तमस ज्योति - 17 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 17

प्रकरण - १७

मेरी कक्षाएँ ख़त्म होने के बाद रईश मुझे लेने आया और हम दोनों घर चले गए। मुझे लगा कि जब मैंने रईश को फातिमा से मिलवाया उसके बाद रईश बहुत शांत सा हो गया था। स्कूल से घर तक के सफर के दौरान मैंने एक-दो बार उससे इस बारे में पूछने की कोशिश भी की, लेकिन वह पूरे रास्ते चुप ही रहा। मैंने बार बार उसके मन की बात जानने की कोशिश की लेकिन वह कुछ भी नहीं बोल रहा था। ऐसा लग रहा था मानो उसे किसी बात का सदमा लग गया हो! बाद में मैंने सोचा की रास्ते में उसके साथ इस मुद्दे पर बात करना उचित नहीं होगा। घर जाकर मैं शांति से उससे इस बारे में पूछूंगा।

थोड़ी देर में हम दोनों घर पहुंच गये, तब दोपहर का एक बजा था। फिर हम सब डाइनिंग टेबल पर एक साथ खाना खाने बैठे। हमारे घर में हमेशा से यही नियम था कि हम सब लोग हमेशा एक साथ बैठकर ही खाना खाते थे। मेरे पिता का हमेशा मानना था कि डाइनिंग टेबल वह जगह है जहां पूरा परिवार एक साथ होता है और एक-दूसरे के साथ सारी चर्चाएं कर सकता है। अधिकांश घरों में जीवन के सुख-दु:ख की चर्चा भी यही होती है।

ऐसी ही एक चर्चा आज हमारी डाइनिंग टेबल पर भी होने वाली थी। 

खाना खाते समय मेरी मम्मीने रईश से पूछा, "रईश! तुम्हे रोशन के विद्यालय जाकर कैसा लगा?"

रईशने उत्तर दिया, "मम्मी! वहा जाकर मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। लेकिन साथ ही साथ मुझे एक बात का दु:ख भी हो रहा था कि वहां कितने छोटे-छोटे बच्चे थे! लेकिन वे सभी जन्म से ही अंध थे! कभी-कभी उन्हे देखकर मुझे ये भी खयाल आता था कि आखिर प्रकृति इतनी क्रूर भी कैसे हो सकती है? छोटे-छोटे फूलों जैसे कोमल बच्चों को इतनी कड़ी सजा कैसे दे सकते है ईश्वर? लेकिन दूसरे ही पल मेरे मन में यह भी ख्याल आता था की भले ही उन्होंने ऐसे बच्चों के जीवन में दर्द तो पैदा किया है लेकिन उस दर्द की भरपाई के लिए उन्होंने ममतादेवी जैसी महिला को भी तो भेजा है!

ममतादेवी जैसे लोगों को देखकर यह भी ख्याल आता है कि प्रकृति ऐसे अच्छे लोगों को उनके जीवन में भेजकर उनका उद्धार भी तो कर रही है! भगवान को भी तो इस संसार में अपना संतुलन बनाए रखना है, और इसीलिए भगवान जिनको दर्द देता है उनको दवा भी तो देता है! ममतादेवी ही शायद उन अंध बच्चों की वो दवा है।

मेरी मम्मी ने फिर पूछा, "और फातिमा! क्या तुम फातिमा से मिले? तुम्हे वो कैसी लगी? उसकी वजह से ही रोशन की जिंदगी रोशन हुई है। तुम्हे पता है अब तो रोशनने फातिमा की मदद से ब्रेल लिपि भी सीखाना शुरू कर दिया है। वह फातिमा ही है, जिसकी वजह से अब रोशन की टी.वाई.बी.एस.सी. की अंतिम परीक्षा जो अधूरी रह गई थी, वो अब इस साल उसे दे सकता है।”

रईशने बताया, "हाँ माँ, मैं भी उससे मिला था।" 

रईशने ममतादेवी के बारे में तो बहुत कुछ कहा लेकिन जब फातिमा की बात आई तो उसने कुछ भी नहीं कहा। उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मेरे मन में कई सवाल घूमने लगे लेकिन अभी मुझे नहीं लगा कि रईश से इस मामले में और कुछ पूछना ठीक होगा। मैंने सोचा, खाना खा लेने के बाद शांति से रईश से इस मसले पर मैं बात करूंगा। उस दिन रईश का इस घर में आखिरी दिन था। दूसरे दिन उसे फिर वापस अहमदाबाद जाना था, इसलिए मैंने मन बना लिया कि उसके जाने से पहले मैं उससे फातिमा के विषय पर जरूर बात करूँगा।

जब मैं यह सोच रहा था, तभी मेरे पिता की आवाज़ से मेरे विचार बाधित हुए। 

वह दर्शिनी से कह रहे थे, "दर्शिनी! तुम क्या बार बार अपने फोन को देख रही हो? पहले शांति से खाना खा लो। तुम्हारा फोन कहीं नहीं जा रहा है। मुझे समझ नहीं आता कि आजकल के बच्चो को पूरे दिन मोबाइल फोन की जरूरत क्यों पड़ती है? खाना खाते समय भी तुम लोग चैन से खा नहीं सकते?"

दर्शिनीने पापा को सोरी कहा और बोली, " सोरी पापा! मैं अब और नहीं देखूंगी!" इतना कहकर वो चुप हो गई और मोबाइल एक तरफ रख दिया।

लेकिन ये बात बोलते समय उसकी आवाज़ में जो डर था वो मेरे कानों में गूंज रहा था। जब प्रकृति हमसे एक शक्ति छीन लेती है तो वह हमें दूसरी शक्ति दे देती है। हालाँकि मेरी आँखो की रोशनी तो चली गई थी लेकिन अब मेरे कान पहले से ज्यादा काम करने लगे थे। और इसीलिए मुझे दर्शिनी की आवाज़ में जो डर था उसे मैं महसूस कर पाया।

अब हमने खाना खा लिया था। 

रईश को कल वापस अहमदाबाद जाना था इसलिए वह अब अपना सामान पैक कर रहा था। मैं धीरे-धीरे चलकर उसके कमरे तक पहुंच गया।

मैं अभी यह तय करने की कोशिश ही कर रहा था कि बातचीत कैसे शुरू करूं तभी रईशने सामने से ही मुझसे पूछा, "रोशन! मुझे पता है कि तुम यहां क्यों आए और तुम मुझसे क्या पूछना चाहते हो? फातिमा से मिलने के मेरा बाद व्यवहार अचानक बदल गया यही तुम जानना चाहते हो, है ना?"

मैंने कहा, "हां, मैं भी यही जानना चाहता हूं क्योंकि, जब से मैंने तुम्हे फातिमा से मिलवाया है उसके बाद से मुझे लगता है कि तुम बहुत शांत हो गये हो और इस बारे में बिल्कुल भी बात नहीं कर रहे हो! ऐसा क्या है जो तुम इस कदर चुप हो गए हो? उसके बारे में मुझे कुछ तो बताओ।"

मेरी बात का उत्तर देते हुए रईश बोला, "मैंने इस फातिमा की फ़ोटो को अखबार में देखा था। उसमें उसका नाम तमन्ना था। इसीलिए मैं सोच रहा हूं की अगर ये वही तमन्ना है, तो फिर वो अपना नाम फातिमा क्यों बताती है? जहां तक मुझे याद है तमन्ना अहमदाबाद के एक बहुत बड़े व्यापारी, अग्रवाल साहब की बेटी थी। पर उसे यहाँ पर ऐसी नौकरी करने की क्या जरूरत होंगी? भाई! मैंने ये सब बाते कुछ साल पहले अखबार में पढ़ी थी। मुझे अधिक जानकारी तो याद नहीं है, लेकिन हर जगह से उसके लापता होने की खबरें आ रही थी। इसलिए केवल यही चेहरा और कुछ जानकारी मुझे याद है। मैंने गूगल पर भी काफी सर्च किया, लेकिन उसके बारे में कोई भी जानकारी मुझे अब कहीं नहीं मिल रही है। इसलिए मैं दुविधा में पड़ गया हूं। फिलहाल मैं खुद ही भ्रमित हूं, तो फिर मैं तुम्हे क्या बताऊं? और इसीलिए मैं चुप रहा। मेरा मन कहता है कि इस फातिमा और तमन्ना के बीच में जरूर कोई रिश्ता होगा। लेकिन मैं इस बात से परेशान हो गया हूं कि मैं तुम्हे इस बात का सबूत कैसे दूं!” 

ये सुनकर मैंने कहा, "ओह, भाई! यह तो बहुत बड़ी गड़बड़ है! मैं उस पर इतना भरोसा करता हूं कि मैं तुम्हारी बात पर यकीन ही नहीं कर पा रहा हूं। वह बच्चों को भी हर बात बड़े प्यार से समझाती है। लगता ही नहीं है कि वह खुद किसी मुसीबत में होगी? भाई! तुम्हारी आंखों को जरुर कोई धोखा हुआ होगा। मैं मान ही नहीं सकता हूं तुम्हारी ये बात।"

रईशने कहा, "नहीं भाई! उसके बाएं गाल पर कान के थोड़ा करीब एक तिल से थोड़ा बड़ा मस्सा है, जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह वही तमन्ना ही है। तमन्ना की उस फोटो में भी ऐसा ही एक मस्सा था जो मुझे अभी भी याद है। मुझे पूरा यकीन है कि यह तमन्ना ही है। रोशन! अब तो तुम उसके अच्छे दोस्त बन गये हो तो क्या तुम उसके परिवार या उसके घर के बारे में कुछ भी जानते हो? क्या उसने कभी भी तुम्हें अपने परिवार के बारे में बताया है? तुमसे इस बारे में कभी भी कोई चर्चा की है?"

मैंने कहा, "नहीं भाई! मैंने कभी भी उसके साथ इस बारे में कोई व्यक्तिगत चर्चा नहीं की है।" 

रईशने बताया, "भाई, मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है। तुम्हें समय मिलते ही तुम इस बारे में उससे पूछना, ताकि जो भी सच है वो सामने आ जाए।"

मैंने भी कहा, "हां, तुम सही कह रहे हो। मैं कल ही फातिमा से इस बारे में चर्चा करूंगा। चलिए अब इस बात को यही खत्म करते है और अब तुम मुझे ये बताओ की, तुमने अपनी पैकिंग पूरी कर ली है क्या?" 

रईशने कहा, "हां हो गई है।" 

मैंने भी उसे कहा, “और तुम भी वहां जाकर नीलिमा को अपने दिल की बात बताना नहीं भूलना... समझे भाई?”

रईशने कहा, "हाँ! हाँ! मेरे भाई! नहीं भूलूंगा बाबा! वहा जाकर सबसे पहला काम मैं नीलिमा को अपने दिल की बात बताने का करूंगा। 

अगले दिन रईश अहमदाबाद चला गया और मैं कई सवालों के साथ फातिमा से मिलने विद्यालय गया।

(क्रमश:)