सन्यासी -- भाग - 22 Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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सन्यासी -- भाग - 22

अभी नलिनी और जयन्त आपस में बातें कर ही रहे थे कि तभी आँची बाहर से बरतन धोकर ले आई,फिर उसने नलिनी की चारपाई के बगल में धरती पर पुआल डालकर अपना बिस्तर बिछाया और उस पर लेट गई,तो नलिनी ने उससे कहा...

"बेटी! तुम्हारी माँ नहीं है तो तुम्हें ही सारे काम सम्भालने पड़ते हैं"

"हाँ! माँ जी! लेकिन अब तो आदत सी हो गई है,मैं जब बहुत छोटी थी,तब माँ छोड़कर चली गई थी,तब से ही मैं घर के काम काज करने लगी थी",आँची बोली...

"वैसे क्या हुआ था तुम्हारी माँ को?",नलिनी ने पूछा...

तब जयन्त को लगा कहीं ऐसा ना हो कि आँची अपनी माँ की सच्चाई मेरी को बता दें,ये ठीक नहीं रहेगा, इसलिए वो उन दोनों के बीच में बोल पड़ा...

"हरदयाल जी बता रहे थे कि वो बहुत बीमार रहतीं थीं और फिर एक दिन अचानक चल बसीं", 

जयन्त के बोलने पर फिर आँची कुछ नहीं बोली,उसे लगा शायद जयन्त बाबू नहीं चाहते कि उसकी माँ को मेरी माँ की सच्चाई पता चले,तब जयन्त के जवाब देने पर नलिनी उससे बोली....

"बेचारी! बिन माँ की बच्ची!,कैंसे सम्भाला होगा इसने उस वक्त खुद को"

"माँ जी! जब  सिर पर अचानक जिम्मेदारियांँ पड़तीं हैं ना तो इन्सान एक ही रात में समझदार हो जाता है", आँची ने नलिनी से कहा....

"शायद तुम सच कहती हो बेटी!",नलिनी बोली....

"जी! माँ! जी! यहाँ खुद से ही खुद को सम्भालना पड़ता है,पास पड़ोसी और रिश्तेदार भला कितने दिन साथ दे देगें,खुद का साथ खुद को ही निभाना पड़ता है",आँची बोली...

"बेटी! तेरी बातों से तो लगता है कि तू बड़ी समझदार है,बड़ी तजुर्बेकार है,तभी तो इतनी बड़ी बड़ी बातें कर रही है",नलिनी बोली..

."ऐसा नहीं है माँ जी! मुझ पर समय से पहले जिम्मेदारियाँ आ गईं,इसलिए शायद आपको मेरी बातें ऐसी समझदारी वालीं लग रहीं हैं",आँची बोली...

"कुछ भी हो ,लेकिन तू बड़ी समझदार और सुलझी हुई है,ऐसी स्थिति में भी तेरे माथे पर शिकन नहीं है और तेरे होठों पर सदैव मुस्कुराहट बनी रहती हैं",नलिनी आँची से बोली...

"जीवन से कभी भी हार नहीं माननी चाहिए माँ जी! क्योंकि इम्तिहानों का नाम ही तो जीवन है",आँची बोली...

"सच में! तेरे रुप में हरदयाल भइया को लक्ष्मी मिली है,कितनी शान्ति है तेरे चेहरे पर,कितनी तृप्ति है,जैसे तुझे किसी चींज की जरूरत ही नहीं है",नलिनी बोली....

अब जयन्त अपनी माँ की बातों से थक चुका था,इसलिए वो अपनी माँ से बोला....

"माँ! अब सो भी जाओ,कितनी रात हो चुकी है,सुबह हम सभी को बनारस के लिए निकलना भी तो है"

,"हाँ...हाँ..सोती हूँ,जरा दो घड़ी आँची से भी तो बात कर लेने दे",नलिनी बोली....

"माँ! तुम्हारी बातें तो कभी खतम नहीं होगीं",जयन्त बोला...

तभी आँची ने नलिनी से पूछा...."माँ! जी! क्या भोर होते ही आप सभी सच में चले जाऐगें",

"हाँ!बेटी! गृहस्थी भी तो देखनी है,दोनों बहूएँ और बेटी अकेली हैं घर में,उनका भी तो ख्याल करना पड़ता है",नलिनी बोली..."हाँ! सही कहा आपने",आँची बोली...."अब तू भी सो जा बेटी! जब से हम लोग आएँ हैं ,तब से काम ही कर रही है तू,थक गई होगी अब आराम कर",नलिनी आँची से बोली...."जी! माँ! जी!",      और फिर ऐसा कहकर आँची सोने की कोशिश करने लगी,इधर नलिनी ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं, झोपड़ी में गौरापत्थर की ढ़िबरी की धीमी रोशनी थी,ऐसी रोशनी में नलिनी कभी नहीं रही थी और बाहर से भी हवा के कारण उड़ते हुए सूखे पत्तों की आवाज़ आ रही थीं,कभी कभी दूसरी कोठरी में बँधी गाय भी रम्भाँ उठती और इन सभी शोरों के बीच नलिनी उस सख्त बिस्तर पर सोने की कोशिश करने लगी,क्योंकि वो पहले कभी भी ऐसे बिस्तर पर नहीं लेटी थी,नलिनी सोने की कोशिश तो कर रही थी लेकिन उसे नींद नहीं आ रही थी,वो मन ही मन सोच रही थी कि काश वो आँची का ब्याह जयन्त से करवा पाती,लेकिन ऐसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि जयन्त के बाबूजी कभी भी इस ब्याह के लिए राजी नहीं होगें,उन्हें अपनी मान मर्यादा का ख्याल सबसे पहले आएगा....      लेकिन कितनी प्यारी बच्ची है आँची,अगर ये लड़की मेरे जयन्त के जीवन में आ गई तो जयन्त की तो जिन्दगी ही सँवर जाऐगी,ऐसी सुलझी हुई लड़की तो चाहिए उसके लिए,जो जयन्त की बातों को सुने लेकिन उसका जवाब ना दे,लेकिन इसकी गरीबी इसे मेरी बहू नहीं बनने देगी,उस पर से इस लड़की का बाप भी तो कितना स्वाभिमानी और ईमानदार है,वो भी कभी नहीं चाहेगा कि उसकी बेटी किसी अमीर घराने की बहू बने और यही सब सोचते सोचते नलिनी की आँखें झपने लगी....       और आँची भी जयन्त के जाने की खबर से परेशान थी,उसका मन उदास था,जयन्त इतने दिनों से उसके साथ रहा था,इसलिए शायद मन ही मन वो जयन्त को पसंद करने लगी थी,लेकिन फिर वो अपने बारें मे कुछ और ही सोचने लगी,मैं ठहरी गरीब ,भला मेरा और जयन्त बाबू का क्या मेल,मैं जयन्त बाबू के मुकाबले में कुछ भी नहीं हूँ,मैं ना तो पढ़ी लिखी हूँ और ना ही अमीर हूँ,भला जयन्त बाबू मुझ जैसी गँवार को अपनी जिन्दगी में क्यों शामिल करने लगे....      मैं अगर जयन्त बाबू से अपने मन की बात कह भी दूँ तो वो कभी भी मेरा प्यार स्वीकार नहीं करेगें, क्योंकि उनकी और मेरी हैसियत में जमीन आसमान का अन्तर है,जयन्त बाबू के पिता शहर के नामी गिरामी व्यापारी हैं और मेरे बाबा एक मामूली से मछुआरे हैं,वो तो उन सभी का बड़प्पन है जो हमारे घर में रुक गये और हमारे यहाँ का खाना खा लिया,वरना कोई और होता तो सीधे मुँह बात भी ना करता हमलोगों से, वैसे भी जिन्दगी में हरदम मनचाहा थोड़े ही मिलता है,ये तो सब नसीब का खेल है,शायद मेरी  किस्मत में जयन्त बाबू से मेरी इतनी ही मुलाकात लिखी थी,खैर! वे जहाँ भी रहे खुश रहे,अब शायद ही कभी उनसे मिलना हो पाएगा और यही सब सोचते सोचते आँची को नींद आने लगी....      उधर जयन्त के मन में वही सब बातें चल रहीं थीं,जिनके कारण सुमेर सिंह ने उसकी ऐसी हालत कर दी थी और अब सुमेर सिंह से निपटने के लिए वो नई नई योजनाएंँ बना रहा था,उसके मन में दूर दूर तक भी आँची से दूर जाने का ख्याल नहीं था,आँची जैसा उसके बारें में सोचती थी,जयन्त वैसा बिलकुल भी आँची के बारें में नहीं सोचता था.....     ऐसे ही वो सब सोचते सोचते जयन्त भी सो गया,भोर हुई तो चिड़ियों के शोर से आँची उठी और वो दूध दुहने के लिए गाय की कोठरी में चली गई,वो दूध लेकर वापस लौटी तो तब तक नलिनी भी जाग उठी थी,तब नलिनी ने आँची पूछा...."जाग गई बेटी!","हाँ! माँ जी!", और फिर ऐसा कहकर आँची ने नलिनी के चरण स्पर्श कर लिए....   आँची के संस्कार देखकर नलिनी तो उस पर मोहित हो गई,लेकिन वो बेचारी कैंसे अपने मन की बात सबसे कहती,इसलिए वो मन की बात मन में ही दबाकर रह गई,इसके बाद आँची ने चूल्हे पर चाय चढ़ा दी और नाश्ते की तैयारी करने लगी,उसने जल्दी से आलू उबालकर उसकी सूखी सब्जी बनाई और पूरियाँ बेल बेलकर रखने लगी,जब वो पूरियांँ बेल चुकी तो,कढ़ाई चढ़ाकर उन्हें तलने लगी,इतने में सभी स्नान वगैरह करके झोपड़ी में आ गए और फिर आँची ने सबके सामने नाश्ता परोस दिया......

क्रमशः...

सरोज वर्मा....