नक़ल या अक्ल - 46 Swati द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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नक़ल या अक्ल - 46

46

वजह

 

कुछ सेकंड चलने के बाद, बिरजू को खुद पर ग्लानि होने लगी, बारिश  की बूंदे उसके मन में उत्पन्न नकारात्मक विचारों को धोने लगी।  “उसे उस लड़की को बचाना  चाहिए।“ यह ख्याल  आते ही वह  दौड़ता हुआ गया और नदी में कूद गया। उसने पानी के साथ बहती निर्मला का पीछा  किया,  वह उसकी ओर  तेज़ी से तैर रहा है,  अब निर्मला का दुप्पटा उसके हाथ में  आ गया, मगर वो बहती जा रही है। बिरजू ने भी अपने तैरने की गति बढ़ा दी और किसी तरह निर्मला के एक हाथ को पकड़ लिया, मगर वह फिर भी निर्मला को नहीं खींच सका और वह उसके हाथ से छूटती चली गई पर उसने हार  नहीं मानी  और आख़िरकार  निर्मला  को पकड़ ही लिया। वह उसे खींचता हुआ किनारे पर ले आया और उसे पानी से बाहर  निकाला। उसने देखा कि  यह तो गिरधर  चाचा  की बेटी निर्मला है, पिछले  साल इसके ब्याह पर तो मैं गया था। अब उसने उसके पेट को दबाया ताकि पानी बाहर निकल सकें, मगर लगातार होती बारिश को देखकर, वह उसे उठाकर एक पेड़ के नीचे ले गया और वहीं लिटाकर, उसका पेट दबाने लगा तो थोड़ा सा पानी मुँह से निकला, मगर उससे निर्मला को होश नहीं आया फिर न चाहते हुए उसने उसके मुँह पर अपना मुँह रखा ताकि उसकी सांसे उसे होश में ला सके, पर उसने अब भी आँखे नहीं खोली तो उसने उसके पैर रगड़े, उसकी छाती पर हाथ फेरा, मगर कुछ नहीं हुआ। अब वह सिर पकड़कर बैठ गया, “लगता है, मैं इसे नहीं बचा पाया, मैंने बहुत देर कर दी।“ कुछ  सेकण्ड्स बाद निर्मला की पलकें हिली तो बिरजू को राहत महसूस हुई।

 

अब उसने धीरे से अपनी आँखे खोली और आसपास देखा, फिर बिरजू पर नज़र पड़ते ही वह बोली, तुम यहाँ ? तुमने मुझे क्यों बचाया? अब उसने अपने कपड़े ठीक किये, वह पूरी तरह  भीग चुकी है, उसे बिरजू से शर्म आने लगी तो उसने भी नज़रें चुरा ली। अब बिरजू की नज़र एक पुरानी से झोपड़ी पर गई तो उसने कहा, “वहाँ  चलते हैं, वरना ऐसे भीगते हुए बीमार हो जाऊँगी।“ “मैं मरना ही तो चाहती  हूँ।“ उसने भरी आवाज़ में  कहा। “मरना तो मैं भी चाहता हूँ, मगर कम्बख़त  ज़िन्दगी  गोंद की तरह  चिपकी हुई है।“ फ़िलहाल  तो यहाँ  से चलो, फिर देखते हैं, कैसे मरना है।“ अब निर्मला ने बिरजू  को एक नज़र  देखा और फिर उसके साथ चलने लगी। उस झोपड़ी  के अंदर जाते ही उन्होंने देखा कि  वहां कोई नहीं है, बस कुछ बोरे हैं और टूटी हुई लकड़ियाँ रखी  है। निर्मला ने  खुद को बोरे से ढक  लिया, और बिरजू  वहाँ रखी  लकड़ियाँ को जलाने के लिए,  पास रखे पत्थरो को रगड़ता हुआ, आग जलाने की कोशिश करने लगा। उसे उसमे कामयाबी भी मिली और फिर झोपड़ी में रोशनी हो गई। उसने अपने कुर्ते की जेब में हाथ दिया तो खाली जेब देखकर  समझ गया कि उसकी पुडिया का पैकेट और फ़ोन पानी में बह चुके हैं।

 

तुम्हारी वजह से मेरा कीमती सामान बर्बाद हो गया। वह चिल्लाया।

 

मैंने कहा था, मुझे बचाओ। मैं तो मरने के लिए ही कूदी थीं।

 

तुम मरना क्यों चाहती थीं?

 

तुम क्यों मरना चाहते थे? 

 

सवाल पहले मैंने किया है। वह अब आग में हाथ सेंकने लगा और उसे बोला, “इधर आ जाओ, थोड़ी बदन को तपिश लगेगी तो उसके अंदर से ठण्ड निकलेगी।“

 

नहीं!! मैं यही ठीक हूँ।

 

मैं तुम्हें खा नहीं जाऊँगा। बिरजू ने मुँह बनाते हुए कहा।

 

“मैं तुम्हें जानती नहीं हूँ क्या !!”अब वह खुद को बोर से लपेटे आग के पास आ गई और हाथ सेंकने लगी। कुछ देर तक, वहाँ खमोशी छायी रही। अब वह बिरजू की तरफ देखने लगी। तभी ज़ोर से बिजली भी कड़की। “लगता है, आज ही सारी गर्मी निकल जाएगी।“ बिरजू के मुँह से यह सुनकर वह बोली, “यह सावन है, सावन!!! अब नहीं बरसेगा तो कब बरसेगा।“ वह निर्मला के चेहरे की तरफ देखने लगा, “क्या देख रहें हो?” यही कि शादी के एक बरस बाद मरने का क्या कारण हो सकता है। निर्मला ने एक लम्बी सांस छोड़ी और उसे देखते हुए बोली,

 

“मेरे पति सुनील का किसी और से चक्कर है, यह बात मुझे शादी के कुछ महीनों  बाद पता चली  तो मैंने बहुत झगड़ा किया और उसका नतीजा  उसने मुझे बहुत मारा। उसके बाद तो उसका हाथ ही खुल गया, अब तो जब मन करता है, मारता है, शराब पीता है, काम के बहाने से कई दिन तक वही  पड़ा  रहता  है, मैं गधो  की तरह उसके माँ बाप की सेवा करती रहती हूँ, जानवर से भी बदत्तर हालत है मेरी  वहाँ पर।“  बिरजू ने एक गहरी सांस ली। मगर आज निर्मला अपने दिल का गुबार निकालने में लगी हुई  है। 

 

मुझे गॉंव की गँवार समझकर सिर्फ नौकरानी की तरह रखा हुआ है।  उसके भाई को भी उसकी हरकतों के बारे में पता है।

 

वो कुछ नहीं कहता? 

 

वो मेरा देवर !!! उसकी  तो खुद ही मुझपर बुरी नज़रे हैं, जिस दिन उसे मौका मिलेगा वो मुझे नोंच डालेगा और  और........

 

उसकी आँखों  में  आँसू  आ गए। 

 

“और क्या?”  “उसके दोस्त भी घर आने लगे थे, एक दिन तो मैंने सुनील को उससे अपनी इज़्ज़त का सौदा  करते हुए सुना था, वो तो भगवान् का शुक्र है, बापू  जी मुझे गर्मी की छुट्टियों में लेने आ गए और मैं उनके साथ अपने घर  आ गई, इस दफा वापिस गई तो बीवी से वेश्या बन जाऊँगी।“ बिरजू के चेहरे पर गुस्से के हाव भाव उभर आये। 

 

शादी एक जुआं है, किस्मत अच्छी हो तो राजा वरना जोकर। बिरजू के मुँह से निकला ।

 

वह कोई जोकर नहीं है, भेड़िया है।

 

इसलिए तुमने सोचा कि मर जाना ज्यादा अच्छा है। तुम यह बात अपने बापू को भी बता सकती थी?

 

वो नहीं समझेंगे, सुनील ने उन्हें पता नहीं, क्या घोंटकर पिलाया हुआ है, वह उसे देवता समझते हैं।

 

“देखो !! निर्मला मरना किसी बात का हल नहीं है। तुम शहर की लड़कियों को देखो, अब वो भी अपने साथ हो रहें अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठा रही है, फिर तुम ऐसा क्यों नहीं करती। कड़ी हो जाओ और कह दो सारी सच्चाई।  नहीं मानते तो मरने की धमकी उनको देना, वो तुम्हारा घर भी है, कोई तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती नहीं कर सकता।“ 

 

मुझसे नहीं होगा ।  उसने रोते  हुए कहा । 

 

देखो !! मेरी तरफ, उसने बिरजू की ओर  अपना चेहरा किया,  औरत जब तक चुप रहती  है, तब तक ही कमजोर  होती है।  जंगल में  शेरनी की दहाड़ से भी जानवर डरते हैं।  यह सुनकर निर्मला को थोड़ा  होंसला हुआ। उसने अपने आँसू पोंछें और उसकी तरफ देखकर बोली, “तुम क्यों मरना चाहते हो?”