सावन का फोड़ - 21 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 21

करोटि काठमांडू से लौटकर कर्मा के पास गया और उसने कर्मा को हिदाययत देते हुए कहा कि जोहरा को सावन में हमारे सामने होना चाहिए वह भी मेरे सौंपे काम को अंजाम तक पहुंचाने के साथ कर्मा ने कहा हुजूर कि मर्जी खुदा कि मर्जी ऐसा ही होगा। कोशिकीपुर के लोग हर वर्ष बरसात बाढ़ बारिस के लिए चार महीनों की व्यवस्था करके रख लेते जिससे बाढ़ बरसात में परेशान न होना पड़े अमूमन हर साल काम चल जाता लेकिन किसी किसी साल ऐसा भी हो जाता कि बाढ़ का प्रकोप इतना भयंकर होता कि गांव वालों द्वारा बाढ़ बरसात के लिए की गई सारी व्यवस्थाए ध्वस्त हो जाती ।जोहरा का बच्चा चार महीने का हो चुका था सुभाषिनी तो पहले से ही जोहरा से घुली मिली थी अब उसका नन्हा बच्चा सुभाषिनी के लिए खिलौने जैसा था जिसके कारण सुभाषिनी अपनी माँ शामली से अधिक जोहरा के पास ही रहती  शामली को भी आराम ही था जोहरा ने घर का काम सम्भाल लिया और सुभाषिनी भी उसे भाती दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते दोनों माँ बेटी कि तरह ही लगती।कहते हैं नियत अपना खेल इस कदर खेलती है कि किसी को इल्म तक नही होता कोशिकीपुर का निवासी गोहुल था जिसने ना तो विवाह किया था ना ही कोई काम करता उसका एक ही काम था वह दिन भर दारू पिता गांजा पिता और जब भी पैसों की कमी होती वह बाप दादो कि पुश्तेनी जमीन बेचता आलम यह था की अब उसके पास बेचने के लिए लेकिन उसकी कुलत ने उसे किसी भी स्तर तक जाने को विवश कर दिया था भीख मांगता उधार तो उसे सिर्फ गांव में दो ही आदमी देते रजवंत या अद्याप्रसाद क्योकि दोनों के पिता गोहुल के पिता के अच्छे दोस्त थे उसी का वास्ता निभाते दोनों ।दिनभर रुक रुक बारिस हो रही थी गोहुल के पास दारू के लिए पैसा नही था दिन भर वह किसी तरह अपने आप को रोकने की कोशिश करता रहा लेकिन जब उसका खुद से नियंत्रण खोता प्रतीत हुआ तब वह सीधे रजवंत के घर गया जहाँ पहले से जोहरा शामली मुंनक्का और सुभाषिनी और जोहरा अपने मासूम बच्चे के साथ मौजूद थे।गोहुल ने जाकर रजवंत के पैर पकड़ते हुए बोला रजवंत भैया आज पीने के लिए एक घुट दारू नही मिली है एक ढेला नही है हम दारू नही पियेंगे तो जिएंगे कैसे राजवंत ने कहा गेहूल नौटंकी जिन कर हम देइत हई पैसा इतना कहते ज्यो ही रजवंत उठा और अपने कुर्ते के पॉकेट से पैसा निकाल कर गेहूल को देने लगे तभी जोहरा के बच्चे ने जोर से रोना शुरू किया रजवंत ने कहा गेहूल ई पैसा ल तब गेहूल ने रजवंत से पैसा लिए और ज्यो ही लौटने लगा उसकी निगाह जोहरा पर गयी वह ठिठक कर रुक गया और बोला रजवंत भईया सुन ई जाऊँन बैठी है तऊन बाई जी हईं हम त आज इन्हें तोहरे घरे इनके देखत हई गांव के लोग अनाप शनाप दोहन दुनो लोगन तोहरे और अद्या के बारे में अक्सर चर्चा करत रहेलन हम पियक्कड़ आदमी कबो ध्यान नाही दिहनी हम त आज ही इनके देखते हई राजवंत बोला तू जा गेहूल नही त दारू के ठिका बंद हो जाई त सुबह पता नाही हम लोगन के तोहरे क्रिया करम में पैसा फूंके के परी गेहूल चला गया यह कहता कि सहीए ह पियक्कड़ कि बाती के लोग ऐसे समझतेन जइसे नबदानी से बहत पानी ।गेहूल के जाने के बाद रजवंत ने जोहरा से कहा की जोहरा एकरे बाती पर ध्यान तनिको नाही दिह ई पियक्कड़ ह केहू के कुछो कही देला उस समय मामल तो शांत हो गया लेकिन शामली और मुंनक्का ने नजरो एक दूसरे को इशारा किया जिसे जोहरा ने देख लिया जोहरा समझ गयी अब उसका दाना पानी अद्याप्रसाद के घर एव कोशिकीपुर गांव से उठ चुका है  ।बारिस बहुत जोरो से आने के आसार नजर आ रहे थे शामली ने मुंनक्का से कहा हम लोग चली साझ होए वाला बा बरखा बुनी भी बहुत तेज बा राती के खाना बनावे के व्यवस्था कईल जा और सुभाषिनी जोहरा के साथ घर आई दोनों के घर सटे ही थे सिर्फ दीवाल का फासला था घर लौटकर शामली ने जोहरा से कहा खाना बनाने की तैयारी करो लाओ सब्जी हम काट देते है जोहरा मन ही मन अपना पोल खुलने के डर से दहसत में थी वह शामली की हर आदेश का पालन रोज कि तरह ही कर रही थी घड़ी भर रात ढलने पर आवश्यक काम से बाहर गए अद्याप्रसाद प्रसाद भी आ गए कुछ देर के बाद जब जोहरा काम मे व्यस्त थी एव व्यस्त होने के साथ साथ शामली और अद्याप्रसाद क्या आपस मे बात करते है उसे सुनने जानने का प्रयास कर रही थी शामली ने अद्याप्रसाद को बताया की दिन में गेहूल आया था उसने जोहरा को देखने के बाद कहा जोहरा तो बाई है और कोठे कि रहने वाली है अद्याप्रसाद ने पत्नी शामली से सवाल किया रजवंत ने क्या कहा? शामली ने बताया की रजवंत भईया ने कहा गेहूलवा पियक्कड़ ह अनाप सनाप बोलत रहत ह अद्याप्रसाद ने कहा फेर हमसे का सुनल चाहत हुऊ तुहू त जोहरा के साथे कलकत्ता में महीना भर चौबीसों घण्टा देखले सुनले हुऊ ऊहाँ कुछ एइसन वइसन देखलु सुनलू महसूस काईलु त बताव शामली निरुत्तर हो गयी।सप्ताह भर बीतने के बाद गेहूल की बात को पियक्कड़ कि बात समझकर सब  भूल गए और जोहरा अद्याप्रसाद के घर मे फिर से सामान्य तौर से रहने लगी।एका एक एक रात जोहरा सो रही थी अचानक वह नीद से जागी जैसे उंसे लगा करोटि उसके सामने काल बनकर खड़ा है उसी ने उसका हाथ पकड़कर जगाया है जोहरा भय से कांपने लगी हिम्मत करके जब आंख खोला तो सामने कोई नही था सिर्फ उसका बहम था लेकिन वहम ही उसकी सच्चाई थी वह बहुत देर सोच विचार करती रही एका एक अद्याप्रसाद एव रजवन्त  के परिवारो के सारे एहसानों को पैर के तले रौंदने के लिए उसने देखा कि उसके चार महीने के मासूम एव सुभाषिनी निश्छल भाव से सो रहे है जोहरा ने झट से सुभाषिनी को गोद मे उठाया और अपने कंधे पर रख अपने चार महीने के दुधमुहे बच्चे को छोड़ते हुए वह अद्याप्रसाद के घर से रात्रि के तीसरे पहर निकली और लगभग भगते हांफते रुकते अंदाज़ में।सुबह  लाली के साथ उसके मासूम ने जोर जोर से रोना चिल्लाना शुरू किया शामली ने पहले तो जोहरा को पुकारा जब जोहरा का कोई अंदाज़ा नही मिला तब वह जोहरा के विस्तर तक गयी और देखकर दहाड़ मारकर रोने लगी क्योकि जोहरा का बच्चा तो था सुभाषिनी और जोहरा गायब थे शामली कि चीख दहाड़ सुनकर मुंनक्का रजवंत भागे दौड़े आए अद्याप्रसाद पत्नी शामली से पूछा का भइल शामली ने जोहरा के बच्चे कि तरफ इशारा करते हुए कहा सुभाषिनी  नाही बा दोनों परिवारों में अफरा तफरी तो मची ही हुई थी पूरे गांव में खबर बिजली कि तरह फैल गयी और गांव वाले अद्याप्रसाद के दरवाजे पर एकत्र होकर अपनी अपनी शेखी बघारते परामर्श देते शामली अचेत हो चुकी थी।इधर जोहरा बहुत जल्दी सुभाषिनी को लेकर कर्मा तक पहुँचना चाहती थी सुभाषिनी के लिए जोहरा अपरिचित तो थी नही अतः वह सिर्फ यही पूछती  जोहरा से की माई के पास कब तक पहुँचल जाई।