सन्यासी -- भाग - 26 Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सन्यासी -- भाग - 26

फिर नलिनी जयन्त से बोली...."लेकिन मुझे ये बात समझ नहीं आई कि ये अपने पति के खिलाफ जाकर तुम्हें  सावधान करने क्यों आईं हैं, मुझे इन पर बिलकुल भी भरोसा नहीं है,क्या पता ये यहाँ अपने पति के कहने पर आईं हो"?तब सुमेर सिंह की पत्नी वरदा नलिनी से बोली..."नहीं! जीजी! मैं उनके कहने पर यहाँ नहीं आई हूँ,बहुत साल हो गए है मेरे पति को बेईमानी करते हुए, दूसरों का हक़ छीनते हुए,दूसरों की बेटियों को पराएँ पुरूषों के पास भेजते हुए,सालों से ये सब देखते देखते मैं उकता गई हूँ,पहले मैं उनसे डरा करती थी कि अगर मैं उनके खिलाफ गई और उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया तो अपने दोनों बच्चों को लेकर कहाँ जाऊँगीं,लेकिन अब मुझे बिलकुल भी डर नहीं है,मेरे बच्चे अब बड़े हो चुके हैं, मैं अब खुद अपने बच्चों को उनके पास नहीं रखना चाहती, इसलिए अब मैंने फैसला किया है कि अब मैं केवल सच्चाई का साथ दूँगीं","लेकिन मैं तुम पर भरोसा कैंसे करूँ,वो तुम्हारे पति है,क्या पता कभी तुम्हारा मन बदल जाएँ और दोबारा से मेरे बच्चे की जान पर बन आएँ",नलिनी वरदा से बोली...."नहीं! जीजी! ऐसा कभी नहीं होगा,अब मेरे पति को उनके गुनाहों की सजा मिलनी ही चाहिए और इसके लिए आपको मुझ पर भरोसा करना ही होगा,क्योंकि मैं दूँगीं अदालत में उनके खिलाफ़ गवाही,अब वे यूँ और जुर्म नहीं कर सकते ", वरदा नलिनी से बोली..."अगर तुम अपने पति के खिलाफ गई तो समाज क्या कहेगा बहन!",नलिनी ने वरदा से कहा..."मुझे अब इसकी कोई परवाह नहीं है जीजी! कि समाज क्या कहेगा,क्योंकि अब मेरी अन्तरात्मा ये गँवारा नहीं करती,मैं अपनी आँखों के समय लोगों के साथ और अन्याय होता नहीं देख सकती,कल को भगवान को भी तो मुँह दिखाना है,अगर अभी अपने पाप नहीं धुले से किस मुँह से उस ऊपर वाले के पास जाऊँगी", वरदा नलिनी से बोली..."एक बार और सोच लो बहन! ये बड़ी साहस का काम है,क्या तुम इसे कर पाओगी",नलिनी ने फिर से वरदा से पूछा...."जीजी! अब तो मैंने मन बना लिया है सच्चाई की राह पर चलने का,अब मैं नहीं डिग सकती,अगर अब भी मैं चुप रही तो फिर धिक्कार है मुझ पर,उन्होंने उस मासूम लड़की फागुनी की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया, बेटी के ग़म में बाप भी मर गया,अब अपनी आँखों के सामने इससे ज्यादा हैवानियत नहीं देख सकती मैं, मेरे भी बेटे हैं,कल को बाप के किए की सजा कहीं मेरे बच्चों को ना भुगतनी पड़े", ये कहते कहते वरदा रो पड़ी..."रोओ मत बहन! मैं तुम्हारे मन की दुविधा समझ सकती हूँ,जानती हूँ कि तुमने किस तरह से अपने कलेजे पर पत्थर रखकर ये फैसला लिया होगा",नलिनी वरदा को चुप कराते हुए बोली..."जीजी! फैसला कठिन जरूर है,लेकिन यही फैसला ही अब उनकी जिन्दगी बदलेगा,अब उनके पापों का घड़ा भर चुका है,इसलिए उन्हें सजा दिलवाने के लिए अब मुझे ही आगे आना होगा",वरदा बोली..."बहन! तुम आने वाले वक्त में समाज के लिए एक उदाहरण पेश करोगी,मुझे यकीन है कि तुम्हें हमेशा इस काम के लिए सराहा जाऐगा",नलिनी वरदा से बोली..."हाँ! चाची जी! मैं आपका ऐसा साहस देखकर हैरान हूँ",जयन्त वरदा से बोला...."जयन्त! मैं चाहती हूंँ कि आज ही तुम पुलिस स्टेशन जाकर उनकी रिपोर्ट लिखवाओ और पुलिस से ये भी कहो कि तुम्हें मारने की साजिश चल रही है,अब तुम्हें चिन्ता करने की जरुरत नहीं है,मैं तुम्हारे साथ हूँ और मैं भी पुलिस थाने आकर गवाही दूँगी",वरदा बोली...."तो कब चलेगीं आप मेरे साथ पुलिस के पास",जयन्त ने पूछा..."आज दोपहर को ही",वरदा बोली..."जी! बहुत अच्छा! मैं आपको लेने आऊँ या आप खुद आ जाऐगीं",जयन्त ने पूछा..."मैं खुद आ जाऊँगी,लेकिन बुरके में ही आऊँगी ताकि किसी को कोई शक़ ना हो",वरदा ने जयन्त से कहा..."ठीक है चाची जी! मैं आपका इन्तजार करूँगा",जयन्त बोला....  वरदा के इस साहसिक कार्य पर नलिनी उससे बोली...."मैं कैंसे तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ बहन! कुछ समझ नहीं आता,मैं तुम्हारा ये एहसान जिन्दगी भर नहीं भूलूँगीं",नलिनी वरदा से बोली...."नहीं जीजी! आपको मेरा शुक्रिया अदा करने की कोई जरुरत नहीं है,इसमें मेरा भी तो स्वार्थ छिपा है,मुझे अपने कर्म सुधारने हैं और उनके भी कर्म सुधारने हैं जिनके साथ मैं बँधी हुई हूँ,जिनके साथ मैंने सात फेरे लिए थे,इसलिए आपको कृतज्ञ बनने की कोई जरूरत नहीं है",वरदा ने नलिनी से कहा..."सच में! चाची जी! आपने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी",जयन्त ने वरदा से कहा..."अब मैं चलती हूँ,काफी देर हो चुकी है,दोपहर को दो बजे तक मैं पुलिस थाने पहुँच जाऊँगीं"      और ऐसा कहकर वरदा मंदिर से वापस चली गई,फिर जयन्त और नलिनी भी घर आ गए,घर आकर जयन्त और नलिनी ने सबको बताया कि सुमेर सिंह की पत्नी वरदा गवाही देने को तैयार है, जिससे सभी को थोड़ी राहत महसूस हुई ,फिर दोपहर के दो बजे वरदा पुलिस थाने पहुँची,जहाँ पर जयन्त पहले से मौजूद था,इसके बाद वरदा ने पुलिस को सबकुछ बताया और फिर पुलिस ने सुमेर सिंह के खिलाफ रिपोर्ट लिखी...   अभी रिपोर्ट दर्ज हुए एकाध दिन ही बीते थे कि एक दिन दोपहर के समय जब जयन्त काँलेज से लौट रहा था तो सुनसान सड़क पर उसकी मोटर को कुछ लठैतों ने रोक लिया और जयन्त को मोटर से बाहर निकलने के लिए कहा, फिर क्या था जयन्त मोटर से बाहर निकला तो उन लठैतों ने जयन्त और उसके ड्राइवर को  रस्सी से बाँधना चाहा तो तभी वहाँ पर पुलिस आ गई,क्योंकि पुलिस रोजाना ही जयन्त की मोटर का पीछा करती थी ताकि वे लठैत पकड़े जाएँ और फिर क्या था जयन्त की योजना के अनुसार उन लठैतों को पकड़ लिया गया,पुलिस ने उन लठैतों के साथ कड़ाई बरती तो उनमें से एक दो ने ये भी कुबूल कर लिया कि उन्हें सुमेर सिंह ने भेजा था,सुमेर सिंह को गिरफ्तार करने के लिए इतना ही काफी था और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया,फिर जयन्त ने उस पर ये आरोप लगाया कि सुमेर सिंह ने ही उसे घायल करवा के नदी में बहा दिया था,लेकिन ईश्वर की कृपा से वो बच गया ,लखनलाल की बेटी को भी इसी ने अगवा किया था और फिर उसकी अस्मत के साथ खिलवाड़ करके उसका खून कर दिया गया, बेटी के ग़म में लखनलाल ने भी फाँसी लगा ली....      लेकिन ये सब बातें सुमेर सिंह कुबूल करने को तैयार ही नहीं था,वो अदालत में बोला कि उस पर झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं लेकिन फिर अदालत में वरदा हाजिर हुई और उसने सुमेर सिंह के खिलाफ गवाही दी,उसने अदालत को बताया कि....."जज़ साहब! मेरे पति ने ही जयन्त को लठैतों द्वारा पिटवाया था और ये सब मैंने अपनी आँखों से देखा था और उस दिन मैंने लखनलाल की बेटी को अगवा करवाने की बात भी सुनी थी,इन्होंने ही उसका खून करवाया था"वरदा की बात सुनकर सुमेर सिंह भड़क उठा और वरदा से बोला...."नमकहराम औरत! मेरा ही खाती है और मेरे खिलाफ ही गवाही देती है,काश मुझे पता होता  कि तू ऐसा करने वाली है तो मैं तेरा भी खून पहले ही कर देता"    फिर सारी अदालत ने सुमेर सिंह की बात सुनी और ये पक्का हो गया कि सुमेर सिंह मुजरिम है और इसे इसके गुनाहों की सजा मिलनी चाहिए,तब अँग्रेज जज़ ने सुमेर सिंह को फाँसी की सजा सुनाई,ये सुनकर वरदा जज़ साहब के सामने रो पड़ी और उनसे बोली..."हुजूर! इन्हें फाँसी की सजा मत दीजिए,नहीं तो मैं समाज में कलंकित हो जाऊँगी,अगर मेरे ही बयान देने के कारण मेरे माथे का सिन्दूर पुछ गया तो मैं ताउम्र खुद को माँफ नहीं कर पाऊँगी,कृपया करके इन्हें फाँसी की सजा मत दीजिए,मैं विधवा नहीं होना चाहती"   वरदा की दुविधा देखकर जयन्त को उस पर तरस आ गया और उसने भी जज़ साहब के सामने अपील की कि सुमेर सिंह को फाँसी की सजा नहीं होनी चाहिए और फिर अदालत ने जयन्त की इस अपील को स्वीकार कर लिया और सुमेर सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई गई....

क्रमशः....

सरोज वर्मा...