नक़ल या अक्ल - 44 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 44

44

खुश

 

बिरजू अपने सामने अपने बापू गिरधारी को देखकर चक्कर खाकर गिर गया, गिरते समय उसके मुँह से निकला, “बापू!!!” उसके बापू ने उसके मुँह पर एक ज़ोरदार चाटा मारा और उसके हाथ से पैकेट छीन लिया। फिर गिरधारी के कहने पर उसके नौकर जुनैद को उसके घर छोड़ आए और बाकी नौकरों ने  बिरजू को उठाकर आँगन में लिटा दिया और गिरधारी ने डंडे से उसे मारना शुरू कर दिया, नशे में  बिरजू की चीखें भी सिर्फ उतनी निकली, जितनी उसके घरवाले सुन सकें। राजवीर अपने भाई बिरजू से लिपट गया तो वहीं सुधीर ने बापू का डंडा पकड़ते हुए कहा,

 

बापू !! यह  क्या कर रहें हो?

 

दिखाई नहीं देता, तेरे नशेड़ी भाई की मरम्मत कर रहा हूँ । अब उन्होंने पैकेट  सुधीर को थमा दिया । वह भी हैरान है, मधु भी घूँघट ओढ़े वही आकर खड़ी  हो गई । उसे भी बिरजू की हालत पर तरस आने लगा ।

 

जमींदार अब फिर चिल्लाया, “इसने पूरे गॉंव में मेरी इज़्ज़त उछाल  दी, अब लोगों को यह पता चलेगा तो वह क्या सोचेंगे कि जमींदार का बेटा, ऐसा गया गुज़रा है।“ अब उनके कहने पर नौकरों ने उसे ले जाकर उसके कमरे में बिस्तर पर लिटा दिया और वह खुद सिर पकड़कर वही बिछी चारपाई पर बैठ गए। अब सुधीर ने मधु को सोने के लिए कह दिया और ख़ुद दोनों भाई बापू के साथ बैठ गए।

 

बापू मुझे लगता है कि यह उनकी संगति की वजह से हुआ है। वरना, बिरजू भाई  ऐसा नहीं कर सकते। राजवीर की बात का समर्थन करते हुए सुधीर भी बोल पड़ा, “किसी ने जानबूझकर उसे फँसाया है।“

 

वो कोई छोटा  बच्चा नहीं है, गबरू जवान बना फिरता है, उसे अपने अच्छे बुरे का ख़ुद मालूम  होना चाहिए । वो मुंशी बिरजू के बारे में सही कह रहा था।“ ज़मींदार चीखा । फिर उसने नौकरों को बुलाकर  कहा, “इस पर कड़ी नज़र रखो,  यह घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए।“

 

ठीक है, सरकार,  आप लोग सो जाए, हम देख लेंगे ।

 

“एक घंटे बाद तो सुबह होने वाली है और इस तमाशे के बाद, क्या खाक नींद आएगी।“ गिरधारी अपने कमरे में जाते हुए बोला । राजवीर बिरजू के कमरे में गया तो देखा कि वह बेसुध है, उसने पंखा तेज़ किया और कूलर चला दिया । बिरजू को अच्छे से चादर से ढकते हुए बोला, “भाई!! जिसने आपकी यह हालत की है, उसे मैं छोड़ूँगा नहीं।"

 

अगली सुबह बिरजू की आँख खुली तो उसे रात का मंज़र याद आया। वे जल्दी से उठा और बाहर गया तो देखा कि गिरधारी चौधरी के साथ, राजवीर और सुधीर भी बैठा हुआ है और मुंशी  उसे देखकर  मुस्कुरा रहा है, उसने मुंशी की तरफ से नज़र हटाई और वह अपने बापू को देखने लगा, सभी के चेहरे पर सवाल है, इससे पहले वह कुछ बोलता, गिरधारी  चौधरी ने  बोलना शुरू कर दिया,

 

क्यों रे !! यह कब से चल रहा है? उसका मुँह नीचे हो गया । उसकी नज़रे अभी भी नीचे है।

 

बिरजू ! मैं पूछ रहा हूँ कि  यह कबसे चल रहा है ।

 

कुछ महीने पहले से......

 

भैया! आप नाम बताओ, आपको किसने फँसाया  है, मैंने उसकी हड्डी तोड़ दूँगा, उसने यह सुना तो वह बोला, “नहीं, राजवीर इसमें किसी की कोई गलती नहीं है।“

 

“अरे !! यह खुद ही आवारा बना फिर रहा है।“ जमींदार चीखा। अब मेरी बात कान खोलकर सुन ले, आज के बाद, तू मेरी निगरानी में रहेगा । नाश्ता कर और अपने कमरे में जा, समझे।“ बिरजू बेबसी से उन्हें  देखता जा रहा है साथ ही उसे जुनैद पर गुस्सा आ रहा ही कि वो उसके घर के बाहर क्यों आया था ।

 

उसके जाते ही जमींदार ने मुंशी से बिरजू के दोस्तों के बारे में  पूछा और उसे अपने साथ लेकर घर से निकल गए।  सुधीर भी खेतो की ओर चला गया, राजवीर फिर बिरजू से बात करने गया तो उसने कुछ भी कहने से इंकार कर दिया ।

 

दिन बीतते जा रहें हैं  और बिरजू की इस कैद में घुटन बढ़ती जा रही है, उसका पुड़िया लेने का मन  करता,  मगर उसे घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं मिलती, उसने घर के नौकर को पैसे देकर एक पुड़िया भी मंगवाई, मगर वह नौकर भी पकड़ा गया।  उस नौकर की तो नौकरी गई साथ मे बिरजू पर और कड़ा पहरा हो गया ।

 

वहीं गिरधर ने अपनी बेटी  निर्मला को कहा कि “कल जाने की तैयारी कर लो, दामाद जी का बार बार फ़ोन आ रहा है, मैं कल गोपाल के साथ सुबह की ट्रैन से तुझे छुड़वा रहा हूँ, बहुत रह ली तुम मायके अब अपना सामान बाँधो और अपने पति के घर जाओ,” निर्मला ने सुना तो उसका मुँह उतर गया।  मगर उसने कुछ कहना ठीक नहीं समझा।

 

किशोर भी राधा को नैनातल के साथ-साथ एक दो जगह घुमाता हुआ वापिस घर ले आया, घर आकर उसने भी बहू  की जिम्मेदारी  निभानी  शुरू कर दी।  सरला और बाकी घरवाले उसके साथ बहुत प्यार से रहते।  उसे यह महसूस ही नहीं होने देते कि  वह घर की बहू  है। किशोर भी खुश है, मगर कही न कहीं उसके मन यह डर भी है कि अगर उसके झूठ और फरेब के बारे में घरवालों को पता चला गया तो उसके लिए कितनी बड़ी मुसीबत खड़ी हो जाएगी।

 

रात का रामय है, निर्मला अपने कपड़ों  को अनमने मन से सूटकेस में डाल रही है, उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर सोनाली से रहा नहीं गया तो उसने पूछ ही लिया,

 

“क्या  बात  है? जीजी? कोई बात  है तो बताओ।“  निर्मला ने कोई ज़वाब  नहीं दिया, उसने फिर पूछा, “जीजी.  मेरी ओर देखकर  कहो कि तुम इस रिश्ते से खुश हो।“ सोनाली ने उसका चेहरा अपनी तरफ कर लिया। निर्मला ने उसे देखकर कहा, “तुझे क्या लगता है?”

 

मुझे लगता है कि  तुम खुश नहीं हो।

 

“बिल्कुल ठीक लगता है, सोना अगर मैं वहाँ गई  तो या तो मार दी जाऊँगी या मर जाऊँगी।“  यह कहकर उसकी रुलाई  फूट  पड़ी। उसने सुना तो हैरान हो गई, “मैं तुम्हें कहीं नहीं जाने  दूंगी।“  तभी दरवाजे पर दस्तक  हुई  तो वह खुली आँखों के ख़्वाब से बाहर  आई। उसने देखा कि बापू उसे देख रहें हैं। वह फिर से अपना सामान रखने लगी कि  तभी बापू बोले, “सब रख लिया?” उसने हाँ में  सिर  हिला दिया। वह तो चले गए पर अब उसकी नज़र सोना पर गई जो अपने फ़ोन में लगी हुई है, “कोई न जाने पीड़ पराई!!! सबको अपनी पड़ी  है, मर गई तो भी इन्हें क्या ही फर्क पड़ेगा,” इससे अच्छा तो मर ही जाती  हूँ, उस आदमी के पास जाने से अच्छा है, भगवान के पास चली जाओ। आज रात मेरी आख़िरी रात होगी। यह कहते हुए, उसकी ऑंख में आँसू आ गए।