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हिम्मत
निर्मला का ध्यान अब भी बिरजू के चेहरे की तरफ है, जब कुछ देर की ख़ामोशी के बाद, उसने ज़वाब नहीं दिया तो उसने फिर पूछा, “बताओ न तुम क्यों मरना चाह रहें हो?” बिरजू को महसूस हुआ कि इतने महीनो बाद, किसी को अपना हाल-ए-दिल बताने का दिल कर रहा है इसलिए उसने बोलना शुरू किया,
जमुना को जानती हो?
कौन जमुना? वह अब अपने दिमाग़ पर ज़ोर देने लगी। सेठ करोड़ीमल की बेटी, जो गॉंव के बिलकुल बाहर रहते हैं।
हाँ वही !!!! वह उसकी तरफ सवालियां नज़र से देखने लगा।
उसे क्या हुआ?
सोचा था, कॉलेज के बाद इंस्पेक्टर का पेपर पास करकर उसके बापू से उसका हाथ माँगूगा। मगर...... यह बोलते बोलते चुप हो गया।
इसका मतलब तुम जमुना को पसंद करते थें?
नहीं मैं और वो एक दूसरे से प्यार करते थे!! सच्चा प्यार !! निर्मला को वो प्यार उसकी आँखों में नज़र आया।
फिर क्या हुआ?
सब सही चल रहा था । मेरे कॉलेज खत्म होने के बाद भी हम मिल ही लेते थे, मेरा सारा ध्यान सिर्फ जमुना और सरकारी नौकरी की तरफ था। फिर एक दिन, वह अपने दो भाईयों और माँ समेत अपनी मौसी के घर रानीखेत गई और...... उसकी आँख से आँसू बह निकले। निर्मला ने पहली बार किसी मर्द को रोते हुए देखा था, उसे बिरजू पर दया आने लगी। “फिर क्या हुआ? “
“कुछ समय बाद, वो लोग आये और अपने साथ जमुना की लाश ले आये।“ अब निर्मला भी हैरान ही गई। “अच्छा !! मुझे याद आया, गॉंव में लोगो को कहते सुना था कि जमुना पहाड़ से गिर गई। इसका मतलब वो तुम्हारी जमुना थी।“ उसने रोते हुए ही हाँ में सिर हिलाया।
बिरजू !! इसलिए तुम मरना चाह रहें थे?
शुरू शुरू! में मैंने तुम्हारी तरह मरने की बहुत कोशिश की, मगर कोई फायदा नहीं हुआ, फिर मुझे जग्गी मिला, उसने मुझे नशे की पुड़िया दी, उसे खाकर मुझे लगा कि मैं अपनी जमुना के पास पहुँच गया हूँ, बाद में एहसास हुआ कि इससे खाकर जमुना के पास हमेशा के लिए पहुँचा जा सकता है पर कमब्खत कई महीने से मुझे नकली पुड़िया मिल रही थी और जब पूरी तरह मन बना लिया तो असली पुडिया के साथ बापू ने पकड़ लिया और जो मिली थी वो भी पानी में बह गई। उसने चिढ़कर कहा।
तुम्हारी जमुना यही चाहती है कि तुम ज़िंदा रहो।
उसके बिना ज़िंदा रहना भी मरने जैसा है।
“यह तुम्हें लगता है, तुम जमुना को ख़ुशी से याद किया करो। तुम हमेशा उसे दुःख में याद करते हो, इसलिए तुम्हें अपनी ही ज़िन्दगी बोझ लगती है।“ वह अब निर्मला के चेहरे की तरफ देखने लगा। मगर उसका बोलना जारी है,
मरने वाले के साथ मरा नहीं जाता, बल्कि बड़ी हिम्मत करकर जिया जाता है।
पर मैं अपनी ज़िन्दगी उसके बिना सोच भी नहीं सकता। बिरजू की आँख में अभी आँसू है।
यही तो तुम्हरी दिक्कत है, तुम उसके बिना कुछ नहीं सोचते, जमुना जहाँ भी होगी, तुम्हें इस तरह टूटा और हारा हुआ देखकर दुःखी हो रही होगी। तुम खुशनसीब हो कि तुम्हें कभी प्यार मिला, मुझे देख लो। मुझे तो एक बोझ समझकर उतार दिया गया और अब देख लो, मेरी क्या हालत है। काश !! मुझे ऐसा कोई मिला होता तो मैं आज इस हालत में न होती । तुम अपनी ज़िन्दगी में कुछ बनो, यही प्यार तुम्हें ताकत देगा और मुझे यकीन है, एक बार फिर प्यार तुम्हारी ज़िन्दगी में वापिस आएगा।
बिरजू ने अब अपने आँसू पोंछे और झोपड़ी से बाहर झाँका तो सुबह हो रही है।
सुनो !!! अब निकल लेते हैं, यहाँ ज़्यादा देर रुकना ठीक नहीं है। दोनों बाहर निकले तो देखा कि बारिश अब भी हो रही है, मगर उसकी गति पहले से धीमी है।
मुझे लगता है कि हम काफी दूर निकल आयें हैं। घर पहुँचने में तो वक्त लगेगा। यह बिरजू की आवाज़ है।
पर घर जाना किसको है। निर्मला का मन फिर उदास हो गया।
“मैंने तुम्हें कहा न हिम्मत तुम्हें ही करनी होगी। सदियों से लड़कियाँ मरती ही आई है इसलिए अब मरना नहीं है, मारना है।‘ अब उसकी नज़र झोपड़ी के बाहर एक तरफ रखें रिक्शे पर गई। बिरजू उसे खींचकर ले आया और निर्मला को बोला, “तुम बैठ जाओ, मैं रिक्शा चलाकर तुम्हें घर छोड़ देता हूँ।“
तुम्हें रिक्शा चलाना आता है?
जमुना के प्यार ने सब सिखा दिया था। उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई तो वह भी मुस्कुरा दी और फिर वह रिक्शे पर बैठ गई। बिरजू बड़ी फुर्ती से रिक्शा चलाता जा रहा है, निर्मला ने खुद को अभी उस बोरे से ढका हुआ है। उसके घर के नजदीक पहुँचकर, निर्मला रिक्शे से उतरी। बिरजू ने उसे एक नज़र फिर देखते हुए कहा, “सब ठीक होगा।“ उसने हाँ में सिर हिला दिया। अब वह अंदर जाने लगी तो उसने उसे पुकारा,
सुनो !!! वह पीछे मुड़ी।
मेरा नंबर ले लो, कोई बात हो तो बताना।
पर तुम्हारा फ़ोन तो पानी में गिर गया।
मैं दोबारा वही नंबर ले लूँगा।
अब जमुना जल्दी से अंदर गई, पूरा आँगन पानी से भरा हुआ है। वह चुपचाप सोनाली के कमरे में घुसी और एक कॉपी और पेन ले आई और बिरजू का फ़ोन नंबर लिखने लगी। जब वह जाने लगा तो वह बोली, “सुनो !! अब उसने पीछे मुड़कर देखा तो वह बोली, “मरना मत।“ यह सुनकर वह हल्के से मुस्कुरा दिया।
बिरजू घर पहुँचा तो ज़मीदार के सेवक घर के बाहर खड़े हैं। उसे देखते ही वह उसकी ओर लपके तो वह बोला,
अरे !! अरे !! मैं वापिस आ तो गया हूँ।
भैया !! इतनी बारिश में आपको ढूंढा पर आप कहीं नहीं मिले।
अब आ गया न !! यह कहकर वह अंदर चला गया और निर्मला ने कॉपी से वो पेपर फाड़ा, जिस पर बिरजू का नंबर लिखा है और फिर उसे अपने बटुयें में छुपा दिया, अब कपड़े बदलकर आँगन से पानी निकालने लगी। उसका बापू भी सोकर उठ गया। बारिश भी रुक चुकी है, मगर आसमान में बादल बने हुए हैं । तभी उसका छोटा भाई गोपाल भी आ गया, उसके बापू ने कहा “गोपू दीदी को शाम की ट्रैन से कानपुर छोड़ आइयो।‘ यह सुनकर निर्मला को बिरजू की बात याद आ गई, “हिम्मत !! निर्मला हिम्मत !!”