सावन का फोड़ - 17 नंदलाल मणि त्रिपाठी द्वारा क्राइम कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सावन का फोड़ - 17

लेखराज तुम्हे जहां हम भेज रहे है उसे सपनो कि नगरी कहते है वहां तो माल मिलना बहुत आसान है क्योकि हर कमसिन खूबसूरत बाला फिल्मी दुनियां कि स्टार बनना चाहती और बम्बई के सपने संजोती है वहाँ पहुँचने एव फिल्मी दुनियां में कुछ दिन रात गुजारने के बाद उसे अंधी गली कि अंधी दुनियां ही मिलती जहां बहुत तो मर खप जाती बहुत कम ही लौट कर आती है.लाखो में एक दो अपना सब कुछ गंवाने के बाद स्टार भी बन जाती जो औरों के लिए नजीर पेश करती जिसकी प्रेरणा में जाने कितनी जाने गुमनामी के अंधेरे में खो जाती और बरखुरदार लेखराज हमारे धंधे में गोली बारूद हत्या बलत्कार जैसे गंदी असमाजिक हरकते नही होती हमारे धंधे में प्यार कि फुहार खुशबू गुलाब कि तरह होती है जो हवाओ के झोंको संग खुद चाहने वालो के पास पहुंच जाती और खुशबू कि ठंडक से चाहने वालो को पल दो पल सकून बक्स लौट आती सोचो मत ज्यादा नुख्ताचीनी मत करो लेखराज मैंने तुम्हें धंधे कि बारीकियों को कितनी जल्दी समझा दिया हमे विश्वाश है कि तुम समझ भी गए होंगे तुम कोई भी व्यवसाय करना चाहोगे तजुर्बा चाहिए कोई नौकरी करोगे सरकारी या गैर सरकारी प्रशिक्षण चाहिए लंबी चौड़ी डिग्री चाहिए हमारे धंधे में कुछ नही चाहिए जो चाहिए वह खुद मिल जाएगा ग्राहक माल तजुर्बा लेखराज ने कहा आयशा मॉन गए गजब औरत हो जो बड़े बड़े कि औकात बता तो लेखराज और आयशा कि बातों को बड़े ध्यान से सुन रहा जंगेज बोला तभी तो यह हमारी जान है ।आयशा कि सबक लेकर लेखराज ने लौटने कि बजाय बम्बई जाना उचित समझा और जिस गाड़ी से वह कलकत्ता तक जंगेज को लेकर आया था उसी से मुंम्बई जाने का फैसला कर लिया ।लेखराज मुंबई के लिए आयशा के निर्देशन देख रेख में अपने सपनो को हकीकत का रंग देने की नियत से चल पड़ा आयशा ने चार पांच नाम और पता लेख राज को दिए थे।डॉ सुहेल तय्यब ने कुछ दिन बाद कर्मा का दूसरा ऑपरेशन किया और उसकी इंफेक्टेट ओवरी निकाल दिया कर्मा के  स्वास्थ में पहले ऑपरेशन से ही सुधार होने लगा था दूसरे ऑपरेशन के बाद कर्मा धीरे धीरे विल्कुल स्वस्थ होने लगी और एक महीने बाद डॉ सुहेल तय्यब ने कर्मा को अस्पताल से छुट्टी देने का निर्णय लिया ।कर्मा  ने आयशा से वापस लौटने कि बात बताई कर्मा कि निगरानी कर रहे बिहार पुलिस के चारो सिपाहियों और सब इंस्पेक्टर बुरहानुद्दीन को कर्मा के वापस लौटने कि बात पता  चली तो उन्होंने अपने बिहार अधिकारियों को सारे हालात कि जानकारी स्प्ष्ट करते हुए उचित निर्देश की प्रतीक्षा करने लगे बिहार पुलिस उच्चाधिकारियों ने बंगाल पुलिस से सलाह मशविरा करते हुए यह अनुरोध किया कि जंगेज और आयशा कि गतिविधियों पर नजर रखते हुए सम्भव हो तो बिहार पुलिस से कोऑर्डिनेट करे बंगाल पुलिस ने बिहार पुलिस के अनुरोध को स्वीकार कर लिया बिहार एव बंगाल पुलिस जो भी वार्ता करती निर्णय लेती आयशा को जसनकारी हो जाती वह उसके अनुसार अपनी योजनाओं को धार देती ।कर्मा नवी बरकत और जोहरा लौट आए जब यह खबर करोटि तक आम हुई उसने फौरन कर्मा को बुलाया कर्मा बिना किसी हीला हवाली के करोटि के हुजूर में हाजिर हो गयी करोटि को यह बात मालूम थी कि कलकत्ता इलाज के दौरान कर्मा जोहरा अद्याप्रसाद रजवंत एवं एक दूसरे से मिले है और जान पहचान है ।करोटि ने कर्मा को आदेश दिया जोहरा कोशिकीपुर जाए और अपने कार्य को अंजाम तक पहुंचाए मरता क्या न करता कर्मा ने करोटि को आश्वस्त किया कि जोहरा कोशिकीपुर अवश्य जाएगी और हुजूर के काम को अंजाम देगी कर्मा और जोहरा लौट आई और सही वक्त का इन्तज़ार करने लगे कभी कभार करोटि  कर्मा के बजाए जोहरा को बुलाता साथ वक्त बिताता क्योकि कर्मा को डॉक्टरों ने हिदायत दे रखी थी और कर्मा के पास कोई नई पौध थी नही  वह खुद किसी नई पौध के फंसने का इंतज़ार कर रही थी इस तरह से वक्त गुजर रहा था ।दो तीन महीने बीतने के बाद जोहरा को हल्का बुखार एव उल्टी हुई डॉक्टरों ने बताया की जोहरा माँ बनने वाली है करोटि को जब इस बात कि खबर लगी उसने बिना किसी देरी के कर्म को बुलाया जोहरा भी साथ थी उसने कर्मा से कहा कर्मा बाई जोहरा अपने बच्चे को कोशिकीपुर में ही जनेगी कर्मा कि सिटीपिट्टी गुम हो गयी वह बोली हुजूर कि मर्जी खुदा कि मर्जी करोटि बोला बहुत जल्दी जोहरा को कोशिकीपुर पहुँच जाना चाहिए कर्मा ने कहा अन्नदाता एक दो दिन में जोहरा कोशिकीपुर में होगी ।कर्मा ने लौटकर जोहरा को भिखारियों जैसे फटे पुराने कपड़े पहना दिए और हिदाययत दिया कि वह किसी तरह बचते बचाते कोशिकीपुर पहुँच जाए और अद्याप्रसाद के घर मे अपना जगह बनाए और करोटि के कार्य को अंजाम तक पहुंचाए तीन महीने कि गर्भवती थी जोहरा उंसे मालूम था की उसकी कोख में करोटि कि ही नाजायज औलाद पल रही है मौत उसकी नियत थी सिर्फ खुदा का भरोसा था की शायद कोशिकीपुर से उसके जिंदगी के अंधेरे  की रोशनी निकले। कातिक का महीना कोशिकीपुर वाले लगभग हर वर्ष बाढ़ कि विभीषिका से दो चार होते कोशी कोशिकीपुर के लिए कॉल जैसी ही थी उस वर्ष भी बाढ़ का कहर तो था ही लेकिन बहुत हानिकारक नही अपेक्षाकृत कोशिकीपुर की निर्धारित नियत से कम ।जोहरा जिस गांव से गुजरती कुछ मनचले उस पर अपना दांव आजमाने कि कोशिश करते जोहरा ने समझ लिया कि वह कोशिकीपुर नही पहुँच सकती रास्ते मे ही उसे किसी अनजान हादसे का शिकार होना पड़ सकता है उसने कोशिकीपुर पहुँचने के लिए पागल बनने का नाटक करते हुए पागलों कि तरह हरकत करने लगी  ऐसा हाव भाव करने लगी की लोग उसे खतनाक पागल समझे हुआ भी यही जिधर से जोहरा गुजरती बच्चे उसे पत्थर ईट मारते वह बचती कभी पत्थर लग भी जाते इस प्रकार वह कोशिकीपुर गांव कि सीमा में दाखिल हुई।गांव के बच्चे उसे ढेला पत्थर मारते वह बच्चों को दौड़ाती जोहरा कोशिकीपुर गांव के बाहर बरगद के पेड़ के नीचे बैठी रही किसी को दया आती तो उसे कुछ खाने के लिए रोटी के टुकड़े फेंक देता धीरे धीरे बात पूरे कोशिकीपुर गांव में फैल गयी कि गांव के बाहर बरगद पेड़ के नीचे खतरनाक पागल आई है सुबह जब गांव कि औरतें शौच के लिए जाती तब जोहरा उन्हें कुछ नही बोलती लेकिन दिन चढ़ते ही आने जाने वालो को देख कर खूंखार पागलों जैसी हरकत करती।