उनसे कहना कि विनय जैसा पति पाने के लिए पहले आभा जैसी पत्नी भी बनना पड़ता है...।"
उसने पूछना चाहा कि अब उसकी पत्नी कहाँ है, लेकिन उससे पहले ही विनय ने पूछ लिया," आप मिली हैं उसे? बहुत अच्छी है..."
"आप मिलवाइये..."
प्रत्युत्तर में विनय उसे देखता रहा, कुछ बोला नहीं।
फिर विनय अक्सर अपनी पत्नी की बात करने लगा जो उसकी अवचेतन में थी,उस जैसी लगते हुए भी वह आभा नहीं थी।
"आपके कितने बच्चे हैं ?" विनय का अकस्मात यूँ पूछना आभा को चौंका गया।
"दो...और आपके ?"
"मेरे भी..."
"कहाँ हैं ?" आभा ने झिझकते हुए पूछा लेकिन विनय ने उत्तर नहीं दिया।उसके चेहरे से लगा मानो वह याद करने की कोशिश कर रहा हो।
"मेरी दो बेटियाँ हैं..." आभा ने जानना चाहा कि इससे सम्भवतः विनय को भी कुछ याद हो आये।नदीम का कहना था कि आभा विनय से इस बारे में बात करती रहे जिससे उसे याद रखने में मदद मिल सकती है।विनय का उससे अनजान रहते हुए उसी से उसकी बातें करना अजीब लगता।
"आपसे कुछ कहकर गयी है कि वह कब तक आयेगी ?"
विनय उससे पूछ रहा था।
"नहीं...आपको भी नहीं बताया क्या?" आभा के कहने पर विनय के चेहरे पर चिंता के भाव उभरे।
"वह मुझे छोड़कर कभी जाती नहीं...आ जाना चाहिये उसे,"
आभा को विनय का उसके प्रति चिंतित होना अच्छा भी लग रहा था और अजीब भी।
"आ जायेगी, आप तसल्ली रखें," आभा के कहने पर विनय कुछ आश्वस्त लगा।
विनय अब एक स्वरचित संसार में रहने लगा।आभा उस संसार का हिस्सा थी लेकिन प्रत्यक्ष रूप से नहीं।वह उसकी सुखद स्मृतियों का भाग बन गयी थी।विनय के लिए उसकी बातें और साथ बिताये समय की यादें होते हुए भी सामने बैठी आभा अपरिचित थी।बेटियों को जब यह पता चला तो वे स्वयं को रोक नहीं सकी और दोनों ने एक साथ ही आने की योजना बना ली।उन्हें देखकर विनय की प्रतिक्रिया सामान्य रही।उनसे अरसे बाद मिलने के बावजूद वह न तो उत्साहित लगा और न ही अपरिचित।वे दोनों पिता से कुछ न कुछ बतियाती रहती।विनय भावशून्य-सा चुपचाप सुनता।महिमा का नन्हा बेटा और गरिमा की बेटी अपने नाना का मनोरंजन करने का भरपूर प्रयास करते।विनय भी उनकी हरकतों को एकटक देखा करता।
" ममा, मैंने नानू को जोक सुनाया लेकिन वो हँसते क्यों नहीं ? नानू क्या हमसे गुस्सा हैं ममा?" उनकी यह बात सुनकर विनय के चेहरे पर मुस्कान की हल्की-सी रेखा खिंच गयी जिसे देखकर बच्चों ने ताली बजाते हुए कहा," मैंने नानू को हँसा दिया !"
परिवार की कोशिश होती कि वे अधिक से अधिक समय एकसाथ बितायें।तब विनय भी सन्तुष्ट लगता।गरिमा ने लगभग तय कर लिया कि वह अब दोनों को अपने साथ मुंबई ले जायेगी।नदीम ने भी सहमति दे दी क्योंकि आभा के लिये इस परिस्थिति से अकेले निपटना कठिन होने लगा।
" पापा, आप मेरे साथ मुंबई चलोगे ना ?" गरिमा के पूछने पर विनय ने कुछ पल उसे देखा और आभा की तरफ संकेत करते हुए कहा, " ये मेरा बहुत ध्यान रखती है..."
" वो भी चलेगी आपके साथ।"
" मेरी वाइफ...वो जब आयेगी तो..." विनय के मुख पर संशय था।
" पापा, यही तो है वो।" विनय ने इस उत्तर से आभा की ओर देखा तो उसकी संशय की रेखायें और गहरा गयी।आभा का हृदय छलनी हो गया पर फिर भी मुस्कुराने का प्रयास करते हुए उसने विनय को देखा।विनय अपरिचित आँखों से उसे देखता रहा।
" शी इज़ अ गुड लेडी, बट नॉट माय वाइफ..." विनय से अकस्मात ये सुनकर आभा की आँखें छलछला गयी।विनय ने उसे देखा तो आभा वहाँ से उठ गयी।
" ओह पापा...प्लीज़..." गरिमा ने कहा,"यही है हमारी ममा... आपकी वाइफ..."
" पापा...वो हमारी ममा हैं और आप पापा...इसीलिए हम साथ हैं...आप ही तो कहते हैं न पापा कि ममा दुनिया की सबसे अच्छी लेडी हैं, और बेस्ट मदर..." महिमा ने आभा की पीड़ा समझते हुए बेहद दुखी स्वर में कहा।विनय के चेहरे से ये अंदाज़ा लगाना कठिन था कि वह कितना समझ पा रहा है।महिमा उठकर माँ के पास चली आयी।कल तक अपने माता-पिता के प्रति बेटियाँ जितनी आश्वस्त थी,आज उतनी ही चिंतित।
शाम को आभा रोज की तरह बगीचे में काम करती रही।बरामदे में दोनों बेटियाँ पिता को घेरे बैठी थीं।मेज़ पर पुराने एल्बम और कुछ चित्र बिखरे हुए थे।गरिमा और महिमा विनय को एलबम खोलकर दिखा रही थी।
" पापा बताओ तो ये कौन है...?" आभा के साथ विनय के एक चित्र पर उंगली रखकर गरिमा ने पूछा।विनय ग़ौर से देखता रहा।महिमा ने उनकी शादी का एलबम खोलकर विनय के सामने रख दिया।विनय चित्र को देखकर आभा की ओर देखने लगा।
" पापा...शी इज़ आभा...योर वाइफ...हमारी ममा..." महिमा ने धीरे-से फुसफुसाते हुए कहा।विनय भी कभी फोटो देखता कभी आभा की ओर।आभा के हाथ पौधों में उलझे थे और ध्यान विनय की ओर।
" आभा..." वह फुसफुसाया लेकिन शब्द पर जैसे संशय का आवरण था।उसके सामने जो स्त्री थी उसकी छवि एल्बम में उसके समीप खड़ी स्त्री से मिलती-जुलती होते हुए भी वह दोनों में तारतम्य नहीं जोड़ पा रहा था।महिमा ने आभा को निराशा से देखा तो वह फीकी-सी हँसी के साथ हाथ झाड़कर अंदर आ गयी।
" आभा, जितनी परेशान तुम हो न,यक़ीन करो तो उतना ही परेशान विनय भी है।वह तुम्हें भूला नहीं है लेकिन उसका ब्रेन तुम्हारी याद और चेहरे का तालमेल नहीं बना पा रहा...इसीलिए तुम सामने होते हुए भी वह पहचान नहीं पा रहा...ऐसा हो सकता है कि वह अचानक पहचान ले..." नदीम के ऐसा कहने पर आभा आश्वस्त भी हुई और दुःखी भी।
गरिमा के साथ दोनों का मुंबई जाना तय हो गया।अपने बसे बसाये घर को छोड़कर नयी जगह पर जाकर रहने का विचार आभा को साल रहा था,जीवन के जिन पलों की आशा से विनय और आभा ने वह घर बनाया था, वे पल उससे छिन गये।विनय भी जाने के लिए आनाकानी करने लगा,लेकिन गरिमा ने यह कहकर मना लिया कि वहाँ उनकी पत्नी भी होगी।
मुंबई में विनय की देखभाल की सारी सुविधा थी।विनय अपने भीतर के संसार में उलझा बालकनी में बैठे बाहर ताकता रहता।अलबत्ता आभा के लिए सभी कुछ अपरिचित लग रहा था, घर और उस घर में निर्लिप्त बैठा विनय भी जिसकी आँखों में आभा अपने परिचय का सूत्र खोजती रहती।
" हम यहाँ कब तक रहेंगे ? " विनय ने पूछा।
" आपको अच्छा लग रहा है ना यहाँ ?" आभा ने जवाब में उसी से पूछ लिया।
" घर तो अच्छा है...लेकिन..." वह बोलते-बोलते रुक गया।आभा प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखती रही।विनय भी कुछ देर देखता रहा फिर बोला,
" उसे कैसे पता चलेगा कि मैं यहाँ हूँ ?"
" उसे यानि...?"
" मेरी पत्नी..."
" उसका नाम क्या है ?"
" याद ही नहीं आ रहा..." विनय के चेहरे पर कुछ चिंता-सी उभरी।
" आभा..." वह धीरे से फुसफुसायी।
विनय अन्यमनस्क-सा उसे ताकता रहा।फिर कुछ सोचते हुए बोला, " यहाँ हरसिंगार का पेड़ भी नहीं दिखता, है क्या कहीं ?"
" क्यों चाहिये आपको हरसिंगार ?" आभा ने हैरानी से पूछा।
" उसे बहुत अच्छे लगते हैं," विनय के इस उत्तर ने आभा को चौंका दिया।
" उसने बताया है आपको ?"
" मुझे पता है...उसकी पसंद-नापसंद...सबकुछ..."
आभा मुस्कुरायी।
" नापसंद क्या है उसे,बताइये तो..." आभा सचमुच जानने के लिए उत्सुक हो गयी।
विनय कुछ पल चुप रहा।
" मेरा रात देर तक जागकर पढ़ना...,उसे रात को गाने सुनना पसंद है और मुझे पढ़ना,लेकिन पढ़ते समय गानों की आवाज़ मुझे डिस्टर्ब करती है इसलिए मैं उसे चलाने नहीं देता...इसलिए कभी-कभी वो नाराज़ हो जाती है...मुझे पता है वह नाराज़ होने का नाटक करती है..."
किसी सुखद स्मृति से विनय के होंठों पर मुस्कान आ गयी।आभा हतप्रभ रह गयी।विनय को इस स्मृतिभ्रंश की स्थिति में भी ये सब याद है...लेकिन वह उसे ही क्यों नहीं पहचान पा रहा...
डॉक्टर ने सलाह दी कि वे विनय से इस बारे में बातचीत किया करे जिससे उसे मदद मिलती रहे।आभा के लिए विनय से अपने बारे में ही अपरिचित होकर सुनना मनोरंजक भी लगने लगा और दु:खद भी।लेकिन सब इस बात पर हैरान हो रहे थे कि विनय अब भी केवल अपनी पत्नी को ही याद कर रहा है।आभा को भी इसी बात की तसल्ली थी।दिन भर वही विनय के साथ होती।शाम को जब सारा परिवार साथ होता तब विनय अधिकतर चुप रहता।
हर दिन की तरह आज भी विनय अपने सहायक के साथ सुबह की सैर पर गया।गरिमा ने उसे सोसायटी के बाहर हरसिंगार का पेड़ दिखाकर विनय को वहाँ ले जाने को कह दिया था।उसके लौटकर आने तक आभा नहा-धोकर तैयार हो जाती।
" अरे,तुम आ गयी...!" विनय की आवाज़ सुनकर बाल सुखाती आभा का हाथ वहीं रुक गया।वह चौंककर मुड़ी।हाथ में हरसिंगार के तीन चार फूल लिये विनय उससे कह रहा था।आभा के होंठ अप्रत्याशित मुस्कान से खिंच गये, लेकिन उसे देखते ही विनय कुछ सकपका गया।
" ओह, सॉरी...मुझे लगा..." कहते हुए वह शिथिल कदमों से कमरे से बाहर निकल गया।आभा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।बालों को समेटकर वह आयी तब विनय बालकनी में बैठा था।आभा बगलवाली कुर्सी पर बैठ गयी।
" तुम...आप कुछ कह रहे थे...," विनय ने उसकी तरफ देखा तो वह बोली।
" ह्म्म्म...वो...आप खड़ी थीं तो मुझे लगा वो आ गयी...
" ये फूल...मिल गये आपको..." आभा ने पूछा।
वह कुछ क्षण के लिए रुका।फिर बोला, " आप मेरा इतना ध्यान क्यों रखती हैं ?"
आभा भी कुछ पल चुप रही।विनय उत्तर की अपेक्षा में उसे ही देख रहा था।
" आपको ऐतराज़ तो नहीं है न...मुझे आभा ने कहा है..."
" आभा..." विनय बुदबुदाया।
" हम्म...वह आ जायेगी, जल्दी ही, तब तक मैं हूँ ना आपका ध्यान रखने के लिए..." कहते-कहते आभा की आँखें सजल हो गयी।उसने दुपट्टे के किनारे से आँखों की कोरों को धीरे-से पोंछ दिया।
तभी विनय ने अपनी हथेली उसकी ओर बढ़ा दी ," आपके लिए...आप ने कहा ना, वह जल्दी ही आ जायेगी, फिर आपको रहना नहीं पड़ेगा..."
आभा ने छलछलायी आँखों से उसे देखा।विनय के हाथों से हरसिंगार के दो फूल आभा की गोद में गिर गये...
© भारती बब्बर