अब तक :
कॉलेज की bell बजने पर अंजली आकाश और खुशी तीनो अपनी क्लास लगाने जा चुके थे ।
अब आगे :
क्लास खत्म हुई तो अंजलि आकाश और खुशी तीनों कॉलेज से बाहर निकल गए । तभी एक कार आकर पार्किंग में रुकी । तीनों ने उस ओर देखा तो ब्लू शर्ट और ब्लैक पैंट पहने एक लड़का कार से बाहर निकला ।
फिर कार के दरवाजे से टिकते हुए उसने आंखों पर चश्मा चढ़ाया और रौबदार चाल चलते हुए कॉलेज के अंदर चला गया ।
" हाए... " कहते हुए खुशी ने अपने दोनो गालों पर हाथ रखा और आंखें फाड़े उस लड़के को देखने लगी । आकाश और अंजली खुशी को देखने लगे ।
खुशी ने आगे कहा " ये कितना स्मार्ट है.. । क्या अदा है क्या चाल है.. एक दम कमाल है.. " शायराना अंदाज में बोलते हुए उसके चेहरे पर बड़ी सी स्माइल आ गई थी ।
आकाश ने सुना तो उसका चेहरा उतर सा गया । ना जाने क्यों पर उसे खुशी का उस लड़के को ऐसे देखना और तारीफ करना अच्छा नही लगा था ।
आकाश बोला " अच्छा... ऐसा क्या खास है.. ? " बोलते हुए वो खुशी की आंखों को देखने लगा जो अभी भी उस लड़के का ही पीछा कर रही थी ।
" अरे क्या खास नही है ये पूछो आकाश.. । सब कुछ कितना डैशिंग है.. । अट्रैक्टिव चेहरा.. रौबदार पर्सनेलिटी.. सिक्स पैक एब्स, और आंखों पर चढ़ाया काला चश्मा को कहर ढा रहा है... । ये कितना हैंडसम था... " बोलते हुए वो खोई हुई हल्का हल्का झूमने लगी ।
आकाश ने जाते हुए प्रवीण को देखा और बोला " तुम्हे उसका चश्मा अच्छा लगा क्या खुशी... ? " ।
" बोहोत.. मुझे ऐसे लड़के बोहोत अच्छे लगते हैं । और काला चश्मा लगाए हुए तो बोहोत ही ज्यादा अच्छे लगते हैं.. " खुशी ने खोए हुए ही कहा ।
आकाश ने अपना नज़र का चश्मा ठीक किया और खुशी की आंखों की चमक को देखने लगा ।
अंजली ने दोनो को देखा और फिर बोली " तो अभी उस लड़के को ही देखते रहोगे या यहां से चलोगे भी... " ।
खुशी बोली " हान चलो... अब तो वो लड़का भी अंदर चला गया.. । और तुम्हे फोन भी ठीक कराने को देना है ना.. " बोलते हुए खुशी ने अंजली का हाथ पकड़ लिया और आगे बढ़ते हुए बोली " बस भगवान करे कि वो लड़का यहां ही पढ़ने आया हो और हमारी ही क्लास में हो.. । फिर तो और भी अच्छा हो जायेगा.. । उसके बाद तो हमारी बात होने में मैं बिल्कुल भी देर नहीं लगाऊंगी " बोलते हुए वो खुशी से हंस दी । अंजली ने सिर हिला दिया ।
आकाश उदासी से भरा चेहरा लिए दोनो के साथ ही चल दिया ।
तीनो कॉलेज के साथ ही लगी मोबाइल शॉप की ओर चल दिए । मोबाइल शॉप पे जाकर अंजली ने अपना फोन उन्हें दिया ।
" आप कल आइएगा.. कल तक हम देखते हैं अगर ये ठीक हो सकता है तो कल पता चल जायेगा.. " बोलकर दुकान वाले ने फोन ले लिया और अपना काम करने लगा ।
अंजली खुशी और आकाश shop से बाहर आ गए । खुशी ने पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाली और अंजली और आकाश के पास रोकते हुए बोली " चलो आकाश.. हमारा रास्ता एक ही है तो हम साथ चलते हैं.. " ।
आकाश हल्का मुस्कुरा दिया । खुशी के साथ स्कूटी पर जाने का खयाल ही उसके दिल में फूलों की बारिश कर रहा था ।
खुशी ने अंजली को देखा और पूछा " तुम्हारा रूम कितना दूर है अंजली.. ? " ।
" ज्यादा नही बस आधे घंटे में चलकर पहुंच जाती हूं... " अंजली ने सहजता से जवाब दिया।
" तो मतलब स्कूटी पर तो कम टाइम लगेगा.. कहो तो मैं छोड़ दूं... " बोलते हुए खुशी ने उसे लिफ्ट ऑफर की ।
" अरे नही खुशी.. । मैं चली जाऊंगी... । ज्यादा दूर भी नही है... तुम दोनो जाओ.. "
" ohk... Take care... " बोलते हुए खुशी ने अंजली से हाथ मिला लिया ।
आकाश खुशी के पीछे बैठा और हाथ हिलाकर उसने अंजली को bye कर दिया ।
बदले में अंजली ने भी हाथ हिला दिया । खुशी और आकाश चले गए तो वो भी अपने रूम की ओर निकल गई ।
अंजलि सड़क पर थोड़ा आगे आई तो देखा कि सड़क के किनारे लगी बेंच पर एक लड़का अपने चेहरे को हाथों से ढके हुए झुक कर बैठा हुआ था ।
अंजलि को वो कुछ जाना पहचाना सा लगा । जैसे-जैसे वह उसके करीब जाने लगी तो उसे दिखाई दिया कि वो लड़का कोई और नहीं बल्कि शिवाक्ष था ।
" ये तो शिवाक्ष लग रहे हैं.. । लेकिन यह यहां क्या कर रहे हैं? कहीं यह मुझे परेशान करने तो नहीं आए हैं ना ? " सोचते हुए अंजलि घबराने लग गई ।
फिर धीमे कदमों से उसके सामने से होकर निकलने लगी ।
लेकिन उसका धीरे-धीरे चलना भी किसी काम का नहीं था उसके पैरों में बंधी पायल से छन-छन की आवाज साफ सुनाई दे रही थी ।
शिवाक्ष उन आवाजों को सुन सकता था और वह जानता था कि अंजलि उसके सामने से गुजर रही है । लेकिन फिर भी उसने चेहरे से हाथ हटाकर अंजलि की ओर नहीं देखा । बस एक गहरी सांस ली और घुंगरू की आवाज को सुनकर खुद को शांत करने की कोशिश करने लगा । धीरे धीरे छन छन की आवाज धीमी होने लगी । शिवाक्ष ने अपने चेहरे को हाथों से और सख्ती से पकड़ लिया ।
थोड़ा आगे जाकर अंजलि ने पलट कर देखा तो शिवाक्ष जैसे का तैसा ही बैठा हुआ था । उसने न तो अंजली को देखा था और ना ही कुछ कहा था ।
" ये इस तरह से क्यों बैठे हैं ? देखने से तो लग रहा है कि काफी परेशान है.. ! होंगे भी क्यों नही पिछली रात को ठीक से नींद भी तो नहीं आई होगी । पर क्या ये सुबह से यही बैठे होंगे ? नहीं नहीं सुबह से तो यहां नहीं थे क्योंकि जाते वक्त तो मुझे नही दिखाई दिए.. । " बोलते हुए अंजली खुद ही अपने सवालों के जवाब भी दे रही थी ।
" इनके पास जाऊं क्या ? पर अगर इन्होंने मुझे फिर से परेशान किया तो.. ? पर अगर ऐसा होता तो अभी तक इतने शांत क्यों बैठते.. उठकर मुझे परेशान करते ना.. ! " बोलते हुए उसने गहरी सांस ली और फिर शिवाक्ष को ध्यान से देखते हुए बोली " ऐसा करती हूं.. जाकर पूछ ही लेती हूं.. हो सकता है सच में बोहोत परेशान हों.. । अगर यूंही चली गई तो यही दुख सताता रहेगा कि पूछा क्यों नही " बोलते हुए अपने ही सवालों जवाबों और दुविधा में उलझी वो शिवाक्ष की ओर चली गई ।
शिवाक्ष को फिर से छन छन की आवाज तेज होती सुनाई दी तो अपने चेहरे पर उसके हाथों की पकड़ ढीली पड़ गई ।
" मिस्टर राजवंश " अंजली ने पुकारा तो शिवाक्ष को अपने मन में राहत सी महसूस हुई ।
उसने कोई जवाब नही दिया तो अंजली आगे बोली " आप यहां सड़क के किनारे क्यों बैठे रहे हैं.. ?? घर का रास्ता भूल गए हैं क्या? "
शिवाक्ष बिना किसी मूवमेंट के वैसे ही बैठा रहा ।
अंजली खुद से बोली " कहीं ये सो तो नही गए ना " बोलते हुए उसने उसके कंधे पर हाथ रखा और धीरे से बोली " मिस्टर राजवंश । मैं आपसे कुछ पूछ रही हूं और आप है कि चेहरा उठा कर देख भी नहीं रहे हैं. । कुछ तो बोलिए... " बोलते हुए अंजली गर्दन टेढ़ी करके उसे देखने लगी ।
शिवाक्ष अभी भी कुछ नही बोला । उसे ऐसे देखकर अंजली ने उसके हाथ पर हाथ रखा और उसके चेहरे से उसके हाथ को हटाने लगी ।
" what the hell.. " शिवाक्ष ने चिल्लाकर कहा तो अंजली डरकर पीछे हट गई ।
उसके चिल्लाने से वो घबरा गई थी और एकाएक ही उसका दिल भी तेज़ी से धड़कने लगा था ।
शिवाक्ष ने दांत पीसते हुए आगे कहा " तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा क्या ? दिमाग में समझ है भी या नहीं...? अगर कोई तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं दे रहा है और तुम्हें नहीं देख रहा है.. तो इसका मतलब है कि वो तुमसे बात नहीं करना चाहता लेकिन फिर भी ढीठ की तरह तुम यहां खड़ी होकर मुझसे बात करने की कोशिश क्यों कर रही हो... ? क्यों.. ? "
शिवाक्ष ने ये शब्द बेहद गुस्से से कहे थे । अंजली को समझ नही आया कि उसकी गलती क्या थी जो वो उसके उपर इतना चिल्ला रहा था । उसने शिवाक्ष की आंखों में देखा जो इस वक्त लाल पड़ चुकी थी ।
" मैं तो बस इंसानियत के नाते "
" अरे भाड़ में गई तुम्हारी इंसानियत " शिवाक्ष ने उसकी बात को बीच में ही काटते हुए चिल्लाया ।
अंजली दो कदम और पीछे हट गई ।
" एक चॉकलेट साथ खा लेने से हम दोस्त नही बन जाते । समझ में आया । तो तुम्हे कोई हक नही है मेरे हाल चाल पूछने का "
" पिछली रात जो हुआ उसमे मेरी गलती नही थी । आप इस तरह से चिल्ला नही सकते "
शिवाक्ष ने उसके करीब आकर उसकी बाजू पकड़ी और उसे करीब खींचते हुए बोला " तो किसकी गलती थी ? "
" किसी की नही , वो सब लोगों से अनजाने में हो गया था " अंजली ने मासूमियत से जवाब दिया ।
शिवाक्ष ने उसका चेहरा देखा तो उसका गुस्सा थोडा नरम सा पड़ने लगा । उसे एहसास हुआ कि वो बेवजह ही उसके उपर चिल्ला दिया ।
" जाओ यहां से " बोलकर शिवाक्ष ने उसकी बाजू छोड़ दी और जाकर वापिस से बेंच पर बैठ गया ।
" आपको क्या हुआ है.. ? क्या पिछली रात की थकान की वजह से आप इतने परेशान हैं.. ? क्या उस वजह से कुछ हुआ है... या फिर " अंजली कंसर्न से पूछ ही रही थी कि शिवाक्ष ने उसे देखा और बोला " तुमसे क्या मतलब.. मुझे जो भी हुआ हो.. । तुम जाओ यहां से , मुझे बात नही करनी है "
अंजली ने सिर हिलाया और जाने को हुई तो शिवाक्ष जमीन पर पैर से लगाकर tap करने लगा । अंजली फिर से रुक गई । अभी भी उसे जाना सही नही लग रहा था ।
" तू क्यों रूकी है । इन्होंने कह दिया ना जा । अब तुझे बुरा भी नहीं लगेगा क्योंकि तूने अपनी तरफ से पूछ लिया " मन में सोचते हुए वो उसके लगातार चलते पैरों को देखने लगी ।
" मैने सुना है कि दुख बांटने से कम हो जाता है.. अगर कोई बात है तो आपको किसी खास के साथ बैठकर परेशानी को हल करना चाहिए " बोलते हुए अंजली ने एक और बार उससे बात करनी चाही ।
शिवाक्ष बेरूखी से बोला " again that is not your problem. So just go away. "।
" हान तो ठीक है ना.. चली जाती हूं.. । " बोलकर अंजली उसे घूरने लगी और आगे बोली " आप बैठे रहिए यहां पर ही । वैसे भी यहां पर बैठने से ही तो सब कुछ ठीक होगा । जब तक आप यहां पर चेहरा छुपाए बैठेंगे नहीं.. तब तक सब कुछ ठीक कैसे होगा । आप बैठ जाइए और अपना चेहरा अच्छे से पकड़िए ताकि सारी प्रोब्लम जड़ से खत्म हो जाए और दुबारा कभी न आए... । और हां जब तक जंगल के मालिक आपको फल देने यहां पर ना आ जाएं तब तक यहां से जाइएगा मत "
" जंगल के मालिक ? " शिवाक्ष ने आंखें छोटी करके असमंजस में उसे देखते हुए कहा तो अंजली बोली " हां , मालिक जैसे , शेर जी , बाघ जी , लक्कड़बग्गा जी और आपके जैसे... खैर छोड़िए " बोलकर उसने बात अधूरी छोड़ी और फिर निकलने लगी तो शिवाक्ष ने झट से उसका हाथ पकड़ लिया और बोला " मेरे जैसा क्या ? "
" कुछ नही , आप हाथ छोड़ीए । मुझे देर हो रही है और अब मुझे आपसे बात नही करनी । आप अपनी साधना कीजिए "
शिवाक्ष घुरकर उसे देखने लगा । " तुम्हारी प्रॉब्लम क्या है ? क्या तुम्हे एक बार में कुछ भी समझ नहीं आता? क्यों मेरा दिमाग खराब कर रही हो " ।
अंजली ने पलटकर उसकी आंखों को देखा जिनमे नमी आ चुकी थी ।
शिवाक्ष की पकड़ अंजली की कलाई पर बोहोत मजबूत थी जिससे अंजली को उसके अंदर चल रहे गुस्से का अंदाजा था साथ ही उसे दर्द भी हो रहा था।
" मैं तो जा ही रही थी.. । आप ने ही आकर कलाई से पकड़ लिया है और वो भी इतना ज़ोर से कि खून रुक जाए "
अगले ही पल शिवाक्ष ने उसकी कलाई छोड़ दी । फिर उसकी कलाई को देखा जो लाल पड़ चुकी थी साथ ही उसकी उंगलियां भी उसकी कलाई पर छप गई थी । वो दूसरी तरफ पलटते हुए बोला " चली जाओ यहां से.. । तुम्हारा लेना देना नही है "
" सच बताऊं तो आपकी दिक्कत मैं नही हूं , बल्कि आप खुद हैं । जब हम अपने दिल में किसी बात को दबा कर रखते हैं तो वो घाव करती जाती है । और फिर दुनिया के हर इंसान को देखकर इंसान चिढ़ता ही रहता है , जैसे आप मुझसे चिढ़ रहे हैं ।
ऐसे में वो खुश नही रह पाता । अगर आपको रोना आ रहा है आपको रो लेना चाहिए , जिसके उपर भरोसा हो उसके गले लगकर खुद को थोड़ा शांत कर लीजिए । रोने से दर्द बह जाता है और मन हल्का हो जाता है । बाकी आपको क्या करना है उसके लिए आप बेहतर सोच सकते हैं । चलती हूं "
शिवाक्ष ने उसके जाने की आवाज सुनी तो दिल में एक अजीब सा एहसास होने लगा । वो पीछे मुड़ा और अंजली को देखकर बोला " सुनो.... " ।
अंजली के कदम ठहर गए । वो पीछे मुड़ी ही थी कि शिवाक्ष ने जल्दी से आकर उसे hug कर लिया ।
अंजली की आंखें हैरानी से बड़ी हो गई । शिवाक्ष की तेज चली धड़कने उसे अपने उपर महसूस हो रही थी । एक अजीब सा तूफान चल रहा था उसके अंदर । शिवाक्ष ने और अपना चेहरा झुकाकर उसके कंधे पर अपना चिन टिका दिया ।
शिवाक्ष के ऐसे अचानक hug कर लेने से अंजली की सांसें मानो रुक ही गई थी । उसे इसकी उम्मीद नहीं थी । शिवाक्ष ने उसे गले से लगाकर आंखें बंद कर ली । कुछ आसूं की बूंदें उसकी आंखों से बह निकले जो उसके दर्द की गवाह थीं ।