नक़ल या अक्ल - 45 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 45

45

ख़ुदख़ुशी

 

आधी रात का समय है, पूरे गॉंव में सन्नाटे की चादर पसरी हुई है। सिर्फ कुछ कुत्तों के भोंकने की आवाज़ आ रही है। आसमान बादलों से घिरा हुआ है। चाँद भी बादलों की ओट में छिप चुका है। छत  पर सोते बिरजू को नशे की पुड़िया न मिलने की वजह से परेशानी हो रही है। कई देर तक बेचैनी से वह करवट बदलता रहा, फिर उससे रहा नहीं गया तो उसने जग्गी को फ़ोन घुमाया, पहले तो काफी देर तक घंटी बजती रही, फिर जब वो फ़ोन काटने लगा तो जग्गी ने फ़ोन उठा लिया। जग्गी की आवाज बता रही है कि वो नींद में है। वह छत के एक कोने में गया और उससे धीरे से बात करने लगा,

 

जग्गी !! मैं बिरजू ।

 

हाँ  भाई !! इतनी रात को फोन क्यों किया?

 

मुझे पुड़िया चाहिए, वो भी अभी।

 

क्यों नींद नहीं आ रही है?

 

हाँ, कई दिनों से नहीं ली है, इसलिए पागल हो रहा हूँ। बिरजू की आवाज में बेबसी है। 

 

भाई! यह तो नहीं हो सकता, एक तो रात इतनी है । ऊपर से आपका बापू  पागल  कुत्ते  की तरह  हमारे  पीछे  पड़  गया है ।

 

मेरी हालत समझ, मुझे पुड़ियाँ  चाहिए । मैं दुगने पैसे दूँगा ।

 

लेकिन भाई मैं आपके घर के बाहर नहीं आ सकता ।

 

कोई नहीं तो मुझे थोड़ी देर में नदी के पास मिल और वहाँ पहुँचतेही मुझे फ़ोन कर दियो  ।

 

ठीक है, भाई, लेकिन रेट ज़्यादा लगेगा ।

 

“हाँ! हाँ! मैं समझ गया।“ यह कहकर  उसने फ़ोन रख दिया, अब उसने आँगन में देखा कि उसके बापू  के मुलाजिम नीचे पहरा दे रहे हैं । कुछ जाग रहें है तो कुछ सो रहे हैं।  “मेरे बापू ने तो मेरी ज़िन्दगी  ही ख़राब कर दी है।“ उसने मन ही खींजते हुए कहा। 

 

उसने अपना दिमाग लगाया और वहाँ से निकलने के बारे में सोचने लगा। उसने अब अपने साथ वाली छत पर झाँका। पड़ोसियों का यह मकान बहुत दिनों से बंद है,  वे लोग कुछ दिनों के लिए शहर गए हुए हैं। वह बड़ी सावधानी से उनकी छत पर कूदा और वहाँ रखी सीढ़ी उठा ली और फिर उसे बाहर की तरफ लगाकर नीचे उतरने  लगा । फिर आहिस्ता आहिस्ता वह उस सीढ़ी की मदद से नीचे उत्तर गया और सड़क पर चलने  लगा। “एक बार पूड़िया  का पैकेट मिल जाये, उसके बाद तो एक बारी में  सारी पुड़ियाँ खाकर खुद को खत्म कर लूँगा। यही सोचकर वह आगे बढ़ता जा रहा है। 

 

निर्मला भी अपनी छत से उतरी और नीचे आकर अपने बापू  के कमरे में  गई और हल्के हाथों से उनके चरणों को हाथ लगा लिया । ऐसा करते हुए उसकी आँख से आँसू निकल रहें हैं। अब वह सोना और गोपाल के कमरे में भी गई और उनको एक नज़र देखा और फिर धीरे धीरे कदमों से घर का मुख्य  किवाड़ खोलकर घर से निकल गई। उसकी आँखे आँसुओं से भरी हुई है। उसने कभी नहीं सोचा था कि  वह अपने जीवन में कुछ ऐसा भी कोई कदम उठाएगी। “आख़िर! वो आदमी जीत गया और मैं हार गई,” यह कहते ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। 

 

अब बिरजू नदी के किनारे पहुँच ही गया, थोड़ी देर उसका इंतज़ार करने के बाद , जग्गी वहाँ आया बिरजू ने उसे डाँटते  हुए कहा,

 

कहाँ रह गया था?

 

भाई सो रहा था। घड़ी तो देखो तीन बज रहें हैं, ऊपर से बारिश भी शुरू होंने वाली है। यह तो आपके साथ याराना है, इसलिए आ गया अगर कोई और होता तो कभी भी इतनी रात को नहीं आता। 

 

हाँ! हाँ! पता है कि तेरा पैसों के साथ कितना याराना  है।  

 

क्या  भाई !! जग्गी  ने मुँह  बना लिया।  

 

अब बिरजू ने उसे पैसे पकड़ाए और उससे पुड़ियाँ का पैकेट ले लिया। जग्गी तो जल्दी से वहाँ से खिसक  गया पर  बिरजू वही खड़ा खड़ा पैकेट खोलने लगा,  तभी बादल ज़ोर से गरजने लगे । आसमान में बिजली चमकने  लगी।  छत पर सोया नन्हें  भी काजल को लेकर  छत से नीचे उतर गया। अब देखते ही देखते झमाझम  बरसात होने लगी । पैकेट भीग न जाए, इसलिए उसने जल्दी से उसे जेब में रख  लिया और पेड़ की ओट में खड़ा हो गया । बादल टूटकर बरस रहा है। यह भगवान भी मुझे चैन  से मरने नहीं देंगे। उसने चिढ़ते हुए बारिश की झड़ी को देखते हुए कहा। 

 

 तभी निर्मला भी बारिश  में भीगती  हुई  नदी के पास आ पहुँची । बारिश  की वजह से नदी के पानी में  उफान  आ गया है । वह भीगती  हुई  कुछ  देर तक  नदी को देखती रही, अब तक बिरजू  की नज़र भी उस पर पड़ चुकी  है, “यह कौन है? और इतनी  रात को बारिश  में  क्या  कर रही  है ।“ अँधेरा  होने की वजह से उसका चेहरा  उसे ठीक से नज़र नहीं आया । उसने अपने फ़ोन की  रोशनी  में  उसे देखना चाहा, मगर उसे तब भी वह ठीक से नहीं दिखी।  कहीं यह कोई भूतनी  तो नहीं है।  उसे अब हल्का  सा डर  लगा, इसी  डर  की वजह  से वह पेड़ से चिपक  गया।

 

निर्मला ज़ोर ज़ोर से रो ही है,  बहती नदी  को देखकर  वह बोली, “ हे ! नदी माता  मुझे अपनी गोद  में  समा लेना।  तुझे तो पता ही मैं कितनी दुखियारी  हूँ।  इस संसार  में  मेरा अब कोई अपना नहीं है।“  यह कहकर  उसने हाथ  जोड़  दिए।   बिरजू  ने यह सब देखा तो उसे यकीन  हो गया कि यह  कोई भूतनी  नहीं बल्कि कोई गॉंव  की लड़की  है। 

 

मगर तभी अचानक  निर्मला ने नदी के अंदर छलॉँग लगा दी । “अरे  !! बाप रे !! यह तो यहाँ  मरने आई  थीं । हे भगवान !!! इसका मतलब अकेला मैं ही दुःखी  नहीं हूँ ।“  वे अब पास जाकर नदी  को देखने लगा, निर्मला बहती जा रही है ।  लगातार  बारिश होने की वजह से पानी का बहाव तेज़ भी है। “यह तो गई !!” उसने अब गहरी साँस ली और वापिस अपने घर की ओर जाने के लिए मुड़गया, “बारिश  तो रुकेगी नहीं, मगर मैं पकड़ा  जाऊँगा” यही सोचकर उसके कदम घर की ओर  लौटने  लगें, जाते  समय उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा, “मुझे क्या करना है, कोई मरे या जिए, मैं भी कौन सा सुखी हूँ,” अब उसके कदम जरा आगे बढ़ें, पर तेज़ बारिश और हवा की वजह से उसके कदमो की गति  कम हो गई और वही दूसरी ओर नदी निर्मला को बहाते हुए आगे अपने साथ लेती जा रही है।