तमस ज्योति - 16 Dr. Pruthvi Gohel द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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तमस ज्योति - 16

प्रकरण - १६

अगले दिन रईश मेरे साथ विद्यालय आया। वहाँ पहुँचने पर रईशने मुझसे कहा, "वाह! रोशन! यह विद्यालय तो बहुत ही अच्छा है। दरवाजे के ठीक बाहर सरस्वती माता की एक विशाल मूर्ति है। यहां के परिसर में प्रवेश करते समय मुझे एक अलौकिक शांति का एहसास हुआ जिसका मैं शब्दों में तुमसे वर्णन नहीं कर पा रहा हूं।" 

मैंने कहा, "मैंने इस विद्यालय को केवल अपने मन की आंखों से देखा है, लेकिन मैं समझता हूं कि जहां फातिमा जैसी शिक्षिकाएं और ममतादेवी जैसे व्यक्तित्व रखनेवाले लोग हों, वह जगह वास्तव में सुंदर ही होनी चाहिए।"

रईश बोला, "तुम सही कह रहे हो, पर वे दोनों है कहा?" रईश उन दोनों से मिलने के लिए बहुत उत्सुक था।

मैंने कहा, "चलो! मैं तुम्हें वहां ले चलता हूं। दरवाजे से लगभग बीस कदम की दूरी पर दाहिनी ओर ममतादेवी का कार्यालय है और उनके कार्यालय के बगल में स्टाफ रूम है जहां मैं, फातिमा और पांच अन्य शिक्षक भी बैठते हैं।" मेरी ये बात सुनकर रईश तुरंत बोल पड़ा, "अरे वाह रोशन! तुम तो काफी कुछ सीख गए हो।"

मैंने कहा, "हा! भाई! मैंने अब कदम गिनना भी सीख लिया है। फातिमाने मुझे यह सब सीखाया है। वो जो भी मुझे बताती है उस तरह मैं करता जाता हूं। उसके इसी प्रयास की वजह से मैं अब बिना किसी की मदद के कई काम खुद करने लगा हूं। और सच कहूं तो, यहां छोटे बच्चों की दुर्दशा को महसूस करके मुझे बड़ी हिम्मत मिलती है और अपनी परेशानी कम लगती है। मैंने रंगों की दुनिया कभी देखी तो है, इसलिए मैं इसकी कल्पना कर सकता हूं, लेकिन यहां मेरे ये जो छात्र हैं जिन्होंने कभी रंग ही नहीं देखे, वे कल्पना कैसे कर पाते होंगे! कई बार ऐसे ख्याल मुझे आते है। मैं अब अपने अंधेपन पर शोक नहीं मनाता। मैंने अब इसे एक चुनौती के रूप में देखना शुरू कर दिया है। मैं भी अब सामान्य लोगों की तरह जीने की कोशिश करता हूं। मैं अब यह मानने लगा हूं कि जितनी जल्दी आप अपनी परिस्थिति को स्वीकार कर लेंगे, उतना ही आप खुश रहेंगे।"

मेरी ये बात सुनकर रईश तुरंत बोला, "तुम इसके बारे में बिल्कुल भी चिंता मत करो। तुम देखना तो सही मैं अपने रिसर्च में बहुत आगे बढ़ूंगा और तुम्हारी आंखों की रोशनी जरूर वापस लाऊंगा। यह मेरा खुद से वादा है और मैं इसे जरूर पूरा करूंगा। चलो अब तुम मुझे ममतादेवी से और फातिमा से तो मिलवाओ।"

मैंने कहा, “हाँ, हाँ, चलो मिलवाता हूं दोनो से।” 

मैं अब रईश को पहले ममतादेवी से मिलवाने के लिए लेकर गया।

जब हम ममतादेवी के ऑफिस पहुंचे तो उनका पूरा कमरा अगरबत्तियों की खुशबू से भर गया था। जैसे ही मोगरे की खुश्बूवाली अगरबत्ती की महेक मेरी सांसों में आई तो मुझे एहसास हुआ कि वे दीया जला रही है। 

मैंने रईश से कहा, "लगता है ममतादेवी दीया जला रही हैं। हमें करीब पांच मिनट यही बाहर ही उनका इंतजार करना चाहिए।"

रईश बोला, "हां, हां तुम सही कह रहे हो। मुझे ममतादेवी को देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे उनका व्यक्तित्व बहुत ही राजसी हो। गुलाबी साड़ी में उनका व्यक्तित्व बहुत ही निखरकर सामने आ रहा है। उन्हे देखकर मुझे ऐसा लगता है जैसे कुछ तो बात रही होगी उनके बीते हुए जीवन में जिसने उनके इस व्यक्तित्व पर एक अलग ही प्रभाव डाला है।"

मैंने कहा, "हाँ रईश। शायद तुम सही हो सकते हो। मैं भी कभी-कभी उनसे बात करते समय ऐसा ही कुछ महसूस करता हूं। कोई तो कारण होगा जो हमें अभी तक पता नहीं है।"

हम दोनों ये बाते ही कर रहे थे कि तभी ममतादेवी की नजर हम दोनों पर पड़ी।

हमे वहा देखकर उन्होंने कहा, "अरे रोशन! तुम्हारे साथ यह लंबा-चौड़ा युवक कौन है? किसे लेकर आए हो?" 

मैंने रईश का परिचय ममतादेवी से करवाते हुए कहा, "मैडम! यह मेरा बड़ा भाई रईश है। वह गुजरात विश्वविद्यालय में पी.एच.डी. की पढ़ाई कर रहा है। वह वर्तमान में जानवरों की आंखों पर रिसर्च कर रहा है। और फिर उसमे अगर उसे सफलता मिली तो फिर वो मनुष्य की आंखो पर भी काम करना चाहता है और हम जैसे लोगों की आंखो की रोशनी वापस लाना चाहता है।"

ये सुनकर ममता देवी खुश होकर बोली, "वाह! यह तो बहुत ही अच्छी बात है। आशा है कि आप जानवरों की आंखों पर अपने रिसर्च में सफल होंगे और फिर आगे बढ़ेंगे और धीरे-धीरे मानव की आंखों पर अपने रिसर्च को आगे बढ़ाएंगे ताकि भविष्य में आप रोशन के जीवन को तो रोशन करेंगे ही, साथ ही साथ हमारे अंध विद्यालय के छात्रों के जीवन को भी रोशनी से भर सके। मेरा मन कहता है की आप ये जरूर कर पाएंगे। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि आप समाज के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।"

रईश बोला, "हाँ, मैडम। जब रोशनने उस दुर्घटना में अपनी आँखें खो दी, तभी मैंने सोचा था कि मैं इस कार्य के लिए आगे बढूंगा और अपने भाई की आँखों की ज्योति वापस लाऊंगा।"

रईश की यह बात सुनकर ममतादेवी को रईश पर बहुत गर्व हुआ और बोली, "रईश! तुम मुझसे बहुत छोटे हो। तुम मेरे बेटे की उम्र के हो, लेकिन मैं तुम्हारे समर्पण और विश्वास के लिए तुम्हारा बहुत सम्मान करती हूं। आज की तारीख में जब कोई इंसान किसी बुरी या कठिन परिस्थिति में फंस जाता है तो वह सिर्फ भगवान को दोष देने का ही काम करता है, लेकीन तुमने ऐसा न करते हुए अपने भाई के जीवन में आई कठिनाइयों से सकारात्मक प्रेरणा ली है। उसके जीवन में जो भी घटित हुआ, उस पर से सकारात्मक प्रेरणा लेकर उसके जीवन में रोशनी लाने का फैसला किया। मेरे विचार से तुमने इस समाज के लिए एक बहुत अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया है। भविष्य में तुम्हारे रीसर्च से न केवल तुम्हारे भाई को, बल्कि समाज के उन सभी लोगों को भी लाभ होगा जिनकी स्थिति आपके भाई जैसी ही होगी। मैं तुम्हें हृदय से आशीर्वाद देती हूं कि तुम अपने कार्य में जरूर सफल होंगे।

रईशने ममता देवी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा, "बहुत बहुत धन्यवाद मैडम।" 

फिर हम ममतादेवी के कार्यालय से निकलकर मेरे स्टाफरूम की ओर चल पड़े। वहां फातिमा और अन्य शिक्षक भी बैठे थे। मैंने सभी को रईश से मिलवाया। रईशने सभी का औपचारिक अभिनंदन भी किया।

उसके बाद मैं रईश को उस जगह के करीब ले गया जहां से फातिमा की आवाज आ रही थी और उसका परिचय कराते हुए कहा, "रईश! यह फातिमा है। उसने ही मुझे यहा पर नौकरी दिलाई है और मैं उसके लिए उसे जितना भी धन्यवाद दूं वह कम ही है।"

फतिमाने रईश से हेल्लो कहा। रईशने भी फातिमा से हेल्लो कहा। उसके बाद फिर रईश मानो एकदम चुप सा हो गया ऐसा मुझे लगा। उन दोनों के बीच फिर कोई बात नहीं हुई।

रईश अचानक एकदम चूप हो गया इसलिए मैंने उससे फिर पूछा, "रईश! तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो? तुम अचानक इतने चुप क्यों हो गए हो?"

रईशने कहा, "वो तो बस ऐसे ही। चलो, मुझे अभी देर हो रही है। मुझे अभी यहां की सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी में एक सर है उनसे मिलना है, तो क्या मैं अभी जाऊं? फिर कल मुझे अहमदाबाद भी तो जाना है तो फिर अपना सामान भी पैक करना होगा। जब तुम अपनी कक्षाएं समाप्त कर लो तो मुझे बताना। मैं तुम्हे यहां लेने आ जाऊंगा।"

मैंने कहा, "तो फिर तुम जाओ। मैं फातिमा से कहूंगा कि जब मेरी क्लास खत्म होगी तो वह तुम्हें बुला ले।" 

रईशने मुझसे कहा, "हाँ, अच्छा ठीक है तो फिर मैं जा रहा हूँ।" इतना कहकर रईश वहा से चला गया। 

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि फातिमा से परिचय कराने के बाद रईश अचानक एकदम चुप क्यों हो गया?

मैंने सोचा, मैं घर जाकर रईश से इस बारे में चर्चा करूंगा। फिर मैं अपनी कक्षाएं लेने के लिए चला गया।

(क्रमश:)