देवदत्त वर्मा ने फिर एक बार जयराज की तरफ देखा और पूछा–“क्या तुम्हे किसी मानव भेड़िये की पहचान का पता चला है?”
“नही सर , मैं अभी पहचान तो नही कर पाया हूं, पर जंगल में मिली लाशों पर को पंजों और दांतो के निशान मिले हैं , उससे तो यही पता चलता है की ये उन्ही लोगों का काम है।” जयराज सिन्हा ने देवदत्त वर्मा को बताते हुए कहा।
“तुम इस आधार पर इतने यकीन से कैसे बोल सकते हो की ये उन्ही का काम है?” देवदत्त वर्मा ने गुस्से से जयराज सिन्हा से पूछा।
“सर जंगल में जिन लोगों पर हमला हुआ था उन्होंने पूछ ताछ के दौरान एक स्केच बनवाया था। जो हुबहू उनसे मिलता जुलता है।” जयराज सिन्हा ने कहा।
जयराज सिन्हा की पूरी बात सुन लेने का बाद देवदत्त वर्मा ने कुछ सोचते हुए कहा–“जयराज....! तुम हमारे सभी लोगों के यहां के चप्पे चप्पे पर निगरानी रखने को बोल दो। और सभी को हमारे हत्यार भी दे दो। उनसे ये भी कहना की जैसे ही उन्हें किसी मानव भेड़िये का पता चले तो वो पहले मुझे या तुम्हे खबर करे। वो लोग बहुत खतरनाक हैं। इंसानी रूप में उन्हें पहचान पाना बहुत मुश्किल है। जैसा कि तुम जानते हो, हमारे काबिले और उनके बीच की दुश्मनी बहुत पुरानी है। अगर उन्होंने हमें या हमारे लोगों को पहचान लिया तो हमें जिंदा नही छोड़ेंगे। इसलिए हमारे लोगों को कहो की वो पहले उनकी पहचान करे और फिर उन पर नजर रखें।” देवदत्त वर्मा ने जयराज सिन्हा को समझाते हुए कहा।
“जी सर... मैं सबको हथियार बाट देता हूं। और मैं सबको समझा भी दूंगा की उन्हे क्या करना है।” जयराज सिन्हा ने देवदत्त वर्मा से कहा। इसके बाद उनकी मीटिंग खत्म हो गई।
दूसरी तरफ जोसेफ गोम्स और पवन कुमार, विकास के साथ एक कमरे में बैठकर बाते कर रहे थे। “विकास तुम एक टीम बनाओ जिसमे ऐसे ऑफिसर्स को शामिल करो जो इस काम के लिए परफेक्ट हों। और पवन कुमार जी...! आप हॉस्पिटल जाकर सूर्यकान्त से मिल लीजिए। वो अगर ठीक है तो उससे पूछिए की क्या वो इस काम में हमारी मदद साथ दे सकता है?” जोसेफ गोम्स ने पवन कुमार और विकास को अपना अपना काम बता दिया। इसके बाद पवन कुमार और विकास वहां से रवाना हो गए।
वहीं पवन कुमार हॉस्पिटल पहुंचकर सूर्यकांत से मिले। “कैसे हो सूर्यकान्त? और तुम्हारा हाथ कैसा है अब?” पवन कुमार ने सूर्यकांत से पूछा।
“मैं ठीक हूं सर। एक दो दिन में मुझे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज मिल जायेगा।” सूर्यकांत ने कहा। इसके बाद जब सूर्यकांत ने पवन कुमार का चेहरा देखा तो वो कुछ चिंता मे नजर आ रहे थे।
“पवन सर...! आप कुछ टेंशन में लग रहें हैं ! बात क्या है?” सूर्यकान्त ने पवन कुमार को देखते हुए पूछा।
“सूर्यकान्त तुम्हे तो पता है की अभी यहां कितना कुछ हो चुका है। वो जानवर भी खुला घूम रहा है। मुझे समझ नही आ रहा की इस हालत में तुमसे ये पूछना सही रहेगा या नही?” पवन कुमार ने चिंता भरे भाव से सूर्यकांत को देखते हुए कहा।
“पवन सर आप मुझे साफ साफ बताइए बात क्या है? आप क्या पूछना चाहते हैं मुझसे?” सूर्यकांत ने पूछा।
“जोसेफ सर ने मुझे तुम्हारे पास ये जानने के लिए भेजा है की क्या तुम हमारा साथ दे पाओगे इस मामले में?” पवन कुमार ने हिचकिचाते हुए सूर्यकान्त से पूछा।
पवन कुमार की बात सुनकर सूर्यकांत मुस्कुराने लगा। “अरे सर ये तो मैं खुद आपसे पूछना चाहता था। पर आपने ही आगे होकर पूछ लिया। वैसे भी मैं यहां पड़े पड़े बोर हो चुका हूं।” सूर्यकान्त ने मुस्कुराते हुए कहा।
सूर्यकांत से ये सुन लेने के बाद पवन जी ने सूर्यकांत के हांथ की तरफ देखते हुए कहा–“पर सूर्यकान्त...! तुम्हारा हाथ पूरी तरह से अभी ठीक नही हुआ है। ऐसे मे तुम ये सब कैसे कर पाओगे?”
सूर्यकांत पवन कुमार का चिंता करना समझ सकता था। फिर भी उसने मुस्कुराते हुए कहा–“ सर मैं जानता हूं की अभी मै इस हालत मे आपकी मदद नही कर सकता। पर मैं कुछ ऐसे लोगों को जानता हूं जो ऐसे जानवरों को ट्रैक करने में माहिर हैं। मै उनसे बात कर लूंगा। वो आपकी पूरी मदद करेंगे।” इतना कहते हुए सूर्यकान्त अपने पास के टेबल पर रखा फोन उठाता है और किसी को फोन करने लगता है।
“हेलो यशवंत...! तुम्हारे लिए एक काम है। तुम तुरंत आकर मुझसे मिलो।” ये कहकर सूर्यकान्त ने फोन रख दिया और पवन कुमार की तरफ देखते हुए बोला–“पवन सर... यशवंत मेरा चचेरा भाई है। वो आपकी पूरी मदद करेगा। और मैं भी आपकी मदद के लिए तैयार रहूंगा। बस एक बार ये प्लास्टर निकल जाए फिर मैं आपकी अच्छे से मदद कर पाऊंगा। तब तक यशवंत आपके साथ आपकी मदद के लिए रहेगा” सूर्यकांत ने पवन कुमार को आश्वासन देते हुए कहा।
सूर्यकान्त से बात करने के बाद पवन कुमार हॉस्पिटल से बाहर आकर जोसेफ गोम्स को फोन लगाते हैं। “हेलो जोसेफ सर.... सूर्यकान्त हमारी मदद के लिए तैयार है। उसका एक भाई है यशवंत, जो की एक ट्रैकर है। वो भी हमारी मदद करेगा।” पवन कुमार ने जोसेफ गोम्स से कहा।
“ये तो बहुत अच्छी बात है। हमे अभी जितनी मदद मिल सके उतना अच्छा होगा। एक काम करो शाम को मुझसे आकर मिलो। कुछ जरूरी बात करनी है।” इतना कह कर जोसेफ गोम्स ने फोन रख दिया।
वहीं दूसरी तरफ विक्रांत अपने घर पर सुप्रिया को शांत करने मे और अपनी बात समझाने में लगा हुआ था। पर सुप्रिया उसकी कोई भी बात सुनने को तैयार नहीं थी। “तुम मुझसे दूर रहो। मुझे हाथ मत लगाना। मुझे बस अपने घर जाना है।” सुप्रिया ने गुस्से मे विक्रांत को देखते हुए कहा।
“सुप्रिया तुम बात समझने की कोशिश करो। अब तुम कोई आम इंसान नही हो, तुम एक मानव भेड़िया बन चुकी हो। जब तक तुम खुदपर काबू नही पा लेती, तब तक तुम्हारा लोगों के बीच होना उनके लिए सुरक्षित नही है। यहां तक कि अब तुम्हारे पापा को भी तुमसे खतरा है। जो नये भेड़िये होते हैं उन्हे खून की बहुत ज्यादा प्यास लगती है। ऐसे में उनके लिए इंसान सबसे आसान शिकार होते हैं। वो आसानी से उन्हे मारकर उनका खून पी सकते हैं। मैं जन्म से मानव भेड़िया हूं। इसलिए मै खुदपर काबू पा सकता हूं। मैं आम लोगों जैसा खाना भी खा सकता हूं। पर हम भेड़ियों के लिए खून पीना जरूरी है। इसलिए मुझे जब भी प्यास लगती है मैं जानवरों का खून पी लेता हूं। मै ये मानता हूं की इसमें इंसानी खून पीने से जो ताकत मिलती है उतनी ताकत नहीं मिलती। पर प्यास शांत हो जाती है। लेकिन अगर मानव भेड़िये एक बार इंसानी खून पी लेते हैं तो वो खुदपर काबू खो देते है। वो बहुत ज्यादा ताकतवर होते हैं।” विक्रांत ने सुप्रिया को सब कुछ समझाते हुए कहा।